बी एड - एम एड >> वाणिज्य शिक्षण वाणिज्य शिक्षणरामपाल सिंहपृथ्वी सिंह
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बी.एड.-1 वाणिज्य शिक्षण हेतु पाठ्य पुस्तक
6. निरीक्षण अध्ययन पद्धति
(SUPERVISED STUDY METHOD)
निरीक्षण अध्ययन पद्धति को कुछ लोग निर्देशित अध्ययन पद्धति भी कहते हैं।कहा
किसी भी नाम से जाय, दोनों में कोई अन्तर नहीं है। प्रस्तुत अध्ययन में इस
पद्धति को निरीक्षित अध्ययन पद्धति के नाम से ही पुकारा जायेगा, क्योंकि
निर्देशित अध्ययन शब्द इस पद्धति के स्वभाव का पूर्णरूपेण प्रतिनिधित्व नहीं
करता है। निरीक्षित अध्ययन पद्धति का विकास, परम्परागत शिक्षण पद्धतियों के
दोषों तथा कमियों को दूर करने हेतु 19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में हुआ
और सामाजिक विषयों का शिक्षण इस पद्धति के द्वारा अत्यन्त सफलता से होने लगा।
निरीक्षित अध्ययन पद्धति के अनुसार शिक्षण-कार्य किस प्रकार सम्पादित किया
जाता है. यह जानने के पूर्व इस पद्धति का रूप जान लेना आवश्यक है।
निरीक्षितअध्ययन पद्धति वह पद्धति है जिसके अन्तर्गत अध्यापक द्वारा कक्षा
तथा छात्रों के एक समूह का उस समय निरीक्षण किया जाता है जब वे अपनी डेस्कों
या मेजों पर कार्यरत होते हैं। इस पद्धति की विभिन्न विशेषताओं पर प्रकाश
डालते हुए वेस्ले महोदय ने लिखा है- इस पद्धति की सबसे प्रमुख विशेषता
अध्यापक की देख-रेख में अध्ययन-कालांश की व्यवस्था है। यह अध्ययन कालांश या
तो एक अभिव्यक्ति-कालांश का या दो कालांशों का एक हिस्सा हो सकता है। यह
अभिव्यक्ति से पहले या बाद में किया जासकता है। कभी-कभी अध्यापक निरीक्षित
अध्ययन में व्यतीत करने हेतु निर्णय ले सकताहै। क्लार्क तथा स्टार ने
निरीक्षित अध्ययन पद्धति की परिभाषा देते हुए लिखाहै-'निरीक्षित अध्ययन
पद्धति छात्रों को निर्देशन में अध्ययन करने तथा अध्यापक कोनिरीक्षण एवं
निर्देशित करने के अवसर प्रदान करता है। निरीक्षित अपयन पद्धति कीपरिभाषा
देते हुए क्लौसमियर ने लिखा है “निरीक्षित अध्ययन कालांश में छात्रअध्यापक
द्वारा दिये गये कार्य, छात्रों द्वारा प्रारम्भ की गई क्रियाओं तथा विभिन्न
प्रकारकी व्यक्तिगत योजनाओं पर कार्य करते हैं तथा अध्यापक प्रत्येक छात्र की
सहायताकरता है। शैक्षिक कालांश का आधा या कभी-कभी आधे से अधिक कालांश
निरीक्षितअध्ययन हेतु और बाकी वाद-विवाद, व्याख्या आदि के लिए प्रयोग किया
जाता है।
निरीक्षित अध्ययन पद्धति में अध्यापक द्वारा कार्य-निर्धारण करना अत्यधिक
महत्वरखता है। वास्तविक रूप से इस पद्धति की सफलता ही कार्य-निर्धारण तथा
छात्रों द्वारा कार्य के सम्पादित करने की विधि पर निर्भर है। यदि कक्षा का
स्तर समान है तो सम्पूर्णकक्षा को एक ही कार्य दे देना चाहिए। कार्य यदि
मौन-वाचन से सम्बन्धित है तो लिखितप्रश्न या समस्यायें भी उन्हें दी जा सकती
हैं। कार्य उन्हें किसी भी प्रकार दिया जाये,स्पष्ट होना चाहिए।
कार्य-निर्धारण अत्यन्त सोच-समझकर, योजना तथा शिक्षा के उद्देश्योंको ध्यान
में रखकर दिया जाना चाहिए। यदि कक्षा का स्तर समान नहीं है कक्षा में
तीनबुद्धि एवं मन्द बुद्धि दोनों ही पढ़ते हैं तो वहाँ कार्य निर्धारण करते
समय तीव्र बुद्धि,औसत बुद्धि तथा मन्द बुद्धि तीनों ही प्रकार के छात्रों के
लिए पृथक-पृथक कार्य निर्धारणहोना चाहिए। वाणिज्य में राष्ट्रपति के सम्बन्ध
में तीव्र, सामान्य तथा मन्द बुद्धि बालकोंको क्रमशः चुनाव अधिकार,
योग्यतायें, शीर्षक कार्य-निर्धारण के रूप में दिये जा सकतेहैं। नीचे इन
तीनों ही श्रेणियों के छात्रों द्वारा सम्पन्न करने हेतु दिये जाने वाले
कार्य का एक उदाहरण दिया गया है-
1. न्यूनतम कार्य
(1) राष्ट्रपति पद के लिए रखी गयी योग्यताओं की उपयोगिता व आवश्यकताओंको
ज्ञात करो।
(2) उपरोक्त दो कार्यों को पूरा करने के उपरान्त अपनी पुस्तकें बन्द कर दो और
जो कुछ पढ़ा है उसको संक्षिप्त में लिखो।
2. सामान्य कार्य
(3) राष्ट्रपति के अधिकार व कर्तव्यों को पढ़ो तथा उन्हें अपनी
अभ्यास-पुस्तिकामें संक्षिप्त रूप में लिखो।
3. अधिकतम कार्य
(4) राष्ट्रपति की चुनाव-प्रणाली का अध्ययन करो तत्पश्चात् एक काल्पनिकउदाहरण
लेकर स्पष्ट करो।
व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर आधारित कार्य-निर्धारण अत्यन्त कठिन है, अतः
इससम्बन्ध में अध्यापक को विशेष सावधानी रखनी चाहिए। ऐसा कार्य निर्धारण करते
समयअध्यापक को उपलब्ध साधनों तथा छात्रों की विशेषताओं का बराबर ध्यान
रखनाचाहिए।
निरीक्षित अध्ययन पद्धति में कार्य निर्धारण के अतिरिक्त दूसरा महत्वपूर्ण
तत्वछात्रों में निर्धारित कार्य को समुचित रूप से सम्पादित करने की योग्यता
का विकासकरना है तथा छात्रों को यह बताना है कि किस प्रकार अध्ययन करना
चाहिए।योकाम तथा सिम्पसन ने निम्नांकित योजनाओं के आधार पर अध्ययन करने
कीसिफारिश की है। छात्रों को अपना अध्ययन निम्नांकित क्रम से करने की आदत
डालनीचाहिए-
(1) शीर्षक पढ़िये।
(2) पाठ को सरसरी तौर से देखिये।
(3) पाठ के अन्त में दिये गये प्रश्नों का प्रयोग कीजिये।
(4) बड़ी इकाइयों का अध्ययन कीजिये।
(5) क्रियात्मक रूप से पढ़िये।
(6) स्वयं सस्वर वाचन कीजिये।
(7) आँकड़े व उदाहरणों को पढ़िये।
(8) अपने शब्दज्ञान को बढ़ाइये।
(9) रटकर याद मत कीजिये।
(10) क्रियात्मक अध्ययन हेतु सहायक-सामग्री प्रयोग कीजिये।
(11) अध्ययन के पश्चात् मूल्यांकन कीजिये।
योकाम तथा सिम्पसन के अनुसार छात्रों को अपना अध्ययन उपरोक्त बिन्दुओं केक्रम
से योजित करना चाहिए। छात्रों की योजना के अतिरिक्त अध्यापक भी छात्रों
कीयोजना का निर्माण कर सकता है। विनिंग तथा बिनिंग के अनुसार निरीक्षित
अध्ययनकी योजना एक अध्यापक निम्नांकित पाँच रूप में कर सकता है-
(1) सम्मेलन योजना।
(2) विशिष्ट अध्यापक योजना।
(3) काल विभाजन-योजना।
(4) द्विकाल-योजना।
(5) सामयिक योजना।
(1) सम्मेलन-योजना-यह योजना कमजोर एवं दुर्बल छात्रों के लिए है। सामान्य
कालांशों के बाद दुर्बल तथा कमजोर छात्रों को रोक लिया जाता है और
उनकोनिरीक्षित अध्ययन-पद्धति से पढ़ाया जाता है। यह सम्मेलन सामयिक एवं
ऐच्छिक तथाआवश्यक एवं दैनिक हो सकता है।
(2) विशिष्ट अध्यापक योजना-इस योजना के अन्तर्गत निरीक्षित अध्यापन हेतुपृथक
से विशिष्ट अध्यापकों की व्यवस्था की जाती है। इसमें छात्रों के समूह
अत्यन्तछोटे-छोटे रखे जाते हैं।
(3) काल-विभाजन योजना-इस योजना में दो अध्यापकों की आवश्यकता पड़तीहै। एक
अध्यापक शिक्षण कार्य करता है तथा दूसरा निरीक्षण। इसके अलावाकक्षा-कालांश को
भी दो भागों में विभक्त कर दिया जाता है। प्रथम भाग में शिक्षण कार्यहोता है
तथा दूसरे भाग में निरीक्षण-कार्य।
(4) द्विकाल-योजना-इस योजना के अनुरूप एक ही विषय-वस्तु के लिएलगातार दो
कालांश रखे जाते हैं। प्रथम कालांश में शिक्षण कार्य होता है तथा दूसरे
मेंनिरीक्षण। 45-45 मिनट के लगातार दो कालाशों के 90 मिनट के समय का विभाजन
मैबेल ई० सिम्पसन ने निम्न प्रकार किया है।
(i) पुनर्निरीक्षण।
(ii) कार्य निर्धारण।
(iii) शारीरिक व्यायाम।
(iv) कार्य का अध्ययन।
(5) सामयिक योजना-इस योजना के अनुसार दैनिक छात्रों द्वारा ही निरीक्षित
अध्ययन न कराकर समय-समय पर कराया जाता है, यथा-साप्ताहिक, मासिक आदि कैसे
पढ़ा जाए?
संक्षिप्त में, निरीक्षित अध्ययन पद्धति का एकमात्र उद्देश्य छात्रों को यह
सिखाना हैकि कैसे पढ़ा जाये? प्रायः यह देखा जाता है कि उच्चतर माध्यमिक
कक्षाओं के छात्रयह नहीं जानते हैं कि किस प्रकार उद्देश्यों को ध्यान में
रखकर पढ़ा जाए। विषय-वस्तुको रट भर लेना ही पर्याप्त है। पढ़ना वास्तविक रूप
से रटने से कहीं व्यापक अर्थरखता है। रटना छात्रों में अध्ययन-सम्बन्धी
उपयुक्त तथा उपयोगी आदतें नहीं डालसकता है और न रहने से प्राप्त ज्ञान स्थाई
ही होता है।
छात्र उपयोगी रूप से कैसे पढ़ें? उस प्रश्न का उत्तर केवल छात्रों तक ही
सीमितनहीं है। इस सम्बन्ध में अध्यापक के छात्रों के अध्ययन प्रारम्भ करने से
पूर्व ही कुछकर्तव्य हो जाते हैं। उदाहरण हेतु अध्यापक का प्रथम कर्तव्य है
कि छात्रों के भौतिकवातावरण को अध्ययम के उपयुक्त बना देना। दूसरा कर्तव्य है
विषय-वस्तु में छात्रों कीरुचि जागृत करना। छात्रों के लिए पर्याप्त प्रकाश
तथा हवा की व्यवस्था की जाये,जिसमें अधिक गर्मी-सर्दी नहीं हो. ऐसी व्यवस्था
हो। बैठने की व्यवस्था अच्छी प्रकार कीगई हो। यही सब बातें अध्ययन करने के
भौतिक वातावरण से सम्बन्धित हैं। दूसरा तत्वहै मानसिक वातावरण। मानसिक
वातावरण में ही हम जाग्रत रुचि को लेते हैं। अध्ययनकरने हेतु उपयुक्त मानसिक
वातावरण बनाना चाहिए। पढ़ने में छात्रों की रुचि जाग्रतकरनी चाहिए। छात्रों
की रुचि न केवल पढ़ने में ही जाग्रत करनी चाहिए, वरन् किसप्रकार
मितव्ययपूर्वक तथा अधिक से अधिक सरलतापूर्वक पढ़ा जाये, इस सम्बन्ध में
भीछात्रों को बताना चाहिए।
भौतिक एवं मानसिक वातावरण के अतिरिक्त दूसरा तत्व है, छात्रों में रटने
कीप्रवृत्ति को कम करना। रटना शिक्षा के उद्देश्यों को पूरा नहीं करता है।
वास्तव में छात्रों को बताया जाये कि किस प्रकार प्रत्येक पैराग्राफ का
अध्ययन किया जाये, और किसप्रकार प्रत्येक पैराग्राफ के मुख्य बिन्दु ज्ञात
किये जायें तथा किस प्रकार इन मुख्यबिन्दुओं को अपनी सुविधा हेतु संगठित तथा
व्यवस्थित किया जाये।
छात्रों में विषय-वस्तु की व्याख्या, विश्लेषण, समालोचना तथा आलोचना करने
तथानिष्कर्ष निकालने की क्षमता का विकास करना चाहिए। इससे छात्र विषय-वस्तु
को,जैसी पुस्तकों में है वैसी ही नहीं अपनायेंगे। ये विषय-वस्तु को परिवर्तित
भी कर सकतेहैं। इस प्रकार छात्रों में व्याख्या विश्लेषण समालोचना तथा आलोचना
करने व निष्कर्षनिकालने की शक्ति का विकास करके अध्यापक छात्रों में उपयुक्त
सर्वश्रेष्ठ तथा सही में विषय-वस्तु को अपनाने की क्षमता का विकास कर सकता
है।
वाणिज्य-अध्यापक को छात्रों के अध्ययन का निरीक्षण करते समय निरीक्षण केअलावा
उपरोक्त तथ्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए तथा छात्रों को बताना चाहिए किकिस
प्रकार वे बिन्दुओं को ध्यान में रखकर सफल अध्ययन कर सकते हैं। यहाँ पर एकबात
का ध्यान और रखना चाहिए कि अध्यापक का कार्य छात्रों को केवल यह नहींबताना है
कि कैसे पढ़ा जाये, वरन् इसके साथ ही साथ यह भी बताना है कि किसप्रकार
मितव्ययपूर्वक और अधिकाधिक सफलता के साथ पढ़ा जाये।
पद्धति के गुण (Merits of the Method)
हम निरीक्षित अध्ययन पद्धति में निम्नांकित गुणों को पाते हैं-
(1) पद्धति व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर आधारित है। प्रत्येक छात्र को अपनी
क्षमतातथा योग्यता के अनुसार अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होता है।
(2) यह पद्धति व्यक्तिगत संलग्नता के सिद्धान्त का अनुकरण करती है।
(3) पद्धति में करके सीखने का महान गुण है।
(4) व्यक्तिगत संलग्नता अनुशासनहीनता की समस्या को स्वतः ही दूर करदेता है।
(5) दुर्बल तथा कमजोर छात्र इस पद्धति से काफी लाभ उठा सकते हैं।
(6) इस पद्धति के अन्तर्गत छात्र एवं अध्यापक के सम्बन्ध मधुर होते हैं।
पद्धति के दोष (Demerits of the Method)
उपरोक्त गुणों के साथ पद्धति में निम्नांकित दोष भी देखने को मिलते हैं-
(1) यह पद्धति कुशल तथा दक्ष अध्यापकों के द्वारा ही सफलतापूर्वक अपनाई
जासकती है।
(2) इस पद्धति से तीव्र बुद्धि बालक अधिक लाभान्वित नहीं हो पाते हैं। यहाँ
तककि कभी-कभी तो यह उनके लिए बाधा बन जाती है।
(3) यह पद्धति छात्रों को स्वतन्त्रता पर आघात पहुँचाती है।
(4) यह पद्धति समय अधिक चाहती है। द्विकाल योजना के अन्तर्गत और भीअधिक समय
की आवश्यकता पड़ती है।
कुछ सुझाव (Some Suggestions)
डब्ल्यू० एस० मुनरो ने निरीक्षित अध्ययन पद्धति के सम्बन्ध में अपनी
पुस्तकडायरेक्टिंग लर्निंग इन दी हाई स्कूल में अग्रांकित सुझाव दिये हैं-।
(1) भौतिक वातावरण को अध्ययन के दृष्टिकोण से उपयुक्त बनाया जाये।
(2) छात्रों के दिये गये कार्य आदि का लेखा रखा जाये।
(3) कार्य निर्धारण के बाद यथाशीघ्न छात्रों को उस पर कार्य करने को
प्रेरितकिया जाये।
(4) छात्र कार्य से सम्बन्धित सभी सामग्री पहले एकत्रित कर लें।
(5) छात्रों को पूरा कार्य करने की दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ करने हेतु बैठने को
कहा जाये
(6) छात्रों को निर्धारित कार्य के रूप का स्पष्ट ज्ञान करा दिया जाये तथा
पहलेपाठ की तरफ भी ध्यान दिया जाये
(7) पाठ के अन्त में छात्रों से पाठ का सारांश लिखने को कहा जाये।
(8) अस्पष्ट तथ्यों को छात्रों को रेखांकित करने कहा जाये जिससे वे उससम्बन्ध
में अध्यापक से प्रश्न पूछ सकें।
(9) छात्र उस समय तक पढ़ें जब उनकी समस्या हल न हो जाये।
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