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शैक्षिक तकनीकी एवं कम्प्यूटर अनुदेशन

जे सी अग्रवाल

एस पी कुलश्रेष्ठ

प्रकाशक : अग्रवाल पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :424
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2534
आईएसबीएन :9789385079665

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चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ एवं डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद के दो वर्षीय बी. एड. के नवीनतम् पाठ्यक्रमानुसार

प्रणाली उपागम
Systems Approach

आज के शैक्षिक-तकनीकी युग में प्रणाली उपागम का नाम अब कोई नया नहीं रहा है। "प्रणाली उपागम' का प्रयोग पहले टैक्नोलॉजी, व्यापारीय एवं शासकीय कार्य प्रणालियों में काफी प्रचलित रहा है। इस उपागम के सम्प्रत्यय का सर्वप्रथम प्रयोग एवं विकास अभियन्त्रण तथा सैन्य विज्ञान के क्षेत्र में हुआ और बाद में इसने मानव-विज्ञान तथा सामाजिक एवं शैक्षिक विज्ञानों की चिन्तनधारा को भी काफी प्रभावित किया डा० श्रीवास्तव ने 1988 में इसकी चर्चा करते हुये लिखा है, "प्रणाली उपागम ने एक ऐसी विधि को जन्म दिया है, जिसका मूलभूत सिद्धान्त यह है कि यदि चिन्तन या विचार करना है तो छोटे-छोटे अंशों में नहीं, अपित् समग्र रूप से करना चाहिए। यह उपागम, समस्या और उसके समाधान का एक विस्तृत और प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत करता है। इसी कारण अब यह उपागम आधुनिक युग में अत्यन्त लोकप्रिय होता जा रहा है।

ऐतिहासिक आधार पर प्रणाली उपागम का सर्वप्रथम प्रयोग द्वितीय विश्व युद्ध के मध्य किया गया। फिर यह उपागम उद्योगों तथा प्रबन्धन में चर्चित होता हुआ शिक्षा के क्षेत्र में भी आ पहुँचा।

(It is the strategy to manage, control and improve the process and products of education.)

प्रणाली उपागम का अर्थ एवं सम्प्रत्यय
(MEANING AND CONCEPT OF SYSTEMS APPROACH)

प्रणाली उपागम दो शब्दों से मिलकर बना है-प्रणाली+उपागम प्रणाली से अभिप्राय, 'समग्रता' से होता है, जिसके सभी तत्त्व, अंग या घटक परस्पर सम्बन्धित, गुम्फित तथा स्व-नियन्त्रित होते हैं। प्रणाली उपागम समग्रता में विश्वास करती है। यह उपागम शिक्षण तथा प्रशिक्षण को सामाजिक एवं तकनीकी प्रक्रिया मानता है। उपागम 'छात्र-केन्द्रित होता है। संक्षेप में यह उपागम समस्याओं के समाधान के लिये निर्णयों पर पहुँचने की विधि है और यह विधि शिक्षण एवं प्रशिक्षण व्यवस्था को नये-नये परिवर्तनों के अनुसार बढ़ने तथा विकसित होने में सहायता करती है।

इस प्रणाली उपागम में शिक्षा एक ऐसी प्रणाली समझी जाती है जिसमें कुछ तत्व अदा (Input) के रूप में कार्य करते हैं। फिर ये ही तत्व एक प्रक्रिया (Process) से गुजरते हैं और प्रदा (Output) के रूप में निकलते हैं। प्रदा से ही उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।
 
 यही उपागम, शिक्षा को सक्रिय उत्पाद (Product) प्रणाली का स्तर प्रदान करता है तथा शिक्षा को एक उत्पादन के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता है।
 
प्रणाली उपागम की विशेषतायें
(CHARACTERISTICS OF SYSTEMS APPROACH)

 उपर्युक्त परिभाषाओं की विवेचना के आधार पर प्रणाली उपागम की निम्नांकित विशेषताओं का ज्ञान प्राप्त होता है—
 
1. अनुदेशन के नियोजन, विकास, प्रस्तुतीकरण तथा मूल्यांकन, "प्रणाली सिद्धान्त" पर आधारित होते हैं।
2. पर्यावरण (Environment) प्रणाली के विश्लेषण से उद्देश्यों के निर्धारण हेतु समुचित आधार प्राप्त होता है।
3. अनुदेशिक उद्देश्य (Instructional Objectives) इस प्रकार से सैट किये जाते हैं, जिससे उनकी प्राप्ति का निरीक्षण सरलता से किया जा सके।
4. छात्रों के विषय में ज्ञान तथा उनकी प्रकृति एवं विशेषताओं से परिचय, इस प्रणाली उपागम की सफलता के लिये आवश्यक तत्व हैं।
5. अनुदेशिक नीतियों (Instructional Strategies) का नियोजन तथा संचार विधि का चयन इस व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
6. प्रणाली उपागम के प्रारूप तथा पुनरावृत्ति-प्रक्रिया का मूल्यांकन एक विशिष्ट अंग होता है।
7. It is a response, different in degree rather than kind from the other good method."
8. प्रणाली उपागम एक समन्वित एवं गत्यात्मक समग्र है।
9. प्रणाली उपागम तत्वों की क्रमबद्ध व्यवस्था है जो एक विशिष्ट रीति से कार्य करती
10. यह मानव, धन तथा मशीन एवं सामग्री (Material) का प्रभावशाली ढंग से समस्या समाधान हेतु उपयोग करती है।

प्रणाली उपागम : संकल्पना
(SYSTEMS APPROACH : THE CONCEPT)

 प्रणाली उपागम, छोटे-छोटे उपागमों की तुलना में एक समग्र उपागम है। ये स्थानीय उपलब्ध प्रत्येक प्रकार के स्रोतों का, जटिल उपागमों के प्रारूप निर्माण में प्रभावशाली विधि से सहायता प्रदान करती है।
 
प्रणाली उपागम की मैथोडोलौजी (Methodology) की व्याख्या के समय चार प्रमुख पदों का प्रयोग किया जाता है—

(1) प्रणाली अभियान्त्रिकी (Systems Engineering)
(2) प्रणाली विश्लेषण (Systems Analysis)
(3) प्रणाली उपागम (Systems Approach)
(4) ऑपरेशनल शोध (Operational Research)

प्रणाली अभियान्त्रिकी (Systems Engineering) का उपयोग सर्वप्रथम 1940 में 'बैल टेलीफन लैब' में किया गया था। इसका प्रयोग विशेष रूप से फौज में तथा अन्तरिक्ष तकनीकी (Space Technology) के क्षेत्र में किया जाता है। यह प्रमुख रूप से कठोर शिल्प (Hardware) उपागम होते हैं।

ऑपरेशनल रिसर्च (Operational Research) ब्रिटिश ऑपरेशनल रिसर्च सोसायटी के अनुसार यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विज्ञान की विधियों का प्रयोग उद्योगों, व्यापार, सरकार तथा रक्षा आदि में, मानव, मशीन, धन एवं सामग्री (Material) की बड़ी व्यवस्थाओं में निर्देशन तथा प्रबन्धन के क्षेत्र में उठने वाली जटिल समस्याओं के समाधान में किया जाता है।

फ्लैजिल, हगिन्स तथा रौय (Flagle, Huggins & Roy) ने प्रणाली अभियान्त्रिकी तथा ऑपरेशनल रिसर्च में अन्तर बताते हये कहा है—

"The operational research team is more likely to be concerned with operations in being rather than with operations in prospect, and system-engineers are more likely to be engaged with the design of systems yet to be rather than in the operation of sys tems in being."
 
प्रणाली विश्लेषण (Systems Analysis) का सर्वप्रथम प्रयोग Rand Corporation द्वारा किया गया था। प्रणाली विश्लेषण 'अ-कठोर शिल्प' (Non-hardware) (या मृदुल शिल्प) प्रणाली में प्रणाली-उपागम (Systems Approach) का प्रयोग कही जाती है।

प्रणाली उपागम (Systems Approach)-उपर्युक्त तीनों सम्प्रत्यय, प्रणाली अभियान्त्रिकी, ऑपरेशनल रिसर्च तथा प्रणाली विश्लेषण में अनेक बातें समान हैं। प्रणाली उपागम (Systems Approach) इन तीनों के सभी महत्त्वपूर्ण तत्वों का प्रयोग करता है तथा उनमें अच्छे सम्प्रेषण हेतु प्रणाली विज्ञान' (Systems Science) के क्षेत्रों को बढ़ाता है।

डा० एम० एल० शर्मा के शब्दों में—

"Systems approach is an inter-disciplinary approach, which provides a framework within which to tie together many separate and possibly divergent distribution to the overall optimization of the problems."

प्रणाली उपागम एक मिलजुल कर कार्य करने की प्रणाली (Team Work) है, जिसमें विभिन्न विषयों जैसे-विज्ञान, अभियान्त्रिकी, गणित, सांख्यिकी, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, लेखाकारिता (Accountancy) तथा व्यावहारिक विज्ञानों के विशेषज्ञ मिलकर कार्य करते हैं।

प्रणाली उपागम में समस्या समाधान निहित होता है। सामान्यतः प्रणाली-उपागम एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा किसी व्यवस्था की आवश्यकताओं तथा समस्याओं को चिन्हित किया जाता है (उनकी पहचान की जाती है।) फिर समस्या का चयन किया जाता है, फिर समस्या समाधान के लिये विभिन्न विकल्पों में से सर्वाधिक उत्तम विकल्प का समाधान के रूप में चयन किया जाता है, प्राप्त समाधान तथा परिणामों का मूल्यांकन किया जाता है एवं आवश्यकतानुसार वांछित संशोधन किये जाते हैं।

इस प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पृथक-पृथक तत्वों का विश्लेषण नहीं करती वरन् तत्वों का विश्लेषण समग्र के आधार पर करती हुयी समस्या समाधान करने का प्रयास करती है। इसमें विश्लेषण के साथ-साथ संश्लेषण की प्रक्रिया भी महत्त्वपूर्ण होती है। यह प्रणाली-उपागम' व्यक्ति को अंश से पूर्ण की ओर ले जाती है।

प्रणाली-उपागम पर चर्चा करते हुये डा० आर०पी० भटनागर इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि "प्रणाली उपागम एक प्रकार से तार्किक समस्या समाधान प्रक्रिया है जो प्रमुख शिक्षा समस्याओं की पहचान कर, विकल्पों का अध्ययन करती है तथा समस्याओं के समाधान तक पहुँचती है। दूसरे शब्दों में "प्रणाली-उपागम एक ऐसा उपकरण है, जो शिक्षा की समस्याओं को प्रभावपूर्ण तथा कुशलतापूर्वक ढंग से हल करता है, यह चिन्तन की वह कला है जो समस्या समाधान (वैज्ञानिक सम्मत विधियों से) प्रस्तुत करती है।"

प्रणाली तथा उप-प्रणाली के संप्रत्यय
(CONCEPTS OF SYSTEM & SUB-SYSTEM)

प्रणाली तथा उप-प्रणाली के संप्रत्ययों की विवेचना नीचे की जा रही है—

प्रणाली के संप्रत्यय (Concept of System)

प्रणाली (System), एक व्यवस्था का द्योतक शब्द है, जिसका अभिप्राय क्रमबद्ध समग्न के संगठन से होता है। इसमें प्रत्येक भाग का दूसरे भाग से सम्बन्ध स्पष्ट होता है और यही सम्पूर्ण या समग्र का निर्माण करता है।

"A system is the organization of the industry. whole. clearly showing the inter relationship of the parts to each other and to the whole itself."

एक दूसरे विद्वान के अनुसार, "प्रणाली तो विभिन्न भागों का कुल योग है जो मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये स्वतन्त्र रूप से किन्तु साथ-साथ मिलकर कार्य करता है।"

**A system is sum total of parts working independently and working together to outcomes based on needs."

रिचर्ड ए० जौन्सन (Richard A. Johnson) के शब्दों में—

System is an organised or complex whole (an assemblage or combination of things or parts forming a complex unitary whole."

प्रणाली (System) शब्द का शाब्दिक अर्थ है- ऐसी वस्तुओं का योग जो किसी सतत चलने वाली अन्तःक्रिया या परस्पर-आश्रित-क्रियाओं द्वारा नियन्त्रित एवं संचालित होती हैं। प्रणाली एक विस्तृत तथा अनेक प्रत्ययों को व्यवस्थित रूप से समाहित करने वाली एक प्रक्रिया है।

आलपोर्ट (Allport) के अनुसार-"प्रणाली एक ऐसी वस्तु है जो किसी प्रकार की क्रिया से सम्बन्धित होती है और वह उस क्रिया में एक प्रकार का समन्वय और एकता स्थापित करती है। रौब (Robbe) ने प्रणाली का अर्थ बताते हुये कहा है कि "यह तत्वों की एक क्रमबद्ध व्यवस्था है जो विशिष्ट विधि से कार्य करती ह्यी अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सक्षम होती है।"

प्रणाली शब्द से एक समग्न (Whaile) का बोध होता है जिसके सभी तत्व/अंग/घटक परस्पर सम्बन्धित तथा स्व-नियन्त्रित होते हैं।

आर० एल० एकोफ (R.L.Ackom ने इसकी विशेषता बताते हये लिखा है, "यह एक प्रणाली है. एक समुच्चय है, जो विभिन्न तत्वों की क्रमबद्ध व्यवस्था है तथा जिसमें ये तत्व पारस्परिक सम्बन्धित तथा परस्पर आश्रित होते हैं।"

Crowford Robb ने इसे "विशिष्ट रीति से कार्य करने वाली तत्वों की क्रमबद्ध व्यवस्था" कहा है।
 
प्रणाली के मूलभूत तत्व (BASIC ELEMENTS/PARAMETERS OF A SYSTEM)

 किसी प्रणाली में निम्नांकित चार मूलभूत तत्व होते हैं

1. अदा (Input)
2. प्रक्रिया (Process)
3. प्रदा (Output)
4. परिवेश (Environment)

प्रदा (Output)-किसी प्रक्रिया द्वारा अदा का बदला हुआ रूप 'उत्पादन' कहलाता है। (It is the product of a system)|
 
परिवेश (Environment)-परिवेश का अर्थ है वे परिस्थितियाँ जिनमें प्रणाली कार्य करती है।

अदा (Input)-अदा से तात्पर्य उस कच्चे माल/वस्तुओं से है जिन्हें प्रणाली में डालकर किसी वस्तु का निर्माण किया जाता है (What is put into a system)|

प्रक्रिया (Process)-प्रक्रिया में वह सभी कुछ सम्मिलित होता है जिसकी सहायता से अदा के रूप में प्रयुक्त कच्चे माल को उपलब्ध तकनीकी ज्ञान से उत्पादन के रूप में बदला जाता है। अदा प्रक्रिया के द्वारा प्रदा में बदली जाती है |(It refers to what goes on in a system.)

प्रणाली के मुख्य मूलभूत तत्वों को निम्नांकित चित्र के द्वारा प्रस्तुत किया गया है

परिवेश
अदा सूचना विषयवस्तु अन्य सामग्री
प्रक्रिया मानव तथा या मशीन
प्रदा उत्पादक या सेवायें ये
दोनों -
- परिवेश

चित्र-प्रणाली के मूलभूत तत्व

"A system draws inputs from the environment and gives outputs to the environi ment. A system has to operate within the confines of the environmental context. A sys tem cannot revolt against environmental constraints."

प्रणाली की विशेषतायें (CHARACTERISTICS OF A SYSTEM)

प्रणाली (System) की निम्नलिखित विशेषताएँ महत्त्वपूर्ण है

1. प्रणाली एक समन्वित तथा गत्यात्मक समग्र होती है।
2. यह परस्पर सम्बन्धित तथा आश्रित तत्वों की समुच्चय (Set) है।
3. इसके सभी तत्व, प्रणाली के मुख्य उद्देश्य प्राप्त करने में सहायक होते हैं।
4. प्रणाली में निश्चित उद्देश्य एवं लक्ष्य होते हैं।
5. समग्र प्रणाली का प्रभाव उसके विभिन्न तत्वों की देन से हमेशा अधिक होता है।
6. यह विभिन्न उप-प्रणालियों (Sub-systems) का मूलतः एक समूह (Combination) होता
7. एक प्रणाली के भाग तथा उपविभाग परस्पर सम्बन्धित होते हैं-(कुछ कम तथा कुछ ज्यादा अथवा कुछ प्रत्यक्ष रूप से एवं कुछ अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं) इनमें सम्बन्ध स्वाभाविक रूप में समग्र के साथ होते हैं।
8. एक प्रणाली, उसके विभिन्न भागों या उप-भागों की केवल योग ही नहीं होती वरन् प्रणाली में ये जिस रूप (Arrangement) से संरचित होती है वह ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है।
9. प्रत्येक प्रणाली की एक चहारदीवारी (Boundary) होती है। सामाजिक प्रणाली में यह चहारदीवारी दिखाई नहीं देती, परन्तु यह प्रणाली तथा परिवेश में उचित सम्बन्ध स्थापित करने में पूरी सहायता करती है।
10. प्रत्येक प्रणाली की चहारदीवारी इसे दो भागों में विभाजित करती है-
(1) बन्द प्रणाली तथा
(2) मुक्त (खुली) प्रणाली।

उप-प्रणाली का संप्रत्यय
(CONCEPT OF SUB-SYSTEM)

प्रणाली की परिभाषा करते समय तत्वों (Elements) तथा चरों (Variables) का प्रयोग किया जाता है, परन्तु ये दोनों पद पर्यायवाची नहीं हैं। किसी भी प्रणाली में तत्वों (Elements) का अर्थ उस सत्ता (Entity) से है जो स्वयं में मूर्त एवं सुनिश्चित सामग्री, गुणों अथवा विशेषताओं से युक्त होती है; जबकि चर (Variable) इन तत्वों को उपर्युक्त विशेषताओं और किसी समय विशेष पर उनमें होने वाले परिवर्तनों एवं प्रभावों का ज्ञान प्रदान करते हैं। किसी प्रणाली के ये तत्व ही उस प्रणाली के लिये उप-प्रणाली का कार्य करते हैं।

अतः कहा जा सकता है कि एक उप-प्रणाली स्वयं में स्वतन्त्र अस्तित्व रखती है, परन्तु अपने क्रिया-कलापों के लिये अन्य उप-प्रणालियों पर आश्रित होती है। सभी उप-प्रणालियों के कार्य प्रदा के लिये परस्पर सम्बन्धित एवं परस्पर अन्तःक्रिया करने वाले होते हैं, क्योंकि इन सभी का कार्य मुख्य प्रणाली के लक्ष्य एवं उद्देश्य की प्राप्ति में पूर्ण सहायक होते हैं।

उप-प्रणाली का वर्गीकरण
(CLASSIFICATION OF SUB-SYSTEMS) किसी भी व्यवस्था में उप-प्रणालियों को विभिन्न प्रकार से निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है—

सेलर (Seiler) ने इन्हें चार वर्गों में बाँटा है। वे हैं—

(a) मानव अदा (Human Inputs)
(b) तकनीकी अदा (Technical Inputs)
(c) व्यवस्था की अदा (Organisational Inputs)
(d) सामाजिक संरचना एवं नॉर्म्स (Social Structure & Norms)
 
कास्ट तथा रोजनविंग (Kast & Rosenzweig) ने इन उप-प्रणालियों को पाँच वर्गों में विभाजित किया है। वे हैं
 
(a) लक्ष्य तथा मूल्य उप-प्रणाली (Goals & Value Sub-system)
(b) मनोवैज्ञानिक उप-प्रणाली (Psychological Sub-systems)
(c) तकनीकी उप-प्रणाली (Technical Sub-system)
(d) संरचनाकृत उप-प्रणाली (Structural Sub-system)
(e) व्यवस्थापन/प्रबन्धीकरण उप-प्रणाली (Managerial Sub-system)

कार्जो तथा यानौजस (Carzo and Yanozus) ने उप-प्रणालियों को दो व्यापक उप-प्रणालियों में वर्गीकृत किया है

(a) तकनीकी उप-प्रणाली (Technical Sub-system)
(b) शक्ति उप-प्रणाली (Power Sub-system)

ये सभी उप-प्रणालियों परस्पर एक-दूसरे से गुम्फित (Interconnected) होती हैं। इनके विभिन्न भाग तथा तत्व तार्किक, क्रम में साथ-साथ जुड़े होते हैं एवं परस्पर एक-दूसरे के साथ सम्बन्धित होते हैं। कहा भी गया है—

"The totality of all these sub-systems with their interconnections makes up the system of formal organisation."

उत्पादन के लिये किसी भी प्रणाली की समस्त उप-प्रणालियों में परस्पर समन्वय व सहयोग तथा उद्देश्य की प्राप्ति के लिये, निष्ठापूर्वक एवं समर्पित भावना के साथ कार्य करना अनिवार्य है।

बन्द तथा खुली/मुक्त प्रणाली
(CLOSE AND OPEN SYSTEM)

प्रत्येक प्रणाली की एक चहारदीवारी (Boundry) होती है। भौतिक-प्रणाली (Physical System) में तो यह चहारदीवारी बिल्कुल स्पष्ट होती है, इसीलिये इसमें प्रणाली को सरलता से पहचान लिया जाता है, लेकिन सामाजिक-प्रणाली (Social system) में चहारदीवारी (Boundry) को देखा नहीं जा सकता (Not Visible) क्योंकि यह कोई लाइन या दीवार नहीं होती जो प्रणाली को परिभाषित कर सके कि इसके अन्दर क्या है। यह चहारदीवारी तो प्रणाली के बाहर, प्रणाली तथा परिवेश में समुचित सम्बन्ध बनाये रखने में सहायता देती है।

यही चहारदीवारी किसी भी प्रणाली को दो भागों में विभाजित करती है। वे हैं

(a) बन्द प्रणाली (Closed System)
(b) खुली/मुक्त प्रणाली (Open System)

(a) बन्द प्रणाली (Closed System)

बन्द प्रणाली की प्रमुख विशेषतायें निम्नांकित होती हैं, जिनके आधार पर इसे पहचाना जा सकता है

1. बन्द प्रणाली में परिवेश (Environment) के साथ कोई अन्तःक्रिया (Interaction) नहीं होती है।

(No outside system impinges on them or for which no outside systems are to be considered.)

2. बन्द प्रणाली में क्योंकि परिवेश के साथ अन्तःक्रिया नहीं होती है, अतः यह प्रणाली स्वयं में पूर्ण, स्वतन्त्र, आत्म-निर्भर (Self-contained) तथा (Self-maintaining) होती है।

3. बन्द प्रणाली स्थिर (Static) एवं अनम्य (Rigid) होती है।

4. यह प्रणाली अधिकतर यान्त्रिक (Mechanical) होती है. एक बार सैट (Set) करने पर यह कार्य करती रहती है।

5. बन्द प्रणाली एक बन्द फन्दे (Close loop) के समान होती है।

उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है, "बन्द प्रणाली (Closed System) एक बन्द फन्दे (Close loop) की भाँति होती है, जो एक बार सैट करने पर घडी की तरह चलने लगती है और फिर वैसे ही चलती रहती है, क्योंकि परिवेश के साथ अन्तःक्रिया उसकी नहीं होती। अतः परिवेश इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं ला पाता, परिणामस्वरूप परिवेश के सन्दर्भ में यह स्थिर अपरिवर्तनीय तथा अनम्य प्रणाली कही जाती है। बन्द प्रणाली स्वतन्त्र, आत्म-निर्भर तथा स्वयं अपना रख-रखाव (Maintenance) करने वाली प्रणाली होती है।"

(कुलश्रेष्ठ एवं रावत, 1998)

(b) खुली अथवा मुक्त प्रणाली (Open System) खुली अथवा मुक्त प्रणाली की विशेषतायें नीचे प्रस्तुत की जा रही हैं

1. खुली प्रणाली अपने परिवेश के साथ अन्तःक्रिया (Interaction) करती है। दूसरे शब्दों में ये प्रणाली परिवेश से सम्बन्ध स्थापित किये रहती हैं, उसमें विनिमय (Exchange) करती हैं तथा उससे उचित सम्प्रेषण की व्यवस्था बनाये रखती हैं।

2. खुली प्रणाली क्यों कि अपने परिवेश से अंतःक्रिया करती है, अतः यह परिवेश से शक्ति लेती है और बदले में अपना उत्पादन (Output) देती है। अतः खुली प्रणाली को गत्यात्मक (DyTHumic) तथा लचीली प्रणाली कहा जाता है, क्योंकि इस पर परिवेश अपना प्रभाव प्रदर्शित करता है।

3. क्योंकि खुली प्रणाली पर परिवेश अपना प्रभाव डालता है, अतः यह खुली प्रणाली स्वयं को अपने परिवेश के अनुरूप समन्वित एवं संरचित करती है।

4. Open systems are characterised by negative entropy. They import more energy than is expanded or consumed.' अतः यह समय के साथ बढ़ती है। पर इसके विपरीत सम्बन्ध होने पर खुली प्रणाली में हास (Decline) होने लगता है।

5. खुली प्रणाली में 'पृष्ठ-पोषण' (Feedback Mechanism) की व्यवस्था रहती है, जिससे - इस प्रणाली में संतुलन (Equilibrium) बना रहता है।

उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर कुलश्रेष्ठ तथा रावत (1998) ने खुली प्रणाली के विषय में लिखा है, "खुली प्रणाली, अन्य दूसरी प्रणालियों के साथ सक्रिय रूप से अन्तःप्रक्रिया करती है और उनके साथ विनिमय सम्बन्ध (Exchange Relationship) स्थापित करती है। अक्सर वे अपने जीवन (Survival) को गत्यात्मक (Dynamic) बनाये रखने के लिये बाहा परिवेश के अनुरूप अपने को ढालने का (परिवर्तन लाते हुये) प्रयास करती है। इस खुली प्रणाली में पृष्ठपोषण प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।"

यद्यपि प्रणालियों को बन्द और खुली प्रणालियों में वर्गीकृत तो कर दिया गया है, लेकिन यह वर्गीकरण, वास्तविक नहीं है। किसी भी प्रणाली को पूरी तरह बन्द या खुली प्रणाली नहीं कहा जा सकता। अतः यह वर्गीकरण उपयुक्त वर्गीकरण नहीं कहा जा सकता। प्रसाद (1998) के शब्दों में

"Therefore it is more appropriate to think of systems in terms of the degree to which they are open or closed rather than using a dichotomy of open-close."

खुली और बन्द प्रणाली को चित्र के माध्यम से नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है

प्रणाली (System)
एक बन्द प्रणाली (A Closed System)
परिवेश के साथ किसी प्रकार की अन्तःक्रिया न होना
IIIIIIIIIIIIIIIIIIIII
प्रदा (Input)
प्रक्रिया (Process)
उत्पादन (प्रदा या Output)
TTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTT
परिवेश के साथ अनवरत अन्तःप्रक्रिया होना
एक खुली/मुक्त प्रणाली | (An Open System)
चित्र-खुली एवं वन्द प्रणाली

सम्प्रेषण नियन्त्रण
(CYBERNETICS)

"सम्प्रेषण नियन्त्रण", अंग्रेजी के Cybernetics शब्द का हिन्दी पर्याय है। Cybernetics ग्रीक भाषा के "Kybernets" शब्द से निकला है, जिसका अर्थ होता है-Steer-man" यह शब्द पृष्ठपोषण या "Feedback' के सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है। पृष्ठपोषण का प्रयोग भौतिकशास्त्र में किया जाता है, परन्तु अब इसका प्रचार-प्रसार शिक्षा के क्षेत्र में होने लगा है।

ग्रीक भाषा में 'Kybornem' शब्द का अर्थ है पायलट या प्रशासक अतः इस शब्द का अर्थ हुआ 'शासन करना' अतः कहा जा सकता है कि सम्प्रेषण-नियन्त्रण (Cybernetics) प्रशासन करने की एक व्यवस्था अथवा प्रारूप है। (It is a science of communication & control) | इसमें नियन्त्रण' आधारभूत तल है। यहाँ पर नियन्त्रण शब्द से अभिप्राय है, 'परस्पर सम्बद्ध रहना सम्प्रेषण नियन्त्रण, गतिशीलता तथा स्वचालन (Self Regulation) को लक्ष्य मानता हुआ इस बात पर विशेष बल देता है कि सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रक्रिया की समस्त विधियाँ छात्रों के व्यवहार को नियन्त्रित करके उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लायें।

"Cybernetics" शब्द का सर्वप्रथम उपयोग नौर्वेर्ट बेनर (Norbert Weiner) ने सन् 1948 में किया था।

"Cybernetic theory views the individual as feedback systems, which generate its own activities in order to control specific stimulus characteristics of the environment. It analyses intrinsic mechanism which establishes the control and maintains sensory feed back mechanism. The focus of the theory is the dynamic feedback and self-regulation."

साइबरनेटिक्स (Cybernetics) या सम्प्रेषण-नियन्त्रण, 'प्रणाली-सिद्धान्त' का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। यह सम्प्रेषण तथा नियन्त्रण दोनों से सम्बन्धित है।

"It integrates the linking processes and generalizes them to a variety of systems."

सम्प्रेषण नियन्त्रण का सिद्धान्त
(THEORY OF CYBERNETICS)

 यह सिद्धान्त इस बात में विश्वास करता है कि मानव एक विद्युत मशीन (Electric Machine) की भाँति कार्य करता है। अपने व्यवहार को परिमार्जित करने तथा उस पर नियन्त्रण रखने के लिये, यह "संवेदनशील पृष्ठपोषण (Sensory Feedback) का उपयोग करता है। अतः कहा जा सकता है कि इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति एक प्रकार का पृष्ठपोषण प्रणाली है, जो अपने परिवेश के विशिष्ट उद्दीपनों को पहचानने तथा नियन्त्रित करने के लिये अपनी प्रक्रियायें तथा क्रिया-कलाप विकसित करता है। इस सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु 'गत्यात्मक-पृष्ठपोषण' तथा 'स्व-नियन्त्रण' हैं।
 
सम्प्रेषण-नियन्त्रण (Cybernetics) को पृष्ठपोषण मनोविज्ञान भी कहा जाता है। उसके अनुसार "मानवीय विकास के लिये पृष्ठपोषण सिद्धान्त अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है जो गतिशील पृष्ठपोषण तथा स्व-नियमितीकरण या स्वचालन (Self-regulation) को लक्ष्य मानती है और इस बात पर बल देती है कि पृष्ठपोषण की समस्त विधियाँ तथा प्रविधियाँ छात्रों के व्यवहारों को नियन्त्रित करके उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाती हैं।"

यह विचारधारा स्व-अधिगम (Self-learning) के लिये अधिक प्रभावशाली मानी जाती है। 'सम्प्रेषण-नियन्त्रण' में सामूहिक शिक्षण के स्थान पर 'व्यक्तिगत-शिक्षण' (Individual Teaching) पर ज्यादा जोर दिया जाता है। जैसे-अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction) आदि।

डा० सक्सैना तथा ओबराय (Saxena & Oberoi) के शब्दों में-"संक्षेप में सम्प्रेषण-नियन्त्रण छात्र को उसके अपने निजी व्यवहार के परिणाम उसके लिये पृष्ठ-पोषण का कार्य करते हुये उसके भावी व्यवहारों को नियन्त्रित करते हैं। अतः मानव की प्रगति, उन्नति तथा विकास के लिये सम्प्रेषण-नियन्त्रण अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।

सम्प्रेषण-नियन्त्रण के आधारभूत तत्व
(BASIC ELEMENTS OF CYBERNETICS)

सम्प्रेषण नियन्त्रण की प्रक्रिया में तीन आधारभूत तत्व होते—

(1) अदा या लागत (Input)-यह सम्पूर्ण प्रक्रिया में प्रथम आवश्यक अदा, या शिक्षण सामग्री का प्रस्तुतीकरण है। उदाहरणार्थ, पुस्तकालय अदा के अन्तर्गत लिखित-मुद्रित सामग्नी, दृश्य श्रव्य सामग्री, डायग्राम तथा चार्ट आदि आते हैं। अतः यह वह इकाई है जिससे हमें प्रक्रिया का बोध होता है और जिसके द्वारा हमें पाठन सामग्री या सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।

दूसरी महत्त्वपूर्ण अदा 'अनुदेशन व्यवस्था का वस्तुनिष्ठ होना है। जिसकी पुष्टि यह प्रारूप करता है। तीसरी अदा 'छात्रों की निजी विशेषताओं को अनुदेश व्यवस्था में स्थान दिलाना है और अन्तिम अदा 'अनुक्रिया के रूप में छात्रों का अनुशीलन' है।

(2) प्रदा (Output) अनुदेशन व्यवस्था में छात्रों के सामने प्रदर्शन करना एक प्रदा कहलाती है। यह इकाई क्रम की प्रक्रिया का परिणाम है, जो लिखित भी हो सकती है और अलिखित भी। इसका उद्देश्य कुछ अनुक्रियाओं को उत्पन्न करना होता है।

(3) यन्त्र/संसाधक (Processor)-इसके माध्यम से सूचनाओं में अथवा सामग्री में संशोधन तथा परिमार्जन किया जाता है। संसाधक का अभिप्राय उस तन्त्र से भी होता है जो तथ्यों को किसी रेखीय विधि से क्रमशः प्रदर्शित करता है। छात्र कक्षा में जो भी अनुक्रियाएँ करते हैं, संसाधक उनमें संशोधन कर उन्हें क्रमबद्ध बनाता है।

'सम्प्रेषण नियन्त्रण' के इन आधारभूत तीनों तत्वों को चित्र के माध्यम से नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है

अदा या प्रक्रिया/प्रक्रम/प्रदा या निवेशयन्त्र/संसाधक निर्मत (Input)
(Proceas) (Output)

चित्र-सम्प्रेषण नियन्त्रण के मूलभूत तत्व

सम्प्रेषण-नियन्त्रण प्रक्रिया में सम्प्रेक्षण व्यवस्था

सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रक्रिया में सम्प्रेक्षण व्यवस्था दो प्रकार की होती है—

(1) मुक्तपाश व्यवस्था या खुली कड़ी क्रम (Open Loop System)--मुक्तपाश क्रम में प्राप्त उपलब्धि का प्रभाव उसके भविष्य के किसी कार्य पर नहीं पड़ता है। इससे न तो अदा (Input) प्रभावित होता है और न ही प्रदा (Output)|

(2) आवृत्त पाश व्यवस्था (Closed Loop System)-आवृत्त पाश व्यवस्था को 'बन्द कड़ी क्रम' भी कहा जाता है। इस क्रम में परिणाम या Output प्रणाली के अंग बन जाते हैं और भविष्य के प्रयोगों, परिणामों तथा उपलब्धि पर प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था को ही सम्प्रेषण नियन्त्रण व्यवस्था कहा जाता है।

इस प्रारूप के अनुसार शिक्षण और छात्र मशीन की भाँति काम करते हैं और शिक्षण प्रक्रिया में सम्प्रेषण तथा नियन्त्रण जैसी प्रक्रियाएँ चलती रहती हैं। शिक्षक छात्रों को विभिन्न विधियों से पढाते हैं-उन्हें सीखने के योग्य बनाते हैं और नया सिखाते हैं।
 
सम्प्रेषण-नियन्त्रण की मान्यतायें
(ASSUMPTIONS OF CYBERNETICS)

सम्प्रेषण-नियन्त्रण की प्रमुख आठ मान्यताओं का विवरण डा० ज्वाला प्रसाद श्रीवास्तव ने निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया है

1. संवेदनाओं के द्वारा प्रतिक्रियाओं की दिशा स्वनिर्मित होती है। सामान्यतः विशिष्ट उद्दीपकों के साथ कोई विशिष्ट क्रिया सम्बद्ध होती है। संतान्त्रिकी सिद्धान्त के अनुसार संवेदना (Input) का उदगम प्राणी के बाहर ही नहीं होता बल्कि उसके अन्दर भी रहता है, जिसके द्वारा उसके व्यवहार (Output) की दिशा निर्धारित होती है। कार्ल स्मिथ के अनुसार, व्यवहारी निकाय का स्वभाव ही ऐसा होता है कि निर्गत तथा ग्राह्य निवेश परस्पर समायोजित होते रहते हैं।
2. लक्ष्य अथवा मानक तथा स्वचलित कार्यों का अन्तर ज्ञात किया जा सकता है।
3. पृष्ठपोषण नियन्त्रण के द्वारा प्रतिक्रियाओं को वांछित दिशा में नियन्त्रित किया जा सकता है।
4. गत्यात्मक पृष्ठपोषण-प्रक्रिया के द्वारा ग्राह्य निकाय (Receptor System) तथा बहुआयामीय प्रत्युत्तर (Multidimensional Responses) में समन्वय स्थापित किया जा सकता
5. नियन्त्रण-प्रतिक्रियाएँ (Control Fullterms) प्रतिसम्भरण-प्रतिक्रियाओं के द्वारा होती हैं और प्रतिसम्भरण-प्रतिक्रियाएँ प्रायः ज्ञानेन्द्रियों के विशिष्ट कार्य से सम्बन्धित होती हैं अथवा विशिष्ट कार्य के रूप में परिलक्षित होती हैं।
6. प्रणाली-सिद्धान्त इस बात को मान्यता प्रदान करता है कि अधिगम के प्रमुख निर्धारक व्यक्ति के आन्तरिक संवेदीय प्रेरक घटकों का समन्वय करने वाले हैं। बाहा घटकों का अधिगम पर अपेक्षाकृत कम प्रभाव होता है।
7. व्यवहारवादी प्रणाली अनुसंधानों के अन्तर्गत मानव-व्यवहार के संवृत्त परिपथीय नियन्त्रकों का अध्ययन किया जाता है।
8. अधिगम हेतु व्यवहार अव्यवस्थित न होकर चयनात्मक होता है।

सम्प्रेषण-नियन्त्रण व्यवस्था की उपयोगिता
(UTILITY OF CYBERNETICS SYSTEM)

1. यह व्यवस्था शिक्षण प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक बनाती है।
2. लीनियर अभिक्रमित के सिद्धान्तों को स्पष्ट करती है।
3. यह शिक्षण का सार्वभौमिक रूप प्रदर्शित करती है।
4. शिक्षण प्रक्रिया का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत कर इसे उन्नतशील बनाने का प्रयास करती है।
5. शिक्षक को शिक्षण-तन्त्र समझने में सहायता देती है।
6. इससे नियन्त्रण द्वारा अपेक्षित अधिगम व्यवहार की प्राप्ति होती है।
7. पृष्ठपोषण तथा अनुशीलन (Feedback) के माध्यम से छात्रों के सीखने के व्यवहार को नियोजित एवं नियन्त्रित रखती है।
 
8. नवीन शिक्षण के प्रतिमान तैयार करने में सहायक है।
9. कक्षा-अनुदेशन में उपयोगी है।
10. यह सामूहिक तथा वैयक्तिक दोनों प्रकार के अनुदेशन पर ध्यान देती है (परन्तु इसका विशेष बल वैयक्तिक अथवा व्यक्तिगत अनुदेशन पर रहता है।)
11. इसके पृष्ठ-पोषण सिद्धान्त के परिणामस्वरूप शिक्षक-प्रशिक्षण के क्षेत्र में नवीन विचारधारायें आयी हैं। यथा- माइक्रोटीचिंग, मिनीटीचिंग, अभिक्रमित अध्ययन तथा अन्तःक्रिया विश्लेषण आदि। ये सभी सम्प्रेषण नियन्त्रण व्यवस्था के पृष्ठपोषण के सिद्धान्तों पर आधारित हैं।
12. इसका पृष्ठपोषण तंत्र छात्रों के अधिगम के व्यवहारों को नियोजित करता है तथा अधिगम में वृद्धि लाता है।
13. यह व्यवस्था 'स्वयं-शिक्षण' (Self-education) में सहायक होती है।
14. सम्प्रेषण-नियन्त्रण सिद्धान्त शिक्षक को निर्देशन देता है कि शिक्षण का प्रारूप तथा इसका नियोजन किस प्रकार से शीघ्र व सार्थक बनाया जा सकता है।
15. यह उपचारात्मक अथवा Remedial शिक्षण में उपयोगी है।

सम्प्रेषण-नियन्त्रण के उपयोग में सावधानी

सम्प्रेषण-नियन्त्रण प्रयोग करते समय निम्नांकित बातों पर ध्यान देना चाहिए

1. शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट होने चाहिए। ये जितने शिक्षक को ज्यादा स्पष्ट होंगे उतना ही शिक्षक अच्छे रूप में उनका निवेश (अदा) कर सकेगा।
2. इसके अनुसार शिक्षक को छात्रों की आवश्यकताओं तथा विशेषताओं के विषय में पूर्ण ज्ञान होना चाहिए तभी शिक्षक शिक्षण में अधिक सफल हो सकेंगे। इनका भी प्रयोग निवेश (अदा) के रूप में होता है।
3. पृष्ठपोषण इस व्यवस्था की जान है। पृष्ठपोषण जितनी देर में शिक्षक द्वारा दिया जायेगा उतनी ही कमी उत्पादन या निर्गतों (Output) के क्षेत्रों में आयेगी। अतः अच्छे Output के लिये या परीक्षा परिणामों को उत्तम बनाने के लिये पृष्ठपोषण तत्काल देने की व्यवस्था की जानी चाहिए। पृष्ठपोषण में गत्यात्मकता बनाये रखने के लिये शिक्षकों को विशेष प्रयास करने चाहिए।
4. शिक्षक को ध्यान रखना चाहिए कि पृष्ठपोषण व्यवस्था जितनी शीघ्रता, वैधता तथा विश्वसनीयता लिये हुये होगी-शिक्षण प्रक्रिया में निर्गत (Output) या प्रदा उतना ही उत्तम तथा प्रभावशाली होगा।

सम्प्रेषण-नियन्त्रण पर आधारित आजकल अनेक शैक्षिक प्रणालियाँ प्रचलित हैं। जैसे

(a) कैलर योजना (Keller Plan)
(b) सेमीनार (Seminar)
(c) स्व-व्याख्यान (Autolecture) आदि।

सिस्टम ,डायनेमिक्स
(SYSTEM DYNAMICS)

सिस्टम डायनेमिक्स के अन्तर्गत अग्रांकित चार प्रक्रियायें महत्वपूर्ण हैं
(1) प्रणाली प्रारूप संरचना (System Design)
(2) प्रणाली संचालन (System Operation)
(3) प्रणाली मूल्यांकन (System Evaluation)
(4) पृष्ठपोषण तथा पुनः संरचना (Feedback and Redesigning)

 1. प्रणाली प्रारूप संरचना (System Design)
 
रोमिस्जोवस्की (Romiszowaski) के अनुसार, "प्रणाली संरचना पद संश्लेषण (Synthesis) की एक अवस्था है। इसमें संश्लेषण करते समय प्रणाली का लक्ष्य' सदैव सामने रखा जाना चाहिए और सभी संरचनायें इसके अनुरूप ही होनी चाहिए। यदि प्रणाली शिक्षण या अनुदेशन से सम्बन्धित है, तब उद्देश्यों के विश्लेषण निर्धारण तथा लेखन के लिये गेने, ब्लूम, मिलर या दवे आदि के वर्गीकरणों का सहारा लिया जाता है।"

उद्देश्य निर्धारित करने के पश्चात उन शिक्षण विधियों, प्रविधियों तथा शिक्षण नीतियों तथा उपागमों का चयन किया जाता है, जिनके द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव है। (ऐसा करने से प्रणाली विश्लेषण को प्रणाली के उद्देश्य, उद्देश्यों की पूर्ति के लिये साधन एवं विधि सभी कुछ स्पष्ट हो जाता है। इन्हीं तत्वों का प्रयोग करता हुआ वह एक समन्वित उत्तम प्रणाली का प्रारूप या संरचना तैयार करता है। इसमें अदा, प्रदा, परिवेश तथा प्रक्रिया का स्पष्ट रूप से चिन्तन कर इन्हें वैज्ञानिक बनाने का प्रयास करता है। सत्य तो यह है "इस पद पर प्रणाली के उद्देश्यों के अनुरूप सभी अंगों एवं उपांगों तथा उपप्रणालियों के कार्य निर्धारित किये जाते हैं।"
प्रणाली के प्रारूप की संरचना करते समय निम्नांकित पदों पर भी पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए—

(a) कार्य विवरण तथा विश्लेषण (Job Description and Analysis)
(b) उद्देश्य-विशिष्टीकरण (Goal Specification)
(c) कार्य-विशिष्टीकरण (Task Specification)
(d) प्रणाली के विभिन्न घटकों का एकीकरण (Integration of System Components)

(a) कार्य विवरण तथा विश्लेषण (Job Description & Analysis)-प्रणाली-उपागम, किस कार्य या समस्या समाधान के लिये बनाई जा रही है, वह कार्य क्या और कैसा है, उसकी प्रकृति कैसी है, उसकी आवश्यकतायें एवं प्रक्रियायें क्या हैं, कार्य में कौन-कौन सी क्रियायें एवं प्रक्रियायें निहित हैं, कार्य में किस प्रकार के उत्तरदायित्व हैं आदि-आदि पक्षों पर कार्य विवेचना कर उसका विवरण तैयार किया जाता है और फिर कार्य-विश्लेषण के द्वारा कार्य के मुख्य बिन्दुओं का निर्धारण किया जाता है। कार्य-विश्लेषण तथा कार्य विवरण की प्रक्रिया में आवश्यकतानुसार शिक्षा या औद्योगिक मनोविज्ञान की सहायता ली जा सकती है।

(D) उद्देश्य-विशिष्टीकरण (Goal Specification)-उद्देश्य विशिष्टीकरण के लिये सर्वप्रथम मुख्य उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है फिर यह निश्चित किया जाता है कि छात्रों में किस प्रकार के परिवर्तन लाने हैं। इस हेतु छात्रों की पूर्व-पृष्ठभूमि, पूर्व ज्ञान तथा पूर्व अनुभव एवं प्रवेश व्यवहार (Entering Behaviour) का लेखा-जोखा रखा जाता है। इनके आधार पर उद्देश्यों को अंतिम रूप देते हैं। फिर इन उद्देश्यों के स्पष्टीकरण के लिये इन्हें परिभाषित किया जाता है और उचित विधियों की सहायता से इन्हें व्यावहारिक रूप में लिखा जाता है।

यह प्रक्रिया अग्न प्रकार से प्रदर्शित की जा सकती है
 
छात्रों की पृष्ठभूमि, पूर्व ज्ञान, पूर्व अनुभव प्रवेश व्यवहार
(Entering Behaviour)
क्रिया के लक्ष्यों
का निर्धारण
लक्ष्यों के आधार पर सामान्य उद्देश्यों का
निर्माण
VI
उद्देश्यों का अंतिम (Final) विशिष्टीकरण,
लेखन एवं चयन
उपयुक्त व्यावहारिक उद्देश्यों का लेखन
उद्देश्य परिभाषीकरण

(c) कार्य-विशिष्टीकरण (Task Specification)-इसमें अनुदेशन प्रणाली के सभी तत्वों जैसे शिक्षक, छात्र तथा शिक्षण-अधिगम सामग्रियों के समस्त कार्यों को निर्धारित तथा परिभाषित कर उनका विशिष्टीकरण कर लिया जाता है।
(d) प्रणाली के विभिन्न घटकों का एकीकरण(Integration of System Components)-प्रत्येक प्रणाली के तीन मुख्य घटक (Components) होते हैं, जिन पर प्रणाली का प्रारूप बनाते समय ध्यान दिया जाना चाहिए
(1) उप-प्रणाली (Sub-System?)
 (2) प्रणाली का परिवेश (Environment of the System)
 (3) लक्ष्य स्थिति (Goal State)

(1) उप-प्रणाली (Sub-System)-प्रत्येक प्रणाली में कई उप-प्रणालियों हो सकती हैं जो आपस में गुम्फित तथा परस्पर सम्बन्धित होती हैं और इन्हीं से मिलकर प्रणाली का निर्माण होता है। किसी भी व्यवस्था में विभिन्न प्रणालियों का स्तर उप-प्रणाली कहलाता है। (The levels of systems within the organization are called sub-systems.)

प्रत्येक उप-प्रणाली के लिये निश्चित उद्देश्य, प्रक्रियायें, भूमिकायें, संरचनायें तथा नौस (Norms) होते हैं, जिनके आधार पर उप-प्रणालियों की पहचान की जा सकती है। एक प्रणाली में विभिन्न उप-प्रणालियाँ होती हैं और वे उप-प्रणाली के भाग भी कहलाती हैं। विभिन्न उप-प्रणालियों मिलकर (जो परस्पर आश्रित होती हैं। एक बड़ी प्रणाली का निर्माण करती हैं। ये उप-प्रणालियाँ परस्पर अन्तःक्रिया करती रहती हैं तथा अन्तःक्रिया के आधार पर व्यवहार की नवीन संरचनाओं (Patterns) को जन्म देती हैं।

उप-प्रणालियों को वर्गीकृत करने के लिये अनेक आधार होते हैं, जिन पर इन्हें वर्गीकृत किया जा सकता है।

सेलर (Seiler) ने व्यवस्था को चार भागों में विभाजित किया है—

(1) मानव प्रदा,
(2) तकनीकी प्रदा,
(3) व्यवस्थापन प्रदा, तथा
(4) सामाजिक संरचना एवं नौस इसी वर्गीकरण के आधार पर उसने 'सामाजिक-तकनीकी प्रणाली (Socio-technical System) विकसित किया।

कास्ट तथा रोजनविंग ने उप-प्रणालियों को पाँच भागों में वर्गीकृत किया है-

(1) ध्येय एवं मूल्य उप-प्रणाली,
(2) मनोवैज्ञानिक उप-प्रणाली,
 (3) तकनीकी उप-प्रणाली,
 (4) संरचना उप-प्रणाली तथा
 (5) मैनेजीरियल (Managerial)
 
 कार्जो तथा यानोजस ने समस्त उप-प्रणालियों को दो प्रमुख उप-प्रणालियों में बाँटा है-) तकनीकी उप-प्रणाली. तथा (2) शक्ति (Power) उप-प्रणाली।

ये सभी उप-प्रणालियाँ परस्पर गुम्फित तथा परस्पर सम्बन्धित रहती हैं।

नीचे तकनीकी, सामाजिक तथा शक्ति उप-प्रणालियों की प्रमुख विशेषतायें सारणी के माध्यम से प्रदर्शित की गयी हैं। यह सारणी कार्जो तथा यानोजस (Karzo & Yanouzos) की पुस्तक से उद्धृत की जा रही हैं।
(2) प्रणाली का परिवेश (Environment of System)-प्रत्येक प्रणाली का अपना एक परिवेश होता है, जिसमें वह कार्य करती है। परिवेश के अन्दर वे सभी वस्तुयें आती हैं जो प्रणाली के बाहर होती हैं तथा प्रणाली और उसकी उप-प्रणालियों के कार्यों को अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित करती हैं। परिवेश, प्रणाली की कार्यक्रम सम्बन्धी आवश्यकताओं पर भी अपना नियन्त्रण रखता है।

पैटिट (Petit) ने इस पूरे विश्लेषण को चित्र के माध्यम से निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया
संस्थागत स्तर
www
संगठन स्तर
प्रणाली में निवेश (अदा) (Inputs into the System),
तकनीकी
परिवेश के उत्पादन (प्रदा) (Outputs into the Environment)
परिवेश की शक्तियों का प्रवेश
(Intrusion of Environmental Forces)
चाहरदीवारी (Boundaries)
चित्र-प्रणाली का परिवेश

उपर्युक्त प्रकार से हम किसी भी परिवेश को सरलता से जान सकते हैं और उसे परिभाषित कर सकते हैं।

निष्कर्ष-एक प्रणाली अपने परिवेश से निवेश (अदा) लेती है और परिवेश को उत्पादन या प्रदा बदले में देती है। एक प्रणाली को अपने परिवेश में ही कार्य करना होता है। परिवेश की सीमाओं से प्रणाली अलग नहीं हो सकती। प्रणाली को उसी परिवेश में कार्य करना होगा। किसी भी प्रणाली की प्रभावशीलता उसके तत्वों में है, जिनके माध्यम से प्रणाली कार्य करती है।

(3) लक्ष्य स्थिति (The Goal State)— किसी भी प्रणाली के लिये 'लक्ष्य-स्थिति' उसके लिय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्व है, जिसका सम्बन्ध समग्न-प्रणाली के व्यवहार और उसके कार्य के मापन से है। अतः प्रणाली की रचना के समय प्रणाली निर्माता प्रणाली के लक्ष्य तथा उद्देश्यों का निर्धारण करता है, उन्हें परिभाषित करता है तथा प्रणाली के कार्यों की (उद्देश्यों की प्राप्ति के दृष्टिकोण से) मापन एवं मूल्यांकन करने की विधियों को सुनिश्चित करता है और इनसे प्राप्त परिणामों के आधार पर प्रणाली को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये आवश्यकतानुसार उसमें संशोधन, परिमार्जन तथा परिवर्तन करता है।

इस प्रकार से उद्देश्यों के विशिष्टीकरण के समुच्चय को उस प्रणाली की 'लक्ष्य-स्थिति' (Goal State) कहा जाता है। 'लक्ष्य-स्थिति' वह स्थिति है जिसकी ओर पूरी प्रणाली अग्रसर होती है।

किसी प्रणाली के अंतिम व्यवहार (Terminal Behaviour) को भी 'लक्ष्य-स्थिति' कहा जाता है।
"It is also said that goal state is the state which a system will adjust to maintain once it has been achieved."

किसी भी प्रणाली (समस्या, संप्रत्यय, संगठन आदि) को समझने के लिये 'प्रणाली विशेषज्ञों को इस प्रणाली की समस्त उप-प्रणालियों के विषय में ज्ञान प्राप्त करना चाहिये तथा उनकी आत्म-निर्भरता, परस्पर एक-दूसरे पर आश्रितता तथा वातावरण के समस्त तत्वों को लक्ष्य-स्थिति के सन्दर्भ में परिभाषित करना चाहिये

2. प्रणाली संचालन (System Operation)

प्रणाली संचालन का तात्पर्य है कि प्रणाली के विभिन्न घटकों की अन्तःप्रक्रिया (Interaction of System Components) कैसी चल रही है? यदि प्रणाली के सभी घटक सही प्रकार से कार्य करते हैं तथा उनमें सही स्तर की समुचित अन्तःक्रिया होती है तो कहा जा सकता है कि यह प्रणाली भली-भाँति संचालित हो रही है।

प्रणाली संचालन के लिये आवश्यक है कि प्रणाली के सभी घटकों के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त की जाये एवं प्रत्येक घटक के कार्यों का विवरण भी प्राप्त किया जाये। इन घटकों के ज्ञान के आधार पर प्रणाली (System) के संचालन की प्रक्रिया को भली-भाँति समझा जा सकता है कि यह प्रणाली किस प्रकार से कार्य करती है। कभी-कभी प्रणाली ठीक प्रकार से कार्य नहीं करती तो प्रणाली-विशेषज्ञ घटकों के आधार पर पता लगाने का प्रयास करते हैं कि कमी/खराबी कहाँ पर है और उस कमी को कैसे सुधार कर प्रणाली संचालन को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। प्रणाली के संचालन में गड़बड़ी महसूस होने पर पूरी प्रणाली की ही व्यापक समीक्षा करनी चाहिये तभी गड़बड़ी पकड़ने में आसानी होती है।

जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि सभी प्रणालियाँ एक निश्चित परिवेश में कार्य करती हैं। प्रणाली की भाँति परिवेश भी बहुत से तत्वों का समूह होता है। ये तत्व प्रणाली को चारों ओर से घेरे रहते हैं और इससे अन्तःक्रिया करते रहते हैं। यह 'अन्तःक्रिया' प्रणाली संचालन की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्रणाली के विभिन्न तत्व (Components) परस्पर आश्रित होते हैं तथा वे प्रणाली के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये अन्तःक्रिया करते हुये प्रणाली संचालन में सहायता देते हैं। किसी भी प्रणाली का सफल संचालन इसी पर निर्भर करता है कि कितनी प्रभावशीलता के साथ प्रणाली के तत्व परस्पर तथा परिवेश से अन्तःक्रिया करते हैं। वैन्कटेयाह (Venkataiah) इस सन्दर्भ में प्रणाली संचालन पर चर्चा करते हुये एक कदम आगे बढ़ कर कहते हैं

"The effective operation in a system can be achieved by selecting the right con ponents and arranging suitable conditions so that the components can work together."
 
प्रणाली उपागम के प्रमुख घटक तथा क्रियायें अग्रांकित चित्र द्वारा अगले पृष्ठ पर प्रस्तुत की जा रही हैं—

ये सभी घटक प्रणाली के संचालन के लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं और इन्हीं की अन्तःक्रिया (Interaction) पर प्रणाली उपागम की सफलता/असफलता अथवा प्रभावशीलता निर्मर करती है।

3. सीमायें/स्रोतों का निर्दिष्टीकरण
5. चयन कसौटियों का विकास)

1. परिवेश के सन्दर्भ में आवश्यकताओं तथा आवश्यकता/या समस्या समस्याओं को विशिष्ट
का निर्दिष्टीकरण
मापनीय उद्देश्यों में परिवर्तित करना
4. उद्देश्य प्राप्ति के लिये |
16. चयन कसौटी के आधार वैकल्पिक समाधानों तथा पर विकल्पों का परीक्षण उपागमों की रचना
तथा सर्वोत्तम विकल्प का
चयन।
7. संश्लेषण प्रणाली के प्रत्येक चरण (Variable) GRI
किये जाने वाले
कार्यों का विस्तृत
विवरण तैयार
करना तथा
उनका पायलट
अध्ययन
करना

Feasibility अध्ययन करना, जिससे पता चल सके कि दी गयी सीमाओं (Constraints) के अन्तर्गत प्रणाली कितनी  सफल होगी
19. परिवर्तन के लिये पष्ट नहीं /पूर्व निर्धारित प्रदा पोषण व्यवस्था
(Output) के सन्दर्भ में मूल्यांकन
प्रदा
(Output)
 
- चित्र प्रणाली उपागम के घटक (Components of Systems Approach)



 3. प्रणाली मूल्यांकन (System Evaluation)
प्रणाली की संरचना अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल है या नहीं, यह जानने के लिये मूल्यांकन किया जाता है। पहले मूल्यांकन यथार्थवत् (अनुरूपित) परिस्थितियों में, प्रणाली के वृहद एवं वास्तविक संचालन से पूर्व किया जाता है, जिससे प्रणाली की प्रामाणिकता की जाँच भी हो जाती है। इसे Formative मूल्यांकन कहते हैं। इस मूल्यांकन के द्वारा प्रणाली के उद्देश्यों एवं कार्य-पद्धति की कमियों का अनुमान लग जाता है। फिर पृष्ठ-पोषण के आधार पर प्रणाली विशेषज्ञ-प्रणाली के उद्देश्यों, प्रणाली की प्रक्रिया तथा प्रारूप आदि में समुचित परिवर्तन कर इसे प्रभावशील बनाने का प्रयास करते हैं, जिससे प्रणाली अधिक प्रभावशील, सक्षम तथा समर्थ बन जाती है।
 
दूसरी बार पुनः मूल्यांकन बड़े रूप में, वास्तविक परिस्थितियों में, प्रणाली की वास्तविक कार्यान्चित करने की क्षमता देखने के लिये किया जाता है। यह मूल्यांकन प्रणाली के प्रदा या उत्पादन (Product) अथवा अंतिम व्यवहार (Final Behaviour) का किया जाता है कि अंतिम रूप से प्रणाली कैसी रही। इस मूल्यांकन को संकल्पनात्मक मूल्यांकन (Summative Evaluation) कहा जाता है। यह मूल्यांकन प्रणाली विशेषज्ञ को अनेक सूचनायें प्रदान करता है। जैसे-प्रणाली की सफलता, प्रणाली की दक्षता, प्रणाली की उपयोगिता तथा समस्या-समाधान की क्षमता आदि के विषय में सही, सटीक तथा वस्तुनिष्ठ ज्ञान।
 
इस दूसरे मूल्यांकन के आधार पर प्रणाली विशेषज्ञ, प्रणाली की संरचना में आवश्यक परिवर्तन करता है।

मूल्यांकन के आधार पर प्रणाली-उपागम की संरचना में तब तक संशोधन, परिवर्तन तथा परिमार्जन चलता रहता है, जब तक प्रणाली पूरी तरह से व्यवस्थित नहीं हो जाती। जब तक इसमें सुधार की गुंजाइश रहती है, तब तक मूल्यांकन की प्रक्रिया सक्रिय रहती है और प्रणाली में परिमार्जन तथा परिवर्तन चलता रहता है। प्रणाली उपागम का एक विहंगम चित्र अगले पृष्ठ पर दिया जा रहा है जो प्रणाली मूल्यांकन पर भी प्रकाश डाल रहा है।

मूल्यांकन के सन्दर्भ में चार बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए

(a) निष्पादन (Performance)
(b) कीमत (Cost)
(c) उपयोगिता (Utility)
(d) समय (Time)

(a) निष्पादन (Performance)— प्रणाली की प्रभावशीलता उसकी निष्पादन-योग्यता पर निर्भर करती है। समस्या समाधान का प्रारूप (Design) यह बताता है कि नयी प्रणाली अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में कितनी प्रभावशील है। निष्पादन की कसौटी प्रणाली की वैधता की सूचक है। जिन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये यह प्रणाली बनायी गयी है, यदि वे उद्देश्य प्रणाली के द्वारा प्राप्त हो रहे हैं तो उसे वैधता युक्त (Valid) प्रणाली कहेंगे। निष्पादन की कसौटी पर किया गया मूल्यांकन अधिकतर संख्यात्मक (Quantitative) होता है।

(b) कीमत (Cost)-एक बड़ी सीमा तक प्रणाली का विश्लेषण उसकी कल कीमत से काफी प्रभावित होता है। इसमें लगे धन, स्टाफ तथा सुविधाओं के आधार पर प्रणाली की कीमत की गणना की जाती है और दूसरी विधियों से तुलना की जाती है। यह भी एक महत्त्वपूर्ण कसौटी है प्रणाली के मूल्यांकन की।
 
आवश्यकताओं की पहचान Identfication of Needs)
स्रोतों एवं अवरोधों की पहचान (Identification of Resources and
Constraints)
उद्देश्यों का स्पष्टीकरण (Specifica
tion of Objectives)
प्रणाली की संरचना एवं घटकों का विश्लेषण (Analysis of system
structure & Components)
चुनाव कसौटी की।
पहचान (Identification Selection of
Criteria)
प्रदा (Output)
विकल्पों का विश्लेषण (Analysing of Alternatives)
कसौटियों के सन्दर्भ में विकल्पों का परीक्षण एवं चयन (Testing and selecting alternatives against
selection-criteria)
सामग्रियों एवं संगठन का विकास (Development of Materials and
Organizations)
संकलनात्मक
मूल्यांकन (Summative Evaluation)
ufagfe (Feed Back)
प्रतिपुष्टि प्रतिपुष्टि | अनुरूपित परिस्थितियों में प्रणाली (Feed Back) (Feed | का परीक्षण (Trying out System
Back) विभिन्न स्तरों
mode in simulated situation) की जाँच
| असंतोष
उद्देश्यों के सन्दर्भ में परिणामों का | और V जनक
निर्माणात्मक मूल्यांकन करना परिवर्तन | F| परिणाम | F| (Checking KH
(Formative Evaluation of the up &
not
results in terms of specified Modifica- Satis
objectives) tion at
factory) Various
सर्वोत्तम प्रतिमान चुनाव और Level)
वास्तविक प्रणाली में कार्यान्वयन (Selecting Optmum Model and implementing in real system)
(Resulik
संतोषप्रद परिणाम वास्तविक प्रणाली
में कार्यान्वयन (Satisfactory Results Imple menting in Real
System)
प्रतिपुष्टि (Feed Back)
चित्र-प्रणाली-उपागम का विहंगम दृश्य
 
(c) उपयोगिता (Utility)-प्रणाली उपागम की उपयोगिता के आधार पर भी मूल्यांकन किया जाता है। जो प्रणाली जितनी ज्यादा उपयोगी सिद्ध होगी, वह उतनी ही सक्षम व समर्थ मानी जाती है। प्रणाली पर जो कुछ भी खर्च हुआ, निवेश (Investment) उसकी तुलना में प्रणाली कितनी उपयोगी साबित हुयी है-यह कसौटी भी प्रणाली के मूल्यांकन के लिये बड़ी वैध कसौटी मानी जाने लगी है।

(d) समय (Time) समय सीमा का भी प्रभावशीलता से सीधा सम्बन्ध होता है। समय और कीमत में भी धनात्मक सम्बन्ध होता है। आजकल इलैक्ट्रोनिक प्रणालियों में काफी कम समय लगता है।

 4. पृष्ठपोषण तथा पुनःप्रारूप निर्माण
(Feedback & Redesigning)
 
प्रणाली-विशेषज्ञों के लिये पृष्ठपोषण का संप्रत्यय बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक व्यक्ति यह जानना चाहता है कि वह कैसा कार्य कर रहा है। इसके लिये उस व्यक्ति को अपने बारे में तथा उसके द्वारा किये गये कार्य के बारे में सूचनाओं की आवश्यकता होगी, यदि वह अपने कार्य निष्पादन के बारे में सत्य ही जानना चाहता है। किसी व्यक्ति को उसके कार्य निष्पादन के विषय में समय-समय पर सूचित करना कि वह कैसा कर रहा है, पृष्ठपोषण कहलाता है। बैवस्टर कालेजियेट शब्दकोष (Merrian Webster's Collegiate Dictionary) में पृष्ठपोषण के बारे में लिखा है

"Feedback is the trunsmission of evaluative or corrective information to the origi nal or controlling source about an action, event or process."

व्यवहार के नियमितीकरण (Regulating Behaviour) के साथ नियन्त्रण की प्रक्रिया का पृष्ठपोषण एक भाग होता है। यदि किसी प्रणाली को ज्यादा प्रभावशाली बनाना है, इसकी कार्य-प्रभावशीलता बढ़ानी है तथा परिवेश के साथ समन्वय स्थापित करना है, तो पृष्ठपोषण एक सबल उपकरण के रूप में शिक्षा विशेषज्ञ के हाथों में आता है।

पृष्ठपोषण सामान्यतः दो प्रकार के होते हैं

(1) धनात्मक पृष्ठपोषण (Positive Feedback)
(2) ऋणात्मक पष्ठपोषण (Negative Feedback)

धनात्मक पृष्ठपोषण में, यदि अदा (निवेश) में वृद्धि होती है तो प्रदा (उत्पादन) भी बढ़ता है, जबकि ऋणात्मक पृष्ठपोषण में यदि प्रदा घटती है तो अदा में वृद्धि होती है।

धनात्मक पृष्ठपोषण बहुधा प्रणाली में असंतुलन उत्पन्न करता है, जबकि ऋणात्मक पृष्ठपोषण, नियन्त्रण के लिये प्रयोग किया जाता है।

"Feedback may be used as correction device to maintain equilibriun in the system."

सामान्यतः प्रत्येक उद्देश्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होने वाली प्रणाली, पृष्ठपोषण का उपयोग करती है।
पृष्ठपोषण के आधार पर प्रणाली-विशेषज्ञ प्रणाली में आवश्यकतानुसार सुधार लाने का प्रयास करते हैं ताकि प्रणाली अधिक सक्षम, समर्थ एवं प्रभावशाली बन सके तथा सही प्रारूप का निर्माण किया जा सके।

 प्रणाली उपागम के सोपान
(STEPS OF SYSTEMS ANALYSIS)

 प्रणाली उपागम के प्रमुख सोपान नीचे प्रस्तुत किये जा रहे हैं प्रणाली उपागम के पद

(a) प्रणाली विश्लेषण (Systems Analysis)-इसमें प्रणाली की आवश्यकताओं, साधनों. प्रणाली तत्वों, उनके कार्यों, प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया जाता है। यह विश्लेषण अदा, प्रदा प्रक्रिया तथा परिवेश के सन्दर्भ में किया जाता है। इसके दो मुख्य कार्य है—

1. यह निर्धारित करना कि प्रणाली किन उद्देश्यों को प्राप्त कर सकेगी?
2. इन उद्देश्यों के अनुसार आवश्यकताओं तथा तत्वों के माध्यम से प्रणाली के प्रत्येक अंग की कार्य-विधि विश्लेषित करना।

यह विश्लेषण उपस्थित परिवेश के अनुसार किया जाता है।

(b) प्रणाली संरचना (Structure of Systems)-यह पद संश्लेषण (Synthesis) की अवस्था है। इस सोपान में प्रणाली को संश्लेषित करते समय प्रणाली का लक्ष्य सामने रखा जाता है। इस स्तर पर लक्ष्य के अनुसार विभिन्न तरीके सुझाये जाते हैं जिनसे प्रणाली अधिकतर प्रभावी ढंग से परिणाम प्रस्तुत कर सके। इस पद में तीन प्रमुख प्रक्रियायें निहित हैं

1. प्रणाली के लक्ष्य तथा उद्देश्य का निर्धारण करना।
2. समुचित विधियों, व्यूह रचनाओं (Strategies) उपागम तथा युक्तियों का चयन करना
3. प्रणाली के उद्देश्यों तथा विभिन्न तत्वों से सम्बन्धित प्रभावशाली Working के लिये एक व्यापक (Comprehensive) प्रोग्राम की योजना का निर्माण करना। इस योजना में अदा, प्रदा तथा प्रक्रिया एवं प्रणाली के परिवेश का समावेशन तथा स्पष्टीकरण किया जाता है।

(c) प्रणाली संचालन तथा मूल्यांकन (System Operation & Evaluation)-इस पद के अन्तर्गत यह निर्धारित किया जाता है कि प्रणाली की संरचना अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सक्षम है अथवा नहीं। इस हेतु प्रणाली की संरचना का पूर्व परीक्षण सीमूलेटेड (Simulated) परिस्थितियों में करके प्रणाली की प्रामाणिकता तथा उपादेयता जानी जाती है। यह प्रणाली का मूल्यांकन Formative कहलाता है। इसके अनुसार पृष्ठपोषण (Feedback) का सहारा लेकर योजना की संरचना में आवश्यक परिवर्तन, परिवर्धन तथा परिमार्जन किया जाता है फलस्वरूप यह प्रणाली अधिक सक्षम बन जाती है।

इस प्रकार यह सुधार की प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये उसमें सुधार की सम्भावना रहती है।

(d) प्रणाली मौनीटरिंग (Monitoring Systems)-इसके अन्तर्गत क्रियान्वित की जा रही विधि का समय-समय पर परीक्षण किया जाता है और उसकी उपयोगिता की जाँच की जाती है।

प्रणाली विश्लेषण
प्रणाली संरचना (Systems Analysis)
(Systems Design)
प्रणाली मौनीटरिंग (Systems Monitoring)
प्रणाली क्रियायें (Systems Operations)
प्रणाली मूल्यांकन (Systems Evaluation)
चित्र-प्रणाली उपागम के सोपान

प्रणाली उपागम के लाभ
(ADVANTAGES OF SYSTEMS APPROACH)

 प्रणाली उपागम के प्रमुख लाभ नीचे दिये जा रहे हैं
 
1. शिक्षक, प्रणाली उपागम के द्वारा आधारभूत शिक्षण प्रक्रिया को सुगमता से समझता है।
2. यह निर्देशात्मक सामग्री के निर्माण में सहायक होती है।
3. यह प्रणाली शैक्षिक अभिक्रमों का विनियोग करके शैक्षिक वातावरण के निर्माण करने की ओर अग्रसर रहती है।
4. यह लक्ष्य और साधनों को स्पष्ट करती है।
5. इसके माध्यम से निर्देशन प्रक्रिया में कुशलता बढ़ती है।
6. प्रणाली उपागम से अधिगम अनुभवों की व्यवस्था समुचित ढंग से की जाती है।
7. प्रणाली उपागम से शैक्षिक प्रशासन, शैक्षिक व्यवस्था तथा शैक्षिक अनुदेशन को प्रभावशाली बनाने में सहायता मिलती है।
8. यह मशीन, मानव तथा संचार तीनों के एकीकरण में इस प्रकार से सहायक होता है, जिससे लक्ष्य प्राप्ति में आसानी हो सके।
9. इसमें प्रत्येक पद पर मूल्यांकन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चलता रहता है, जिससे इसमें आवश्यक सुधार किये जा सकते हैं।
10. प्रणाली उपागम लचीला होता है और जरूरत के हिसाब से इसमें परिवर्तन किये
जाते हैं।

प्रणाली उपागम की सीमायें
(LIMITATIONS OF SYSTEMS APPROACH)

 प्रणाली उपागम की प्रमुख सीमायें नीचे दी गयी हैं
 
1. इसमें शिक्षा के एक पक्ष 'शिक्षक-प्रशिक्षण' पर ही अपेक्षाकृत अधिक बल दिया जाता
2. इसमें समय काफी लगता है।
3. यह अपेक्षाकृत महँगी विधि है।
4. इस प्रणाली उपागम में शिक्षक-प्रशिक्षण के द्वारा विषय सम्बन्धी योग्यता में सुधार सम्भव नहीं होता।
5. प्रणाली उपागम में फ्रेमवर्क (Framework) अन्य विधियों की तुलना में अपेक्षाकृत उच्च स्तर का होता है अतः इस प्रणाली का उपयोग सभी लोग अधिक सरलता से नहीं कर पाते।
6. जब कोई व्यक्ति प्रणाली-उपागम' का प्रयोग करते हैं तो उनका विशेष बल प्रणाली में अलग-अलग बातों पर रहता है, उनमें एकरूपता नहीं होती।
7. बहुत से लोग यह महसूस करते हैं कि प्रणाली के सिद्धान्त अपेक्षाकृत ज्यादा अमूर्त तथा जटिल होते हैं, अतः उनका प्रयोग करने के लिये मन बनाना थोड़ा कठिन हो जाता है।
8. Systems approach does not provide action frame work applicable to all types of organisation.

प्रणाली उपागम की उपर्युक्त सीमाओं को देखते हुये शिक्षाविदों ने इसे परिमार्जित करके इसके Extension के रूप में एक नवीन विधि का निर्माण किया है, जिसे कन्टिन्जैन्सी उपागम अथवा परिस्थिति उपागम (Contingency or Situational Approach) कहा जाता है।

शिक्षा में प्रणाली-उपागम
(SYSTEMS APPROACH IN EDUCATION)

 शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रणाली-उपागम दिन-प्रतिदिन अधिक महत्त्वपूर्ण बनता जा रहा है। अनुदेशात्मक प्रणाली का वर्णन करते समय अधिकतर तीन पदों का प्रयोग किया जाता है
(a) शिक्षा
(b) स्कूली शिक्षा
(c) अनुदेशन

ये तीनों ही मानव-शिक्षा से जुड़े संप्रत्यय हैं।

शिक्षा या शिक्षा-प्रणाली (Education or Educational Systems)-शिक्षा प्रणाली प्रत्येक राष्ट्र में अपने विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिये कार्य करती है और महत् सामाजिक प्रणाली (Supra Social System) से प्रभावित होती है। शिक्षा अपने समस्त अदा, प्रदा, स्रोत तथा अवरोध समाज से प्राप्त करते हैं। शिक्षा प्रणाली का मूल्यांकन, सामाजिक प्रणाली के सन्दर्भ में किया जाता है। शिक्षा प्रणाली में अनेक उप-प्रणालियों होती हैं जैसे शैक्षिक प्रबन्ध, प्रशासन, शैक्षिक मार्गदर्शन आदि। ये उप-प्रणालियों परस्पर आश्रित तथा निश्चित उद्देश्य एवं कार्य के लिये प्रणाली के तत्वों के रूप में कार्य करती रहती हैं। इन समस्त उप-प्रणालियों में अन्तःक्रियायें चलती रहती हैं और ये मिलजुल कर सम्मिलित रूप में महत् शिक्षा-प्रणाली के वृहत उद्देश्यों की प्राप्ति में अपना पूरा सहयोग देती हैं।

शिक्षा में प्रणाली उपागम के प्रयोग/लाभ
(ADVANTAGES & APPLICATIONS OF SYSTEMS APPROACH IN EDUCATION)

 'प्रणाली-उपागम का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में निम्नांकित विशिष्ट उद्देश्यों के लिये किया जाता है—
 
(1) प्रभावशाली योजना बनाने में (Effective Planning)-आधुनिक युग में शैक्षिक तकनीकी का बोलबाला है। शैक्षिक उपागम प्रणाली हमें शिक्षा के लिये प्रभावशाली योजना बनाने में सहायता प्रदान करती है। यह हमें निर्देश देती है कि कैसे शिक्षा की योजनायें बनायी जायें, कैसे उनका प्रयोग शिक्षा के उन्नयन में किया जाये, कैसे योजना के शैक्षिक एवं व्यावहारिक उद्देश्यों की पहचान कर उनका निर्धारण किया जाये, कैसे उन्हें परिभाषित किया जाये, कैसे योजना में तत्व तथा क्रिया-कलाप निश्चित किये जायें, कैसे योजना का संचालन किया जाये और कैसे तथा कौन सी और कब-कब मूल्यांकन विधियों का प्रयोग किया जाये। योजना को लचीली बनाने में, उसमें सुधार लाने में तथा उसे प्रभावशाली बनाने में प्रणाली उपागम शिक्षा के क्षेत्र में अब एक वरदान सिद्ध हो रहा है।

(2) उत्तम नियन्त्रण तथा समन्वय (Good Control and Co-ordination)— 'प्रणाली-उपागम' शिक्षा के क्षेत्र में नियन्त्रण तथा समन्वय की वृद्धि कर शिक्षा प्रणाली को प्रभावशाली बनाने की ओर अग्रसर होती है। इससे विद्यालय व्यवस्था उन्नत एवं प्रभावशाली होती है। प्रणाली-उपागम के द्वारा "अनुदेशात्मक प्रक्रिया के विभिन्न घटकों को नियन्त्रित कर उनके कार्यों को इस प्रकार समन्वित किया जाता है कि अनुदेशन के उद्देश्यों की प्राप्ति का स्तर बढ़ सके।"

(3) स्रोतों का अधिकतम उपयोग (Optimum Utilization of Resources) शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्ध विभिन्न स्रोतों का अधिकतम उपयोग करने में प्रणाली-उपागम का बहुत बड़ा हाथ रहता है। इसमें शिक्षक कर्मचारियों तथा छात्रों के कार्यों का निर्धारण कर लिया जाता है तथा उन्हें परिभाषित किया जाता है, जिससे कि वे सभी एक ही प्रकार के कार्य में अपना समय नष्ट न करें। इससे उनके कार्यों में किसी प्रकार का Duplication नहीं होता और सभी अपने-अपने कार्यों में लगे रहते हैं।

विद्यालय एवं स्थानीय समाज के उपलब्ध सभी स्रोतों के विषय में जानकारी एकत्रित की जाती है और फिर उनको शिक्षा तथा अनुदेशन प्रणाली में कैसे, कहाँ और किस प्रकरण के लिये उपयोग में लाया जाये, इसका निर्धारण किया जाता है। तदनुसार योजना बनाकर स्रोतों का अधिकतम उपयोग करने के लिये 'प्रणाली उपागम' का प्रयोग किया जाता है।

4) गुणवत्ता पर नियन्त्रण (Quality Controlh-आज शिक्षा के व्यापक प्रचार एवं प्रसार के कारण राष्ट्र में संख्यात्मक विकास काफी हुआ है। साक्षरता-प्रतिशत भी पहले से काफी बढ़ा है, परन्तु शिक्षा की गुणवत्ता में काफी कमी आयी है। हर व्यक्ति शिक्षा के गिरते स्तर पर चिन्ता प्रकट करता है। शिक्षा की गिरती हुयी गुणवत्ता के स्तर को ऊँचा करने के लिये, इसमें वृद्धि लाने के लिये तथा गुणवत्ता पर नियन्त्रण रखने के लिये 'प्रणाली-उपागम' शिक्षा के क्षेत्र में एक अत्यन्त शक्तिशाली साधन सिद्ध हो रहा है।

(5) यह उपागम अनुदेशन प्रणाली में सुधार लाता है।
(6) यह विद्यालय प्रशासन तथा प्रबन्धन को प्रभावशाली बनाता है।
(7) शैक्षिक प्रक्रिया में मानव, पदार्थ तथा स्रोतों (Man, Material and Resource) को | अधिकतम प्रभावशाली ढंग से प्रयोग करने में सहायता करता है।
(8) छात्रों के व्यक्तित्व निर्माण तथा निर्देशन सेवाओं में सहायक होता है।
(9) यह अनौपचारिक तथा निःऔपचारिक (Non-formal and Informal) शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाता है।
(10) इस प्रणाली उपागम के द्वारा शिक्षक-परीक्षण के क्षेत्र में अनेक प्रकार से सुधार लाता है।
(11) यह परीक्षाओं और मूल्यांकन प्रणाली को अधिक उपादेय व प्रभावशाली बनाने में सहायक होता है।

शिक्षा में प्रणाली उपागम प्रयोग के पद
(STEPS IN THE APPLICATION OF SYSTEMS APPROACH IN EDUCATION)

शिक्षा के क्षेत्र में यदि कोई शिक्षक किसी कक्षा में अनुदेशन प्रणाली-उपागम का प्रयोग करना चाहता है तो उसे इसके प्रत्येक पद हेतु एक बहुत ही सुव्यवस्थित कार्यप्रणाली प्रयोग करनी होगी। उसे अग्रांकित आठ पदों का अनुसरण करना होगा—
 
उद्देश्यों का परिभाषीकरण
छात्रों के पूर्व ज्ञान व कौशलों का पूर्व मूल्यांकन
छात्रों की योग्यता, रुचि व विषय-वस्तु के अनुरूप उपयुक्त उपागमों तथा विधियों व व्यूह रचनाओं का चयन
अनुदेशात्मक विधियों तथा व्यूह रचनाओं की आवश्यकताओं के
अनुरूप शैक्षिक सामग्री और माध्यमों का चयन
प्रणाली के समस्त तत्व (जैसे-शिक्षक, छात्र एवं शिक्षण-अधिगम
सामग्रियों के कार्यों एवं उत्तरदायित्वों का निर्धारण
तथा परिभाषीकरण
अनुदेशन प्रणाली का संश्लेषण तथा कार्यान्वयन (उह चों के सन्दर्भ में)
प्रणाली की प्रामाणिकता की जाँच हेतु प्राप्त
परिभाषाओं का मूल्यांकन
परिणामों का विश्लेषण तथा प्रणाली का परिमार्जन
चित्र-शिक्षा में प्रणाली उपागम के आठ पद प्रणाली उपागम के अन्तर्गत उपर्युक्त आठों पदों का अनुसरण करके शिक्षा की प्रक्रिया तथा शैक्षिक अदा पर प्रभावशाली ढंग से नियन्त्रण रखा जा सकता है तथा अन्य सम्बन्धित शैक्षिक समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। प्रणाली उपागम शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षकों और छात्रों के उन्नत प्रशिक्षण तथा उनके विकास के लिये, विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन एवं निर्धारण हेतु एक महत्त्वपूर्ण साधन है।

अभ्यास प्रश्न
निबन्धात्मक प्रश्न

1. प्रणाली उपागम का क्या अर्थ है ? इसकी विशेषतायें तथा शिक्षा में प्रणाली उपागम का विस्तृत वर्णन कीजिए।
2. सम्प्रेषण नियन्त्रण से आप क्या समझते हैं ? इसका विस्तृत वर्णन कीजिए।
3. सिस्टम डायनेमिक्स क्या है ? इसकी संरचना का विस्तृत वर्णन कीजिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. प्रणाली तथा उपप्रणाली के सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
2. मुक्त प्रणाली क्या है ? स्पष्ट कीजिये।
3. प्रणामी उपागम का अर्थ परिभाषा द्वारा समझाइये।
4. प्रणाली उपागम की विशेषतायें बताइये।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. प्रणाली उपागम के पद हैं
(अ) प्रणाली अभियान्त्रिकी
(ब) प्रणाली विश्लेषण
(स) ऑपरेशनल शोध
(द) उपर्युक्त सभी।

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