बी एड - एम एड >> शैक्षिक तकनीकी एवं कम्प्यूटर अनुदेशन शैक्षिक तकनीकी एवं कम्प्यूटर अनुदेशनजे सी अग्रवालएस पी कुलश्रेष्ठ
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चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ एवं डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद के दो वर्षीय बी. एड. के नवीनतम् पाठ्यक्रमानुसार
शैक्षिक तकनीकी : सम्प्रत्यय एवं उपागम :
Education Technology: Concept and Approach
विषय-प्रवेश
(INTRODUCTION)
आज के युग में मानव जीवन का प्रत्येक पक्ष वैज्ञानिक खोजों तथा आविष्कारों से
प्रभावित है। शिक्षा का क्षेत्र भी इसके प्रभाव से मुक्त नहीं रह सका है।
रेडियो, टेपरिकॉर्डर, टेलीविजन, रेडियो-विजन, लिंग्वाफोन, कम्प्यूटर आदि का
बढ़ता हुआ उपयोग शिक्षा को तकनीकी (Technology) के निकट लाता जा रहा है।
शिक्षाशास्त्र का कोई भी अंग, चाहे वह विधियों-प्रविधियों का हो, चाहे,
उद्देश्यों का हो, चाहे शिक्षण-प्रक्रिया का हो, चाहे शोध का हो, बिना तकनीकी
के अपंग, अवश और लुंज महसूस होता है। छात्राध्यापकों की चाहे सैद्धान्तिक
ज्ञान से सम्बन्धित समस्या हो, चाहे उनके प्रयोगात्मक शिक्षण (Practice
Teaching) के क्षेत्र की अड़चन हो, तकनीकी हमें सहायता देती है। सत्य तो यह
है कि तकनीकी विज्ञान इतना समृद्ध और शक्तिशाली होता जा रहा है कि बिना इसका
अध्ययन किये छात्राध्यापकों का शिक्षण सम्बन्धी ज्ञान या उनके परीक्षण तथा
प्रशिक्षण में प्राप्त ज्ञान और कौशल अधूरे समझे जाते हैं। शैक्षिक तकनीकी
(Educational Technology) ने शिक्षा के क्षेत्र में पुरानी अवधारणाओं में
आधुनिक सन्दर्भ के साथ अभूतपूर्व क्रान्तिकारी परिवर्तन कर उन्हें एक नवीन
स्वरूप प्रदान किया है।
सर्वप्रथम “एजूकेशनल टेक्नोलॉजी' शब्द का प्रयोग इंग्लैण्ड में Brynmor Jones
ने सन् 1967 में किया था। इसके पश्चात् इंग्लैण्ड की N.C. E.T. (National
Council of Educational Technology) संस्था द्वारा आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में
इसकी व्याख्या की गयी | N.C.E.T. तथा अन्य ऐसी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं ने
इतना और इस स्तर तक का कार्य प्रस्तुत किया कि 1967 में जन्मा यह विषय आज
शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा-दर्शन, शिक्षा मनोविज्ञान या
शिक्षा-समाजशास्त्र के समकक्ष पहुंच चुका है। भारत के अनेक विश्वविद्यालयों
(हिमाचल, मेरठ, इन्दौर, गढ़वाल, आगरा, राजस्थान आदि) ने इसे अपने बी०एड० तथा
एम०एड० के पाठ्यक्रम में अनिवार्य विषय के रूप में रखा है। इस विषय की महत्ता
तथा उपयोगिता को देखते हुए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद्
(NCERT), नई दिल्ली ने शैक्षिक तकनीकी केन्द्र (Centre for Educational
Technology) प्रारम्भ कर दिया है, जहाँ पर शोध, प्रशिक्षण तथा निर्देशन की
व्यवस्था की गई है।
शैक्षिक तकनीकी का अर्थ तथा स्वरूप
(MEANING AND NATURE OF EDUCATIONAL TECHNOLOGY)
'एजूकेशनल टेक्नोलॉजी (Educational Technology) शब्द दो शब्दों से मिलकर बना
है-एक, एजूकेशन और दूसरा, 'टेक्नोलॉजी'। सर्वप्रथम हम एजूकेशन या शिक्षा का
अर्थ देखेंगे, फिर 'टेक्नॉलॉजी' का, और इसके आधार पर इस विषय को परिभाषित
करने का प्रयत्न करेंगे।
शिक्षा क्या है ?
(WHAT IS EDUCATION ?)
शिक्षा की उत्पत्ति "शिक्ष' धातु से हुई है। इसका अर्थ है-विद्या प्राप्त
करना। दूसरे शब्दों में ज्ञानार्जन या विद्या-प्राप्ति के माध्यम से
संस्कारों एवं व्यवहारों का निर्माण करना ही शिक्षा कहलाता है। शिक्षा, लैटिन
भाषा के शब्द 'एडूकेटम' (Educatum) का पर्याय है, जिसका अंग्रेजी में
Education पर्याय शब्द है। इसका अर्थ है-"शिक्षण की कला' | Universal
Dictionary of English Language के अनुसार, शिक्षा से तात्पर्य है-
(1) शिक्षित करना, प्रशिक्षण देना,
(2) मस्तिष्क तथा चरित्र का विकास करना, तथा
(3) किसी विशेष राज्य की शिक्षा-व्यवस्था।
ये सभी शब्द शिक्षा के विभिन्न अभिप्रायों तथा शैक्षणिक क्रिया-प्रक्रियाओं
की ओर संकेत करते हैं। शिक्षा बालक को नये-नये अनुभव प्रदान कर उसे इस योग्य
बनाती है कि वह अपने वातावरण में समायोजित होकर अपनी शक्तियों तथा निहित
योग्यताओं का पूर्ण विकास कर, योग्यतानुसार अपने परिवार, समाज तथा राष्ट्र को
किसी विशिष्ट क्षेत्र में योगदान कर सके।
शिक्षा से तात्पर्य बालक के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाना है। शिक्षा से
बालक की मूलप्रवृत्तियाँ परिमार्जित होती हैं। मूलप्रवृत्तियों के परिमार्जन
में मनोविज्ञान, तकनीकी तथा विज्ञान अपना प्रभावपूर्ण योगदान शिक्षा के
क्षेत्र में प्रदान करता है। अतः शिक्षा स्वयं में एक आत्मनिर्भर
(Independent) प्रत्यय नहीं है वरन् यह तकनीकी विज्ञान से सम्बन्धित है।
तकनीकी विज्ञान बालकों के व्यवहार के अध्ययन में शिक्षा की मदद करता है और
साथ ही उनमें परिमार्जन तथा संशोधन के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
तकनीकी क्या है ?
(WHAT IS TECHNOLOGY ?)
तकनीकी या तकनीकी विज्ञान अंग्रेजी के Technology शब्द का पर्याय है।
तकनीकी का अर्थ है-दैनिक जीवन में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग करने की
विधियाँ। प्रो० गॉलब्रेथ | (Golbraith) के अनुसार, तकनीकी (Technology) की दो
प्रमुख विशेषताएँ हैं
(1) Systematic application of scientific or other organized knowledge to
practical tasks.
(2) Forming the division and sub-division of any such task into its
component parts.
जैकोटा ब्लूमर (Jacquetta Bloomer) ने सन् 1973 में तकनीकी की परिभाषा निम्न
प्रकार दी-"Technology is the application of scientific theory to practical
ends." I. Kulshrestha, S.P.(1980) : Educational Psychology.
अतः यह कहा जा सकता है कि वैज्ञानिक व्यवस्थाओं तथा प्रविधियों का
प्रयोगात्मक रूप ही तकनीकी या तकनीकी विज्ञान है।
"तकनीकी' शब्द को अधिकत्तर ‘मशीन' या 'मशीन सम्बन्धी प्रत्ययों से साधारणतः
लोग जोड़ते हैं, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि 'तकनीकी में मशीन या मशीनरी का
प्रयोग किया ही जाय। इसका तात्पर्य तो किसी भी प्रयोगात्मक कार्य से है,
जिसमें वैज्ञानिक ज्ञान या सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाय। यह ग्रीक शब्द
Technikos से निकला है, जिसका अर्थ है-कला। इसका पर्याय लैटिन भाषा का शब्द
'Tevere' है, जिसका अभिप्राय बुनने तथा निर्माण करने (Weave or construct) से
होता है। डॉ० दास के अनुसार, "Any system of interrelated parts which are
organized in a scientific manner as to attain some desired objective could
be called technology.
शैक्षिक तकनीकी की परिभाषाएँ तथा प्रकृति
(DEFINITIONS AND NATURE OF EDUCATIONAL TECHNOLOGY)
(A) एकांगी परिभाषाएँ
शैक्षिक तकनीकी की विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार से परिभाषायें दी
हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ नीचे उदधृत की जा रही हैं। ये परिभाषाएँ
शैक्षिक तकनीकी के अर्थ एवं स्वरूप को समझने में सहायता प्रदान करती हैं।
(a) जैकोटा ब्लूमर (Jacquetta Bloomer, 1973)-"शैक्षिक तकनीकी को व्यावहारिक
अधिगम की परिस्थितियों में वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान का विनियोग कहा जाता
है।
"Educational Technology is the application of scientific knowledge about
learning to practical learning situations."
(2) रिचमण्ड (Richmond, 1970)-"शैक्षिक तकनीकी सीखने की उन परिस्थितियों की
समुचित व्यवस्था के प्रस्तुत करने से सम्बन्धित है जो शिक्षण एवं परीक्षण के
लक्ष्यों को ध्यान में रखकर अनुदेशन को सीखने का उत्तम साधन बनाती है।
*Educational Technology is concerned to provide appropriately designing
learning situations, holding in view the objectives of the teaching or
training, bring or bear the best means of instruction."
(3) रॉबर्ट ए० कॉक्स (Robern A.Cox, 1970)-"मानव की सीखने की परिस्थितियों
में वैज्ञानिक प्रक्रिया के प्रयोग को शैक्षिक तकनीकी कहा जाता है।
Application of scientific process to man's learning conditions called
Educational Technology."
(4) डीसीको (Dececco)-"सीखने के मनोविज्ञान का व्यावहारिक शैक्षिक समस्याओं
पर गहन विनियोग शैक्षिक तकनीकी है।"
"It is in the form of detailed application of the Psychology of learning
to practical teaching problems."
(5) रॉबर्ट एम० गेने (Roheri M. Higne')-"शैक्षिक तकनीकी से तात्पर्य है कि
व्यावहारिक ज्ञान की सहायता से सुनियोजित प्रविधियों का विकास करना, जिससे
विद्यालयों की शैक्षिक प्रणाली के परीक्षण तथा शिक्षा कार्य की
व्यवस्था की जा सके।
"Educational Technology can be understood as a mean for the development of
a set of systematic techniques and accompanying practial knowledge for
designing testing and operating schools as educational systems.
(6) एस० एस० कुलकर्णी (S.S.Kulkarni. 1966)-"तकनीकी तथा विज्ञान के
आविष्कारों तथा नियमों का शिक्षा की प्रक्रिया में प्रयोग को ही शैक्षिक
तकनीकी कहा जाता है।
"Educational Technology may be defined as the application of the laws as
well as recent discoveries of science and technology to the process of
education."
उपर्युक्त सभी परिभाषाओं की विवेचना करने पर स्पष्ट होता है कि ये सभी
परिभाषायें एकांगी हैं। कोई परिभाषा शैक्षिक तकनीकी के किसी पहलू पर प्रकाश
डालती है और कोई परिभाषा किसी दूसरे पहलू को उजागर करती है। अतः इन परिभाषाओं
में व्यापकता (Comprehensiveness) के गुण का अभाव है।
(B) शैक्षिक तकनीकी की ग्राह्य परिभाषाएँ
इस श्रेणी में लीथ, साकामातो तथा शिव के० मित्रा की परिभाषाएँ वर्गीकृत की जा
सकती हैं-
(1) जी० ओ० एम० लीथ (G.O.M. Leith)-"शैक्षिक तकनीकी सीखने और सिखाने की
दिशाओं में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग है, जिसके द्वारा शिक्षण एवं प्रशिक्षण
की प्रक्रिया की प्रभावपूर्णता एवं दक्षता का विकास कर उसमें सुधार लाया जाता
है।
Educational Technology is the systematic application of scientific
knowledge about teaching, learning and conditions of learning to improve
the efficiency of teaching and training."
(2) तक्शी साकामातो (Takshi Sakamato, 1971)-“शैक्षिक तकनीकी वह व्यावहारिक
या प्रयोगात्मक अध्ययन है जिसका उद्देश्य कुछ आवश्यक तत्वों, जैसे- शैक्षिक
उद्देश्य, पाठ्य-वस्तु, शिक्षण सामग्री, शिक्षण विधि, वातावरण, विद्यार्थियों
व निर्देशकों का व्यवहार तथा उनके मध्य होने वाली अन्तः प्रक्रिया को
नियन्त्रित करके अधिकतम शैक्षिक प्रभाव उत्पन्न करना है।
Educational Technology is an applied or practical study which aims at
maximising educational effect by controlling such relevant facts as
educational purposes, educational environment, conduct of student,
behaviour of instructors and interrelations between students and
instructors."
(3) शिव के० मित्रा (Shiv K. Mitra)- शैक्षिक तकनीकी को उन पद्धतियों तथा
प्रविधियों का विज्ञान माना जा सकता है जिनके द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों को
प्राप्त किया जा सके।
"Educational Technology can be conceived as a science of techniques and
methods by which educational goals could be realized."
(C) शैक्षिक तकनीकी की कार्यात्मक परिभाषा
हेडेन (E. E. Hadden) की परिभाषा कार्यात्मक परिभाषा कही जाती है। इसमें
शैक्षिक तकनीकी के सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों ही पक्षों को समावेशित
किया गया है। हेडेन के अनुसार, शैक्षिक तकनीकी, शैक्षिक सिद्धान्त एवं
व्यवहार की वह शाखा है जो मुख्यतः सूचनाओं के उपयोग एवं योजनाओं से सम्बन्धित
होती है और सीखने की प्रक्रिया पर नियन्त्रण रखती है।
(Educational Technology is that branch of educational theory and practice
concerned primarily with the design and use of messages which control the
learning process.)
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम अग्रलिखित निष्कर्षों पर पहुँचते हैं
(1) विज्ञान, शैक्षिक तकनीकी का आधारभूत विषय है।
(2) शैक्षिक तकनीकी शिक्षा पर विज्ञान तथा तकनीकी के प्रभाव का अध्ययन
करती है।
(3] शैक्षिक तकनीकी में व्यावहारिक पक्ष को महत्व दिया जाता है।
(4) शैक्षिक तकनीकी निरन्तर विकासशील विषय है।
(5) इसका उद्देश्य सीखने की प्रक्रिया में विकास करना है।
(6) यह मनोविज्ञान, इन्जीनियरिंग आदि विज्ञानों से सहायता लेती है।
(7) इसमें क्रमबद्ध उपागम (Systematic Approach) को प्रधानता दी जाती
है।
(8) इसमें शिक्षक, छात्र तथा तकनीकी प्रक्रियायें एक साथ समावेशित रहती
हैं।
(9) शैक्षिक-तकनीकी के विकास के फलस्वरूप शिक्षण में नवीन शिक्षण-विधियों तथा
नव शिक्षण-तकनीकियों का प्रवेश हो रहा है।
(10) यह शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अधिगम-परिस्थितियों में आवश्यक
परिवर्तन लाने में समर्थ है।
(11) शैक्षिक-तकनीकी, शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक तथा तकनीकी आवश्यकताओं के
अनुरूप उपकरणों के निर्माण में सहायता प्रदान करती है।
उपर्युक्त परिभाषाओं तथा विशेषताओं के आधार पर यह स्पष्ट है कि शैक्षिक
तकनीकी अति विस्तृत शब्द है; इसका तात्पर्य सम्पूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया को
योजनाबद्ध कर, कार्यान्वित करने में वैज्ञानिक सिद्धान्तों को प्रयोग में
लाना है। डॉ० आनन्द (1996) के शब्दों में इसमें वह बात शामिल है जिसकी सहायता
से शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सुधार लाने का प्रयास किया जाता है। शैक्षिक
तकनीकी शिक्षण, प्रशिक्षण तथा शिक्षा की लगभग सभी महत्त्वपूर्ण क्रियाओं से
सम्बन्धित है-जैसे अनुदेशात्मक उद्देश्यों को निर्धारित करना, अधिगम सम्बन्धी
वातावरण की योजना बनाना, शिक्षण एवं अधिगम सामग्री को तैयार करना, शिक्षण
हेतु उपयुक्त युक्तियों तथा अधिगम के माध्यमों का चयन करना एवं शिक्षण तथा
अधिगम प्रणालियों का मूल्यांकन करना, इत्यादि।
एक समय था जब शैक्षिक तकनीकी का अर्थ केवल श्रव्य-दृश्य साधनों के शिक्षण से
समझा जाता था। आज के युग में शैक्षिक-तकनीकी अत्यन्त विस्तृत धारणा युक्त हो
गयी है। अब शैक्षिक तकनीकी की धारणा का प्रयोग उन सभी विधियों, प्राविधियों,
व्यूह रचनाओं तथा यान्त्रिक उपकरणों की अभिव्यक्ति हेतु किया जा रहा है जिनका
प्रयोग शिक्षण एवं अधिगम की प्रभावशीलता में वृद्धि करने के लिये किया जाता
है। शैक्षिक-तकनीकी, शैक्षिक एवं शैक्षणिक प्रक्रियाओं को नियोजित करने,
संगठित करने, अग्रसरित करने तथा उनके प्रभावों को भली-भाँति नियन्त्रित करने
के लिये एक सुव्यवस्थित तथा वैज्ञानिक प्रयास कहलाता है।
शैक्षिक तकनीकी की उपर्युक्त विवेचना के आधार पर लेखक ने अपनी परिभाषा इस
प्रकार दी है-"शैक्षिक तकनीकी, विज्ञान पर आधारित एक ऐसा विषय है जिसका
उद्देश्य शिक्षक, शिक्षण तथा छात्रों के कार्य को निरन्तर सरल बनाना है,
जिससे कि शिक्षा के ये तीनों अंग मिलकर भली-भाँति समायोजित रहें और अपने
उद्देश्यों की प्राप्ति में क्रमबद्ध उपागमों के माध्यम से सक्षम और समर्थ
रहें। इस विषय के अन्तर्गत शिक्षा के अदा, प्रदा तथा प्रक्रिया (Input,
Output and Process) तीनों ही पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए।"
(Kulshrestha, S. P.. 1980)
शैक्षिक तकनीकी की मान्यतायें (ASSUMPTIONS OF EDUCATIONAL TECHNOLOGY)
शैक्षिक-तकनीकी निम्नांकित मान्यताओं पर आधारित है
(1) प्रत्येक मानव, मशीन की भाँति कार्य करता है अतः शिक्षा के क्षेत्र में
मानव व्यवहार में परिमार्जन तथा परिष्करण हेतु इसके वैज्ञानिक सिद्धान्तों का
सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है।
(2) शिक्षण कला तथा विज्ञान दोनों ही है। अतः शिक्षण का विश्लेषण किया जा
सकता है तथा शिक्षण को इसके छोटे-छोटे तथ्यों, तत्वों एवं अवयवों में विभाजित
किया जा सकता है। फिर बाद में इन तथ्यों, तत्वों एवं अवयवों का भी गहन
प्रेक्षण, निरीक्षण तथा अध्ययन सम्भव है। अतः शैक्षिक तकनीकी, वैज्ञानिक
उपागमों पर आधारित है।
शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग को प्रभावित करने वाले कारक (FACTORS INFLUENCING
THE APPLICATION OF EDUCATIONAL TECHNOLOGY) शैक्षिक तकनीकी के उपयोगों को
प्रभावित करने वाले अनेक महत्त्वपूर्ण कारक हैं, जिनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण
कारक निम्न चित्र द्वारा प्रदर्शित किये जा रहे हैं
(मनोवैज्ञानिक
राजनैतिक,
आर्थिक
तकनीकी
शैक्षिक तकनीकी के उपयोग को प्रभावित करने वाले कारक
शैक्षिक
सामाजिक,
सांस्कृतिक)
(1) राजनैतिक कारक (Political Factors)-किसी भी राष्ट्र में शैक्षिक तकनीकी
का विकास अनेक कारकों पर निर्भर रहता है। इन कारकों में सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण है- राजनैतिक कारक । राजनैतिक कारकों से तात्पर्य है-वे कारक जो
राष्ट्र की राजनीतिक परिस्थितियों, राजनीतिक नीतियों तथा वैज्ञानिक अन्वेषणों
एवं राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति से सम्बन्धित होते हैं। देश में जो भी
सरकार है उसकी नीति शैक्षिक तकनीकी के विकास के क्षेत्र में कैसी है। यदि
शासन करने वाली पार्टी को लगता है कि किन्हीं तकनीकी विशेष के प्रयोग से
उन्हें ज्यादा लाभ सम्भव है तो वह उनके विकास के लिये भरपूर प्रयास करेगी।
अतः कहा जा सकता है कि शैक्षिक तकनीकी पर राजनीतिक कारकों का पर्याप्त प्रभाव
पड़ता है। टेलीविजन तथा दूरसंचार के क्षेत्र में छुपे अभिनव प्रयोगों में तथा
उनके प्रचार-प्रसार में राजनीतिक कारकों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हाथ रहा
है।
(2) मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors)-मनोवैज्ञानिक कारकों के
अन्तर्गत शिक्षकों, छात्रों तथा शिक्षालयों की रुचि, स्तर, प्रवृत्तियों आदि
का समावेशन होता है। शिक्षकों की अभिप्रेरणा, सीखने-सिखाने की इच्छा-शक्ति,
ध्यान एवं रुचि आदि के प्रभाव मनोवैज्ञानिक कारकों के अन्तर्गत समावेशित होते
हैं।
शिक्षकों एवं छात्रों की शैक्षिक तकनीकी में व्यक्तिगत रुचि, अभिरुचि.
अभिवृत्ति एवं प्रयासों पर बहुत कुछ निर्भर करता है,। यदि शिक्षा के ये दोनों
अंग शैक्षिक तकनीकी का नवीनतम ज्ञान एवं सूचनायें रखते हैं, उन्हें प्रयोग
करने के लिये उचित प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं. उनके उपयोग के लिये विभिन्न
स्थानीय एवं अन्य स्रोतों का भरपूर लाभ उठा सकते हैं तथा अपने विद्यालयों के
परिवेश में सही प्रकार से उपयोग करने के लिये सहज स्थिति पाते हैं तो शैक्षिक
तकनीकी शिक्षा के विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
3) शैक्षिक कारक (Educational Factors)-ये कारक मनोवैज्ञानिक कारकों के साथ
काफी प्रभावशाली सिद्ध होते हैं। शैक्षिक कारकों में शिक्षकों की शिक्षा एवं
प्रशिक्षण मुख्य. कारक हैं। यदि शिक्षकों को शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में
उचित स्तर का सुनियोजित प्रशिक्षण प्रदान किया जाये तो ये शिक्षक शैक्षिक
तकनीकी के विकास में मील के पत्थर सिद्ध हो सकते हैं। ये शिक्षक शैक्षिक
तकनीकी के विभिन्न उपागमों का प्रयोग करने के लिये प्रयोगशाला का कार्य करने
में सक्षम हो सकते हैं। ये नवीन प्रयोग, परिष्करण तथा अन्वेषण का कार्य
प्रभावशाली ढंग से कर नवीन खोजों एवं नवीन आयामों को प्रभावशाली नेतृत्व एवं
स्वस्थ दिशा देने में समर्थ हो सकते हैं।
(4) आर्थिक कारक (Economic Factors)-शैक्षिक तकनीकी के विकास में आर्थिक कारक
भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। किसी भी प्रयोग, अन्वेषण तथा खोज की
रीढ़ 'धन' होता है। बिना समुचित धन के किसी भी तकनीकी का विकास, प्रसार तथा
प्रशिक्षण सम्भव नहीं।
शैक्षिक तकनीकी में श्रव्य-दृश्य साधनों तथा अन्य उपकरणों के लिये तथा
शैक्षिक तकनीकी की प्रयोगशाला का निर्माण करने के लिये भी आर्थिक अनुदान
चाहिये। बिना अर्थ के न तो उपकरण खरीदे जा सकते हैं और न ही प्रयोग हो सकते
हैं और न ही किसी प्रकार के परिष्करण व अन्वेषण का कार्य सम्भव है।
(5) सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक (Social & Cultural Factors)-समाज एवं
संस्कृति शिक्षा का दर्पण है। जैसा समाज होगा, जैसी संस्कृति होगी वैसी ही
वहाँ की शिक्षा होगी। यदि समाज में शैक्षिक तकनीकी के प्रति जागरुकता है,
वांछित नेतृत्व का बोलबाला है तथा संस्कृति की नस-नस में तकनीकी का प्रभाव
दृष्टिगोचर होता है तो निःसंदेह शैक्षिक-तकनीकी के क्षेत्र में भी भविष्य
उज्ज्वल रहेगा। तभी विद्यालय परिवेश को तकनीकी जामा पहनाने के | लिये समाज के
लोगों का अभिभावकों का, तथा शिक्षा-विशेषज्ञों का दबाव पड़ेगा। फलस्वरूप
शिक्षा के मन्दिर में शैक्षिक तकनीकी अपनी प्रभावशाली भूमिका निभा सकेगी।
समाज एवं संस्कृति में वैज्ञानिक अवधारणा यदि व्याप्त है तो शैक्षिक मन्दिरों
में भी छात्र, शिक्षक, अभिभावक, वैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षेत्र में सफलता के
कदम चूम सकेंगे तभी शैक्षिक तकनीकी अपने शिखरीय स्थान पर पहुँच सकेगी।
(6) तकनीकी कारक (Technology Factors)- तकनीकी के क्षेत्र में जो भी नवीनतम
खोजें, अन्वेषण तथा आविष्कार हो रहे हैं-उनका प्रयोग शिक्षा व शिक्षण के
क्षेत्र में किया जा रहा है। तकनीकी के क्षेत्र में जितनी अधिक प्रगति हो रही
है उतना ही शैक्षिक तकनीकी का विज्ञान उन्नत और समृद्ध हो रहा है। तकनीकी
क्षेत्र में किये गये प्रयोग आज शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के लिये अत्यन्त
उत्सुकता एवं जिज्ञासा के साधन बनते जा रहे हैं। इन प्रयोगों एवं परीक्षणों
का मूल्यांकन कर, उनमें वांछित परिवर्तन, संशोधन तथा परिमार्जन कर उन्हें
शिक्षण के क्षेत्र के उपयुक्त बनाने के लिये शैक्षिक-तकनीशीयन अनवरत प्रयास
कर रहे हैं। जैसे-जैसे तकनीकी के क्षेत्र में क्रान्ति आ रही है, वैसे-वैसे
ही शैक्षिक तकनीकी में परिवर्तन आ रहे हैं। अतः कहा जा सकता है कि
शैक्षिक-तकनीकी की प्रगति को प्रभावित करने में राष्ट्र की राजनैतिक स्थिति,
आर्थिक स्तर, वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति, सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण
तथा शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक कारक अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
शैक्षिक तकनीकी के उपागम (APPROACHES OF EDUCATIONAL TECHNOLOGY)
अथवा
शैक्षिक तकनीकी के रूप (TYPES OF EDUCATIONAL TECHNOLOGY)
लुम्सडेन (Lumsdane) ने शैक्षिक तकनीकी को तीन प्रमुख उपागों/रूपों में
वर्गीकृत किया है
(1) कठोर शिल्प उपागम या शैक्षिक तकनीकी प्रथम।
(2) कोमल शिल्प उपागम या शैक्षिक तकनीकी द्वितीय ।
(3)प्रणाली विश्लेषण या शैक्षिक तकनीकी तृतीय।
(1) कठोर शिल्प उपागम या शैक्षिक तकनीकी प्रथम (Hardware Approach or
Educational Technology-I)-कठोर शिल्प उपागम के अन्तर्गत
शिक्षण-सहायक-सामग्री पर विशेष जोर दिया जाता है। यह उपागम भौतिक विज्ञान तथा
इंजीनियरिंग के सिद्धान्तों एवं व्यवहारों पर आधारित है। इस उपागम का जन्म
भौतिक विज्ञान तथा अभियन्त्रण तकनीकी (Physical Sciences and Engineering
Technology) से हुआ है। अधिकतर लोगों का विश्वास है कि मशीन की तकनीकी से
शैक्षिक तकनीकी जुड़ी हुई है। जब तक शिक्षण के क्षेत्र में टेपरिकॉर्डर,
टी०वी०, प्रोजेक्टर जैसे उपकरण नहीं होंगे तब तक शिक्षा अधूरी ही रहेगी। कठोर
शिल्प उपागम इन उपकरणों के अनिवार्य उपयोग की धारणा को बलशाली बनाता है।
डेवीज ने भी स्वीकार किया है कि कठोर शिल्प उपागम शिक्षण प्रक्रिया का क्रमशः
मशीनीकरण करके, शिक्षा के द्वारा कम खर्च तथा कम समय में अधिक छात्रों को
शिक्षित करने का प्रयास चल रहा है। मैरिलम निक्सन (1971) ने भी शिक्षण तकनीकी
को अनेक क्षेत्रों से सम्बन्धित माना है और कहा है कि इसका कार्य व्यक्ति एवं
समाज की शैक्षिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करना है। डेविड (1971) के अनुसार यह
तकनीकी, शिक्षण और प्रशिक्षण के लिए अत्यन्त आवश्यक है। सिल्बरमैन ने इसीलिये
इसे शिक्षा में तकनीकी के नाम से पुकारा है।
इस उपागम के फलस्वरूप पत्राचार पाठ्यक्रम तथा मुक्त विश्वविद्यालय
(Correspondence Education and Open University System) का जन्म हुआ। शोध
कार्यों में प्रपत्रों के संकलन, विश्लेषीकरण आदि के लिए कम्प्यूटर तथा
मशीनों का उपयोग भी इसी उपागम को महत्त्व देता है। सिलवरमैन (Silverman,
1968) ने इसे एक और नया नाम सापेक्षिक तकनीकी (Relative Technology) दिया है।
डॉ० रुहेला के शब्दों में, "This part of Education Technology refers to
tools and hardwares such as teaching machines. T.V., tape recorders etc.
which are used in instructions. वास्तव में शिक्षण और अधिगम के क्षेत्र में
मशीनों तथा कठोर शिल्प उपागमों का चयन तथा प्रयोग करना ही शैक्षिक तकनीकी
प्रथम या Hardware Approach Educational Technology-I कहलाती है।
कठोर शिल्प उपागम का सर्वप्रथम ए. ए. लुम्सडेन (A. A. Lumsdeine) ने वर्णन
किया था। इस उपागम को श्रव्य-दृश्य सामग्री भी कहा जाता है। इसमें मशीनों की
तकनीकी पर जोर है। इसका विश्वास है कि मशीन अनुदेशन (Instruction) का कार्य
करती है और इसका सम्बन्ध अनुदेशन के ज्ञानात्मक पक्ष से होता है। यह उपागम
निम्नांकित तीन बातों पर विशेष बल देता है-
(1) ज्ञान का संचय करना (Preservation)
(2) ज्ञान का प्रसारण करना (Transmission)
(3) ज्ञान का विस्तार करना (Advancement)
हार्डवेयर, (कठोर शिल्प) के अन्तर्गत चाकबोर्ड, रेडियो ओवरहैड प्रोजेक्टर,
स्लाइड प्रोजेक्टर, वी० सी० आर०टी०वी० तथा मॉनीटर, कम्प्यूटर, कैलकुलेटर,
कम्प्यूटर प्रिन्टिंग मशीन, औडियो व विज्युल रिकोर्डर आदि को रखा जा सकता है।
डॉ० कुमार तथा चन्द्र के शब्दों में - "It is important to note that these
mechanical devices were not safety designed and invented to fulfill the
instructional requirement. Rather, they were designed for communication,
information & recreation etc. But now, we are using them in education
and training system to achieve the educational objectives of our nation."
(2) कोमल शिल्प उपागम अथवा शैक्षिक तकनीकी द्वितीय (Software Approach or
Educational Technology II)-कोमल शिल्प उपागम शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में
मशीनों के प्रयोग न करके इसमें शिक्षण एवं अधिगम के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों
का प्रयोग किया जाता है जिससे कि छात्रों में अपेक्षित परिवर्तन लाया जा सके।
इस उपागम वाली तकनीकियों को अनुदेशन तकनीकी (Instructional Technology),
शिक्षण तकनीकी (Teaching Technology). तथा व्यवहार तकनीकी (Behavioural
Technology) का नाम भी दिया जाता है। इसमें मशीनों का प्रयोग केवल
पाठ्य-वस्तु के प्रस्तुतीकरण को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए किया जा सकता
है। इस तकनीकी में शिक्षा के input, output तथा process तीनों पक्षों के
विकास पर बल दिया जाता है। स्किनर आदि ने इन उपागम वाली तकनीकी को व्यावहारिक
तकनीकी पर आधारित माना है। आर्थर मेल्टन (1959) के अनुसार, "यह शैक्षिक
तकनीकी, सीखने के मनोविज्ञान पर आधारित है और यह अनुभव प्रदान करके वांछित
व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया का शुभारम्भ करता है।"
Davis (1971) के अनुसार
"This view of Educational Technology is closely associates with the modern
principles of programmed Learning and is characterized by task analysis,
writing, precise objectives, selection of correct responses and constant
evaluation."
सिल्वरमेन (Silverman, 1968) ने इसे Constructive Educational Technology' का
नया । नाम प्रदान किया है। शैक्षिक तकनीकी प्रथम एवं द्वितीय परस्पर
सम्बन्धित हैं और एक-दसरे के पूरक कहे जाते हैं। कठोर शिल्प का तात्पर्य
मशीनों से है, जबकि कोमल शिल्प सीखने के तथा शिक्षण के सिद्धान्तों से
सम्बन्धित होते हैं। सत्य तो यह है कि
"It is the application of behavioural sciences or principles of
psychology, sociology, and philosophy in Education & Training.
Interaction of behavioural sciences with education has generated a new
concept and a new technique of programmed learning."
बहुत से शिक्षाविद् इस उपागम को हार्डवेयर उपागम की तुलना में अधिक
महत्त्वपूर्ण बताते हैं। क्योंकि हार्डवेयर उपागम तब तक अनुपयोगी है जब तक
इसमें सौफ्टवेयर उपागम का प्रयोग न किया जाये। उदाहरण के लिये नीचे हार्डवेयर
उपागम तथा उनसे सम्बन्धित सौफ्टवेयर को प्रदर्शित किया जा रहा है
क्रम संख्या | कठोर शिल्प (हार्डवेयर उपागम) | सम्बन्धित कोमल शिल्प (सॉफ्टवेयर उपागम) |
1 | चाक बोर्ड (श्यामपट्) | चाक का कार्य |
2 | ओवर हैड प्रोजेक्टर | ट्रान्सपेरेन्सीज |
3 | स्लाइड प्रोजेक्टर | स्लाइडस् |
4 | वी० सी० आर० एवं मोनीटर | वीडियो प्रोग्राम |
5 | कम्प्यूटर | कम्प्यूटर प्रोग्राम |
6 | औडियो रिकार्डर | रिकोर्डेड सामग्री |
7 | खाली कागज | लिखित सामग्री |
*(कुमार 1996 पर आधारित सारणी)
आर्थर मैल्टन (Arthur Melton) ने स्पष्ट लिखा है कि "कोमल शिल्प (साफ्टवेयर)
उपागम का उदभव स्किनर तथा अन्य व्यवहारशास्त्रियों के प्रयासों के
परिणामस्वरूप हआ है। यह उपागम अधिगम के विज्ञान से सीधे सम्बन्धित है जो
अनुभव के आधार पर व्यावहारिक परिवर्तनों को समावेशित करता है।"
कोमल एवं कठोर शिल्प उपागमों की तुलना
(COMPARISON BETWEEN SOFTWARE & HARDWARE APPROACHES)
आनन्द (1996) के शब्दों में, "साफ्टवेयर उपागम हार्डवेयर उपागमों से इस
प्रकार से भिन्नता रखते हैं कि शैक्षिक तकनीकी के हार्डवेयर उपागम में शिक्षण
यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है, जबकि साफ्ट वेयर उपागमों में अधिगम
सामग्री: जैसे-अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री, एवं शिक्षण अधिगम के मनोविज्ञान पर
आधारित शिक्षण अधिगम की युक्तियाँ और प्रविधियाँ आदि।
हार्डवेयर उपागम में मशीनों का प्रयोग पाठ्य-वस्तु के प्रस्तुतीकरण को
प्रभावशाली बनाने के लिये किया जाता है, जबकि साफ्टवेयर उपागमों में मशीनों
का प्रयोग न करके. शिक्षण तथा अधिगम के सिद्धान्तों के प्रयोग के आधार पर
शिक्षण अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिये किया जाता है।
ये दोनों ही पक्ष एक-दूसरे से अलग नहीं किये जा सकते। ये दोनों परस्पर
गुम्फित हैं. ये दोनों शैक्षिक तकनीकी को बढ़ावा देते हैं तथा एक-दूसरे के
पूरक कहलाते हैं।
कठोर शिल्प तथा कोमल शिल्प उपागमों के उपयोग, आवश्यकता तथा महत्त्व
(USES, NEED & IMPORTANCE OF HARDWARE & SOFTWARE APPROACHES)
(1) इन दोनों उपागमों का प्रयोग छात्रों की रुचि जाग्रत करने, उन्हें
जिज्ञासु बनाने तथा उन्हें प्रेरित करने के लिये किया जाता है।
(2) इन उपागमों के प्रयोग से पाठ्य-वस्तु छात्रों को अधिक संरचनाकृत तथा
स्पष्ट महसूस होती है।
(3) ये उपागम विषय-वस्तु को अधिक ग्राह्य तथा सरल बनाने में महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभाते हैं।
(4) ये विषय-वस्तु को ज्यादा आकर्षित, रोचक जीवन्त बनाने में समर्थ होते हैं।
(5) इन उपागमों के प्रयोग से छात्र अधिक उत्साहित होकर कक्षा कार्यों में
सक्रिय हो जाते हैं।
(6) ये छात्रों की 'व्यक्तिगत-भिन्नता' पर ध्यान रख कर उचित शिक्षण
प्रणालियों का उपयोग प्रभावशाली बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह
करते हैं।
(7) ये दोनों उपागम शिक्षकों तथा छात्रों के समय, शक्ति तथा स्रोतों का सही
उपयोग करने में समर्थ होते हैं। कम समय एवं कम शक्ति से ज्यादा से ज्यादा
प्रभावशाली शिक्षण करना इनकी विशिष्ट विशेषता है।
कोमल शिल्प तथा कठोर शिल्प उपागमों के उपयोग के सिद्धान्त
(PRINCIPLES OF USING HARDWARE AND SOFTWARE APPROACHES)
ये दोनों उपागम शिक्षण-प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिये निम्नांकित
सिद्धान्तों पर विशेष बल प्रदान करते हैं
(1) चयन का सिद्धान्त (Principle of Selection)
(2) उद्देश्य का सिद्धान्त (Principle of Purposiveness)
(3) बचत का सिद्धान्त (Principle of Economy)
(4) उपलब्धता का सिद्धान्त (Principle of Availability)
(5) सरलता का सिद्धान्त (Principle of Simplicity)
(6) उद्दीपन का सिद्धान्त (Principle of Stimulation)
(7) स्व-तैयारी का सिद्धान्त (Principle of Self-preparation)
कठोर तथा मृदुल उपागमों का वर्गीकरण
(CLASSIFICATION OF SOFTWARE AND HARDWARE APPROACHES)
(A) कठोर उपागम (Hardware Approach)
श्रव्य उपागम | दृश्य उपागम | दृश्य-श्रव्य उपागम |
रेडियो, ट्रान्जिस्टर | प्रोजेक्टर | फिल्म (चलचित्र) |
टेपरिकार्डर | एपीडायस्कोप | दूरदर्शन (टी०वी०) |
शिक्षण मशीन | फिल्म स्ट्रिप्स | वीडियो टेप |
स्मार्ट फोन | स्लाइड्स | कम्प्यूटर |
वी़डियो कैमरा | कम्प्यूटर | स्मार्ट फोन |
स्मार्ट फोन | ||
वी़डियो कैमरा |
(B) कोमल उपागम (Software Approach)
ग्राफिक्स | प्रदर्शन | त्रिआयामी |
चार्ट | चॉक | प्रतिमान (मॉडल) |
ग्राफ | फ्लैनल बोर्ड कार्ड | वास्तविक पदार्थ (नमूने) |
मानचित्र | बुलैटिन बोर्ड सूचना | |
पोस्टर्स | आरेख तथा चित्र | |
पुस्तकें |
प्रणाली विश्लेषण
(SYSTEMS ANALYSIS)
उपागम या शैक्षिक तकनीकी तृतीय (Educational Technology III
Approach)-प्रणाली उपागम को शैक्षिक तकनीकी तृतीय कहा जाता है। इसका विकास
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् हुआ। इसमें प्रशासन, प्रबन्ध, व्यापार तथा
सेना आदि से सम्बन्धित समस्याओं के विषय में निर्णय लेने के लिए वैज्ञानिक
आधार रहता है। इसीलिए इस उमागम को प्रबन्ध तकनीकी उपागम (Management
Technology Approach) भी कहा जाता है। इसका शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक
प्रशासन व शैक्षिक प्रबन्ध की समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन करने में प्रयोग
किया जाता है। दूसरे शब्दों में, "शैक्षिक तकनीकी तृतीय, शैक्षिक प्रशासन के
विकास तथा अनुदेशन की रूपरेखा बनाने में पूर्ण सहयोग प्रदान करती है। इस
प्रणाली के उपयोग में शैक्षिक व्यवस्था कम खर्च में अधिक उपयोगी तथा
प्रभावशाली बन जाती है। इस प्रणाली विश्लेषण का प्रमुख आधार विज्ञान एवं गणित
है। सिलवन (Silvern, 1968) ने इस प्रणाली को निम्नांकित भाँति प्रस्तुत किया
है
(1) Analysis is performed on the existing system to identify the parts and
their interrelationships.
(2) Synthesis is performed to combine these various elements together with
new elements previously unrelated.
(3) Models are constructed to predict the effectiveness of the system.
(4) Simulation is carried out prior to implementation of the system in
real life.
शैक्षिक तकनीकी तृतीय के अन्तर्गत प्रणाली विश्लेषण, प्रशिक्षण मनोविज्ञान
प्रारूप (Training Psychology Design), सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रारूप
(Cybernetic Design) अथवा पुनर्बलन (Theory of Reinforcement) भी सम्मिलित
रहते हैं। यह शैक्षिक तकनीकी आजकल बहुत लोकप्रिय होती जा रही है।
शैक्षिक तकनीकी तृतीय अथवा प्रणाली उपागम का जन्म हार्डवेयर एवं सौफ्टवेयर
उपागमों के मेल के फलस्वरूप हुआ।
शैक्षिक तकनीकी । (कठोर शिल्प उपागम)
शैक्षिक तकनीकी । अथवा प्रणाली उपागम | शैक्षिक तकनीकी । (कोमल शिल्प उपागम)
शैक्षिक तकनीकी-III उपागम, शैक्षिक तकनीकी प्रथम एवं द्वितीय को जोड़ने
वाली एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। यह कठोर व कोमल शिल्प के मिश्रण से अति आधुनिक
उपागम बन गया है जिसका भरपूर उपयोग शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में किया जा
रहा है।
शैक्षिक तकनीकी-III उपागम वास्तव में गैस्टाल्टवादी मनोविज्ञान के
सिद्धान्तों पर आधारित है। इसके अनुसार शैक्षिक व्यवस्था या शैक्षिक प्रणाली
को चार प्रमुख तत्त्वों में वर्गीकृत किया जा सकता है—
क्रम संख्या प्रमुख तत्त्वों का वर्ग
अदा (Input)
प्रक्रिया (Process)
प्रदा (Output)
पर्यावरण सन्दर्भ (Environrnental Context)
प्रणाली उपागम (शैक्षिक तकनीकी II) के प्रमुख तत्त्व-वर्ग
यहाँ अदा का अर्थ है वे सभी व्यवहार या क्षमतायें जो किसी शैक्षिक व्यवस्था
में शिक्षण कार्य शुरू करते समय शिक्षक एवं छात्रों के माध्यम से मिलती हैं।
प्रक्रिया का यहाँ तात्पर्य है वे सभी कार्य जिनकी मदद से अदा या उपलब्ध
व्यवहारों में परिवर्तन किया जाता है।
प्रदा से तात्पर्य उस व्यवहार से है जिसे प्राप्त करने के लिये प्रणाली को
निर्मित किया जाता है।
पर्यावरण सन्दर्भ-पर्यावरण के उन तत्त्वों को कहा जाता है जिनसे यह प्रणाली
प्रभावित होती है।
शैक्षिक तकनीकी ।।। के प्रयोग से शैक्षिक समस्याओं को सुलझाने के लिये
प्रणाली विश्लेषण किया जाता है जिससे कि सम्पूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया को
सुधारने का प्रयास किया जाता है।
यह उपागम छात्र-केन्द्रित (Pupil-Oriented) होता है। एक विद्वान के अनुसार,
"संक्षेप में यह उपागम समस्याओं के समाधान के लिये निर्णयों पर पहुँचने की
विधि है और यह विधि शिक्षण तथा प्रशिक्षण व्यवस्था को नवीन परिवर्तनों के
अनुसार बढ़ने तथा विकसित करने में भरपूर सहायता प्रदान करती है।"
शैक्षिक प्रशासन तथा शैक्षिक प्रबन्ध की समस्याओं के समाधान में इस उपागम का
अत्यन्त सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है।
इस प्रणाली विश्लेषण उपागम ने शैक्षिक समस्याओं को सुलझाने के लिये एक
वैज्ञानिक एवं संख्यात्मक उपागम प्रदान किया है। यह उपागम अधिक वस्तुनिष्ठ,
वैज्ञानिक सुव्यवस्थित तथा शुद्ध माना जाता है।
यह उपागम यद्यपि शैक्षिक तकनीकी तृतीय अथवा प्रणाली विश्लेषण कहलाता है। कुछ
शिक्षाविद् इसे शैक्षिक प्रबन्ध के नाम से भी पुकारते हैं। परन्तु शैक्षिक
तकनीकी विशेषज्ञ इसे 'प्रणाली विश्लेषण' का नाम देना सर्वाधिक उपयुक्त मानते
हैं।
आजकल यह उपागम शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र में अत्यन्त लोकप्रिय होता जा रहा
है। इसके प्रयोग से शिक्षा, शैक्षिक प्रणाली, शैक्षिक प्रशासन तथा शैक्षिक
प्रबन्ध आज अत्यन्त प्रभावशाली, संयमित, कम खर्चीला तथा महत्त्वपूर्ण माना
जाने लगा है।
कठोर शिल्प तथा कोमल शिल्प के चयन के सिद्धान्त
(PRINCIPLES OF SELECTION OF HARDWARE & SOFTWARE)
कठोर शिल्प तथा कोमल शिल्प के चयन के सिद्धान्त नीचे संक्षिप्त रूप में दिये
जा रहे है—
(1) हार्डवेयर के चयन के समय उसकी गुणवत्ता, लोकप्रियता, प्रतिष्ठा एवं
टिकाऊपन एवं उसके मूल्य पर ध्यान दिया जाना चाहिये ।
(2) सौफ्टवेयर का चयन करते समय उसकी विषय-वस्तु से सम्बद्धता, प्रभावशीलता
तथा उपयोगिता एवं आवश्यकता पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
(3) हार्डवेयर या सौफ्टवेयर के चयन के समय यह भी ध्यान रखना चाहिये कि क्या
शिक्षक उस उपागम का प्रयोग पूरी सावधानी के साथ प्रभावशाली ढंग से कर सकने
में समर्थ है अथवा नहीं।
(4) हार्डवेयर या सौफ्टवेयर उपागम के चयन के समय शिक्षण अधिगम की
परिस्थितियों, छात्रों की आवश्यकताओं, विषय-वस्तु की प्रकृति तथा विद्यालय
परिवेश में उनकी उपलब्धता के आधार पर किया जाना चाहिये।
(5) उसी उपागम का चयन किया जाये जो उपयोगिता में ज्यादा रोचकता में वृद्धि
करने वाला, छात्रों को अधिगम के प्रति अभिप्रेरित करने वाला तथा आवश्यकता के
अनुकूल हो।
कठोर शिल्प तथा कोमल शिल्प के उपागमों के प्रयोग के सिद्धान्त
(PRINCIPLES OF USE OF HARDWARE & SOFTWARE APPROACHES)
कठोर शिल्प तथा कोमल शिल्प उपागमों के प्रभावशाली उपयोग हेतु
निम्नांकित सिद्धान्तों का ध्यान रखना चाहिये—
(।) इन शिल्पों के उपयोग करने से पूर्व उनके बारे में भली-भाँति जानकारी
प्राप्त करनी चाहिये, उस शिल्प के सैद्धान्तिक ज्ञान से अवगत होना चाहिये तथा
उसका प्रयोग करना भली-भाँति सीखना चाहिये। किसी भी उपागम के प्रदर्शन के
पूर्व भली-भाँति चैक कर लेना चाहिये कि वह ठीक प्रकार से कार्य कर रहा है
अथवा नहीं। यदि ठीक अवस्था में वह न हो तो ठीक करा लेना चाहिये।
(2) इन उपागमों के उपयोग से पूर्व शिक्षक को कक्षा में इनके बारे में पूरी
जानकारी देकर उन्हें मानसिक रूप से तैयार कर देना चाहिये। जैसे-रेडियो या
टी०वी० पर शैक्षिक पाठों को प्रस्तुत करने से पूर्व छात्रों को बता देना
चाहिये कि प्रोग्राम कब आयेगा, प्रोग्राम में क्या-क्या विषय-वस्तु रहेगी.
प्रोग्राम में किन-किन पहलुओं पर ज्यादा ध्यान देना चाहिये। इस प्रकार
छात्रों को मानसिक रूप से तैयार करने के पश्चात उनके समक्ष प्रसारित
विषय-वस्तु को कक्षीय शिक्षण के साथ एकीकृत करना चाहिये।
(3) कोमल तथा कठोर शिल्प उपागमों के प्रयोग के लिये शिक्षक को चाहिये कि वह
कक्षा में सीखने की वांछित पर्यावरण का निर्माण करे। विषय-वस्तु के प्रसारण
के समय शिक्षक को ध्यान रखना चाहिये कि प्रसारित होने वाला प्रकरण सही आवाज
में, सही पिच (Pitch) पर कक्षा के हर छात्र तक पहुँच रहा है। प्रसारण के मध्य
दिखाई जाने वाली सामग्री भली-भाँति कक्षा के प्रत्येक छात्र को दिखाई दे रही
है। इसके लिये उचित प्रबन्ध किये जाने अति आवश्यक कार्य हैं। शिक्षकों को इस
बात का भी ध्यान रखना चाहिये कि छात्र प्रसारित होने वाले प्रकरण में रुचि ले
रहे हैं अथवा नहीं।
(4) कोमल शिल्प तथा कठोर शिल्प उपागमों के पूर्व शिक्षक को भली-भाँति पूर्व
समीक्षा करनी चाहिये कि कक्षा की किस परिस्थिति में कौन-सा उपागम ज्यादा
उपादेय होगा-उसी का प्रयोग किया जाना चाहिये । अनावश्यक रूप से, जबरदस्ती,
केवल उपागमों को दिखाने के लिये ही उपागमों का प्रयोग नहीं करना चाहिये। जब
आवश्यकता हो, तभी इन उपागमों का उपयोग किया जाना चाहिये।
(5) जब भी शिक्षक इन उपागमों का प्रयोग करे उसे चाहिये कि आवश्यकतानुसार
समय-समय पर इनकी उपयोगिता का मूल्यांकन भी करे और तदनुसार अपने भावी शिक्षण
में उसे सुधार लाने का प्रयास करना चाहिये तथा शिक्षण की प्रभावशीलता बढ़ाने
की ओर अपनी शक्ति लगानी चाहिये।
अभ्यास प्रश्न निबन्धात्मक प्रश्न
1. शैक्षिक तकनीकी को परिभाषित कीजिए तथा इसके इतिहास एवं विकासक्रम का भारत
के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
2. शैक्षिक तकनीकी का उद्देश्य शिक्षक शिक्षण और छात्रों के कार्य को निरन्तर
सरल बनाना है। उक्त कथन की व्याख्या कीजिए।
3. शैक्षिक तकनीकी की प्रकृति, अर्थ तथा स्वरूप को स्पष्ट करते हुए शैक्षिक
तकनीकी के प्रयोग को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में बताइए।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. हेडेन द्वारा दी गई शैक्षिक तकनीकी की कार्यात्मक परिभाषा द्वारा किन
पक्षों पर प्रकाश डाला
गया है? 2. शैक्षिक तकनीक के विकास को सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक किस
प्रकार प्रभावित करते
है? प्रणाली विश्लेषण को स्पष्ट कीजिए। 3. कठोर एवं कोमल शिल्प उपागमों की
व्याख्या करते हुए तुलना कीजिए।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. खाली स्थान भरिए । सर्वप्रथम 'एजुकेशनल टेक्नोलॉजी शब्द का प्रयोग...
ने....."सन में किया था।
2. तकनीकी का अर्थ 'दैनिक जीवन में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग को ...कहा जाता
है।
3. मानव की सीखने की परिस्थितियों में वैज्ञानिक प्रक्रिया के प्रयोग
को"......"" कहा जाता है।
4. शिक्षण". "तथा'..."दोनों ही है।
5, कोमल एवं कठोर, शिल्प उपागम एक-दूसरे के लिए " कहलाते हैं।
उत्तर-1, 1967,2. विधियाँ, 3. शैक्षिक तकनीकी, 4, कला, विज्ञान, 5. पूरक।
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