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सौन्दर्यशास्त्र

डॉ. पूर्णिमाश्री तिवारी

प्रकाशक : साहित्य रत्नालय प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :300
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2569
आईएसबीएन :0

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परास्नातक कक्षाओं हेतु निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर आधारित

अपनी बात

प्रस्तुत पुस्तक - 'सौंदर्यशास्त्र' कला विद्यार्थियों के साथ अन्य जन में भी रूचि पैदा हो, इस प्रयास के साथ मैंने अपनी लेखनी व दृष्टि को सौंदर्य के गुण का बखान करते हुए उसकी उपयोगिता व उसकी रसानुभूति को संवेदनशीलता और परम्पराओं को अंगीकार करते हुए सामाजिक संदर्भ में अनुशासित कर अनुप्राणित किया है।

विभिन्न विश्वविद्यालयों में ललितकलाओं की उच्च शिक्षा में सौंदर्य मूलक विषय की आवश्यकता को पूरा करने में सहायक है। जिसकी आवश्यकता लम्बे समय से महसूस की जा रही थी कि सौंदर्यशास्त्र जैसे महत्वपूर्ण विषय की सभी इकाई एक ही पुस्तक में समाहित हों।

कला, दर्शन, सौंदर्य के साथ जीवन के कई क्षेत्रों में इसका उपयोग प्रचुर मात्रा में अपनी भूमिका प्रस्तुत करता दिखाई पड़ता है, जो उसके व्यक्तित्व, कृतित्व और चारित्रिक अनुनिर्माण में आवश्यक होती हैं विचारों में व्यापकता, दृष्टि में सकारात्मकता देने के उद्देश्य से पुस्तक में कुछ नवीन दृष्टिकोणों को भी समाहित किया गया है। सामाजिक जीवन में कलाओं का गहरा रिश्ता है। किसी देश, समाज व वहां के जीवन को देखने का नजरिया कलाओं में व्यक्त होता है यही नजरिया दर्शन कहलाता है। जिसकी आवश्यकता समयानुसार प्रत्येक क्षेत्र के विद्यार्थियों के लिए उचित होती है।

पुस्तक तीन खण्ड में प्रस्तुत है। तीन खण्ड का विभाजन इस प्रकार किया है-

प्रथम खण्ड में विद्यार्थियों को कला में वर्गीकरण, षडांग के साथ पौर्वात्य सौंन्दर्य व सौन्दर्यानुभूति - रसानुभूति को भारतीय सौन्दर्य विचारक के साथ अध्ययन में भारतीय सौन्दर्य चिंतन स्पष्ट किया गया है।

द्वितीय खण्ड में प्राचीन सौंदर्य यूनानी, जर्मन, ब्रिट्रेन, अमेरिकन, मार्क्सवादी चिन्तकों के साथ बताया है। पाश्चात्य परम्परा के आधार पर विभिन्न दार्शनिकों एवं सौंदर्य शास्त्रियों के मत प्रस्तुत हैं। इसके साथ ही पूर्वी तथा पश्चिमी सभ्यता का परिचय भी है, जो एक निश्चित लक्ष्य के अनुसार प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।

तृतीय खण्ड में कला निबन्ध को विशेष रूप से अलग रख कर प्रस्तुत किया है। निबन्ध नये रूप में सौंदर्यशास्त्र में अवतरित होता है, जो पाठक के समाज के प्रति दायित्वों व कर्तव्यों पर प्रकाश डालता नजर आता है।

साथ ही पुस्तक में प्रत्येक खण्ड में प्रत्येक कथन व परिभाषा के साथ उससे सम्बन्धित चित्रों को भी सम्मलित करने का प्रयास है जिससे छात्र अपनी रूचि को बढ़ाते हुए जिज्ञासा के साथ ग्रहण करेगे। तो मस्तिष्क में स्वतः ही विद्यमान हो सकेगी। जिसका लाभ उसे मिलेगा। विषय को रोचकता के साथ प्रस्ततु करना मेरा उद्देश्य है।

- पूर्णिमाश्री

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