बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र
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बहुलवाद
(Pluralism)
प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
अथवा
भारतीय समाज की बहुलवादी प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
बहुलवाद की विचारधारा के जन्म का श्रेय ब्रिटिश वामपक्षी लेखकों को है। यह दर्शन अद्वैतवादी या एकक्षत्रवाद का विरोधी है। यह आदर्शवाद विरोधी भी है। यह व्यक्ति, उसकी स्वतन्त्रता एवं उसकी संस्थाओं को मानव व्यवस्था में उच्च स्थान देता है। बहुलवादी राज्य विरोधी दर्शन नहीं, अपितु सम्प्रभुता विरोधी है। इसका आदर्श निरंकुश राज्य नहीं, वरन् समाज सेवक राज्य है। राज्य तभी आदर्श माना जा सकता है, जब वह आदर्श एवं लक्ष्य की पूर्ति करे। इन विचारधाराओं के आधार पर राज्य ने अपनी निरंकुशता स्थापित की और व्यक्ति को पूर्णतया उसके अधीन बना दिया। कुछ मानवतावादी दार्शनिकों ने इस निरंकुशता में व्यक्ति के व्यक्तित्व, उसकी नैतिकता एवं स्वतन्त्रता का हनन देखा, उन्होंने निरंकुशतावाद की अनेक दृष्टिकोण से आलोचना की। व्यक्ति के व्यक्तित्व पर जोर देते हुए उन्होंने संघों को राष्ट्र जीवन में उच्च स्थान दिया। इन दार्शनिकों की विचारधारा अद्वैतवादी आदर्शवादी दृष्टिकोणों के विपरीत थी। अतएव इस आन्दोलन का नाम बहुलवाद पड़ा। बहुलवादी विचारक राज्य की एकमात्र प्रभुसत्ता में विश्वास नहीं करते हैं। उसके अनुसार, मानव अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न समुदायों का संगठन करता है, जिनमें से राज्य भी एक है। अतः राज्य का अन्य समुदायों से ऊपर कोई भी स्थान प्रदान करना उचित न होगा।
शायद लॉस्की (Laski) ही प्रथम विद्वान था जिसने बहुलवाद शब्द का प्रयोग किया है -
बहुलवादियों की राज्य सम्बन्धी धारणा
राज्य के विषय में बहुलवादियों ने निम्न विचार व्यक्त किए हैं
(1) वितरणात्मक राज्य समाज का ढाँचा संघीय है, उसके संघ व्यापक हैं। प्रो. लॉस्की इसलिए राज्य को सामूहिक मानकर वितरणात्मक मानता है। सामूहिक राज्य वह राज्य है। जो प्रत्येक वस्तु को अपने में सम्मिलित कर लेता है तथा प्रत्येक वस्तु में अपना दावा करता है। वितरणात्मक राज्य वह राज्य है, जो विभिन्न समुदायों से मिलकर बनता है। ऐसे राज्य में समुदायों का अपना पृथक् अस्तित्व होता है। राज्य के समान ही समुदाय वास्तविक तथा समान होते हैं अतः राज्य और राज्य के अन्तर्गत अन्य समुदायों में कोई भी विभिन्नता नहीं होती है।
बहुत से बहुलवादी हीगल के राज्य के ईश्वरीय स्वरूप को स्वीकार नहीं करते हैं। उनका मत है कि, "राज्य प्रभु नहीं और न उसकी शक्ति निरंकुश है।' राज्य में निहित प्रत्येक समुदाय उसके समान शक्ति रखता है। अतः राज्य को सर्वोच्चता प्रदान नहीं की जा सकती।
(2) समाज में विभिन्न समुदायों में समानता मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न समुदायों का निर्माण करता है। राज्य भी उनमें से एक समुदाय है अतः बहुलवादियों का कहना है कि राज्य अन्य मानव समुदायों के साथ समानता रखता है। वे उस मत को स्वीकार नहीं करते कि, “राज्य के ऊपर कोई शक्ति नहीं है तथा राज्य के अतिरिक्त कोई शक्ति नहीं है।' बहुलवाद के समर्थक बार्कर कहते हैं कि, "हम राज्य को सामान्य जीवन में व्यक्तियों का समुदाय नहीं समझते, वरन् उसको समुदायों का, जो जीवन को अधिक सफल बनाने के लिए स्थापित हुए हैं, संघ समझते हैं। इस प्रकार राज्य समुदायों का एक समुदाय है। प्रत्येक समुदाय अपने क्षेत्र में कार्य करने के लिए पूर्ण स्वतन्त्र है। बहुलवादी राज्य की शक्ति को अन्य समुदायों में बाँटना चाहते हैं। बहुलवादियों का कहना है कि समुदायों की स्थापना समाज के हित के लिए की गई है। राज्य भी समाज के लिए निर्मित एक समुदाय है।
(3) राज्य की आवश्यकता - बहुलवादी राज्य को अराजकतावादियों के समान अनावश्यक नहीं समझते। समाज में विभिन्न संघ व्यक्तियों के भिन्न-भिन्न हितों की पूर्ति करते हैं। सुव्यवस्था के लिये इनका समन्वय अत्यन्त आवश्यक है। यह समन्वय केवल राज्य जैसी केन्द्रस्थ एवं सम्प्रभु संस्था द्वारा सम्भव है, परन्तु बहुलवादी लॉस्की (Laski) का सम्प्रभु अद्वैतवादी राज्य के सम्प्रभु से भिन्न है। यदि राज्य की शक्ति को पूर्णतः समाप्त कर दिया जाये तो परस्पर विरोधी संघों में संघर्ष छिड़ जायेगा और समाज में अशान्ति व्याप्त हो जायेगी। इस प्रकार बहुलवादियों के विचारों को यदि पूरी तरह मान लिया जाये तो राज्य की प्रभुसत्ता के अभाव में मानव जीवन कलह और अशान्ति का केन्द्र बन जायेगा। अतः राज्य और उसके वर्तमान रूप में संशोधन किया जा सकता है। बहुलवादियों का सम्प्रभु राज्य अन्य जनसेवक संघों की भाँति है। वह सर्वोच्च समाज सेवक संस्था है। उसे अन्य संघों के अस्तित्व को अनिवार्य रूप से स्वीकार करना पड़ता है। इसका कारण है कि ये संघ भी अपनी-अपनी दृष्टि से भी समाज सेवा में संलग्न हैं। अतः यहाँ अद्वैतवादी राज्य प्रधानतः शक्ति प्रदर्शक है और संघों के स्वतन्त्र अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता वहाँ बहुलवादी राज्य प्रधानतः स्वतन्त्र संघों का समन्वय करता है और इसी हेतु शक्ति का प्रदर्शक भी है।
(4) राज्य की सम्प्रभुता का खण्डन बहुलवादियों ने जॉन ऑस्टिन के प्रभुसत्तावादी सिद्धान्त की आलोचना की है। ऑस्टिन ने राज्य की प्रभुत्व शक्ति के सम्बन्ध में लिखा है कि, "यदि एक निर्दिष्ट मानव, जो इसी प्रकार के किसी अन्य श्रेष्ठ मानव के आदेशों का पालन करने का अभ्यस्त नहीं है, किसी समाज के अधिकांश भाग को आदेश देता है और वह समाज उसका अभ्यस्त रूप से पालन करता है तो उस समाज में वह निश्चित मानव प्रभु होता है और वह समाज (उस श्रेष्ठ व्यक्ति सहित) राजनीतिक तथा स्वतन्त्र समाज होता है।'
बहुलवादी राज्य के सम्प्रभुता सम्बन्धी सिद्धान्त को अव्यावहारिक, अनैतिक, अनैतिहासिक तथा अनावश्यक बतलाता है। वे राज्य को अन्य समुदायों की भाँति एक मानव संस्था मानते हैं। उनकी सर्वोच्चता का दावा वे स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं हैं। बहुलवादी सम्प्रभुता के सिद्धान्त को असामाजिक बताते हैं। उन्होंने सम्प्रभुता के सिद्धान्त पर प्रबल आक्रमण किये। क्रैब (Krabbe) का मत है कि, "सम्प्रभुता की धारणा को राजनीतिकशास्त्र में से निकाल देना चाहिये।' लिंड्से (Lindsay) ने कहा है कि. "यदि हम तथ्यों पर देखते हैं तो यह काफी स्पष्ट हो जाता है कि सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य का सिद्धान्त भग हो चुका है। बार्कर (Barker) के मत में, "कोई भी राजनीतिक धारणा इतनी निष्फल नहीं हुई है, जितना सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य का सिद्धान्ता' लॉस्की (Laski) ने भी इस सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट किये हैं। उनके अनुसार, “सम्प्रभुता के कानूनी सिद्धान्त को राजनीतिक दर्शन के लिये मान्य बना देना असम्भव है।
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- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास क्रम का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अध्ययन की सुविधा के लिये समाजशास्त्र के विकास क्रम को कितने काल खण्डों में विभाजित किया गया है?
- प्रश्न- प्राचीनकाल से 13वीं शताब्दी पूर्वार्द्ध तक तथा प्राचीनकाल से लेकर 13वीं शताब्दी पूर्वार्द्ध तक समाजशास्त्र के विकास क्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 13वीं शताब्दी उत्तरार्द्ध से लेकर 18वी शताब्दी तक, समाजशास्त्र के विकास क्रम को बताइए।
- प्रश्न- 19वीं शताब्दी पूर्वार्द्ध से लेकर वर्तमान काल तक, समाजशास्त्र के विकास-क्रम को बताइये तथा प्रमुख समाजशास्त्रियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- 'भारत में समाजशास्त्र के विकास' पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- स्वतंत्र भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रमुख विचारधाराओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र का अतीत बहुत लम्बा है, किन्तु इतिहास संक्षिप्त। बीरस्टीट के इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र का अतीत बहुत लम्बा है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र का इतिहास संक्षिप्त है।' विवेचित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए। अथवा स्पष्ट कीजिए समाजशास्त्र क्या है?
- प्रश्न- क्या समाजशास्त्र अन्य विज्ञानों की तुलना में नया विज्ञान है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न - समाजशास्त्र को जन्म देने वाली प्रवृत्तियाँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- शाब्दिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- पारिभाषिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ समझाइये। अथवा समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की उपयोगिता अथवा महत्ता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति स्पष्ट कीजिए। अथवा समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति क्या है?
- प्रश्न- समाजशास्त्र की विषय-वस्तु (Subject matter) या अध्ययन विषय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की विषय-वस्तु के सम्बन्ध में दुखींम के विचारों को बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की विषय-वस्तु के सम्बन्ध में गिन्सबर्ग के क्या विचार थे?
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विषय-वस्तु के सम्बन्ध में सारोकिन के विचारों को बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की विषय-वस्तु सामाजिक सम्बन्ध है। बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक सम्बन्धों के सन्दर्भ में समाजशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की परिभाषा दीजिए और उसका विषय-क्षेत्र निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र के सम्बन्ध में दो सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- स्वरूपात्मक सम्प्रदाय की विशेषताएँ क्या हैं? बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र का समन्वयात्मक दृष्टिकोण बताइये।
- प्रश्न- समन्वयात्मक सम्प्रदाय की विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के स्वरूपात्मक एवं समन्वयात्मक सम्प्रदाय की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के स्वरूपात्मक सम्प्रदाय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की प्रकृति कैसी है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के सम्बन्ध में किंग्सले डेविस (Kingsley Davis) के विचारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- "जहाँ जीवन है, वहाँ समाज है।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- समाजशास्त्र के मानविकी परिप्रेक्ष्य की विशेषता क्या है?
- प्रश्न- समन्वयात्मक सम्प्रदाय क्या है?
- प्रश्न- समाजशास्त्र और सामान्य बोध के संबंध में विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामान्य बोध की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य की व्याख्या करने हेतु इसकी विशेषताएँ लिखिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य को परिभाषित कीजिये।
- प्रश्न- संघर्षात्मक परिप्रेक्ष्य की अवधारणा दीजिये।
- प्रश्न- आगमन या निगमन परिप्रेक्ष्य क्या है?
- प्रश्न- एक परिप्रेक्ष्य के रूप में समाजशास्त्र की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- परिप्रेक्ष्य संबंधी अगस्त काम्टे के विचारों पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- परिप्रेक्ष्य संबंधी कार्ल मार्क्स और हरबर्ट स्पेन्सर के विचारों की तुलना कीजिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के सम्बन्ध में इमाइल दुर्खीम और मैक्स वेवर के विचारों की समीक्षा करो।
- प्रश्न- समाजशास्त्र समाज सम्बन्धी ज्ञान में अभिवृद्धि करने, विशेषीकृत एवं जटिल समाज की समस्याओं का समाधान करने तथा सामाजिक अनुकूलन में किस प्रकार सहायक है? बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र सामाजिक संघर्षो को दूर करने, सुखी एवं सामंजस्यपूर्ण पारिवारिक जीवन के निर्माण एवं व्यावसायिक क्षेत्र में किस प्रकार उपयोगी है? बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की भारतीय जनजीवन में क्या उपयोगिता है?
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय एवं सामान्य बोध में अंतर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- क्या समाजशास्त्र एक विज्ञान है? इसके विज्ञान मानने में क्या प्रमुख आपत्तियाँ की जाती हैं? आप इन आपत्तियों का निराकरण कैसे करेंगे?
- प्रश्न- समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति के विरुद्ध कुछ आपत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- किसी विषय के वैज्ञानिक होने की विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि 'समाजशास्त्र एक विज्ञान' है।
- प्रश्न- 'समाजशास्त्र विज्ञान नहीं बन सकता' उठायी जाने वाली प्रमुख आपत्तियाँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- "सामाजिक घटनायें जटिल और निरन्तर परिवर्तनशील प्रकृति की होती है।" मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- 'सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञानिक तटस्थता सम्भव नहीं' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'समाजशास्त्र के पास प्रयोगशाला का अभाव है' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'सामाजिक घटनाओं को मापने में कठिनाई होती है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'समाजशास्त्र यथार्थ विज्ञान नहीं है' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'समाजशास्त्र भविष्यवाणी नहीं कर सकता' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन है।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रयोगशाला पद्धति का प्रयोग नहीं होता फिर यह विज्ञान किस प्रकार हो सकता है? तर्क दीजिए।
- प्रश्न- "विज्ञान के लिए प्रयोगशाला का होना आवश्यक है जबकि समाजशास्त्र में प्रयोगशाला का अभाव पाया जाता है फिर भी इसे विज्ञान माना जाता है।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय अध्ययन में मानवीय उन्मुखता या दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय अध्ययन में मानवीय उन्मुखता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के अध्ययन में मानवीय दृष्टिकोण के समर्थक विद्वानों के विचारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- परिप्रेक्ष्य क्या है? समाजशास्त्र के मानवतावादी परिप्रेक्ष्य के विषय में विस्तार सहित लिखिए।
- प्रश्न- मानवीय उन्मुखता के अन्तर्गत सामाजिक यथार्थ के अध्ययन के प्रमुख उपागम बताइए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के अभ्युदय में सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारणों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उदय की संक्षेप में समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवी शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमी समाज में समाजशास्त्र के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास को संक्षेप में समझाइये।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की आवश्यकता एवं महत्व को बताइए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र का मानवशास्त्र के साथ क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और इतिहास में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और दर्शनशास्त्र में सम्बन्ध बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र का शिक्षाशास्त्र एवं अपराधशास्त्र से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और अपराधशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- 'सभी सामाजिक विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र का प्रत्यक्ष सम्बन्ध समाज से है, जबकि अर्थशास्त्र के अर्थ से।' इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और इतिहास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और मानवशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और अपराधशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाज का अर्थ व प्रकृति को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाज से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए
- प्रश्न- समाज व एक समाज में अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाज की प्रकृति को संक्षेप में विवेचित कीजिए।
- प्रश्न- समाज की अमूर्त अवधारणा क्या है? समझाइये।
- प्रश्न- सामाजिक सम्बन्धों में पारस्परिक जागरूकता होती है। समझाइये।
- प्रश्न- सामाजिक सम्बन्धों में समानता व भिन्नता दोनों ही पायी जाती है। समानता व भिन्नता का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाज में समानता और भिन्नता पाई जाती है कैसे? समझाइये।
- प्रश्न- सहयोग व संघर्ष दोनों ही समाज के अनिवार्य हैं। सहयोग कितने प्रकार के होते हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाज का मूल आधार अन्तःनिर्भरता है, कैसे? समझाइये।
- प्रश्न- समाज सामूहिक अन्तःक्रिया का फल है, किस प्रकार? बताइये।
- प्रश्न- समाज मनुष्यों तक सीमित नहीं है। संक्षेप में समझाइये।
- प्रश्न- समुदाय से आप क्या समझते हैं? विवेचित कीजिए।
- प्रश्न- समुदाय की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- समुदाय की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या पड़ोस समुदाय है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या जेल समुदाय है? स्पष्ट कीजिए
- प्रश्न- क्या राज्य समुदाय है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या चर्च समुदाय है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समुदाय से आप क्या समझते हैं? क्या आपकी दृष्टि में पड़ोस, जेल, चर्च व राज्य समुदाय हैं?
- प्रश्न- सामुदायिक भावना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामुदायिक भावना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक भावना में कौन-कौन से तत्व एवं मनोवृत्तियाँ अन्तर्निहित होती हैं?
- प्रश्न- आधुनिक समय में सामुदायिक भावना में क्या-क्या परिवर्तन हो रहा है?
- प्रश्न- समुदायों के प्रकार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- समुदाय एवं समाज में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाज की चार विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- समाज की विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- समिति से आप क्या समझते हैं? समझाइये।
- प्रश्न- समिति को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- समिति की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समिति किसे कहते हैं? समिति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- संस्था को परिभाषित कीजिए ।
- प्रश्न- संस्था की उत्पत्ति किस तरह और कब हुई? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्था के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्था के संगठनात्मक कार्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्था के विघटनात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्था के अर्थ व विकास को स्पष्ट कीजिए तथा उसके कार्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "हम समिति के सदस्य होते हैं, संस्था के नहीं।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "समिति समुदाय नहीं वरन् समुदाय के अन्तर्गत मिलने वाला संगठन है।" इस कथन की व्याख्या कीजिए तथा समिति व समुदाय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समिति समुदाय है या नहीं स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समुदाय एवं समिति में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- समिति और संस्था में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समुदाय एवं संस्था में भेद बताइये।
- प्रश्न- क्या परिवार एक समिति है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संस्था की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- गिलिन एवं गिलिन द्वारा बतायी गयी संस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह को परिभाषित कीजिये। इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक समूह से क्या तात्पर्य है? सामाजिक समूहों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह की अवधारणा का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक समूह से क्या तात्पर्य है? इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये। द्वैतीयक समूह से इसका अंतर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक समूह को परिभाषित कीजिए। द्वैतीयक समूह से इसका अंतर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक समूह से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- प्राथमिक समूह की विशेषताएँ संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- प्राथमिक और द्वैतीयक समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक समूह की महत्ता को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सन्दर्भ-समूह की अवधारणा बताइये।
- प्रश्न- सन्दर्भ समूह से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सन्दर्भ समूह की विशेषताएँ एवं तत्वों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- द्वैतीयक समूह से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- द्वैतीयक समूह से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- द्वैतीयक समूह को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- द्वैतीयक समूह की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "हमें यह नहीं समझ लेना चाहिए कि द्वितीयक समूह सामाजिक व्यवस्था की दृष्टि से पूर्णतः प्रकार्यात्मक ही है। वास्तविकता यह है कि इनका अपकार्यात्मक पक्ष भी है।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- द्वितीयक समूह के प्रकार्यात्मक एवं उपकार्यात्मक पक्ष की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मर्टन की सन्दर्भ-समूह की अवधारणा बताइए।
- प्रश्न- अन्तःसमूह को संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- बहिर्समूह को संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- मानव तथा पशु समाज की परिभाषा दीजिए एवं इनकी विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सभी प्राणियों को कितने वर्गों में रखा गया है? इनके उप-विभागों को बताते हुए इनकी विशेषतायें लिखिए।
- प्रश्न- सभी प्राणियों को किन दो वर्गों में रखा गया है?
- प्रश्न- मानवेत्तर समाज के प्रमुख उप विभाग कौन-कौन से है? तथा कीट-पतंगों के समाज की विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- मानवेत्तर समाज के स्तनपाई समाज की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मानवेत्तर समाज के वानर समाज की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मानव समाज की प्रमुख विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मानव तथा पशु समाज में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- मानव समाज व पशु-समाज में भिन्नता का मूल कारण क्या है?
- प्रश्न- स्तनपाई समाज की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- पशुओं के नर-वानर समाज की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- परिवार की परिभाषा लिखिए। इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए एवं इसके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- परिवार को परिभाषित कीजिए। इसके विभिन्न प्रकारों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- परिवार से आप क्या समझते हैं? परिवार के प्रमुख प्रकारों को बताइये।
- प्रश्न- परिवार को परिभाषित कीजिए। इसके प्रकार्यो का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- परिवार के प्रकार्यों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- नातेदारी का अर्थ बतलाइये तथा नातेदारी की श्रेणियों एवं नियामक व्यवहार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी पर एक संक्षिप्त निबन्ध प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- परिहार और परिहास के विशेष संदर्भ में नातेदारी के नियामक व्यवहारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- परिवार की विशेषताओं का वर्णन कीजिए तथा परिवार में होने वाले आधुनिक परिवर्तनों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- परिवार की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- परिवार की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- परिवार में होने वाले आधुनिक परिवर्तनों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- “संयुक्त परिवार प्राचीन भारतीयता का स्वरूप है। " स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संयुक्त परिवार की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आधुनिक काल में संयुक्त परिवार पुनः महत्वपूर्ण हो रहे हैं क्यों? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी के प्रमुख कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी की विशेषताएँ बताइए ।
- प्रश्न- नातेदारी के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी की सामान्य आचरण प्रथाएँ कौन-सी हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी की रीतियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी के नियामक व्यवहार (रीतियों) की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- परिवार की अस्थिरता के लिए कौन से कारक उत्तरदायी हैं?
- प्रश्न- संयुक्त परिवार को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- संयुक्त परिवार में आधुनिक परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी के सामाजिक महत्व की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- परिवार का समाजशास्त्रीय महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अधिकार के आधार पर परिवार के प्रकार बताइये?
- प्रश्न- नातेदारी पर संक्षिप्त मे टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- विवाह से आप क्या समझते हैं? विवाह की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विवाह से आप क्या समझते हैं?]
- प्रश्न- विवाह की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दू विवाह के उद्देश्य और प्रकारों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- हिन्दू विवाह के प्रकार लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दू विवाह के उद्देश्य तथा स्वरूप क्या हैं?
- प्रश्न- विवाह के भेद बताइए।
- प्रश्न- विवाह के प्रमुख प्रकार बताइए।
- प्रश्न- विवाहों के प्रकारों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- हिन्दू समाजों में विवाह से सम्बन्धित निषेध बताइए।
- प्रश्न- भारतीय मुसलमानों में प्रचलित विवाह पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- ईसाई विवाह पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दू विवाह के उद्देश्यों को समझाइये। अथवा विवाह के प्रमुख उद्देश्य बताइए। अथवा हिन्दू विवाह के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
- प्रश्न- 'प्राचीन काल में हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार माना जाता था, किन्तु वर्तमान में हिन्दू विवाह स्त्री-पुरुष के बीच एक कानूनी समझौता बन गया है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार है। इस कथन की व्याख्या कीजिए। आधुनिक अधिनियमों ने इसे कहाँ तक प्रभावित किया है?
- प्रश्न- "विवाह एक संस्कार है।' चर्चा कीजिये।
- प्रश्न- 'मुस्लिम विवाह एक समझौता (संविदा) है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मुस्लिम विवाह एक समझौता है? इस कथन की पुष्टि मुस्लिम विवाह की विधियों एवं शर्तों से पूर्ण कीजिए।
- प्रश्न- विवाह से आप क्या समझते हैं। अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- हिन्दू विवाह तथा विवाह विच्छेद अधिनियम किस वर्ष लागू हुआ?
- प्रश्न- जनजातीय विवाह के प्रमुख प्रकार बताइए।
- प्रश्न- जनजातीय विवाह की प्रमुख समस्यायें क्या हैं?
- प्रश्न- हिन्दुओं व मुसलमानों में विवाह संस्थाओं की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- कितने प्रकार के विवाह भारतीय जनजातियों में प्रचलित हैं?
- प्रश्न- कुलीन विवाह के नियम लिखिए।
- प्रश्न- कुलीन विवाह के विषय में बताइए।
- प्रश्न- अनुलोम और प्रतिलोम विवाह के विषय में बताइए।
- प्रश्न- विवाह के प्रकार्य पर टिप्पणी कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा से सम्बन्धित कौन-कौन सी समस्याएँ हैं? शिक्षा व्यवस्था मंो सुधार के उपाय बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा से सम्बन्धित कौन-कौन सी समस्याएँ हैं?
- प्रश्न- शिक्षा व्यवस्था में सुधार के उपाय बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या होने चाहिए?
- प्रश्न- शारीरिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मानसिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक एवं चारित्रिक विकास के उद्देश्य को समझाइए।
- प्रश्न- व्यावसायिक विकास के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शासनतंत्र एवं नागरिक की शिक्षा के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्र की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आध्यात्मिक चेतना के विकास का उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए कुछ सुझाव दीजिए ताकि वह सामाजिक नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सके?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक नियंत्रण के अभिकरण के रूप में शिक्षा का क्या महत्व है?
- प्रश्न- शिक्षा के महत्व को बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा का सामाजिक महत्व लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका को समझाइये।
- प्रश्न- राज्य की परिभाषा दीजिए। उसके विभिन्न तत्वों का वर्णन करते हुए राज्य का समाज व सरकार से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्य से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- राज्य के प्रमुख तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- राज्य व सरकार में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- राज्य के प्रमुख उद्देश्यों को समझाइये।
- प्रश्न- राज्य का अर्थ लिखिये। सामाजिक नियन्त्रण में राज्य की भूमिका की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- राज्य के अनिवार्य कार्य संक्षिप्त रूप में बताइये।
- प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं? परिभाषित कीजिए एवं इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- धर्म के मौलिक लक्षण क्या है? समकालीन समाज में धर्म की सामाजिक उपयोगिता और अनुपयोगिता का विश्लेषणात्मक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक काल में धर्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- धर्म के अकार्यात्मक पक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- धर्म के कोई चार भौतिक लक्षण बताइये।
- प्रश्न- धर्म में आधुनिक प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- धर्म के सामाजिक प्रकार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृति का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति को समझाइए।
- प्रश्न- संस्कृति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति को समझाइए।
- प्रश्न- 'सांस्कृतिक क्षेत्रों के भौतिक लक्षणों में सहभागिता' को समझाइए।
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति विविधता में एकता की अभिव्यक्ति है। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आगवर्न के संस्कृति पिछड़ के सिद्धांत की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सभ्यता को परिभाषित करते हुये सभ्यता की विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना का अर्थ संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- संस्कृति के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "मानव संस्कृति का निर्माता है" समझाइये।
- प्रश्न- संस्कृति एवं सभ्यता में अन्तर लिखिये।
- प्रश्न- सभ्यता एवं संस्कृति में सम्बन्धों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
- प्रश्न- बहुलवाद को परिभाषित करते हुये बहुलवाद के आधारों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- बहुलवाद के प्रमुख सिद्धांत बताते हुये बहुलवाद की मान्यताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
- प्रश्न- बहुलवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- बहुल संस्कृतिवाद की अवधारणा देते हुये इसकी विशेषताओं की विस्तार से विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक सापेक्षवाद के अर्थ को स्पष्ट कीजिये। किसी संस्कृति को दूसरी से श्रेष्ठ अथवा हीन क्यों नहीं कहा जा सकता?
- प्रश्न- सहयोग किसे कहते हैं? सहयोग के प्रकार या रूपों की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सहयोग की अन्तःक्रिया के लिये आवश्यक तत्वों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- सहयोग की मनोवैज्ञानिक, सामाजिक आवश्यकता को बताते हुये आगवर्न के वर्गीकरण को प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- प्रतिस्पर्धा को परिभाषित करते हुये, प्रतिस्पर्धा के प्रकारों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- प्रतिस्पर्धा के परिणामों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- प्रतिस्पर्धा और संघर्ष में अंतर लिखिये।
- प्रश्न- भारतीय समाज में पायी जाने वाली 'सांस्कृतिक' एवं 'संजातीय' विविधताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में पायी जाने वाली सांस्कृतिक विविधता का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में पायी जाने वाली सजातीय (नृजातीय) विविधता का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृति संक्रमण को परिभाषित करते हुये इसके ऐतिहासिक दृष्टिकोण की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- "संस्कृति और संक्रमण'' नामक ग्रंथ पर एक टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- आत्मसात्करण अथवा मिलना की प्रक्रिया की विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकीकरण की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- एकीकरण को परिभाषित करते हुये भारत में सामाजिक एकीकरण के विभिन्न रूपों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- आत्मसात की प्रमुख विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- टी. बी. बॉटोमोर ने सामाजिक संरचना की विचारधाराओं को कितने भागों में विभक्त किया है?
- प्रश्न- सामाजिक संरचना तथा सामाजिक व्यवस्था में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- प्रकार्य की धारा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रकार्य व अकार्य को परिभाषित कीजिए तथा इन दोनों में अन्तर भी बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक प्रतिमानों को परिभाषित करते हुये प्रतिमानों की विशेषताओं की विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक प्रतिमानों के विभिन्न प्रकारों की विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- लोकाचार की विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- जनरीतियों की विशेषताओं का उल्लेख करते हुये इनका महत्व बताइये।
- प्रश्न- अनुशास्ति को परिभाषित करते हुये इनके प्रकारों की विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- मूल्यों को परिभाषित करते हुये मूल्यों के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिये।
- प्रश्न- मूल्यों के उद्भव को बताते हुये इनके प्रमुख स्तरों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- अनुशास्ति के दमनात्मक सिद्धांत की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक मूल्यों की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- मूल्यों के महत्व पर एक टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से आप क्या समझते हैं? उसके प्रमुख आधार बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं को संक्षेप में बताइए
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों के नाम बताइए।
- प्रश्न- अवस्था सामाजिक स्तरीकरण का एक सार्वभौमिक आधार है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- लिंग सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रक्त सम्बन्ध सामाजिक स्तरीकरण का आधार है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के आधुनिक आधार 'सम्पत्ति' की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- क्या शारीरिक कुशलता सामाजिक स्तरीकरण का आधार हो सकता है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मानसिक कुशलता सामाजिक स्तरीकरण का आधार है, व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या सामाजिक स्तरीकरण का आधार धार्मिक योग्यता भी होती है।
- प्रश्न- "प्रजातीय अन्तर" सामाजिक स्तरीकरण का आधार है या नहीं? बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सामान्य स्वरूप बताइए तथा इसकी आवश्यकता, महत्व तथा प्रकार्य भी बताए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सामान्य स्वरूप बताइए।
- प्रश्न- स्तरीकरण की आवश्यकता, महत्व एवं प्रकार्य को बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की आवश्यकता को बताते हुये सामाजिक स्तरीकरण के विभिन्न आधारों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं को बताते हुये इसके स्वरूपों की विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण तथा सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के रूप बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के रूप बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के क्या कारण हैं? शिक्षा में सामाजिक गतिशीलता का क्या स्थान है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- शिक्षा में सामाजिक गतिशीलता का क्या स्थान है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता की विशेषताएं बताइए ।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रभाव क्या हैं?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करने वाले घटको की व्याख्या कीजिए।