बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र
प्रश्न- लोकसभा की शक्तियों एवं स्थिति का विश्लेषण कीजिए
उत्तर-
लोकसभा की शक्तियाँ एवं कर्तव्य(Powers and Duties of Lok-sabha)
भारतीय संसद के दोनों सदनों में लोकसभा लोकप्रिय सदन है इसमें जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन के आधार पर निर्वाचित सदस्य होते हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान द्वारा भी लोकसभा को राज्यसभा की तुलना में उच्च स्थिति प्रदान की गई है। संसद लोकसभा, राज्यसभा तथा राष्ट्रपति इन तीनों से मिलकर बनती है, लेकिन लोकसभा संसद की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है। लोकसभा की शक्तियाँ तथा कार्यों का अध्ययन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है
1. विधि निर्माण सम्बन्धी शक्तियाँ - भारतीय संविधान के अनुसार संसद संघ सूची कुछ समवर्ती एवं अवशिष्ट विषयों पर तो कानून का निर्माण कर सकती है। कोई भी विधेयक लोकसभा की स्वीकृति के बिना कानून का रूप धारण नहीं कर सकता यद्यपि संविधान द्वारा साधारण विधेयक, गैर वित्तीय विधेयक और संविधान संशोधन सम्बन्धी विधेयक के सम्बन्ध में समान शक्ति प्रदान की गई है। दोनों सदनों द्वारा पारित होने पर ही राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजे जायेंगे किन्तु यदि दोनों सदनों में किसी विधेयक को लेकर मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है और बहुमत के आधार पर निर्णय किया जाता है। लोकसभा की सदस्य संख्या राज्यसभा से अधिक होने के कारण सामान्यतः लोकसभा के पक्ष मे ही निर्णय सम्भव होता है। इस प्रकार विधि निर्माण के क्षेत्र में अन्तिम शक्ति लोकसभा में ही निहित है। जब संसद के अधिवेशन न चल रहे हों तो राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गये अध्यादेश तीस दिन के अन्दर लोकसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं। यदि लोकसभा इन अध्यादेशो को स्वीकर कर लेती है तो वे कानून का रूप धारण कर लेते हैं अन्यथा अस्वीकार होने की स्थिति में वे निरस्त हो जाते हैं। इस प्रकार विधि निर्माण के क्षेत्र में लोकसभा को बहुत अधिक शक्तियाँ प्रदान की गई है।
2. कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ- भारतीय संविधान द्वारा संसदीय व्यवस्था की स्थापना की गई है। अतः संविधान के अनुसार, कार्यपालिका अर्थात मन्त्रिपरिषद का गठन लोकसभा में से (संसद) किया जाता है। इसीलिए मन्त्रिपरिषद संसद (लोकसभा) के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है एवं लोकसभा के विश्वास पर्यन्त तक ही पदारूढ़ रह सकती है। संसद (लोकसभा) का प्रमुख कार्य कार्यपलिका पर नियन्त्रण रखना होता है। इसलिए संसद अनेक प्रकार से मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रख सकती है. जैसे संसद सदस्य मन्त्रियों से सरकारी नीति व सरकार के कार्यों के सम्बन्ध में प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं, उनकी आलोचना कर सकते हैं, उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव, कामरोको प्रस्ताव आदि के द्वारा नियन्त्रण रख सकती है, यही नहीं, संसद सरकारी विधेयक तथा बजट को अस्वीकार करके मन्त्रियों के वेतन में कटौती का प्रस्ताव स्वीकार करके अपना विरोध प्रदर्शित करती है। इस प्रकार लोकसभा कार्यपालिका पर नियन्त्रण की शक्ति के अन्तर्गत संघीय लोकसभा आयोग भारत के नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग, अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग की रिपोर्ट पर विचार करती है। इस प्रकार लोकसभा जनता के कष्टों का निवारण करने वाले सदन के रूप में महत्वपूर्ण दायित्वों को सम्पादित करती है।
3. वित्तीय शक्तियाँ - वित्तीय कार्यों के क्षेत्र में भारतीय संविधान द्वारा राज्यसभा की तुलना में लोकसभा को अधिक शक्ति प्रदान की गई है। संविधान के अनुच्छेद 109 के अनुसार वित्त विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जा सकते हैं, राज्यसभा में नहीं लोकसभा में पारित होने के बाद वित्त विधेयक (प्राप्ति की तिथि) राज्यसभा में भेजा जाता है। राज्यसभा को वित्त विधेयक प्राप्ति की तिथि से 14 दिन के अन्दर अन्दर लोकसभा को लौटा देना होगा। राज्यसभा वित्त विधेयक में संशोधन के लिए अपने सुझाव दे सकती है लेकिन उन्हें स्वीकार या अस्वीकार करना लोकसभा की इच्छा पर निर्भर करता है। संविधान में यह भी व्यवस्था है कि यदि राज्यसभा 14 दिन के अन्दर वित्त विधेयक को पारित नहीं करती है और न लोकसभा को वापस लौटाती है तो वित्त विधेयक निश्चित तिथि के बाद दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है। अतः राज्य सभा को वित्त विधेयक के सम्बन्ध में केवल 14 दिन की विलम्बकारी शक्ति प्राप्त है। इसके अतिरिक्त वार्षिक बजट और अनुदान सम्बन्धी माँगें भी लोकसभा के समक्ष रखी जाती हैं। उन पर स्वीकृति देने का एकाधिकार लोकसभा को प्राप्त है। अतः वित्तीय क्षेत्र में लोकसभा एक शक्तिशाली सदन प्रतीत होता है।
4. संविधान में संशोधन सम्बन्धी शक्तियाँ - संविधान में संशोधन करने का अधिकार दोनों सदनों को समान दिया गया है। संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार, संविधान के अधिकांश भाग में संशोधन का कार्य केवल संसद द्वारा ही किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में प्रक्रिया यह है कि संशोधन का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है किन्तु प्रस्ताव पारित करने के लिए यह आवश्यक है कि उसे संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग अपने कुल बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पारित किया जाये। असहमति होने पर प्रस्ताव अस्वीकार समझा जाता है, लेकिन गत् कुछ वर्षों से भारतीय संसद की संविधान में संशोधन करने सम्बन्धी शक्ति अधिक वाद-विवाद का विषय रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने संसद की इस शक्ति पर बहुत बड़ा प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन संविधान के 24 वें एवं 25 वें संशोधन के पश्चात् संसद को उसकी यह संशोधन सम्बन्धी शक्ति पुनः मिल गई है। अब यह निश्चित हो गया है कि संसद मौलिक अधिकार सहित संविधान के किसी भी भाग में सशोधन कर सकती है लेकिन संविधान के मूल स्वरूप को परिवर्तित नहीं कर सकती है। संविधान के मूल स्वरूप में कौन-कौन सी बातें आती हैं, इसे स्पष्ट नहीं किया गया है।
5. न्यायिक शक्तियाँ - राष्ट्रपति पर महाभियोग का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में से किसी एक सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है। दूसरा सदन उसकी जाँच करता है। उपराष्ट्रपति को पदच्युत करने सम्बन्धी प्रस्ताव राज्यसभा द्वारा पारित होने पर लोकसभा द्वारा उसका अनुमोदन आवश्यक है। इसके अतिरिक्त सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को पदच्युत करने सम्बन्धी प्रस्ताव लोकसभा एवं राज्यसभा द्वारा पृथक-पृथक रूप से तथा स्पष्ट बहुमत एवं उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित करके प्रतिवेदन करने पर राष्ट्रपति न्यायाधीशों को पदच्युत कर सकता है।
6. अन्य शक्तियाँ- (i) लोकसभा निर्वाचक मण्डल के रूप में भी कार्य करती है। संसद के दोनों सदनों के सदस्य तथा राज्य विधान सभाओं के सदस्य मिलकर राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति को निर्वाचित करते हैं।
(ii) लोकसभा को अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष निर्वाचित एवं पदच्युत करने का अधिकार प्राप्त है।
(iii) विभिन्न संकटकालीन घोषणाओं को जारी रखने के लिए संसद की स्वीकृति आवश्यक है।
(iv) लोकसभा अपने सदस्यों तथा किसी अन्य बाहरी व्यक्ति को सदन के विशेषाधिकार के हनन के लिए दण्ड दे सकती है।
(v) यदि राष्ट्रपति सर्वक्षमा देना चाहे तो उसकी स्वीकृति संसद से लेना आवश्यक है।
(vi) लोकसभा राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, न्यायालयों के न्यायधीशों पर महाभियोग लगा कर उन्हें पदमुक्ति कर सकती है।
7. जनता की शिकायतों का निवारण- लोकसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप में जनता द्वारा निर्वाचित होकर आते हैं, अतः उनके द्वारा जनता की शिकायतें, जनता के विचार और भावनाएँ सरकार तक पहुँचायी जाती हैं। लोकसभा के सदस्य इस बात की चेष्टा करते हैं कि सरकार अपनी नीतियों का निर्माण एवं कार्यों का सम्पादन जनता के हित को ध्यान में रखते हुए करे। यदि सैद्धान्तिक अध्ययन के स्थान पर वास्तविक अध्ययन किया जाये, तो यह कहा जा सकता है कि लोकसभा सबसे अधिक प्रमुख रूप से यही कार्य सम्पादित करती है।
लोकसभा की शक्तियों के उपर्युक्त अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि संसद देश का सर्वोच्च अंग है तो लोकसभा संसद का सर्वोच्च अंग। जनता का प्रतिनिधि सदन होने के कारण लोकसभा संसद का महत्वपूर्ण शक्तिशाली एवं प्रभावशाली अंग है। व्यवहार की दृष्टि से यदि लोकसभा को ही संसद कह दिया जाय, तो अनुचित न होगा।
राज्यसभा से लोकसभा निम्न कारणों से उच्च स्थिति को प्राप्त कर लेती है-
1. लोकसभा जनता का प्रतिनिधि सदन है राज्य सभा नहीं और लोकतन्त्र में जनता ही सर्वोच्च होती है।
2. लोकसभा की सदस्य संख्या राज्यसभा (250) से अधिक है।
3. लोकसभा (552) के सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं।
4. वित्तीय शक्ति के सम्बन्ध में लोकसभा की शक्ति एवं निर्णय अन्तिम है।
5. लोकसभा कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखती है। राज्यसभा नहीं
उपर्युक्त विवेचन से यह नितान्त स्पष्ट है कि राज्यसभा को लोक सभा की तुलना में कम शक्तियों प्राप्त हैं और ऐसा होना नितान्त स्वाभाविक भी है। संसदीय व्यवस्था में अन्तिम निर्णय की शक्ति लोकप्रिय सदन (लोकसभा) को ही प्रात हो सकती है, परोक्ष रूप में निर्वाचित द्वितीय सदन को नहीं। संविधान- निर्माताओं के द्वारा राज्यसभा की कल्पना प्रत्यक्ष सदन के सहायक और सहयोगी सदन के रूप में की गई थी. प्रतिद्वन्द्वी सदन के रूप में नहीं और राज्यसभा के द्वारा इसी रूप में आचरण किया गया है। अतः लोकसभा को ही संसद कहा जा सकता है।
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- प्रश्न- राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अनुच्छेद 352 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अनुच्छेद 356 पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री की विशिष्ट स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के सम्बन्धों पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत में प्रधानमन्त्री के प्रभुत्व से वृद्धि के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यपालक के रूप में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रधानमन्त्री और संसद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद में प्रधानमन्त्री की स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संसद की संरचना का संक्षेप में वर्णन कीजिए। संसद के कार्य एवं शक्तियाँ बताइये।
- प्रश्न- राज्य सभा की संरचना, कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की संरचना एवं लोकसभा का कार्यकाल बताते हुए इसके कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की शक्तियों एवं स्थिति का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति, शक्तियों तथा कार्यों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- संसद में कानून निर्माण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा अध्यक्ष के कार्य एवं अधिकार संक्षेप में बतायें।
- प्रश्न- राज्य सभा के पदाधिकारियों के विषय में बताइए।
- प्रश्न- वित्त विधेयक के सम्बन्ध में लोकसभा के क्या विशेषाधिकार हैं?
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- प्रश्न- संसदीय व्यवस्था की विशेषताएँ बताइये।
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- प्रश्न- राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'केन्द्रीय अभिकर्ता' के रूप में राज्यपाल की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- राज्यपाल का निर्वाचन क्यों नहीं होता? संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान के अनुच्छेद 356 के संदर्भ में राज्य के राज्यपाल की क्या भूमिका है?
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- प्रश्न- क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वित्त आयोग के गठन पर टिप्पणी कीजिए।
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- प्रश्न- निर्वाचन विषयक आधारभूत सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य निर्वाचन आयुक्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
- प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
- प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।