बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत बीए सेमेस्टर-1 संस्कृतसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत
प्रश्न- महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत का परिचय दीजिए।
उत्तर-
महाभारत को पञ्चमवेद कहा गया है। यह विश्व की अनुपम सर्वोत्कृष्ट कृति है। विश्व साहित्य में महाभारत का महत्वपूर्ण स्थान है। रामायण और महाभारत तो हमारे जातीय इतिहास है। भारतीय सभ्यता का भव्य रूप इन्हीं ग्रन्थों में झलकता है। कौरवों और पाण्डवों का इतिहास वर्णन ही ग्रन्थ का उल्लेख नहीं है अपितु हिन्दू धर्म का विस्तृत एवं पूर्ण चित्रण भी प्रयोजन है। इस महान ग्रन्थ के विषय में महाभारत में ही कहा गया है.
धर्म हार्थे च कामे मोक्षे च भारतवर्षम।
यदिहारित तदन्यत्र मन्नेहास्ति न तत् कचित्।
हे भारत कुल श्रेष्ठ। धम, अर्थ, काम और मोक्ष के सम्बन्ध में जो महाभारत से मिलता है वहीं दूसरे ग्रन्थों में भी मिलता है और जो महाभारत में नहीं है वह अन्यत्र कहीं नहीं है।
महाभारत में एक लाख श्लोक है। अतएव इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है -
महत्त्ववाद भारवात्ताच्च महाभारतमुच्यते'। इसे 'शतसाहस्रीसंहिता' भी कहते हैं।
'विदुरनीति' जिसमें आधार तथा लोकव्यवहार के नियमों का सुन्दर चित्रण है महाभारत का अंश है। इस प्रकार ऐतिहासिक धार्मिक राजनीतिक आदि दृष्टियों से महाभारत एक अभूतपूर्व ग्रन्थ है।
विद्वानों के मतानुसार इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ महाभारत का क्रमिक विकास हुआ है। सर्वप्रथम यह महाभारत 'जय' नाम से प्रसिद्ध था। इसी 'जय' को महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्यों को सुनाया था। पाण्डवों के विजय वर्णन के कारण ही इस ग्रन्थ का नाम 'जय' पड़ा। दूसरी अवस्था में इसका नाम 'भारत' पड़ा। इसमें उपाख्यानों का समावेश नहीं था। इसी 'भारत को वैशम्पायन ने पढ़कर जनमेजय को सुनाया था। इस 'भारत नामक ग्रन्थ में 24 हजार श्लोक रहे होंगे। इसकी पुष्टि इस निम्नलिखित श्लोक से होती है -
चातुर्विंशतिसाहस्रं चक्रे भारतसंहिताम्।
उपाख्यानोर्विना तावद् भारतं प्रोच्यते बुधैः॥
इस भारत का ही विकसित रूप महाभारत है जिसमें एक लाख श्लोक हैं। इसके रचयिता कृष्णद्वैपायन वेदव्यास कहे जाते हैं। वेदव्यास ने कठिन परिश्रम के द्वारा ही इस विशाल ग्रन्थ की रचना तीन वर्षों में की थी।
त्रिभिः वर्षेः सदोत्थाय कृष्णद्वैपायनो मुनिः।
महाभारतमाख्यानं कृतवानिदमुत्तमम्॥
इस प्रकार महाभारत पहले 'जय', 'जय' से 'भारत' तथा 'भारत' से 'महाभारत' के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
महाभारत 18 पर्वों में विभक्त है। ये पर्व इस प्रकार है - (1) आदि (2) सभा (3) वन (4) विराट (5) उद्योग (6) भीष्म (7) द्रोण (8) कर्ण (6) शल्य (10) सौप्तिक (11) स्त्री (12) शान्ति (13) अनुशासन (14) अश्वमेघ (15) आश्रमवासी (16) मौसल (17) महाप्रथानिक (18) स्वर्गारोहण | महाभारत के अन्त में 'हरिवंश' परिशिष्ट के रूप में जुड़ा है। हरिवंश में 1600 श्लोक हैं। इसमें भी तीन पर्व हैं - हरिवंश, विष्णु और भविष्य।
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- प्रश्न- 'वृहत्त्रयी' से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- श्री हर्ष की रचनाओं का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- 'काश्यां मरणान्मुक्तिः' श्री हर्ष ने इस कथन का समर्थन किया है। उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
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- प्रश्न- भारवि के महाकाव्य का नामोल्लेख करते हुए उसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किरातार्जुनीयम् की कथावस्तु एवं चरित्र-चित्रण पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- 'वरं विरोधोऽपि समं महात्माभिः' सूक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए ।
- प्रश्न- कालिदास की जन्मभूमि एवं निवास स्थान का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- उपमा अलंकार के लिए कौन सा कवि प्रसिद्ध है।
- प्रश्न- अपनी पाठ्य-पुस्तक में विद्यमान 'कुमारसम्भव' का कथासार प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।
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