बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जैन धर्म ने भारतीय संस्कृति में अनेक योगदान दिये। इसने सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बहमूल्य योगदान दिया। जैनियों ने जन-साधारण को अपनी व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। जैन धर्म में पार्श्वनाथ भी वैदिक धर्म के कर्मकांड तथा देववाद के कटु आलोचक थे। इन्होंने जाति-प्रथा पर प्रहार किया जिसके कारण भारतीय संस्कृति में जाति प्रथा की कठोरता में कुछ कमी आयी। ये प्रत्येक व्यक्ति को मोक्ष का अधिकारी मानते थे, चाहे वह किसी भी जाति का हो। नारियों को भी इन्होंने अपने धर्म में प्रवेश दिया था। उनकी मूल शिक्षा में थी प्राणियों की रक्षा करना, हिंसा न करना, सदा सत्य बोलना, चोरी न करना तथा संपत्ति न रखना। महावीर स्वामी के माता-पिता भी इनके अनुयायी थे। महावीर स्वामी ने जैन धर्म में अपेक्षित सुधार करके इसका व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार किया। जैन धर्म ने शिक्षाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
जैन धर्म ने संसार को दुःख मूलक माना है। मनुष्य जरा (वृद्धवस्था) तथा मृत्यु से ग्रस्त है। व्यक्ति को सांसारिक जीवन की तृणाएँ घेरे रहती हैं। संसार त्याग तथा संन्यास ही व्यक्ति को सच्चे सुख की ओर ला जा सकता है। जैन धर्म के अनुसार सृष्टिकर्ता ईश्वर नहीं है किन्तु संसार को एक वास्तविक तथ्य माना गया हैं जो अनादिकाल से विधमान है संसार के सभी प्राणी अपने-अपने संचित कर्मों के अनुसार ही कर्मफल भोगते हैं। कर्मफल ही जन्म तथा मृत्यु का कारण है। कर्मफल से छुटकारा पाकर ही व्यक्ति निर्वाण की ओर अग्रसर होता है। इसके लिए आवश्यक है कि पूर्वजन्म के संचित कर्म को समाप्त किया जाए और वर्तमान जीवन में कर्मफल से विमुख रहे। इसके लिए त्रिरत्न आवश्यक है। जैन ने त्रिरत्न के. माध्यम से भारतीय संस्कृति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनमें सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् आचरण शामिल है। इसके माध्यम से समाज में नैतिकता के लिए लोगो को प्रेरित किया गया है। सत् में विश्वास करना जैन धर्म ने बताया है। जैन धर्म में सत् में विश्वास को ही सम्यक् दर्शन कहा गया है। सद्रूप का शंकाविहीन तथा वास्तविक ज्ञान ही सम्यक् ज्ञान है। इसके माध्यम से जैन धर्म ने सम्यक् ज्ञान प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति को बताया गया है। सांसारिक विषयों से उत्पन्न सुख-दःख के प्रति समभाव सम्यक् आचरण है। इनमें आचरण पर सर्वाधिक बल दिया गया है। इसके लिए जैन धर्म में पाँच महाव्रतों का पालन करने का विधान बताया गया है। यह पंचमहाव्रत निम्नलिखित हैं-
1. अहिंसा जैन धर्म में अहिंसा से सम्बन्धित विधान अत्यन्त कठोर है। मन वचन तथा कर्म से किसी के प्रति असंगत व्यवहार हिंसा है। जैन धर्म ने अहिंसा के द्वारा सम्पूर्ण विश्व में शांति लाने का प्रयास किया है।
2. सत्य जैन धर्म के अनुसार मनुष्य को सदा सत्य तथा मधुर बोलना चाहिए। सत्य बोलने से लोगो में विश्वास की भावना जागृत होती है।
3. अस्तेय जैन धर्म ने अस्तेय के माध्यम से समाज को शिक्षा दी है। इसके अनुसार बिना अनुमति के न तो किसी वस्तु को ग्रहण करना चाहिए और न उसकी इच्छा करनी चाहिए। बिना आज्ञा के किसी के घर में जाना, निवास करना या किसी वस्तु को ग्रहण करना वर्जित बताया गया है।
4. अपरिग्रह इसके द्वारा जैन धर्म ने किसी भी प्रकार की सम्पत्ति को एकत्रित न करने पर बल दिया है क्योंकि सम्पत्ति के प्राप्त होने से मोह तथा आसक्ति का उदय होता है। मोह ही पाप का मूल होता है। अतः इसका विनष्ट होना आवश्यक है।
5. ब्रह्मचर्य जैन धर्म ने ब्रह्मचर्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति को अमूल्य योगदान दिया है। ब्रह्मचर्य के अन्तर्गत किसी स्त्री से वार्तालाप, उसे देखना, उससे संसर्ग का ध्यान करने की भी मनाही थी। पहले के चार व्रत पार्श्वनाथ से समय से ही प्रचलित थे। महावीर स्वामी ने इसमें पाँचवा व्रत ब्रह्मचर्य को जोड़ दिया था। उपर्युक्त पाँच महाव्रतों के अतिरिक्त जैन धर्म ने ग्रहस्थ जीवन व्यतीत करने वाले जैनियों के लिए भी इन्हीं व्रतों की व्यवस्था है किन्तु इनकी कठोरता में पर्याप्त कमी की गई है, इसीलिए इन्हे अणुव्रत अथवा पंच अणुव्रत कहा गया है। जैन धर्म ने पंच अणु धर्म के अतिरिक्त तीन गुणव्रतों का पालन करने के लिए भी कहा जोकि निम्नलिखित हैं-
(i) प्रत्येक ग्रहस्थ को सुविधानुसार अपने कार्यक्षेत्र की सीमा निर्धारित करनी चाहिए।
(ii) केवल योग्य तथा अनुकरणीय कार्य करने के लिए कहा गया है।
(iii) भोजन तथा भोग की सीमा निर्धारित करके उसका उल्लंघन नहीं करना चाहिए। जैन धर्म ने ग्रहस्थों के लिए चार शिक्षाव्रतों का अनुकरण भी आवश्यक बताया है, जो निम्नलिखित हैं-
(i) दशेविरति किसी देश प्रदेश की सीमा से आगे न जाने का व्रत।
(ii) सामयिक व्रत दिन में तीन बार सांसारिक चिन्ताओं से मुक्त होकर ध्यान लगाना।
(iii) प्रोपोद्योपवास - उपवास व्रत करना।
(iv) वैया वृत्य दान - पूजा आदि करना।
काया क्लेश-
जैन धर्म ने काया क्लेश द्वारा भारतीय संस्कृति में अपना योगदान दिया। इसके अन्तर्गत उपवास द्वारा आत्महत्या का भी विधान है। इस पद्धति को संलेखना पद्धति एवं निषिद्ध कहा जाता है। जैन अनुश्रुति के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने श्रवणबेल गोला (मैसूर) में इसी पद्धति से प्राण त्यागे थे।
इस प्रकार जैन धर्म ने अपनी शिक्षाओं द्वारा भारतीय संस्कृति में योगदान दिया जिसमे इनकी कुछ शिक्षाओं को स्वीकार किया गया है तथा कुछ को अस्वीकार किया गया है।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
- प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
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- प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
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- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
- प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?