बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
अथवा
सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति का स्वरूप, गुण तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सांख्य दर्शन के प्रकृति विचार की विवेचना कीजिए।
अथवा
सांख्य दर्शन में प्रकृति के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
महर्षि कपिल सांख्य दर्शन के गुरु माने जाते हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार कपिल ऋषि ब्रह्मा के कुछ व्यक्ति उन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं तथा कुछ अग्नि का अवतार। कुछ व्यक्तियों के अनुसार, बुद्ध से एक शताब्दी पूर्व कपिल ऋषि का आगमन हुआ था।
वेबर ने अपनी पुस्तक (History of Indian Literature ) में लिखा है कि "सभी स्थापित स्कूलों में सांख्य सबसे प्राचीन है।"
कपिल ऋषि के द्वारा सांख्य दर्शन की रचना की गई।
सांख्य दर्शन का वर्णन वेद व उपनिषदों में भी मिलता है। सांख्य दर्शन वेद के विचारों को मानते हुए भी अपनी अलग पहचान बनाता है। डॉ. राधाकृष्णन ने अपनी पुस्तक "भारतीय दर्शन" में लिखा "ऋग्वेद के विश्व विज्ञान की व्याख्या के समय अप्रत्यक्ष और अस्पष्ट रूप से सांख्य के रूप प्रकृति और पुरुष का सहारा लिया जाता था इससे पता चलता है कि सांख्य दर्शन के सिद्धान्तों का बीज वेद से लिया गया है।
डॉ. राधाकृष्णन ने अपनी पुस्तक (Indian Philosophy) में लिखा, जब हम उपनिषद् की तरफ जाते हैं तो उपनिषदों के विभिन्न उपदेशों में सांख्य दर्शन के मुख्य विचारों को पाते हैं।
महाभारत के कुछ स्थानों में भी सांख्य दर्शन से मिलती-जुलती गतिविधियाँ देखने को मिलती हैं। मनु ने सांख्य शब्द का व्यवहार किया परन्तु उसने जिस सृष्टिवाद के सिद्धान्त का वर्णन किया, उसमें ज्ञान के तीन साधन बताये गये। सांख्य दर्शन प्रकृति और पुरुष का पारमार्थिक भेद मानता है। सांख्य के अनुसार, जड़, द्रव्य, प्राण और मनस सबका मूल प्रकृति से होता है। प्रकति और पुरुष का द्वैत (Dualism) सांख्य दर्शन का प्रमुख सिद्धान्त है।
महाभारत में सांख्य ईश्वरवादी है लेकिन सांख्य दर्शन में निरीश्वरवादी है। योग दर्शन सांख्य दर्शन में ईश्वरवाद को ले आता है तथा सेश्वर सांख्य कहलाता है।
डॉ. राधाकृष्णन ने अपनी पुस्तक Indian Philosophy में लिखा, "सांख्य मत जैसा कि हम उपनिषद्, महाभारत, गीता और मनु के साथ पाते हैं, ईश्वरवाद की तरफ झुकाव रखते हैं।'
डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार, "सांख्य दर्शन में ऐसा कोई स्थान नहीं है जिसका रूप भौतिकवाद या वस्तुवाद हो।"
सांख्य नाम से संख्या का बोध होता है। इसी कारण यह सांख्य तत्वों की संख्या का बोध कराता है। सांख्य शब्द का अर्थ सम्यक् ज्ञान (स- सम्यक् + ख्या ज्ञान ) भी होता है। प्राचीन ग्रन्थों से इस बात की पुष्टि की जाती है कि पुरुष और प्रकृति के द्वेतवाद से सम्यक् ज्ञान की पुष्टि हो जाती है।
सांख्य दर्शन के सम्बन्ध में अन्य मत यह भी है कि सांख्य दर्शन के दार्शनिक सिद्धान्तों के जन्मदाता का नाम सखा है। इसी कारण उनके नाम पर इसका नाम सांख्य दर्शन पड़ा। सांख्य दर्शन का आधार कपिल ऋषि का सांख्य सूत्र है। सांख्य प्रवचन में विशेष दार्शनिक रूप दिखाया गया है।
गौड़ पाद ने सांख्य-कारिका भाष्य की रचना की। वाचस्पति ने तर्क कौमूदी तथा विज्ञान भिक्षु ने सांख्य प्रवचन भाष्य और सांख्य सार की रचना की। देव ने सांख्य प्रवचन सूत्र पर टीका लिखी। सांख्य दर्शन के अन्तर्गत ये प्रमुख हैं-
1. सत्कार्यवाद या कार्यकारण सिद्धान्त।
2. प्रकृति का जगत सम्बन्धी विकासवाद सिद्धान्त |
(i) Law of Causation,
(ii) Law of Prakriti and Purusa,
(iii) Theory of Evolution.
सांख्य दर्शन विश्व के कारण के रूप में ही प्रकृति की स्थापना करता है जो एक है। प्रकृति से ही विश्व एवं उसके पदार्थों की व्याख्या सम्भव है। प्रकृति, जड़ एवं सूक्ष्म पदार्थ है। यह विश्व के स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों ही पदार्थों की व्याख्या करने में सक्षम है। विश्व का आधार प्रकृति है। चूँकि यह विश्व का मूल कारण है, इसी कारण इसे प्रकृति कहा गया है। प्रकृति स्वयं अकारण है।
सांख्य दर्शन में प्रकृति को विभिन्न नामों से जाना जाता है
(i) प्रकृति को प्रधान कहा गया है, क्योंकि यह विश्व का प्रथम कारण है तथा विश्व की सभी वस्तुएँ इसी पर आधारित हैं।
(ii) प्रकृति को ब्रह्म कहा गया है, क्योंकि इसका विकास होता है। प्रकृति स्वयं विकसित होती है तथा विभिन्न पदार्थों के रूप में इसका विकास होता है।
(iii) प्रकृति को अव्यक्त कहा गया है। विश्व के सभी पदार्थ अव्यक्त रूप में प्रकृति रूपी कारण में अन्तर्भूत रहता है।
(iv) प्रकृति को अनुमान कहा गया है, क्योंकि इसका ज्ञान अनुमान के द्वारा ही होता है।
(v) प्रकृति को जड़ कहा गया है, क्योंकि यह भौतिक पदार्थ है।
(vi) प्रकृति को माया कहा गया है, क्योंकि यह विश्व की सभी वस्तुओं को सीमित करती है। प्रकृति कारण होने के कारण कार्य को सीमित करती है।
(vii) प्रकृति को शक्ति कहा गया है, क्योंकि इसमें गति मौजूद रहती है।
(viii) प्रकृति को अविद्या कहा गया है, क्योंकि यह ज्ञान का विरोधी है।
प्रकृति की विशेषताएँ- सांख्य दर्शन द्वैतवादी है जिसके अनुसार पुरुष एवं प्रकृति दो तत्व चरम सत्ताएं हैं। प्रकृति प्रथम तत्व है इसलिए प्रकृति को तत्व कहा गया है।
प्रकृति स्वतन्त्र है जबकि विश्व की समस्त वस्तुएँ प्रकृति पर आश्रित हैं। प्रकृति अपनी सत्ता के लिए अन्य किसी वस्तु पर निर्भर नहीं है।
प्रकृति कारण है जबकि विश्व की सभी वस्तुओं का यह कारण है। प्रकृति जड़, द्रव्य मन, अहंकार आदि का मूल कारण है, लेकिन यह स्वयं सभी वस्तुओं से भिन्न है।
प्रकृति निरयव है जबकि विश्व की सभी वस्तुएं सावयव हैं। प्रकृति एक शाश्वत एवं दिक् तथा काल से परे है जबकि विश्व की सभी वस्तुएं अनेक अशाश्वत एवं दिक् तथा काल में है। प्रकृति अदृश्य है क्योंकि इसका प्रत्यक्ष नहीं होता है तथा इसका ज्ञान अनुमान के द्वारा होता है। प्रकृति अव्यक्त है, क्योंकि संसार की सभी वस्तुएं कार्य रूप में प्रकृति में अव्यक्त रूप में अन्तर्भूत रहते हैं।
प्रकृति अचेतन है, क्योंकि यह जड़ है। प्रकृति सक्रिय है, निष्क्रिय नहीं। प्रकृति व्यक्तित्व हीन है, क्योंकि बुद्धि एवं संकल्प का इसमें अभाव है। प्रकृति अनादि एवं अनन्त है।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
- प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
- प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
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- प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
- प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
- प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य ज्ञानमीमांसा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के पुरुष की अनेकता की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
- प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
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- प्रश्न- योग दर्शन के अभ्यास के अंग कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन में तीन मार्ग कौन से हैं?
- प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
- प्रश्न- योगांग किसे कहते हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमाण शास्त्र की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
- प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
- प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
- प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
- प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
- प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
- प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
- प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
- प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
- प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
- प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
- प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
- प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
- प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?