बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
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प्रसव पूर्व विकास एवं जन्म प्रक्रिया
(Prenatal Development and Birth Process)
प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
अथवा
प्रसव के पूर्व गर्भावस्था की प्रत्येक अवस्था में भ्रूण के विकास का वर्णन कीजिये।
अथवा
पूर्व प्रसव काल की विभिन्न अवस्थाओं को नामांकित कीजिए तथा गर्भकालीन विकास के प्रमुख निर्धारक तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गर्भधारण के तुरन्त बाद शारीरिक विकास प्रारम्भ हो जाता है। भिन्न-भिन्न विकास अवस्थाओं में शारीरिक विकास भिन्न-भिन्न गति से चलता है। अन्य विकास अवस्थाओं की अपेक्षा गर्भकालीन अवस्था से शारीरिक विकास की गति अपेक्षाकृत अधिक तीव्र होती है। गर्भकालीन अवस्था 280 दिन की होती है। जीववैज्ञानिक इस अवस्था में 24 दिन के दस चन्द्र महीन मानते हैं। बोलचाल की भाषा में इस अवधि में 9 महीने कहे जाते हैं। इस अवस्था के अधिकांश परिवर्तन शारीरिक होते हैं। कारमाइकेल (L. Carmichael, 1954) के अनुसार, गर्भकालीन अवस्था कम से कम 180 दिन तथा अधिक से अधिक 334 दिन की हो सकती है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इस अवधि के निम्न तीन उपभाग किये गये हैं-
1. डिम्ब अवस्था (The Period of the Ovum) - गर्भधारण से 2 सप्ताह तक
यह अवस्था बीजावस्था (Germinal Period) भी कहलाती है, जिसकी अवधि गर्भधारण से दो सप्ताह तक होती है। इस अवस्था के प्राणी, जो अण्डे की शक्ल का होता है, युक्ता (Zygote) कहलाता है। इसका आकार पिन की हेड के बराबर होता है। इसके आकार में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता है; क्योंकि इसे माँ से कोई आहार प्राप्त नहीं होता है। आवेग में पाया जाने वाला योक (Yolk) नामक पदार्थ ही इसका आहार होता है। कोष्ठ- विभाजन (Cell Division) की क्रिया युक्ता (Zygote) के अन्दर चलती रहती है परन्तु युक्ता (Zygote) में बाहर से कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता है। यह गर्भधारण के बाद गर्भाशय में लगभग एक सप्ताह तक तैरता रहता है। लगभग 10 दिन में ही यह गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है और आहार के लिए यह माँ के शरीर से इस प्रकार सम्बन्धित हो जाता है, परन्तु माँ के गर्भाशय की दीवार से यह उस समय चिपक नहीं पाता हैं जब उसकी थॉयराइड और पिट्यूटरी ग्रन्थियाँ अनुपयुक्त ढंग से कार्य करती हैं। इस अवस्था में कुछ ही दिनों में योक पदार्थ, युक्ता (Zygote) से समाप्त हो जाता है और युक्ता (Zygote) मृत हो जाता है।
2. भ्रूण अवस्था (The Period of the Embryo) - (2 सप्ताह - 2 महीने)
इस अवस्था की अवधि दो सप्ताह से दो माह तक होती है। इस अवस्था में भ्रूण में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। इस अवस्था के अन्त तक भ्रूण की आकृति मानव के शक्ल की हो जाती है और शरीर के मुख्य-मुख्य अंगों का निर्माण हो जाता है। भ्रूण की संरचना को यदि देखा जाय तो इसका निर्माण तीन पर्तों से होता हुआ दिखाई देता है- प्रथम पर्त बहिः स्तर (Ectoderm) कहलाती है जिससे त्वचा, दाँत, नाखून, बाल और नाड़ीमण्डल आदि का विकास होता है। नाड़ीमण्डल में मस्तिष्क का विकास तीव्र गति से होता हैं द्वितीय पर्त मध्य स्तर (Mesoderm) कहलाती है जिससे त्वचा का भीतरी भाग और माँसपेशियों का निर्माण होता है। तृतीय पर्त अन्त: स्तर (Endoderm) कहलाती है जिससे सम्पूर्ण पाचन प्रणाली का निर्माण होता है। फेफड़े, ग्रन्थियों और यकृत (Liver) आदि का निर्माण भी इसी पर्त से होता है।
दूसरे मास के अन्त तक भ्रूण की लम्बाई 1.25 इंच से 2 इंच तक हो जाती है तथा इसका भार लगभग 2/3 औंस हो जाता है। इस अवस्था के भ्रूण को सरलता से पहचाना जा सकता है। शरीर के अंग और भागों का विकास काफी कुछ हो जाता है। सिर का आकार शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा काफी बड़ा होता है। नाक में केवल एक छिद्र होता है। मुँह बिना दाढ़ी (Chin) का होता है। कान और आँखों आदि का विकास प्रारम्भ हो जाता है। इसके हाथ पैर बहुत दुर्बल होते हैं। इसके हड्डियों के स्थान पर Cartilage होती है। हृदय, यकृत और आँतों का विकास होने लगता है। इस अवस्था में गर्भ गिरने के कई कारण हो सकते हैं; जैसे—संवेगात्मक आघात, माँ का दुर्बल आहार, ग्रन्थियाँ, असन्तुलन आदि।
इस कारण से यदि स्वतः गर्भ गिर जाता है, तो उसे स्वतः गर्भपात ( Spontaneous Abortion) कहते हैं। इस अवस्था में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न होने पर भ्रूण में विकासात्मक विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। विकृतियों के उत्पन्न होने का एकमात्र यही कारण प्रतीत होता है कि इसी अवस्था में शरीर के विभिन्न अंगों का निर्माण प्रारम्भ होता है। अतः गर्भित महिलाओं को चाहिए कि वह अपने को धक्का लगने, मानसिक तनाव, दुर्बल आहार, गिरने, झटका लगने और शारीरिक दुर्बलता आदि से अपने आप को बचाएँ।
3. गर्भस्थ शिशु की अवस्था (The Period of the Fetus) - (3 महीने - जन्म तक)
यह तीसरे महीने के प्रारम्भ से और जन्म लेने तक की अवस्था है। यह अवस्था सर्वाधिक लम्बी है। इस अवस्था में शरीर के उन अंगों में वृद्धि होती है; जो इससे पहले की अवस्था में निर्मित हुए थे। तीसरे महीने के अन्त तक गर्भस्थ शिशु का भार 3/4 औंस व लम्बाई 3.5 इंच होती है। पाँचवें महीने के अन्त तक उसका भार 9-10 औंस व लम्बाई 10 इंच तक हो जाती है। आठवें महीने के अन्त तक लम्बाई 16-18 इंच तथा भार 4-5 पाउण्ड तक हो जाता है। दसवें चन्द्र मास के अन्त तक लम्बाई 20 इंच तक तथा भार 7 से 7.5 पाउण्ड तक हो जाता है। इस अवस्था में सिर का विकास भी छठे माह तक तीव्र गति से होता है। सिर तीसरे महीने के अन्त तक सम्पूर्ण शरीर का
छठे महीने के अन्त तक सम्पूर्ण शरीर का भाग होता है और दसवें चन्द्र मास के अन्त तक इसका आकार इसी प्रकार का रहता है बल्कि यह सम्पूर्ण शरीर का से कुछ कम अवश्य हो जाता स्पष्ट है कि छठे से दसवें माह तक सिर की अपेक्षा शरीर का विकास बहुत तीव्र गति से होता है। त्वचा सिकुड़ी हुई होती है। इस अवधि के अन्त तक त्वचा लाल हो जाती है। त्वचा पर बाल बहुत मुलायम होते हैं। सातवें से नवें महीने के मध्य धड़ में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। तीसरे महीने तो पैरों की अपेक्षा हाथ अधिक लम्बे होते हैं। चौथे महीने अंगुलियों के पोरों (Toes) का निर्माण और विकास प्रारम्भ हो जाता है।
चौथे महीने के अन्त तक हृदय की धड़कनें सुनी जा सकती हैं। पाँचवें महीने के अन्त तक इस अवस्था के शिशु के आन्तरिक अंग उसी प्रकार से कार्य करने लग जाते हैं, जैसे वयस्क लोगों में। ई. ईखोम (E. Ekholm, 1950) के अनुसार, पाँचवें महीने के अन्त तक थाइमस, थॉयराइड और एड्रीनल ग्रन्थियों में महत्त्वपूर्ण होते हैं। तीसरे महीने के अन्त तक गुर्दे भी अपना कार्य प्रारम्भ कर देते हैं। मार्टिन (P.C. Martin & EL. Vincent, 1969) के अनुसार, तीसरे महीने में मस्तिष्क में जो विकास होते हैं, उनमें उन क्षेत्र का विकास अधिक तीव्र गति से होता है, जो गत्यात्मक क्रियाओं को नियन्त्रित करते हैं।
इस अवस्था में ज्ञानेन्द्रियों के विकास के सम्बन्ध में सरलता से यह नहीं कहा जा सकता है कि किस ज्ञानेन्द्रियों का विकास किस सीमा तक हो चुका है। आँख का विकास गर्भधारण के दूसरे या तीसरे सप्ताह से प्रारम्भ हो जाता है। लगभग आठ महीने की अवस्था तक रेटिना का प्रबन्ध लगभग उसी प्रकार का हो जाता है जैसे कि वयस्क व्यक्तियों का। सम्पूर्ण गर्भकालीन अवस्था में शिशु आंशिक रूप से बहरा (Deaf) होता है, क्योंकि उसके कान बन्द होते हैं। जन्म के कुछ समय बाद तक भी बालक आंशिक रूप से बहरा होता है। जब उसके कान की Eustachian Tube खुल जाती है और मध्य कान में भरा द्रव्य बाहर निकल जाता है, तब उसे स्पष्ट सुनाई पड़ने लग जाता है। वरनार्ड (J. Bernard & L. W. Sontag, 1947) ने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों में देखा कि माँ के पेट पर यदि एक विशिष्ट प्लेट लगाई जाय और घण्टी की तीव्र ध्वनि की जाय, तो गर्भस्थ शिशु नवें महीने के अन्त में इस प्रकार की ध्वनि के प्रति अनुक्रिया करता है। स्पर्श-संवेदना नाक और मुँह के क्षेत्र में सर्वप्रथम विकसित होती है जो शरीर के अन्य भागों में फैल जाती है। ताप और पीड़ा संवेदना बहुत कम विकसित होती है। गर्म उद्दीपकों के प्रति ठण्डे उद्दीपकों की अपेक्षा गर्भस्थ शिशु शीघ्र अनुक्रिया करता है। इस अवस्था के अन्त तक घ्राणेन्द्रियों का विकास काफी पूर्ण हो जाता है। परन्तु प्राण संवेदना तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि नाक की नली में हवा न भर जाये।
पाँचवें माह तक गर्भ के गिरने की सम्भावना रहती है परन्तु इसके बाद बहुत कम। सामान्यतः सातवें महीने के अन्त तक गर्भस्थ शिशु का शारीरिक, मानसिक और आन्तरिक अंगों का विकास इतना हो जाता है कि यदि इस अवस्था के शिशु का जन्म हो जाये तो वह जीवित रह सकता है। आठवें और नवें महीने में यदि जन्म होता है तो गर्भस्थ शिशु के जीवित रहने के अवसर बढ़ जाते हैं और दसवें महीने में जन्म होने के अवसर सर्वाधिक होते है।
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- प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
- प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
- प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
- प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
- प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
- प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
- प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
- प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
- प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
- प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
- प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
- प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
- प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
- प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
- प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
- प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
- प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
- प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
- प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
- प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
- प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
- प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
- प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
- प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
- प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
- प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
- प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
- प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
- प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
- प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
- प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
- प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
- प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
- प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
- प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
- प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
- प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
- प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
- प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
- प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
- प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
- प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
- प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
- प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
- प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?