बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं सैन्य अध्ययन
प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। युद्ध के सामाजिक, राजनैतिक, सैन्य एवं मनोवैज्ञानिक कारणों की विवेचना कीजिए।
अथवा
युद्ध के कारणों की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
अथवा
युद्ध के सामाजिक कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर -
युद्ध की परिभाषा
क्लाजविट्ज के अनुसार- "युद्ध एक ऐसा हिंसात्मक कार्य है जिसका उद्देश्य विराधी को अपनी इच्छा मनवाने के लिए बाध्य करना है।"
ओपनहीन के अनुसार, "युद्ध दो या दो से अधिक राज्यों के बीच एक दूसरे को पराजित करने तथा विजेता राज्य की इच्छा के अनुसार शान्ति थोपने के लिए सशस्त्र सेनाओं के माध्यम से संचालित विवाद हैं। "
युद्ध के कारण
(Causes of war)
विभिन्न विचारकों ने युद्ध के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कारणों की विवेचना करते हुए इसे प्राय: दो भागों में बाँटा हैं- प्रथम भाग में उन कारणों को लिया जाता है। जो युद्ध को भड़का देते हैं तथा दूसरे भाग में युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले कारणों को लिया जाता है। क्विंसी राइट के मतानुसार युद्ध के कारणों को कई दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। इसके राजनीतिक, तकनीकी, सैद्धान्तिक, सामाजिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक तथा आर्थिक कारण है।
स्टीवेन जे० रोजन तथा वाल्टर ए० जोन्स ने 1974 में प्रकाशित अपनी पुस्तक "The logic of International Relations" में युद्ध के बारह कारणों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है और इन्हें युद्ध के कारणों के बारह सिद्धान्तों का नाम दिया है। ये बारह कारण निम्न प्रकार हैं-
1. शक्ति विषमता (Power Asymmetries) युद्ध का एक प्रमुख कारण शक्ति विषमता है, अर्थात शक्ति के वितरण में असमानता होने से युद्ध को जो प्रोत्साहन मिलता है। शक्ति का सन्तुलन बना रहने से युद्ध की सम्भावना कम हो जाती है, तथा जब दो विरोधी राष्ट्रों में शक्ति का असन्तुलन पैदा हो जाता है, तो आक्रमण का मार्ग खुल जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में जब शक्ति शून्यता (A Vaccum of Power) की स्थिति उत्पन्न होती है तो इससे अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में अस्थिरता आने लगती है और सैनिक महत्वकांक्षाओं को प्रोत्साहन मिलता है। इस विचार के समर्थकों का मानना है कि अन्तर्राष्ट्रीय जगत में संघर्ष के अवसर और विवाद सदैव उपस्थित रहते हैं और युद्ध का तात्कालिक कारण प्रायः यही बनता है कि शक्ति का सन्तुलन बिगड़ जाता है और शक्ति के वितरण में विषमता आ जाती है।
2. राष्ट्रवाद, अलगाववाद और क्षेत्र विस्तारवाद (Nationalism, Separatism and Irredentism) राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय आन्दोलन युद्ध के दूसरे कारण है। राष्ट्रवाद एक सामूहिक अभिव्यक्ति है जो विभिन्न व्यक्तियों को एक सूत्र में बाँधता है। राष्ट्र व्यक्ति का सर्वोपरि सम्बन्ध का कर्तव्य बन जाता है तथा वैयक्तिक रूप राष्ट्रीय समूह में परिवर्तित हो जाता है।
वस्तुतः युद्ध को जन्म देने के कारणों में, 'राष्ट्रीयता' एक प्रभावी तत्व हैं। जो अन्य कारणों की अपेक्षा रक्त पात के लिए अधिक उत्तरदायी है। जाति, भाषा, धर्म व वंश के आधार पर गठित समूहों की सीमा व राजनीतिक मांगों द्वारा ही राष्ट्रीयता व युद्ध में सम्बन्ध स्थापित होता है।
आधुनिक युद्ध में राष्ट्रीय उग्रवाद के दो प्रमुख रूप मुख्यतः प्रभावी होते हैं- पृथकतावादी व क्षेत्र विस्तारवादी। पृथकतावादी रूप में एक राष्ट्रीय समूह वर्तमान राज्य से पृथक होकर एक नए समूह की रचना का प्रयास करता है, जबकि क्षेत्र विस्तारवादी रूप में एक वर्तमान राज्य दूसरे राज्य की भूमि व जनसंख्या का दावा करता है।
इसी प्रकार अलगाववाद भी युद्ध का कारण हैं, जिसमें अनेक राज्यों में भाषा व नस्लों के आधार पर भी पृथक राज्यों की माँग की जाती है। संघीय राज्यों में, जहाँ परिस्थितिवश अथवा इच्छा द्वारा विभिन्न जन-समूह अपने हितों की रक्षा के लिए सक्रिय हैं, वहाँ विवाद खड़े हो जाते हैं तथा पृथकतावादी आन्दोलनों और युद्धों का जन्म होता है।
क्षेत्र विस्तारवाद का अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अधिक महत्व रहा है। वस्तुतः विश्व की समस्त जनसंख्या व धरातल किसी न किसी राष्ट्रीय राज्य की सीमा के अन्तर्गत होते हैं। तथापि सीमा निर्धारण में बहुत से स्थानों पर एक जनसमूह दो राज्यों की सीमाओं में आ जाता है। इस समूह के पुनः एकीकरण के प्रयासों के परिणामस्वरूप भूमि- अपहरणवाद का संघर्ष आरम्भ हो जाता है।
3. अन्तर्राष्ट्रीय सामाजिक विकासवाद (International Social Darwinism) - अन्तर्राष्ट्रीय सामाजिक विकासवाद का दर्शन युद्ध का तीसरा कारण है। विकास के साथ ही प्रतिस्पर्धा में सबल समाज, आगे बढ़ जाते हैं। सभ्यता के विकास के लिए सामाजिक विकासवादी युद्ध को आवश्यक मानते हैं। युद्ध के परिणामस्वरूप सत्ता का नियन्त्रण निर्बल हाथों से निकलकर सबल हाथों में आ जाता है।
4. परस्पर सन्देहबोध (Mutual Misperception) - विवादों के इतिहास में परस्पर सन्देह का सिद्धान्त भी युद्ध का एक कारण माना जाता है। राष्ट्र एक दूसरे को अपनी विचारधाराओं के अनुसार देखते हैं जैसा कि शीत युद्ध में प्रायः होता है। इस प्रकार विचारधारायें पारस्परिक संदेहों को जन्म देती है। एक राष्ट्र द्वारा अन्य राष्ट्र के विषय में जो मान्यताएं बनती है, वे वास्तविकता से परे होती है तथा अनुभव के परिप्रेक्ष्य में भी नहीं बदलती संवादहीनता, परस्पर संदेह और सुरक्षा का भय अन्तर्राष्ट्रीय तनावों को बढ़ाकर युद्ध को प्रोत्साहित करते हैं।
5. अनियन्त्रित शस्त्र प्रतिस्पर्धा (Uncontrolled Arms Races) अनियन्त्रित शस्त्रास्त्रों की प्रतिस्पर्धा का दर्शन भी युद्ध का कारण है। विरोधी राष्ट्र पारस्परिक भय के कारण एक-दूसरे से डरते हैं तथा एक के द्वारा की गई सुरक्षात्मक कार्यवाही को आक्रामक विचारों से प्रभावित मानते हैं और उसके प्रत्युत्तर में शस्त्रों से सुसज्जित होने का प्रयास करते हैं। शस्त्रों तथा सैनिक गठबन्धों के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा होती है एवं प्रत्येक पक्ष में श्रेष्ठता के लिए प्रयत्नशील रहता है। शस्त्रास्त्रों की दौड़ सक्रिय विवादों को जन्म देती है और पराकाष्ठा पर पहुँच कर युद्ध में बदल जाती है। उदारवादी विचारकों के अनुसार, अत्याधिक सैन्य तैयारी तथा शस्त्रास्त्रों का संचय युद्ध के कारण है।
6. युद्ध के आन्तरिक एकीकरण की अभिवृद्धि (The Promotion of Internal Integration through External Conflict) इस सिद्धान्त के अनुसार युद्ध एकीकरण को बढ़ाने में सहायक होते हैं। बाह्य संघर्ष के माध्यम से आन्तरिक एकीकरण की दिशा में किए गए प्रयास कालान्तर में युद्ध को जन्म देते हैं- शत्रु का सामना करने के लिए एकीकरण की प्रक्रिया युद्ध को बढ़ावा देती है।
7. स्वतः प्रेरित आक्रमण, हिंसा के प्रति सांस्कृतिक रूझान और युद्ध-शान्ति के चक्र (Instinctual Aggression, Cultural Proparsitives to Violence and war- peace Cycles)- आक्रमण का भावना का सिद्धान्त युद्ध के सर्वाधिक लोकप्रिय कारणों में से हैं। मानव का स्वभाव युद्ध प्रिय होता है। हिंसा में उसे आनन्द की अनुभूति होती है। कई विचारक, आक्रमण को भावना से सम्बन्धित करते हैं। राजनीतिक विवादों को छेड़ने से आक्रामक भावना पनपती है, जिससे युद्ध का जन्म होता है।
8. आर्थिक और वैज्ञानिक उत्तेजनाएँ (Economic and Scientific Stimulation) - युद्ध का सम्बन्ध आर्थिक कार्यों से है। युद्ध ने वैज्ञानिक खोज, तकनीकी सुधार व औद्योगिक विकास को गति प्रदान की है। कुछ विचारक यह मानते हैं कि सैन्य व्यय उचित है और उसमें कटौती करने से अनेक उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यदि यह मान लिया जाये तब भी यह निष्कर्ष निकालना गलत हैं कि युद्ध व्यापार के लिए उचित हैं। बड़े युद्धों के आर्थिक दुष्परिणाम होते हैं। चाहे युद्ध लाभकारी भले ही न हो, परन्तु रक्षा पर व्यय पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता है। आर्थिक लाभ की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय तनाव बनाए रखना लाभकर होता है।
9. सैनिक औद्योगिक समूह (The Military Industrial Camplexes ) - सैनिक औद्योगिक समूह भी युद्ध का कारण बन जाते हैं। शक्तिशाली आन्तरिक समूह, जिनके हित सैन्य व्यय में निहित होते हैं, राष्ट्रों में तनाव व विरोध बनाए रखने में अपने प्रभाव का उपयोग करते हैं। ये समूह राजनीतिक व्यवस्था में अपने प्रभाव का उपयोग करते हैं। ये समूह राजनीतिक व्यवस्था में अपना प्रभाव बढ़ा देते हैं तथा रक्षा व्यय की राशि में कटौती नहीं होने देते एवं राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के निर्माण को प्रभावित करते हैं।
10. सापेक्ष हानि (Relative Deprivation ) सापेक्षिक हानि का सिद्धान्त आन्तरिक युद्धों के कारणों का विश्लेषण करने में सहायक होता है। जब व्यक्ति यह अनुभव करते हैं कि उन्हें वर्तमान व्यवस्था में उचित लाभ नहीं मिल रहा है, तो राजनीतिक विद्रोहों तथा विप्लवों को प्रोत्साहन देते हं तथा अधिक लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से राजनीतिक हिंसा व आक्रामक कार्यवाही को बढ़ावा देते हैं।
11. जनसंख्या नियन्त्रण (Population Limitation) - जनसंख्या में वृद्धि युद्धों को जन्म देती है। खाद्यान्नों की तुलना में जनसंख्या में वृद्धि अधिक होती है। खाद्यान्नों की मात्रा के अनुसार जनसंख्या को निर्धारित किया जाना चाहिए और युद्ध द्वारा यह नियन्त्रण संभव है, परन्तु यह सिद्धान्त नये तथ्यों पर सही नहीं है। युद्धों में अधिक संख्या में व्यक्तियों की ही मृत्यु नहीं होती। केवल अपवादस्वरूप कुछ युद्धों में आर्थिक संख्या में जीवन का विनाश हुआ, परन्तु वहाँ भी अधिकाधिक 5 प्रतिशत व्यक्तियों की मृत्यु ही हुई। हरित क्रांति द्वारा खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि सम्भव है तथा जनसंख्या के नियन्त्रण के लिए युद्ध को तर्क संगत नहीं सिद्ध किया जा सकता है।
12. संघर्ष उपशमन (Conflict Resolution) - युद्ध विवादों के निदान में सहायक होते हैं। सामान्यतया दो से अधिक समूह किन्हीं साधनों तथा स्थितियों पर अपना-अपना दावा करते हैं तथा युद्ध नीतियाँ उत्पादन, व्यय और लाभ की दृष्टि से निर्मित की जाती है परन्तु यह विवादास्पद प्रश्न है। विवादों का निदान पंच फसले चुनाव, अदालतों तथा प्रशासकीय निर्णयों द्वारा भी संभव है। वार्ता
मध्यस्थता तथा समझौतों के द्वारा भी विवादों को हल किया जा सकता है। फिर भौ अन्तत: युद्ध द्वारा विवादों के हल के प्रयास किये गये।
उपरोक्त 12 कारणों के अतिरिक्त षड्यंत्रों, निजी उद्देश्यों तथा प्रभावशाली व्यक्तियों के प्रभाव के कारण भी युद्ध लड़े जाते हैं।
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- प्रश्न- स्त्रातेजी अथवा कूटयोजना (Strategy) का क्या अभिप्राय है? इसकी विभिन्न परिभाषाओं की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- स्त्रातेजी का उद्देश्य क्या है? स्त्रातेजी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये क्या उपाय किये जाते हैं?
- प्रश्न- स्त्रातेजी के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महान स्त्रातेजी पर एक लेख लिखिये तथा स्त्रातेजी एवं महान स्त्रातेजी में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक भूगोल से आप क्या समझते हैं? सैन्य दृष्टि से इसका अध्ययन क्यों आवश्यक है?
- प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- स्त्रातेजी का अर्थ तथा परिभाषा लिखिये।
- प्रश्न- स्त्रातेजिक गतिविधियाँ तथा चालें किसे कहते हैं तथा उनमें क्या अन्तर है?
- प्रश्न- महान स्त्रातेजी (Great Strategy) क्या है?
- प्रश्न- पैरालिसिस स्त्रातेजी पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- युद्धों के विकास पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते है? युद्ध की विशेषताएँ बताते हुए इसकी सर्वव्यापकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- युद्ध की चक्रक प्रक्रिया (Cycle of war) का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- युद्ध और शान्ति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- वैदिककालीन सैन्य पद्धति एवं युद्धकला का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजदूतों के कर्तव्यों का विशेष उल्लेख करते हुए प्राचीन भारत की युद्ध कूटनीति पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- समय और कालानुकूल कुरुक्षेत्र के युद्ध की अपेक्षा रामायण का युद्ध तुलनात्मक रूप से सीमित व स्थानीय था। कुरुक्षेत्र के युद्ध को तुलनात्मक रूप में सम्पूर्ण और 'असीमित' रूप देने में राजनैतिक तथा सैन्य धारणाओं ने क्या सहयोग दिया? समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक कालीन "दस राजाओं के युद्ध" का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्धों के वास्तविक कारण क्या होते थे?
- प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्ध के कौन-कौन से नियम होते थे?
- प्रश्न- महाकाव्यकालीन युद्ध के प्रकार एवं नियमों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक काल के रण वाद्य यन्त्रों के बारे में लिखिये।
- प्रश्न- पौराणिक काल में युद्धों के क्या कारण थे?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय सेना के युद्ध के नियमों को बताइये।
- प्रश्न- युद्ध के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- युद्धों के सिद्धान्तों में प्रशासन (Administration) का क्या महत्व है?
- प्रश्न- नीति के साधन के रूप में युद्ध के प्रयोग पर सविस्तार एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में युद्ध की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अतीत को युद्धों की तुलना में वर्तमान समय में युद्धों की संख्या में कमी का क्या कारण है? प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध की प्रकृति और विशेषताओं की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला स्त्रातेजी पर माओत्से तुंग के सिद्धान्तों का उल्लेख करते हुए गुरिल्ला युद्ध के चरणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चे ग्वेरा के गुरिल्ला युद्ध सम्बन्धी विभिन्न विचारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए तथा गुरिल्ला विरोधी अभियान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रति विप्लवकारी (Counter Insurgency) युद्ध के तत्वों तथा अवस्थाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चीन की कृषक क्रान्ति में छापामार युद्धकला की भूमिका पर अपने विचार लिखिए।
- प्रश्न- चे ग्वेरा ने किन तत्वों को छापामार सैन्य संक्रिया हेतु परिहार्य माना है?
- प्रश्न- छापामार युद्ध कर्म (Gurilla Warfare) में चे ग्वेरा के योगदान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध में प्रचार की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध कर्म की स्त्रातेजी और सामरिकी पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- छापामार युद्ध को परिभाषित करते हुए इसके सम्बन्ध में चे ग्वेरा की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लेनिन की गुरिल्ला युद्ध-नीति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध क्या है?
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध क्या है? 'आधुनिक युद्ध अन्ततः मनोवैज्ञानिक है' विस्तृत रूप से विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सैन्य मनोविज्ञान के बढ़ते प्रभाव क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध के कौन-कौन से हथियार हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रचार को परिभाषित करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अफवाह (Rumor) क्या है? युद्ध में इसके महत्व का उल्लेख करते हुए अफवाहों को नियंत्रित करने की विधियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आतंक (Panic) से आप क्या समझते हैं? आंतंक पर नियंत्रण पाने की विधि का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भय (Fear) क्या है? युद्ध के दौरान भय पर नियंत्रण रखने वाले विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बुद्धि परिवर्तन (Brain Washing) क्या हैं? बुद्धि परिवर्तन की तकनीकों तथा इससे बचने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- युद्धों के प्रकारों का उल्लेख करते हुए विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक युद्ध का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। युद्ध के सामाजिक, राजनैतिक, सैन्य एवं मनोवैज्ञानिक कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कूटनीतिक प्रचार (Strategic Propaganda ) एवं समस्तान्त्रिक प्रचार (Tactical Propaganda ) में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- प्रचार एवं अफवाह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध की उपयोगिता बताइये।
- प्रश्न- युद्ध एक आर्थिक समस्या के रूप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक युद्ध की परिभाषा दीजिए। आर्थिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध राजनीतिक सैनिक कारणों की अपेक्षा सामाजिक आर्थिक कारकों के कारण अधिक होते हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक क्षमता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध में आर्थिक व्यवस्था का महत्व बताइये।
- प्रश्न- युद्ध को प्रभावित करने वाले तत्वों में से प्राकृतिक संसाधन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक आर्थिक क्षमताएँ व दुर्बलताएँ बताइये।
- प्रश्न- युद्धोपरान्त उत्पन्न विभिन्न आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण कीजिये
- प्रश्न- युद्ध की आर्थिक समस्यायें लिखिए?
- प्रश्न- युद्ध के आर्थिक साधन क्या हैं?
- प्रश्न- परमाणु भयादोहन के हेनरी किसिंजर के विचारों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- आणविक भयादोहन पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- परमाणु भयादोहन और रक्षा के सन्दर्भ में निम्नलिखित सैन्य विचारकों के विचार लिखिए। (i) आन्द्रे ब्यूफ्रे (Andre Beaufre), (ii) वाई. हरकाबी (Y. Harkabi), (iii) लिडिल हार्ट (Liddle Hart), (iv) हेनरी किसिंजर (Henery Kissinger) |
- प्रश्न- परमाणु युग में सशस्त्र सेनाओं की भूमिका की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- मैक्यावली से परमाणु युग तक के विचारों एवं प्रचलनों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आणविक युग में युद्ध की आधुनिक स्रातेजी को कैसे प्रयोग किया जायेगा?
- प्रश्न- 123 समझौते पर विस्तार से लिखिए।
- प्रश्न- परमाणविक युद्ध की प्रकृति एवं विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आणविक शीत से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- नाभिकीय तनाव को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- परमाणु बम का प्रथम बार प्रयोग कब और कहाँ हुआ?
- प्रश्न- हेनरी किसिंजर के नाभिकीय सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (C.T.B.T) से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- हरकावी के नाभिकीय भय निवारण- सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आणविक युग पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हर्काबी के नाभिकीय युद्ध संक्रिया सम्बन्धी विचारों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रासायनिक तथा जैविक अस्त्र क्या हैं? इनके प्रयोग से होने वाले प्रभावों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रासायनिक युद्ध किसे कहते हैं? विस्तार से उदाहरण सहित समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रकार के रासायनिक हथियारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जैविक युद्ध पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध कर्म से बचाव हेतु तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- रासायनिक एवं जीवाणु युद्ध को समझाइये |
- प्रश्न- जनसंहारक अस्त्र (WMD) क्या है?
- प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध के प्रमुख आयामों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- विश्व में स्थापित विभिन्न उद्योगों में रासायनिक गैसों के उपयोग एवं दुष्प्रभाव परप्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमुख रासायनिक हथियारों के नाम एवं प्रभाव लिखिए।