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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2636
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

प्रश्न- वैदिक साहित्य से आपका क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख अंगों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।

अथवा
साहित्यिक स्त्रोत के रूप में वैदिक साहित्य का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर -

वैदिक कालीन इतिहास के विषय में जानकारी का मुख्य स्रोत वैदिक साहित्य है। वैदिक साहित्य को विश्व का सबसे पुराना साहित्य माना जाता है। वैदिक साहित्य के अन्तर्गत वैदिक संहिता (वेद) ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक तथा उपनिषद् आते हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-

वैदिक संहिता

आर्य जाति का सबसे प्राचीन साहित्य वेद है। वेद का अर्थ है, ज्ञान। वेद मुख्यतया पद में हैं, यद्यपि उनमें गद्य भाग भी विद्यमान है। वैदिक पद्य को ऋक् या ऋचा कहते हैं, वैदिक पद्य को यजुष कहा जाता है, और वेदों में जो गीतात्मक पद्य हैं, उन्हें साम कहते हैं। ऋचाओं व सामों के एक समूह का नाम सूक्त होता है, जिसका अर्थ है उत्कृष्ट उक्ति या सुभाषित। वेद में इस प्रकार के हजारों सूक्त विद्यमान हैं। प्राचीन समय में वेदों को 'त्रयी' भी कहते थे। ऋचा, यजुष और साम- इन तीन प्रकार के पदों में होने के कारण ही वेद की 'त्रयी' संज्ञा भी थी।

पर वैदिक मन्त्रों का संकलन जिस रूप में आजकल उपलब्ध होता है, उसे 'संहिता' कहते हैं। विविध ऋषि वंशों में जो मन्त्र श्रुति द्वारा चले आते थे, बाद में उनका संकलन व संग्रह किया गया। पहले वेद-मन्त्रों को लेखबद्ध करने की परिपाटी शायद नहीं थी। गुरु-शिष्य परम्परा व पिता-पुत्र परम्परा द्वारा ये मन्त्र ऋषि वंशों में स्थिर रहते थे, और उन्हें श्रुति द्वारा शिष्य गुरु से या पुत्र पिता से जानता था। इसी कारण उन्हें श्रुति भी कहा जाता था। विविध ऋषि वंशों में जो विविध सूक्त श्रुति द्वारा चले आते थे, धीरे-धीरे बाद में उनको संकलित किया जाने लगा। इस कार्य का प्रधान श्रेय मुनि वेद व्यास को है। यह महाभारत युद्ध का समकालीन था, और असाधारण रूप से प्रतिभाशाली विद्वान् था। इसका वैयक्तिक नाम कृष्ण द्वैपायन था, पर इसे वेद व्यास इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसने वेदों का संकलन व वर्गीकरण किया था। वेदव्यास ने वैदिक सूक्तों का संहिता रूप में संग्रह किया। उसके द्वारा संकलित वैदिक संहिताएँ चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। चार वैदिक संहिताओं के अतिरिक्त कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने सूत, चारण व मागधों में चली आती हुई राजवंशों की अनुश्रुति का भी संग्रह किया। उनके ये संग्रह 'पुराण' कहे जाते हैं। वैदिक संहिताओं में जिस प्रकार ऋषिवंशों की 'श्रुति' संग्रहीत है, वैसे ही पुराणों में आर्य राजवंशों के साथ सम्बन्ध रखने वाली 'अनुश्रुति' संकलित है। वेदव्यास को अठारहों पुराणों का 'कर्त्ता' कहा गया है, पर वस्तुतः वे पुराणों के 'कर्त्ता' न होकर 'संकलियता' थे। राजवंशों के प्रतापी राजाओं के वीर कृत्यों का आख्यान उस युग के सूतों व चारणों द्वारा किया जाता था। इन सूक्त वंशों में राजवंशों के आख्यान व गाथाएँ वैसे ही पिता-पुत्र परम्परा से चली आती थी, जैसे कि ऋषि वंशों में सूक्तों की श्रुति, वेदव्यास ने इन सबका संग्रह किया।

कृष्ण द्वैयापन वेदव्यास को अपने समय में विद्यमान प्राचीन 'श्रुति' व 'अनुश्रुति का संकलन करने की प्रवृत्ति शायद इस कारण हुई थी, क्योंकि इस समय तक आर्यों में लिपि व लेखन प्रणाली का प्रारम्भ हो चुका था। जो ज्ञान पहले श्रुति द्वारा चला आता था, उसे अब लेखबद्ध किया जा सकता था और उसका उपयोग केवल विशिष्ट ऋषि वंशों व सूतवंशों के लोग ही नहीं, अपितु अन्य लोग भी कर सकते थे।

चार वेद

चारों वेदों में सबसे प्राचीन ऋग्वेद है। इसमें मूलतः 1017 सूक्त हैं। इसके अतिरिक्त 11 बालखिल्य सूक्त हैं जो परिशिष्ट के रूप में बाद में जोड़े गए। इस प्रकार मूल सूक्त 1017 ही हैं, जो दस मण्डलों में विभक्त हैं। वेद के प्रत्येक सूक्त व ऋचा के साथ उसके 'ऋषि' और 'देवता' का नाम दिया गया है। ऋषि का अर्थ है, मन्त्रद्रष्टा या मन्त्र का दर्शन करने वाला। जो लोग वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानते उनके अनुसार वेदों का निर्माण तो ईश्वर द्वारा हुआ था, पर इस वैदिक ज्ञान को अभिव्यक्त करने वाले ये ऋषि ही थे। आधुनिक विद्वान् वैदिक ऋषियों का अभिप्राय यह समझते हैं कि ये ऋषि मन्त्रों के निर्माता थे। वैदिक देवता का अभिप्राय उस देवता से है, जिसकी उस मन्त्र में स्तुति की गई है, या जिसके सम्बन्ध का मन्त्र में प्रतिपादन किया गया है।

ऋग्वेद के ऋषियों में सर्वप्रथम गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज और वशिष्ठ हैं। इन छः ऋषियों व इनके वंशजों ने ऋग्वेद के दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें, छठें और सातवें मण्डलों का दर्शन व निर्माण किया था। आठवें मण्डल के ऋषि कण्व और आंगिरस वंश के हैं। प्रथम मण्डल के पचास सूक्त भी कण्व वंश के ऋषियों द्वारा निर्मित हुए। अन्य मण्डलों व प्रथम मण्डल के अन्य सूक्तों का निर्माण अन्य विविध ऋषियों द्वारा हुआ, जिन सबके नाम इन सूक्तों के साथ में मिलते हैं। इन ऋषियों में वैवस्वत मनु, शिवि और औशीनर, प्रतर्दन, मधुछन्दा और देवापि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ऋग्वेद के इन ऋषियों में कतिपय स्त्रियाँ भी हैं, जिनमें लोपामुद्रा प्रमुख हैं। लोपामुद्रा राजकुल में उत्पन्न हुई थी। वह विदर्भ राज की कन्या और अगस्त्य ऋषि की पत्नी थी।

यजुर्वेद के दो प्रधान रूप इस समय मिलते हैं, शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद शुक्ल यजुर्वेद को वाजसनेयी संहिता भी कहते हैं, जिसकी दो शाखाएँ उपलब्ध हैं- कण्व और माध्यन्दिनीय। कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएँ प्राप्त होती हैं, काष्क संहिता, कपिष्ठल संहिता, मैत्रेयी संहिता और तैत्तिरीय संहिता। विविध 2 ऋषि वंशों व सम्प्रदायों में श्रुति द्वारा चले आने के कारण मूल वेदमन्त्रों में पाठ भेद का हो जाना असम्भव नहीं था। सम्भवतः इसी कारण यजुर्वेद की ये विविध शाखाएँ बनीं। इन शाखाओं में अनेक स्थानों पर मन्त्रों में पाठभेद पाया जाता है। इनमें यजुर्वेद की वासनेयी संहिता सबसे महत्त्वपूर्ण है, और बहुत से विद्वान उसे ही असली यजुर्वेद मानते हैं। इनमें उन मन्त्रों का पृथक्-पृथक् रूप से संग्रह किया गया है, जो विविध याज्ञिक अनुष्ठानों में प्रयुक्त किए जाते थे।

सामवेद की तीन शाखाएँ इस समय मिलती हैं, कौथुम शाखा, राणायनीय शाखा और जैमिनीय शाखा। इनका आधार भी पाठभेद है। सम्भवतः, पहले सामवेद की अन्य भी बहुत-सी शाखाएँ विद्यमान थी। पुराणों में तो सामवेद की सहस्त्र शाखाओं का उल्लेख है। वर्तमान समय में उपलब्ध शाखाओं में कौथुम शाखा अधिक प्रचलित व प्रामाणिक है। सामवेद के दो भाग हैं, पूर्वाचिक और उत्तरार्चिक दोनों भागों को मिलाकर मन्त्र- संख्या 1810 है। इसमें अनेक मन्त्र ऐसे भी हैं, जो एक से अधिक बार आए हैं। यदि इन्हें अलग कर दिया जाए, तो सामवेद के मन्त्रों की कुल संख्या 1549 रह जाती है। इनमें से भी 1474 मन्त्र ऐसे हैं, जो ऋग्वेद में भी पाए जाते हैं। इस प्रकार सामवेद के अपने मन्त्रों की संख्या केवल 75 रह जाती है। सम्भवतः सामवेद में ऐसी ऋचाओं का पृथक रूप से संग्रह कर दिया गया है, जिन्हें गीत के रूप में गाया जा सकता है। साम रूप में ऋचाएँ वैदिक ऋषियों द्वारा संगीत के लिए भी प्रयुक्त होती थीं।

अथर्ववेद की दो शाखाएँ इस समय मिलती हैं शौनक और पिप्पलाद। इनमें शौनक शाखा अधिक प्रसिद्ध है, और इसे ही प्रामाणिक रूप से स्वीकार किया जाता है। अथर्ववेद में कुल मिलाकर 20 काण्ड और 732 सूक्त हैं।

ब्राह्मण ग्रन्थ

वैदिक साहित्य में वेदों के बाद ब्राह्मण ग्रन्थ आते हैं। इन ग्रन्थों की रचना वैदिक सूक्तों की सहजता एवं व्याख्या के लिए की गई। इन ब्राह्मण ग्रन्थों में उन अनुष्ठानों का विस्तृत वर्णन है, जिसका उल्लेख वैदिक मन्त्रों में हुआ है। इसके अतिरिक्त इनमें वेदमन्त्रों के अभिप्राय व विनियोग की विधि का भी वर्णन है। प्रत्येक ब्राह्मण-ग्रन्थ का किसी वेद के साथ सम्बन्ध है, और उसे उसी वेद का ब्राह्मण माना जाता है। यहाँ यह आवश्यक है कि हम प्रत्येक वेद के साथ सम्बन्ध रखने वाले ब्राह्मण-ग्रन्थों का संक्षेप के साथ उल्लेख करें, क्योंकि ब्राह्मण ग्रन्थों का परिचय दिये बिना वैदिक साहित्य का वर्णन पूरा नहीं हो सकता।

ऋग्वेद का प्रधान ब्राह्मण-ग्रन्थ ऐतरेय है। इसमें कुल मिलाकर चालीस अध्याय हैं। अनुश्रुति के अनुसार ऐतरेय ब्राह्मण का रचयिता महीदास ऐतरेय था। पर सम्भवतः महीदास इस ब्राह्मण ग्रन्थ का रचयिता न होकर संकलनकर्त्ता मात्र था, क्योंकि ऋग्वेद के समान इस ब्राह्मण का निर्माण भी एक सुदीर्घ युग में याज्ञिक अनुष्ठानों के विकास के साथ-साथ हुआ था। ऋग्वेद का दूसरा ब्राह्मण ग्रन्थ कौशतकी या सांख्यायन ब्राह्मण है। सम्भवतः, यह ब्राह्मण किसी एक व्यक्ति की ही रचना है।

कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण तैत्तिरीय है। शुक्ल और कृष्ण यजुर्वेद में मुख्य भेद यह है कि, जहाँ शुक्ल यजुर्वेद में केवल मन्त्र भाग हैं, वहाँ कृष्ण यजुर्वेद में ब्राह्मण-भाग भी अन्तर्गत है। उनमें मन्त्रों के साथ-साथ विधि-विधान या याज्ञिक अनुष्ठान के साथ सम्बन्ध रखने वाले ब्राह्मण भाग को भी दे दिया है अतः तैत्तिरीय- ब्राह्मण रचना की दृष्टि से कृष्ण यजुर्वेद से बहुत भिन्न नहीं है। शुक्ल यजुर्वेद का ब्राह्मण शतपथ है, जो अत्यन्त विशाल ग्रन्थ है। इसमें कुल मिलाकर सौ अध्याय हैं, जिन्हें चौदह काण्डों में विभक्त किया गया है। शतपथ ब्राह्मण में न केवल याज्ञिक अनुष्ठानों का बड़े विशद् रूप से वर्णन किया गया है, पर साथ ही इस बात पर भी विचार किया गया है कि इन विविध अनुष्ठानों का क्या प्रयोजन है, और इन्हें क्यों यज्ञ का अंग बनाया गया है। शतपथ ब्राह्मण का रचयिता याज्ञवल्क्य ऋषि को माना जाता है।

सामवेद के तीन ब्राह्मण हैं, ताण्ड्य महाब्राह्मण, षड्विंश ब्राह्मण और जैमिनीय ब्राह्मण। अनेक विद्वानों के अनुसार ये तीनों ब्राह्मण अन्य ब्राह्मण-ग्रन्थों की अपेक्षा अधिक प्राचीन हैं।

अथर्ववेद का ब्राह्मण गोपथ है। अनेक विद्वानों की सम्मति में यह बहुत प्राचीन नहीं है, और इसमें उस ढंग से याज्ञिक अनुष्ठानों का वर्णन नहीं है, जैसे कि अन्य ब्राह्मण ग्रन्थों में पाया जाता है।

आरण्यक तथा उपनिषद् 

इसमें सन्देह नहीं कि भारत के प्राचीन आर्यों के धर्म यज्ञों की प्रधानता थी। यज्ञ के विधि-विधानों व अनुष्ठानों को वे बहुत महत्त्व देते थे। इसीलिए याज्ञिक अनुष्ठानों के प्रतिपादन व उनमें वैदिक मन्त्रों के विनियोग को प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने ब्राह्मण-ग्रन्थों की रचना की थी। पर साथ ही, वैदिक ऋषि आध्यात्मिक, दार्शनिक व पारलौकिक विषयों का भी चिन्तन किया करते थे। आत्मा क्या है, सृष्टि की उत्पत्ति किस प्रकार हुई, सृष्टि किन तत्त्वों से बनी है, इस सृष्टि का कर्त्ता व नियामक कौन है, जड़ प्रकृति से भिन्न जो चेतन सत्ता है उसका क्या स्वरूप इस प्रकार के प्रश्नों पर भी वे विचार किया करते थे। इन गूढ़ विषयों का चिन्तन करने वाले ऋषि व विचारक प्रायः जंगलों या अरण्यों में निवास करते थे, जहाँ वे आश्रम बनाकर रहते थे। यहीं उस साहित्य की सृष्टि हुई, जिसे आरण्यक तथा उपनिषद् कहते हैं। अनेक आरण्यक ब्राह्मण-ग्रन्थों के ही भाग हैं। इससे सूचित होता है कि याज्ञिक अनुष्ठानों में लगे हुए याज्ञिक व ऋषि लोग यज्ञों को ही अपना ध्येय नहीं समझते थे, अपितु आध्यात्मिक चिन्तन में भी वे तत्पर रहते थे। याज्ञवल्क्य आदि अनेक ऋषि जहाँ याज्ञिक अनुष्ठानों के प्रतिपादक थे, वहाँ साथ ही अध्यात्म-चिन्तन करने वाले भी थे। इन ऋषियों ने अरण्य में स्थापित आश्रमों में जिन आरण्यकों तथा उपनिषदों का विकास किया, उनकी संख्या दो सौ से भी ऊपर है। इनमें से कतिपय प्रमुख उपनिषदों का यहाँ उल्लेख करना आवश्यक है, क्योंकि ये भी वैदिक साहित्य के महत्त्वपूर्ण अंग हैं।

(क) ऐतरेय उपनिषद् - यह ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण का एक भाग है। ऋग्वेद के दूसरे ब्राह्मण ग्रन्थ कौशातकी ब्राह्मण के अन्त में भी एक आरण्यक भाग है, जिसे कौशीतकी आरण्यक व कौशीतकी उपनिषद् कहते हैं।

(ख) यजुर्वेद का अन्तिम अध्याय ईशोपनिषद् - के रूप में हैं। शुक्ल यजुर्वेद के ब्राह्मण-ग्रन्थ शतपथ ब्राह्मण का अन्तिम भाग आरण्यक रूप में है, जिसे बृहदारण्य कोपनिषद् कहते हैं। कृष्ण यजुर्वेद के ब्राह्मण- ग्रन्थों के अन्तर्गत कठ उपनिषद्, श्वेताश्वतरोपनिषद्, तैत्तरीय उपनिषद् और मैत्रायणीय उपनिषद् हैं।

(ग) सामवेद के ब्राह्मण-ग्रन्थों के साथ सम्बन्ध रखने वाली उपनिषदे केन और छांदोग्य हैं। (

घ) अथर्ववेद के साथ मुण्डक उपनिषद्, प्रश्न उपनिषद् और माण्डूक्य उपनिषद् का सम्बन्ध है।

अरण्यक तथा उपनिषद् दोनों की रचनाएँ गद्य एवं पद्य से हुई। ये ग्रन्थ भाषा एवं छन्द की दृष्टि से वैदिक संहिताओं से भिन्न है। इनकी रचना वैदिक संहिता के बहुत बाद में हुआ।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों / लेखकों के विवरण की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  4. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?
  6. प्रश्न- भास की कृति "स्वप्नवासवदत्ता" पर एक लेख लिखिए।
  7. प्रश्न- 'फाह्यान पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  8. प्रश्न- दारा प्रथम तथा उसके तीन महत्वपूर्ण अभिलेख के विषय में बताइए।
  9. प्रश्न- आपके विषय का पूरा नाम क्या है? आपके इस प्रश्नपत्र का क्या नाम है?
  10. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  12. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  13. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए
  14. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में आप क्या समझते हैं?
  15. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के सामाजिक व्यवस्था व आर्थिक जीवन का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सिन्धु नदी घाटी के समाज के धार्मिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था एवं कला का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  23. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  25. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  26. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  27. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता में शिवोपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- सैन्धव धर्म में स्वस्तिक पूजा के विषय में बताइये।
  30. प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?
  31. प्रश्न- विवाह संस्कार से सम्पादित कृतियों का वर्णन कीजिए तथा महत्व की व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- वैदिक काल के प्रमुख देवताओं का परिचय दीजिए।
  33. प्रश्न- ऋग्वेद में सोम देवता का महत्व बताइये।
  34. प्रश्न- वैदिक संस्कृति में इन्द्र के बारे में बताइये।
  35. प्रश्न- वेदों में संध्या एवं ऊषा के विषय में बताइये।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में जल की पूजा के विषय में बताइये।
  37. प्रश्न- वरुण देवता का महत्व बताइए।
  38. प्रश्न- वैदिक काल में यज्ञ का महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- पंच महायज्ञ' पर टिप्पणी लिखिए।
  40. प्रश्न- वैदिक देवता द्यौस और वरुण पर टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- वैदिक यज्ञों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- वैदिक देवता इन्द्र के विषय में लिखिए।
  43. प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
  44. प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  45. प्रश्न- वैदिक काल में प्रकृति पूजा पर एक टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- वैदिक संस्कृति की विशेषताएँ बताइये।
  47. प्रश्न- अश्वमेध पर एक टिप्पणी लिखिए।
  48. प्रश्न- आर्यों के आदिस्थान से सम्बन्धित विभिन्न मतों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में आर्यों के भौगोलिक ज्ञान का विवरण दीजिए।
  50. प्रश्न- आर्य कौन थे? उनके मूल निवास स्थान सम्बन्धी मतों की समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- वैदिक साहित्य से आपका क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख अंगों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- आर्य परम्पराओं एवं आर्यों के स्थानान्तरण को समझाइये।
  53. प्रश्न- वैदिक कालीन धार्मिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- ऋत की अवधारणा का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- वैदिक देवताओं पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- ऋग्वैदिक धर्म और देवताओं के विषय में लिखिए।
  57. प्रश्न- 'वेदांग' से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
  58. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन समाज में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  60. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में शासन प्रबन्ध का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के शासन प्रबन्ध की रूपरेखा पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- वैदिक कालीन आर्थिक जीवन का विवरण दीजिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य पर एक निबंध लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक कालीन लोगों के कृषि जीवन का विवरण दीजिए।
  65. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल के पशुपालन पर टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- वैदिक आर्यों के संगठित क्रियाकलापों की विवेचना कीजिए।
  68. प्रश्न- आर्य की अवधारणा बताइए।
  69. प्रश्न- आर्य कौन थे? वे कब और कहाँ से भारत आए?
  70. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में वेदों का महत्त्व बताइए।
  71. प्रश्न- यजुर्वेद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- ऋग्वेद पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- वैदिक साहित्य में अरण्यकों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- आर्य एवं डेन्यूब नदी पर टिप्पणी लिखिये।
  75. प्रश्न- क्या आर्य ध्रुवों के निवासी थे?
  76. प्रश्न- "आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया था।" विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- संहिता ग्रन्थ से आप क्या समझते हैं?
  78. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  79. प्रश्न- पणि से आपका क्या अभिप्राय है?
  80. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन उद्योग-धन्धों पर टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- क्या वैदिक काल में समुद्री व्यापार होता था?
  84. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  85. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में प्रचलित उद्योग-धन्धों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए?
  86. प्रश्न- शतमान पर एक टिप्पणी लिखिए।
  87. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- भारत में लोहे की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्थिक जीवन पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- वैदिककाल में लोहे के उपयोग की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- नौकायन पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- सिन्धु घाटी की सभ्यता के विशिष्ट तत्वों की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोग कौन थे? उनकी सभ्यता का संस्थापन एवं विनाश कैसे.हुआ?
  94. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की आर्थिक एवं धार्मिक दशा का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- वैदिक काल की आर्यों की सभ्यता के बारे में आप क्या जानते हैं?
  96. प्रश्न- वैदिक व सैंधव सभ्यता की समानताओं और असमानताओं का विश्लेषण कीजिए।
  97. प्रश्न- वैदिक कालीन सभा और समिति के विषय में आप क्या जानते हैं?
  98. प्रश्न- वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के कालक्रम का निर्धारण कीजिए।
  100. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार की विवेचना कीजिए।
  101. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता का बाह्य जगत के साथ संपर्कों की समीक्षा कीजिए।
  102. प्रश्न- हड़प्पा से प्राप्त पुरातत्वों का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- हड़प्पा कालीन सभ्यता में मूर्तिकला के विकास का वर्णन कीजिए।
  104. प्रश्न- संस्कृति एवं सभ्यता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  105. प्रश्न- प्राग्हड़प्पा और हड़प्पा काल का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- प्राचीन काल के सामाजिक संगठन को किस प्रकार निर्धारित किया गया व क्यों?
  107. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  109. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  110. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  112. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- वैष्णव धर्म के उद्गम के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  115. प्रश्न- पुरातत्व अध्ययन के स्रोतों को बताइए।
  116. प्रश्न- पुरातत्व साक्ष्य के विभिन्न स्रोतों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- पुरातत्वविद् की विशेषताओं से अवगत कराइये।
  118. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  119. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  120. प्रश्न- पुरातात्विक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के लाभों से अवगत कराइये।
  121. प्रश्न- पुरातत्व को जानने व खोजने में प्राचीन पुस्तकों के योगदान को बताइए।
  122. प्रश्न- विदेशी (लेखक) यात्रियों के द्वारा प्राप्त पुरातत्व के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  123. प्रश्न- पुरातत्व स्रोत में स्मारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  125. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  126. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  127. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- "सभ्यता का पालना" व "सभ्यता का उदय" से क्या तात्पर्य है?
  129. प्रश्न- विश्व में नदी घाटी सभ्यता के विकास पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- चीनी सभ्यता के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  131. प्रश्न- जियाहू एवं उबैद काल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- अकाडिनी साम्राज्य व नॉर्ट चिको सभ्यता के विषय में बताइए।
  133. प्रश्न- मिस्र और नील नदी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  134. प्रश्न- नदी घाटी सभ्यता के विकास को संक्षिप्त रूप से बताइए।
  135. प्रश्न- सभ्यता का प्रसार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  136. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार के विषय में बताइए।
  137. प्रश्न- मेसोपोटामिया की सभ्यता पर प्रकाश डालिए।
  138. प्रश्न- सुमेरिया की सभ्यता कहाँ विकसित हुई? इस सभ्यता की सामाजिक संरचना पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालिए।
  139. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता के भारतवर्ष से सम्पर्क की चर्चा कीजिए।
  140. प्रश्न- सुमेरियन समाज के आर्थिक जीवन के विषय में बताइये। यहाँ की कृषि, उद्योग-धन्धे, व्यापार एवं वाणिज्य की प्रगति का उल्लेख कीजिए।
  141. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  142. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की लिपि का विकासात्मक परिचय दीजिए।
  143. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  144. प्रश्न- प्राचीन सुमेरिया में राज्य की अर्थव्यवस्था पर किसका अधिकार था?
  145. प्रश्न- बेबीलोनिया की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता की सामाजिक.विशिष्टताओं का उल्लेख कीजिए।
  146. प्रश्न- बेबीलोनिया के लोगों की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  147. प्रश्न- बेबिलोनियन विधि संहिता की मुख्य धाराओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- बेबीलोनिया की स्थापत्य कला पर प्रकाश डालिए।
  149. प्रश्न- बेबिलोनियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  150. प्रश्न- असीरियन कौन थे? असीरिया की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख करते हुए बताइये कि यह समाज कितने वर्गों में विभक्त था?
  151. प्रश्न- असीरिया की धार्मिक मान्यताओं को स्पष्ट कीजिए। असीरिया के लोगों ने कला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में किस प्रकार प्रगति की? मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- प्रथम असीरियाई साम्राज्य की स्थापना कब और कैसे हुई?
  153. प्रश्न- "असीरिया की कला में धार्मिक कथावस्तु का अभाव है।' स्पष्ट कीजिए।
  154. प्रश्न- असीरियन सभ्यता के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  155. प्रश्न- प्राचीन मिस्र की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? मिस्र का इतिहास जानने के प्रमुख साधन बताइये।
  156. प्रश्न- प्राचीन मिस्र का समाज कितने वर्गों में विभक्त था? यहाँ की सामाजिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  157. प्रश्न- मिस्र के निवासियों का आर्थिक जीवन किस प्रकार का था? विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- मिस्रवासियों के धार्मिक जीवन का उल्लेख कीजिए।
  159. प्रश्न- मिस्र का समाज कितने भागों में विभक्त था? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- मिस्र की सभ्यता के पतन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  161. प्रश्न- चीन की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता के इतिहास के प्रमुख साधनों का उल्लेख करते हुए प्रमुख राजवंशों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  162. प्रश्न- प्राचीन चीन की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
  163. प्रश्न- चीनी सभ्यता के भौगोलिक विस्तार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  164. प्रश्न- चीन के फाचिया सम्प्रदाय के विषय में बताइये।
  165. प्रश्न- चिन राजवंश की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।

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