बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
स्वास्थ्य
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सन् 1948 में स्वास्थ्य की निम्नलिखित परिभाषा दी-
1. किसी व्यक्ति की मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से अच्छे होने की स्थिति को स्वास्थ्य कहते हैं।
2. दैहिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना ही स्वास्थ्य हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, स्वास्थ्य सिर्फ रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति ही नहीं बल्कि एक पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक खुशहाली की स्थिति है। स्वस्थ लोग रोजमर्रा की गतिविधियों से निपटने के लिए और किसी भी परिवेश के अनसार अपना अनुकूलन करने में सक्षम होते
शारीरिक स्वास्थ्य
शारीरिक स्वास्थ्य शरीर की स्थिति को दर्शाता है जिसमें इसकी संरचना, विकास, कार्यप्रणाली और रखरखाव शामिल होता है। यह एक व्यक्ति का सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए एक सामान्य स्थिति है। यह एक जीव के कार्यात्मक और चयापचय क्षमता का एक स्तर भी है। अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के निम्नलिखित कुछ तरीके हैं-
1. खड़ी आँत की नियमित गतिविधि व सन्तुलित शारीरिक गतिविधियाँ।
2. सन्तुलित आहार की आदतें, मीठी श्वास व गहरी नींद।
3. शरीर के सभी अंग सामान्य आकार के हो तथा उचित रूप से कार्य कर रहे हों।
4. पाचन शक्ति सामान्य एवं सक्षम हो। 5. साफ एवं कोमल स्वच्छ त्वचा हो।
6. आँख, नाक, कान, जिह्वा, आदि ज्ञानेन्द्रियाँ स्वस्थ हो।
मानसिक स्वास्थ्य
मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ हमारे भावनात्मक और आध्यात्मिक लचीलेपन से है जो हमें अपने जीवन में दर्द, निराशा और उदासी की स्थितियों में जीवित रहने के लिए सक्षम बनाती है। मानसिक स्वास्थ्य हमारी भावनाओं को व्यक्त करने और जीवन की ढेर सारी माँगों के प्रति अनुकूलन की क्षमता है इसे अच्छा बनाए रखने के कुछ निम्नलिखित तरीके हैं-
1. आत्म सन्तुष्टि (आत्म-भर्त्सना या आत्म- दया की स्थिति न हों)
2. प्रसन्नता, शांति व व्यवहार में प्रफुल्लता।
3. संतोषी जीवन की प्रवृत्ति वाला हो।
4. परोपकार एवं समाज सेवी की भावना वाला हो।
5. परिस्थितियों के साथ संघर्ष करने की सहनशक्ति वाला हो।
बौद्धिक स्वास्थ्य
यह किसी के भी जीवन को बढ़ाने के लिए कौशल और ज्ञान को विकसित करने के लिए संज्ञानात्मक क्षमता है। हमारी बौद्धिक क्षमता हमारी रचनात्मकता को प्रोत्साहित और हमारे निर्णय लेने की क्षमता में सुधार करने में मदद करता है। अच्छे बौद्धिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के निम्नलिखित तरीके हैं—
1. समायोजन करने वाली बुद्धि, आलोचना को स्वीकार कर सके व आसानी से व्यथित न हो।
2. दूसरों की भावात्मक आवश्यकताओं की समझ, सभी प्रकार के व्यवहारों में शिष्ट रहना व दूसरों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना, नए विचारों के लिए खुलापन, उच्च भावात्मक बुद्धि।
आध्यात्मिक स्वास्थ्य
हमारा अच्छा स्वास्थ्य आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ हुए बिना अधूरा है। जीवन के अर्थ और उद्देश्य की तलाश करना हमें आध्यात्मिक बनाता है। आध्यात्मिक स्वास्थ्य हमारे निजी मान्यताओं और मूल्यों को दर्शाता है अच्छे आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्राप्त करने का कोई निर्धारित तरीका नहीं है। यह हमारे अस्तित्व की समझ के बारे में अपने अन्दर गहराई से देखने का एक तरीका है।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
अर्थात् अठारह पुराणों में महर्षि व्यास ने दो बातें कही हैं परोपकार से पुण्य मिलता है और दूसरों को पीड़ा देने से पाप।
आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित तरीके हैं-
1. प्राणीमात्र के कल्याण की भावना हो।
2. तन, मन एवं धन की शुद्धता वाला हो।
3. परस्पर सहानुभूति वाला हो।
4. परोपकार एवं लोककल्याण की भावना वाला हो।
5. कथनी एवं करनी में अंतर न हो।
सामाजिक स्वास्थ्य
चूँकि हम सामाजिक जीव हैं अतः संतोषजनक रिश्ते का निर्माण करना और उसे बनाए रखना हमें स्वाभाविक रूप से आता है। सामाजिक रूप से सबके द्वारा स्वीकार किया जाना हमारे भावनात्मक खुशहाली के लिए अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। सामाजिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के निम्नलिखित तरीके हैं-
1. प्रदूषणमुक्त वातावरण हो।
2. सुलभ शौचालय हो।
3. शुद्ध पेयजल एवं पानी की टंकियों का प्रबन्ध हो।
4. मल-मूत्र एवं अपशिष्ट पदार्थों के निकासी की योजना हो।
5. वृक्षारोपण का अधिकाधिक कार्य हो।
6. सार्वजनिक स्थलों पर पूर्ण स्वच्छता हो।
स्वास्थ्य का आधुनिक दृष्टिकोण
स्वास्थ्य की देखभाल का आधुनिक दृष्टिकोण आयुर्वेद के समग्र दृष्टिकोण के विपरीत है; अलग-अलग नियमों पर आधारित है और पूरी तरह से विभाजित है इसमें मानव शरीर की तुलना एक ऐसी मशीन के रूप में की गई हैं जिसके अलग-अलग भागों का विश्लेषण किया जा सकता है। रोग को शरीर रूपी मशीन के किसी पुरजे में खराबी के तौर पर देखा जाता है। देह की विभिन्न प्रक्रियाओं को जैविकीय और आणविक स्तरों पर समझा जाता है और उपचार के लिए, देह और मानस को दो अलग-अलग सत्ता के रूप में देखा जाता है।
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