बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य
प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
मुक्तिबोध के कविता सशस्त्र जनक्रान्ति की पक्षधर प्रतीत होती है। क्या यह सच है? उदाहरण सहित अपना पक्ष प्रस्तुत कीजिए।
सम्बन्धित लघु प्रश्न
मुक्तिबोध फैंटेसी के कवि हैं। तर्क दीजिए।
उत्तर -
मुक्तिबोध के जीवनकाल में राजनीतिक स्वार्थ, दलबन्दी आतंक, अज्ञान व प्रभाववश उनका सही मूल्याँकन न हो सका। अपने जीवन में आलोचकों, प्रकाशकों, साहित्यकारों, संपादकों यहाँ तक कि पाठकों के द्वारा नितान्त उपेक्षित रहे। एक समय था कि जनवादी संघर्षशील यह कवि संघर्ष करते-करते अपरिचय की गलियों में खो गया किन्तु वह 'मौत' भी कितनी खूबसूरत थी जो शहादत के बाद आदमी को नयी पहचान दे गई। श्रद्धांजलि समारोहों स्मृति विशेषांक की बाँट सी आ गई। लोग यह मानने को विवश हो गये कि हिन्दी में प्रातिभा, संघर्षशील, एकनिष्ठ तपस्वी दो ही हुए निराला और मुक्तिबोध।
मुक्तिबोध मूलतः कवि हैं। तारसप्तक से प्रारम्भ होकर 'चाँद का मुँह टेढ़ा है' तक उनकी काव्य यात्रा अनवरत चलती रही है। जो भावनाएँ कविता में व्यक्त नहीं हो सकीं वे निबन्ध, आलोचना आदि गद्य विधाओं में व्यक्त हुई हैं। 'काठ का सपना', 'विपात्र', 'साहित्यिक की डायरी', 'कामायनी पुनर्विचार', नये साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र एवं 'नई कविता का आत्मसंघर्ष' आदि कृतियों में मुक्तिबोध की पहचान में आधार बनाना आवश्यक है। वस्तुतः मुक्तिबोध का पूरा काव्य, पूरा साहित्य अस्मिता की खोज में लीन दिखाई पड़ता है। मेरी ये कविताएँ पथ ढूंढ़ने वाले बेचैन मन की ही अभिव्यक्ति हैं। उनका सत्य और मूल्य उसी जीवन स्थिति में छिपा है -
तारसप्तक मुक्तिबोध का वक्तव्य
तारसप्तक की कविता से ही कवि आत्मसंशोधन, आत्म-परिष्कार रूपान्तरण काट-छाँट व संवारने के संकेत देता है -
खूब काट छाँट और गहरी छील छाल
रन्दों और बसूलों में मेरी देखभाल
मेरा अभिनव संशोधन अविरल
क्रमागत।
आत्म-परिष्कार से समाज परिष्करण के मध्य मुक्तिबोध की कविता विकसित होती रही है -
मुक्तिबोध के काव्य का अनुभूति वैशिष्ट्य
संघर्ष के कवि मुक्तिबोध का काव्य संघर्ष का काव्य है। यह कवि भीतरी और बाहरी दोनों स्तरों पर संघर्ष करता है। 'पिस गया वह भीतरी औ बाहरी दो कठिन पाटों बीच वह अपने आत्म संघर्ष से पाठक को परिचित कराते हुए लिखते हैं-
द्वन्द्व स्थिति में स्थापित यह / मेरा वजनदार लोहा / उन भयंकर अग्नि क्रियाओं में / तेज ढकेला जाकर। पिघलते हुए दमकते हुए / तेज पुंज गहन अनुभव का छोटा सा दोहा बनता है मैंने चोरी-चोरी भीतर का रेडियम संभाल रखा है।
जन के साथ गहरा जुड़ाव- मुक्तिबोध मार्क्सवादी चिन्तन से प्रभावित हिन्दी साहित्य की जनवादी परम्परा के सशक्त रचनाकार हैं। जन के साथ गहरी आत्मीयता उनके काव्य की प्रमुख विशेषता है। उनकी कविता आम आदमी के सत्य और यथार्थ से हमारा परिचय कराती है। उनका हित चिन्तन नगर एवं ग्रामवासी सभी मानवों के प्रति है जो यथार्थ की चक्की में पिस रहे हैं -
मेरे सभ्य नगरों और ग्रामों में
सभी मानव
सुखी सुन्दर व शोषण मुक्त
कब होंगे?
क्रान्ति के पक्षधर - मुक्तिबोध ध्वंसात्मक एवं म्रियमाण मूल्यों के प्रति क्रान्ति चेतना उत्पन्न करना कवि का कर्त्तव्य मानते हैं। क्रान्ति को परिभाषित करते हुए वे कहते हैं-
'बिखराकर नीले-नीले स्फुलिंग समूह। वह बनती है अकस्मात् / विराट मनुष्य रूप नहीं जान पाता कि छूकर मुझे मुझमें समा गई कि उसमें समा गया मैं / सुनहरी काँपती सी सिर्फ एक लहर रह जाती है कि जिसे क्रान्ति कहते हैं। कि कहते हैं जन क्रान्ति। यह क्रान्ति तभी सफल हो सकेगी जब जन जन का हृदय धधकने लगेगा। मेरे देश भारत में / पुरानी हाय में से / किस तरह से आग भभकेगी / उड़ेंगी किस तरह भक से / हमारे वक्ष पर लेटी हुई विकराल चट्टानें।
परिवेश को समग्रता के साथ शब्दबद्ध करने की क्षमता - मुक्तिबोध अपने परिवेश को समग्रता में व्यक्त करने वाले कलाकार हैं। 'इस नगरी कविता में इस भयानक सच को वाणी मिली है। इस नगरी में न सूर्य है न चाँद है। इसमें साजिश के कुहरे में डूबी ब्रह्मराक्षसों की छात्राएँ हैं। गान्धी जी की चप्पल पहने हुए फौजी बूटें गूंज रही हैं। किले कंगूरों पर स्वार्थों के लंगूर बैठे हैं। अच्छे-अच्छे लोग शैतानों के झबरे बच्चे बन चुके हैं। इस नगरी की अधियारी गलियों में जहरीले स्वार्थों की कानाफूसी चल रही है।
मुक्तिबोध ने अपनी कविताओं में ऐसे सख्त जमाने का चित्रण किया है जिसमें कर्फ्यू लगा है, पोस्टरबाजी है, सन्नाटा है, भुसभुसे उजाले में फुसफुसाते षड्यन्त्र है, 'कहीं आग लग गई तो कहीं गोली चल गई फिर भी लोग शान्त हैं।
अवसरवादी बुद्धिजीवियों की निन्दा - मुक्तिबोध को काव्य में अवसरवादी तथाकथित बुद्धिजावियों की निन्दा बड़े निर्भीक स्वरों में प्राप्त होती है। कहने दो उन्हें जो कहते हैं' नामक कविता में तथाकथित बुद्धिजीवियों के मूल चरित्र को नंगा करते हुए मुक्तिबोध कहते हैं -
राजनीति, साहित्य और कला के प्रतिष्ठित महासूर्य / बड़े-बड़े मसीहा / सरकस के जोकर से रिझाते हैं निरन्तर / नाचते हैं, कूदते हैं। शोषण में सिद्धहस्त स्वामियों के सामने। ----- चुपचाप आदर्शो को बाजू रख या भूलकर अवसरवादी बुद्धिमत्ता ग्रहण कर / और जिन्दगी को भूल कर बिल्कुल बिक जाते हैं।
मुक्तिबोध ने अन्यत्र ऐसे व्यक्तियों को 'पूंजीवादी उल्लू का साहित्यिक पद्य' 'मध्यवर्गी बुद्धिशील अवसरवादी केकड़ा' आदि कहा है। जिनके पास सात्विक पूँजी है वे अलग ही प्रतिष्ठित होते हैं -
"तुम्हारे पास, हमारे पास /सिर्फ एक चीज हैं। ईमान का डंडा है। बुद्धि का बल्लम है। अभय की गैंती है। हृदय की तगारी तसला है। नये-नये बनाने के लिए भवन / आत्मा के मनुष्य के
मुक्तिबोध का शिल्पगत वैशिष्ट्य - शिल्प के स्तर पर मुक्तिबोध अपने समकालीन कृतियों से विशिष्ट महत्त्व के अधिकारी हैं। बिम्ब प्रतीक, अलंकार, छन्द शैली और भाषा सभी दृष्टियों से मुक्तिबोध का काव्य विलक्षण और मौलिक है।
बिम्ब विधान - बिम्ब की दृष्टि से मुक्ति, बोध जितने धनी हैं उतने ही मौलिक हैं। वैज्ञानिक तकनीकी काव्यशास्त्रीय व्याकरण सम्मत बिम्बों की कवि ने प्रचुर योजना की है। मुक्तिबोध के बिम्बों में न द्विवेदीयुगीन स्पष्टता पायी जाती है और न छायावादी भावनात्मक तारल्य। अपितु इनमें जटिलता भयावहता, वीभत्सता, विगता जैसी विशेषतायें लक्षित होती हैं। भयावहता, रहस्यात्मकता लिए बिम्ब विधान में जासूसी, आदिम तिलस्मी ऐयारी, जादू, तंत्र-मंत्र, टोना, भूत-प्रेत, भैरव, पिशाच, अजगर, घुग्घू, धूमकेतु, बन तहखाने गिद्ध-सभा, कोलतारी भैरव, भयानक तस्वीरें आदि शब्दों की मुख्य भूमिका रहती है।
अवचेतन को मूर्त करने वाला बिम्ब - "भूमि की सतहों के बहुत - बहुत नीचे / अंधियारी एकान्त / प्राकृत गुहा एक विस्तृत खोट के सांवले तल में /तिमिर को भेद कर चमकते हैं पत्थर मणि तेज 'स्क्रिय रेडियोऐक्टिव रत्न की बिखरे --'
इन बिम्बों से कवि ने सत्य की देवदासी - चोलियों को उतारा है। यथार्थ का ऐसा भयावह किन्तु संस्कारित चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है। मुक्तिबोध इसीलिए कहते हैं -
'इसीलिए मेरी ये कविताएँ / भयानक हिडम्बा हैं।
वास्तव की विस्फारित प्रतिमाएँ / विकृताकृति बिम्बा हैं।
मुक्तिबोध के काव्य में कुछ बिम्ब कई बार प्रयुक्त हुए हैं इसीलिए शमशेर बहादुर सिंह ने कहा है - "बिम्बों की पुनरावृत्ति मुक्तिबोध के काव्य की कमजोरी है तो अभिनव बिम्बधर्मिता उनके काव्य की सामर्थ्य '
प्रतीक योजना - मुक्तिबोध की कविता प्रतीक धर्मी है। कवि के बिम्ब भी प्रतीकात्मक हैं। मुक्तिबोध के काव्य में आदिम, ऐतिहासिक, पौराणिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक एवं समकालीन विविध क्षेत्रों के प्रतीक प्राप्त होते हैं। उनकी प्रसिद्ध कविता ब्रह्मराक्षस प्रतीकात्मक है। ब्रह्मराक्षस पौराणिक अवचेतन मन में स्थित उस भावना का प्रतीक है जो अतिरेकवादी पूर्णता प्राप्त करने के लिए अच्छे और उससे अच्छे के चयन का संघर्ष करते-करते आत्मचेतस् और विश्व चेतस के द्वन्द्व में फंसकर पिस जाता है।
"पिस गया वह भीतरी / और बाहरी दो कठिन पाटों बीच / ऐसी ट्रेजिडी है नीच '
वह अपनी साधना के लिए एकलव्य का प्रतीक चुनता है -
'मैं एकलव्य जिसने निरखा / ज्ञान के बन्द दरवाजे की दरार से ही।
भीतर का महामनोमन्थन शाली मनोज्ञ / प्राणाकर्षक प्रकाश देख।
'एक अरूप शून्य के प्रति। कविता मैं मुक्ति बोध ने कुतिया को आत्म का प्रतीक माना है -
" पर तुम भी खूब हो /देखो तो / प्रतिपल तुम्हारा ही नाम जपती हुई / लार टपकाती हुई आत्मा की कृतियाँ / स्वार्थपरता के पहाड़ी ढाल पर / चढ़ती है हाँफती / आत्मा की कुतिया। '
मुक्तिबोध के प्रतीकों की यह विशेषता है कि वे सहज बोधगम्य हैं। कवि भी कविता में उनको स्पष्ट करता चलता है।
काव्य भाषा - अज्ञेय और मुक्तिबोध दोनों ने छायावादी काव्य भाषा से छुटकारा पाने का सफल प्रयास किया, किन्तु अज्ञेय की भाषा आभिजात्य संस्कारों से युक्त परिमार्जित भाषा है जबकि मुक्तिबोध की भाषा में अनगढ़ता, खुदरापन, नुकीलापन है। वह छील छाल की भाषा है। मुझे साज-सँवार की प्रतिष्ठित बोली पसन्द नहीं मुक्तिबोध। फिर भी यह निसंकोच कहा जा सकता है कि उनका काव्य जगत मूल रूप में संस्कृत शब्दावली से निर्मित है। वास्तविकता यह है कि मुक्तिबोध ने भाषा का चयन पाठक के आधार पर नहीं किया अपितु 'स्व' के आधार पर किया है। इसीलिए आवेश के समय क्लिष्ट युद्ध संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग मिलता है तो 'ऐसी-तैसी। 'सालें, 'उल्लू के पट्ठे' जैसे शब्दों का प्रयोग भी मिलता है।
जहाँ तक शब्दकोश की बात है मुक्तिबोध के काव्य में संस्कृत, मराठी, उर्दू, अंग्रेजी के शब्द में प्राप्त होते हैं। यथा- संस्कृत प्रयीम, स्वायत्म, मृत्कण, खल्वाट, यशस्वाय-- आदि। मराठी बहुतायत नक्षे, सिवन्ती, हंकाल आदि। उर्दू - स्याहपोश, खुद गर्ज, मार्फत, निगाह, साजिशें- यथा - 'उन्होंने जिन्दगी की दहशतों के वह शतों के जिस्म फाडे जब।
अंग्रेजी - क्वार्ट्स, प्रोवेशन, सर्चलाइट, फ्यूजं बल्ब, गैलरी, हाइफन आदि। बोलचाल (देशी) के शब्द - उतारू, संपोले, दिन-दहाड़े धड़ाका आदि। कवि के भाषागत वैशिष्ट्य के कारण बहुविध हैं। वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग मुक्तिबोध को अन्य कवियों से अलगाता है। नाइट्रेट, फ्लुओरिन, यूरेनियम, रेडियोऐक्टिव, इलेक्ट्रान, आदि शब्दों का जितना अधिक प्रयोग मुक्तिबोध के काव्य में मिलता है, अन्यत्र नहीं।
सामासिक प्रयोग के द्वारा जहाँ मुक्तिबोध कम शब्दों में अपनी बात कहने में सक्षम हो सके हैं। वहीं ओज और दीति जैसे गुणों का सन्निवेश करने में भी सफल हुए हैं। किन्तु इससे क्लिष्टता भी उत्पन्न हो गई। जैसे मनुष्य अमिष, आशी (मनुष्य का मांस खाने वाला) प्रियजन वदन- दीप्ति भास्वरा (कर्मण्य जनों के परिश्रम से दैदीप्यमान) आदि। सन्धि पदों प्रयोग बहुलता से प्राप्त होता है जिसमें संस्कृतनिष्ठ पदों का प्रयोग प्राप्त होता है
ग्रहणच्छाया तमोमलिन, गुहान्धकार, तंगास्फालन, ज्वालारूण, गम्भीरकुल अभिशापाचल। एकाधिक बार आवृत्ति में मुक्तिबोध की भाषा का एक विशिष्ट गुण है। यह आवृत्ति शब्दगत, वाक्यगत एवं भावगत तीनों प्रकार की है। मैं जिन्दा हूँ / मैं हूँ / आई एजिस्ट। (शब्दगत)।
मुक्तिबोध की अधिकांश कविताओं में एक ही वाक्य कई बार दुहराया गया है। अंधेरे में कविता में तो लगभग बीस वाक्य ऐसे हैं जिनकी आवृत्ति अधिकतम आठ-आठ, नौ-नौ बार हुई है। कहीं आग लग गई, कहीं गोली चल गई। यही पंक्ति आठ बार प्रयुक्त हुई। मुक्तिबोध विशेषणों का प्रयोग अधिक करते हैं। अशोक चक्रधर के शब्दों में 'मुक्तिबोध व्याकरण स्तर पर विशेषणों, कर्ता व कर्म का अत्यधिक प्रयोग करते हैं। क्रिया पदों का अत्यन्त कम विशेषण एक प्रकार से सामाजिक प्रक्रिया में जन्मते हैं। भाषा में व्यंजन के. स्थान पर लक्षणों का प्रयोग करते हैं।
फैन्टेसी के प्रयोग - मुक्तिबोध के अनुसार -
"फैन्टेसी के मन की निगूढ़ वृत्तियों का अनुभूत जीवन समस्याओं का, इच्छित विश्वासों और इच्छित जीवन स्थितियों का प्रक्षेप होता है। यहाँ कल्पना का मूल कार्य मन के निगूढ़ तत्वो को प्रोद्भासित करते हुए विभिन्न रंगों में उन्हें समस्त सौन्दर्य के साथ उद्घोषित करना रहता है।'
वस्तुतः फैन्टेसी मुक्तिबोध की पहिचान है। जटिल से जलिटतम अनुभूतियाँ न केवल फैन्टेसियों - के माध्यम से उन्होंने व्यक्त किया है अपितु कृत्रिम शिष्टाचार के मुखौटों को चीर कर आधुनिक सभ्यता का वास्तविक चेहरा दिखा दिया है। आतंक से रोंगटे खड़ा कर देने वाली सृष्टियाँ तैरती हुई लाल मूठ, कटे- फिटे लहूलुहान चेहरे, रक्त का तालाब, सूनी बावड़ी, कुद्धू मन्त्रोच्चार करता ब्रह्मराक्षस, गठियल अज़गरी मेहताब, बरगद, लालटेन, घुग्घू आदि के भयावह बिम्ब मुक्ति बोध के काव्य में बार-बार उभरते हैं। उनकी फैन्टेसियाँ लक्ष्य प्रेरित हैं।
सारतः यह कहा जा सकता है कि वस्तु और शिज्य दोनों दृष्टियों से मुक्तिबोध की कविताएँ विशिष्ट हैं। डा. हुकुमचन्द्र राजपाल के शब्दों में- 'हिन्दी कविता में निराला के बाद मुक्तिबोध पर आकर दृष्टि टिक- जाती है जिसने पीड़ा को 'अंगारी चेतना' का रूप प्रदान किया है। रक्त प्लावित संकल्प कवि मानव मुक्ति को सर्वोच्च स्वीकारता है तो भाषा के स्तर पर भी विलक्षण कवि हैं।
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- प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
- प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
- प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
- अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
- प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
- प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
- प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
- अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
- प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
- प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
- अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
- अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
- अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
- अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।