बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य
अध्याय - 9
द्विवेदी युग
प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
अथवा
द्विवेदी युग इतिवृत्तात्मक भले ही हो किन्तु हिन्दी के लिए योगदान कम नहीं है। विश्लेषण कीजिए।
अथवा
द्विवेदी युगीन हिन्दी गद्य साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
द्विवेदी युगीन आधुनिक हिन्दी काव्य का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
उत्तर -
हिन्दी कविता को शृंगारिकता से राष्ट्रीयता, जड़ता से प्रगति तथा रूढ़ि से स्वच्छन्दता के द्वार पर ला खड़ा करने वाले बीसवीं शताब्दी के दो दशकों का सर्वाधिक महत्व है। इस कालखण्ड के पथ प्रदर्शक विचारक और सर्व स्वीकृत साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर इसका नाम द्विवेदी युग उचित है। वैसे इसे जागरण सुधार काल भी कहा जाता है। भारतीय इतिहास में समय ब्रिटिश शासन के दमनचक्र और कूटनीति का काल है। सन् 1857 के विद्रोह के पश्चात् महारानी विक्टोरिया के सहृदयतापूर्ण घोषणा पत्र से भारतीय जनता आशान्वित हो गई थी।
आर्थिक दृष्टि से भी अंग्रेजों की नीति भारत के लिए अहितकर थी। यहाँ से कच्चा माल बाहर जाता था और वहां के बने माल की खपत भारत में होती थी। देश का धन निरन्तर बाहर जाने से भारत निर्धन हो गया। यहाँ उद्योग-धन्धों के विकास की ओर सरकार का ध्यान नही गया। ऊपर से एक पर एक पड़ने वाले दुर्भिक्षों ने तो देशवासियों की कमर ही तोड़ दी। अत्याचारों एवं सर्वोप्तोमुखी विफलता का मुख्य कारण विफलता ही समझ में आया। अतः जनता ने पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की सौभाग्य से बालकृष्ण गोखले तथा बालगंगाधर तिलक जैसे मेघावी तथा कर्मठ नेता मिल गये। स्वराज एवं स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, की धूम मच गई। भारतेन्दुकालीन साहित्यकार जहाँ भारत दुर्दशा पर दुःख प्रकट करके रह गया था, वहाँ द्विवेदी कालीन कवि मनीषियों ने देश की दुर्दशा के चित्रण के साथ-साथ देशवासियों को स्वतन्त्रता प्राप्त कराने की प्रेरणा भी दी उन्हें आत्मोसर्ग एवं बलिदान का मार्ग भी दिखाया। दूसरी ओर अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से भारतवासी बर्क, मिलस्पेंसर, रूसो आदि विचारकों की रचनाओं के सम्पर्क में भी आये जिससे राष्ट्रीयता एवं स्वतन्त्रता प्राप्ति की भावना की ओर बल मिला। वैसे उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ब्रह्म समाज, आर्य समाज थियोसोफिकल सोसाइटी तथा इण्डियन नेशनल कॉंग्रेस की स्थापना के फलस्वरूप भारतीय सभ्यता और संस्कृति धर्म के सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी थी। आलोच्य काल में इसका और भी विकास और विवर्द्धन हुआ। बालगंगाधर तिलक, गोपालकृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, स्वामी श्रद्धानन्द, मदनमोहन मालवीय और नेताओं और निःस्वार्थ समाज सेवियों ने देशवासियों के स्वाभिमान को जगाने तथा अपनी गौरव परम्पराओं के प्रति उन्हें निष्ठावान बनाने का सफल प्रयास किया।
द्विवेदी युग से पूर्व कविता के क्षेत्र में मुख्यतः शृंगार, भगवत भक्ति एवं देश भक्ति की धाराएँ प्रवाहित थीं। समस्या पूर्तियों का भी खूब जोर था। इसके लिए अनेक कवि गोष्ठियों की स्थापना हुई। गद्य की एकमात्र भाषा खड़ी बोली स्वीकार कर लेने पर भी भारतेन्दु काल में कविता के क्षेत्र में ब्रजभाषा का एकमात्र साम्राज्य बना रहा। यद्यपि खड़ी बोली में यत्किंचित रचना हुई, किन्तु उसे काव्योपयुक्त नहीं समझा गया। ब्रजभाषा की माधुरी पर रीझा हुआ इन लोगों का रसिक मन अंत तक खड़ी बोली की काव्योपयुक्तता में अविश्वास करता रहा। सब मिलाकर भारतेन्दुकालीन कविता के उपादान सीमित तथा अधिकांशतः पिष्टपोषित थे, एवं इस युग की काव्य भाषा परम्परागत थी। भारतेन्दु के बाद भी कुछ समय तक यही स्थिति बनी रही।
उन्नीसवीं शताब्दी का अन्त होते-होते हवा बदलने लगी। परिवर्तित जनरुचि को भक्ति एवं श्रृंगार का पिष्टपेषण बेस्वाद प्राप्त हुआ। समस्या पूर्तियों एवं नीरस तुक बन्दियों से सहृदय ऊब गये। सुयोग से इसी समय जनता के रुचि एवं आकांक्षाओं के पारखी तथा साहित्य के दिशा-निदेशक आचार्यों के रूप में पं. महाप्रसाद द्विवेदी का प्रादुर्भाव हुआ। जून 1600 की सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित 'हे कवित' शीर्षक अपनी कविता में उन्होनें जनरुचि का प्रतिनिधित्व करते हुए ही सौम्य एवं वैविध्य के अभाव तथा ब्रजभाषा के चिरप्रयोग पर क्षोभ प्रकट किया था। सन 1603 में आचार्य द्विवेदी सरस्वती के सम्पादक बने। उन्होनें नायिका भेद को छोड़कर विविध विषयों पर कविता लिखने, सभी प्रकार के छन्दों का व्यवहार करने, सभी काव्य रूपों को अपनाने तथा गद्य और पद्य भाषा के एकीकरण का परामर्श दिया। उनकी अमोघ प्रेरणा एवं तात्सस्यमय प्रोत्साहन के परिणामस्वरुप अनेक कवि सामने आये, जो उन्हीं के आदर्शों को लेकर आगे बढे- इसमें मैथिली शरण गुप्त, गोपाल शरण सिंह, गया प्रसाद शुक्ल सनेही, लोचन प्रसाद पाण्डेय आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। समयानुसार चलने वाले कतिपय कवियों ने अपना रास्ता बदला। अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' नाथू राम, शर्मा शंकर तथा रायदेवी प्रसादपूर्ण काव्य के चिरपरिचित उपदानों को छोड़कर नई विषयों पर कविता लिखने लगे। इस युग में कविता की विषय की दृष्टि से अपार वैविध्य एवं नवीनता आयी। द्विवेदी जी के प्रयत्नों से खड़ी बोली काव्य की मुख्य भाषा बन गयी। गुप्त जी, ठाकुर गोपाल शरण सिंह, सनेही, लोचनप्रसाद पाण्डेय आदि तो खड़ी बोली कवियों के रूप में ही सामने आये हैं। किन्तु श्रीधर पाठक, हरिऔध, शंकर जो ब्रजभाषा में अच्छी कविता लिख चुके थे वे भी अब खड़ी बोली का व्यवहार करने लगे। पूर्णजी ने परम्परागत विषयों की कविता के लिए ब्रज तथा नये विषयों की कविता के लिए खड़ी बोली का प्रयोग किया। द्विवेदी जी भाषा की शुद्धि तथा वर्तनी के एकरूपता के प्रबल समर्थक थे। अतएव इस युग की काव्य भाषा व्याकरण की दृष्टि से सामान्यतः शुद्ध है तथा वर्तनी की दृष्टि से उसमें भारतेन्दु युग जैसी अस्थिरता नहीं हैं। हिन्दी के सभी छन्दों का ही नहीं, संस्कृत वृत्तों तथा उर्दू-बहनों का प्रयोग हुआ। आचार्य द्विवेदी ने समस्यापूर्ति को छोड़ने तथा स्वतन्त्र विषयों पर कविता लिखने का भी परामर्श दिया था फलतः इस युग में समस्यापूर्ति का भी रिवाज कम हो गया। जगन्नाथ दास रत्नाकर, सत्यनारायण 'कविरत्न' प्रभृति दो-एक कवि अब भी ब्रजभाषा के परिचित मार्ग पर ही चलते रहे, परन्तु नूतन प्रभाव से वे भी अछूते नहीं रहे।
द्विवेदी युग कालीन मुख्य प्रवृत्तियाँ
1- राष्ट्रीयता, 2- देश की हीनदशा, 3- सामान्य मानवता 4- नीति और आदर्श 5- वर्ग विषय का क्षेत्र विस्तार, 6- हास्य-व्यंग्य काव्य, 7- सभी काव्य रूपों का प्रयोग - भाषा परिवर्तन छन्द वैविध्य।
द्विवेदी युगीन प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
नाथूराम शर्मा शंकर - अनुरागरत्न', 'शंकर सरोज', 'गर्भरण्डा - रहस्य', तथा 'शंकर सवत', प्रमुख काव्य ग्रन्थ हैं।
श्रीधर पाठक - 'वनाष्टक', 'काश्मीर' सुषमा', 'देहरादून', 'भारत गीत', विशेषता उल्लेखनीय है।
महावीर प्रसाद द्विवेदी - 'काव्य मंजुषा', 'सुमन', 'कान्यकुब्ज अबला विलाप', 'गंगालहरी', 'ऋतु- तरगिणी, 'कुमार सम्भवार आदि उल्लेखनीय हैं।
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' - 'प्रियप्रवास', 'पद्य प्रसून', 'चुभदेपौपदे' चोखे चौपदे', 'रसकलस' तथा 'वैदही वनवास' प्रसिद्ध है।
मैथिलीशरण गुप्त - जयद्रथ - द्वापर', 'जयभारत', 'विष्णुप्रिया' आदि।
वध', 'भारत भारती' 'पंचवटी', 'झंकार' 'साकेत' 'यशोधरा'
उपर्युक्त काव्य निर्माताओं के अतिरिक्त और भी अनेक महानुभावों ने द्विवेदी युग में हिन्दी काव्य की श्रीवृद्धि की है, जिनमें से लोक मणि, सत्य शरणखूड़ी, मन्नन द्विवेदी, पद्मलाल पुन्ना बख्सी, शिवकुमार त्रिपाठी नाम उल्लेखनीय हैं। शियारामशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी प्रसाद पन्त तथा निराला ने भी इसी युग में कविता लिखना प्रारम्भ कर दिया था, किन्तु इनकी काव्य कला का वास्तविक विकास आगे चलकर ही हुआ।
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- प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
- प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
- प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
- अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
- प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
- प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
- प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
- अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
- प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
- प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
- अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
- अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
- अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
- अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।