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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

अध्याय - 14
गोरखनाथ
(व्याख्या भाग)

सबदी

अदेबि देषिवा देषि बिचारिबा आदिसिटि राषिबा चीया।
पाताल की गंगा ब्रह्मंड चढ़ाइबा, तहाँ बिमल बिमल जल पीया।। 1।।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद गोरखनाथ द्वारा रचित 'गोरखबानी' पुस्तक के सबदी खण्ड से लिया गया है जिसके सम्पादक पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने परब्रह्म के साक्षात्कार के विषय में बताया है।

व्याख्या - कवि कहता है कि न देखे हुए (परब्रह्म अदृश्य रूप वाले) को देखना चाहिए। देखकर उस पर विचार करना चाहिए। जिसको आँखों से नहीं देखा जा सकता, उसको चित्त में रखना चाहिए। पाताल की गंगा ( मणिपूर चक्र) की गंगा ( योगिनी शक्ति, कुंडलिनी) को ब्रह्माण्ड (ब्रह्मरंध्र, सहस्रार या सहस्रदल कमल ) में प्रेरित करना चाहिए। योगी साक्षात्कार स्वरूप वहीं पहुँचकर निर्मल रस पीता है।

विशेष- (i) अदेषि का अर्थ अदृश्य होता है।

(ii) योगी के परमब्रह्म साक्षात्कार के स्वरूप का वर्णन किया गया है।

वेद कतेब न बांणी बांणीं। सब ढंकी तलि आंणीं।
गगनि सिषर महि सबद प्रकास्या। तहं बूझै अलष बिनांणीं ॥ 2।।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद गोरखनाथ द्वारा रचित 'गोरखबानी' पुस्तक के सबदी खण्ड से लिया गया है जिसके सम्पादक पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ब्रह्म के ठीक-ठीक निर्वचन न होने के विषय में वर्णन किया

व्याख्या - कवि कहता है कि परब्रह्म की व्याख्या न वेद कर पाये हैं, न किताबी धर्मों की पुस्तकें और न चारों खानि की वाणी। ये सब तो उसे आच्छादन के नीचे ले आये हैं। उन्होंने तो सत्य को प्रकट करने के बदले उसके ऊपर आवरण डाल दिया है। ब्रह्मरन्ध्र में समाधि द्वारा जो शब्द प्रकाश में आता है, उसमें विज्ञान रूप अलक्ष्य का ज्ञान प्राप्त करों।

विशेष - ब्रह्मस्वरूप के यथार्थ ज्ञान की कामना की गयी है।

हसिबा षेलिबा रहिबा रंग। कांम क्रोध न करिबा संग।
हसिबा षेलिबा गाइबा गीत। दिढ करि राषि आपना चीत ॥ 3 ॥

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद गोरखनाथ द्वारा रचित 'गोरखबानी' पुस्तक के सबदी खण्ड से लिया गया है जिसके सम्पादक पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत सबदी में चित्त को अपने वश में करते हुए कुछ कार्यों को करना चाहिए, ऐसा चित्रण किया गया है।

व्याख्या - कवि कहता है कि हँसना चाहिए, खेलना चाहिए, मस्त रहना चाहिए, किन्तु कभी काम-क्रोध का साथ नहीं करना चाहिए। हँसना, खेलना और गीत भी गाना चाहिए, किन्तु अपने चित्त को दृढ़ करके रखना चाहिए।

विशेष- (i) करिबा का अर्थ करना चाहिए और चित्त का अर्थ चित्त होता है।
(ii) एकाग्रचित्त से मनुष्य को सम्पूर्ण कार्य करते हुए परमात्मा के प्रति उन्मुख होना चाहिए।

हसिबा बेंलिबा धरिबा ध्यान। अहनिसि कथिबा ब्रह्म गियान।
हसै बेलै न करै मन भंग। ते निहचल सदा नाथ कै संग ॥ 4 ॥

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद गोरखनाथ द्वारा रचित 'गोरखबानी' पुस्तक के सबदी खण्ड से लिया गया है जिसके सम्पादक पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत पद में ब्रह्मज्ञान के स्मरण करते रहने का उल्लेख किया गया है -

व्याख्या - कवि कहता है कि हँसना, खेलना और ध्यान धरना चाहिए। रात-दिन ब्रह्मज्ञान का कथन करना चाहिए। इस प्रकार ( संयमपूर्वक) हँसते-खेलते हुए जो अपने मन को भंग नहीं करते वे निश्चल होकर ब्रह्म के साथ रमण करते हैं।

विशेष - अहनिसि का अर्थ दिन-रात होता है।

अह निसि मन लै उनमन रहै, गम की छांड़ि अगम की कहै।
छाड़े आसा रहै निरास, कहै ब्रह्मा हूँ ताका दास।। 5।।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद गोरखनाथ द्वारा रचित 'गोरखबानी' पुस्तक के सबदी खण्ड से लिया गया है जिसके सम्पादक पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत सबदी में अगम्य आध्यात्मिक क्षेत्र की बातें वर्णित हैं।

व्याख्या - कवि कहता है कि जो रात-दिन बहिर्मुख मन को उन्मनावस्था में लीन किये रहता है, गम्य जगत की बातें छोड़कर अगम्य आध्यात्मिक क्षेत्र की बातें करता है, सब आशाओं को छोड़ देता है, कोई आशा नहीं रखता, वह ब्रह्मा से भी बढ़कर है, ब्रह्मा उसका दासत्व स्वीकार करता है।

विशेष- सब कुछ छोड़कर परमात्मा की भक्ति में लीन रहना ही सर्वश्रेष्ठ है।

पद : राग सामग्री

मनसा मेरी ब्यौपार बांधौ, पवन पुरषि उतपनां।
जाग्यौ जोगी अध्यात्म लागौ, काया पाटण मैं जांनां ॥
इकबीस सहंस षटसां आदू, पवन पुरिष जप माली।
इला प्यंगुला सुषमन नारी, अहनिसि बहै प्रनाली।
षटसां षोडि कवल दल धारा, तहाँ बसै ब्रह्मचारी।
हंस पवन ज फूलन पैठा, नौ से नदी पनिहारी ॥
गङ्गा तीर मतीरा अवधू, फिरि फिरि बणिजां कीजै।
अरध बहन्ता उरधैं लीजै, रवि सस मेला कीजै ॥
चंद सूर दोऊ गगन बिलूधा, भईला घोर अंधारं।
पंच बाहक जब न्यंद्रा पौढ्या, प्रगढ्या पौलि पगारं ॥
काया कंथा, मन जोगोटा, सत गुर मुझ लषाया।
भणंत गोरखनाथ रूड़ा राषौं, नगरी चोर मलाया।। 6।।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद गोरखनाथ द्वारा रचित 'गोरखबानी' पुस्तक के 'राग सामग्री' खण्ड से लिया गया है जिसके सम्पादक पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने आत्मा सम्बन्धी प्रयत्न के सम्बन्ध में वर्णन किया है।

व्याख्या - कवि कहता है कि हे मेरी मनसा ! तुम अपना व्यापार बाँधो। प्राण पुरुष पैदा हो गया है अर्थात् मन और पवन का संयोग संभव हो गया है। जागा हुआ योगी अध्यात्म में लग गया है। उसे इस शरीर रूपी नगर में प्रवेश करना है। पवन पुरुष अर्थात् बाह्य-भीतर जाती हुई साँस ही जप की माला है, जो प्रतिदिन 21,600 बार जप करती है। इडा पिंगला और सुषुम्ना की नलियों में पवन बराबर बहता रहता है। योगियों के अनुसार मनुष्य प्रतिदिन 21,600 बार साँस लेता है। इन सब साँसों के साथ सोऽहं हंसा का जाप 'अजपा जाप कहलाता है। जप श्वास क्रिया के द्वारा स्वयं बेखबर हो रहा है। हमें उसकी ओर अपना ध्यान ले जाकर उसे सज्ञान रूप से करना है। स्वाधिष्ठान और विशुद्ध आदि चक्र उसी धारा में बने हुए हैं। इसी धारा में अथवा इन्हीं चक्रों में ब्रह्मचारी अथवा आत्मा का निवास है। नौ सौ नदियाँ पनिहारिन होकर पुष्टि कर्त प्राणधारा से हंस (जीव- आत्मा) को सींचती हैं जिससे आत्मारूपी बेल पुष्पित हो जाती है और इला के कूल तर्बुज (शीतलतादायक ज्ञान) उत्पन्न हो जाता है जिसका फिर-फिर व्यापार करना चाहिए। नीचे बहने वाली धारा ऊपर ले जाइये, ब्रह्माण्ड में चढ़ाइये और चन्द्र नाड़ी और सूर्य नाड़ी का मेल कीजिए।

ब्रह्मरंध्र में इन दोनों (चन्द्र और सूर्य नाड़ी) के लोप हो जाने से घोर अंधकार हो गया। पाँचों सैनिक अर्थात् पंचेन्द्रियाँ रात आयी जानकर सो गयीं। प्राकार और सिंहद्वार प्रकट हो गये अर्थात् अन्दर जाने का मार्ग दिखायी पड़ा।

मन योगी है और काया उसकी गुदड़ी। यह रहस्य मुझे गुरू ने बताया। गोरखनाथ कहते हैं, इस रहस्य को सुरक्षित रखो, नगरी में चोर छूटे हुए हैं अर्थात् छः शत्रु इस रहस्य के अनुभव में विघ्न डालेंगे।

विशेष - स्वाधिष्ठान चक्र और सुषुम्ना के प्राधान्य का लक्षण स्पष्ट होता है।

अवधू बोल्या तत बिचारी, पृथ्वी मैं बकवाली।
अष्टकुल परबत जल बिन तिरिया, अदबुद अचंभा भारी
मन पवन अगम उजियाला, रवि ससि तार गयाई।
तीनि राज त्रिविधि कुल नांहीं, चारि जुग सिधि बाई ॥
पांच सहंस मैं षट अपूठा, सप्त दीप अष्ट नारी।
नव षंड पृथी इकबीस मांहीं, एकादसि एक तारी।
द्वादसी त्रिकुटी यला पिंगुला, चवदसि चित्त मिलाई।
षोड़स कवल दल सोल बतीसौ, जुरा मरन भौ गमाई ॥
दसवें द्वार निरंजन उनमन बासा, सबदैं उलटि समांनां।
भणंत गोरषनाथ मछींद्र नां पूता अबिचल थीर रहांनां ॥ 7 ॥ ॥

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में काया, माया, आत्मा और परमात्मा तथा इस शरीर को प्रतीक मानकर परब्रह्म सम्बन्धी तथ्य वर्णित हैं।

व्याख्या - कवि कहता है कि अवधूत ने विचारकर तत्व कहा जो पृथ्वी में बकवास ही समझा जा रहा है। इस तत्त्व का कथन पूर्णिमा और अमावस्या को मिलाकर 16 तिथियों के बहाने योग में वर्णित है। कुछ तिथियों का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। यह आश्चर्यजनक बात है कि अष्टकुल पर्वत बिना जल के ही तैर गये। अष्टकुल पर्वत स्थूल काया है और जल सूक्ष्म माया। काया में माया और आत्मा दोनों हैं। जल और माया के रहित हो जाने, व्यक्ति के तरने में तथा मुक्त हो जाने में कोई संदेह नहीं रह जाता। मन, पवन के संयम से अगम ज्योति प्राप्त हुई है जिसके समक्ष सूर्य, चन्द्र और तारे गत हो जाते हैं अर्थात् छिप जाते हैं, तीज तैगुण्य के परिवार का राज्य अब नहीं रह गया है। चौथ जगत् में सिद्धि बज रहा है। पंचमी सहस्रार में स्थित हो गयी है। छठ, उलटी, अंतर्मुख प्रवृत्ति हो गयी। सप्तमी दीप जल उठा है। आठवीं कुंडलिनी शक्ति सिद्ध हो गयी। नौमी, नौखण्ड पृथ्वी और 21 ब्रह्माण्ड भीतर हैं। दशमी का उल्लेख अंत में है। एकादशी एकतार एकरस समाधि लगी हुई है। दूरदर्शी इड़ा, पिंगला का त्रिकुटी में सुषुम्ना द्वारा मेल हो गया है। चौदशी, चित्त ब्रह्म में लीन हो गया है। षोडशदल कमल विशुद्ध चक्र के सिद्ध होने से योगी के बत्तीसों लक्षण प्राप्त हो गये हैं तथा जरा-मरण और भवभीति नष्ट हो गयी है। दसई, उनमनी समाधि के द्वारा निरंजन रूप होकर दशम द्वार में वास पाकर उलटकर उसी शब्द में समा गये जिससे उत्पन्न हुए थे। मत्स्येन्द्र का पुत्र गोरख कहता है कि इस प्रकार मैं अपने मूल अविचल रूप में स्थिर हो गया।

महाभारत के अनुसार कुल पर्वत सात ही हैं - महेन्द्र, मलय, सद्वय, शुक्तिमान, ऋक्षवान्, विन्ध्य और पारियात्र। संभवतः योगमार्ग वालों ने हिमवत् को भी उनमें जोड़ा है। हिमवत् का योगियों में बड़ा महत्व माना जाता है।

विशेष- (i) बंकवाली का अर्थ बकवास होता है।
(ii) काया में माया और आत्मा दोनों के स्वरूप को बताया गया है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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