बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
उत्तर -
नैतिक सिद्धान्तों में सुखवाद तथा बुद्धिवाद दोनों सिद्धान्तों का समर्थन किया गया है। बुद्धिवाद के अनुसार, परम शुभ सुख की प्राप्ति नहीं है अपितु बुद्धि के आधार पर नैतिक कर्मों का मूल्यांकन है। बुद्धिवाद कर्तव्यों के पालन पर अधिक बल देता है। बुद्धिवाद को कठोरतावाद के नाम से भी जाना जाता है। बुद्धिवाद तथा सुखवाद के सिद्धान्त में अनेक विभिन्नताएँ हैं, जो निम्नवत् हैं -
1. मनुष्य का प्रकृति सम्बन्धी अन्तर दोनों सिद्धान्तों में देखने को मिलता है। सुखवाद मनुष्य को मौलिक रूप से भावनात्मक प्राणी मानता है अर्थात् इस सिद्धान्त के अनुसार, भावनाओं का महत्व विशेष है जबकि बुद्धिवाद बौद्धिक शक्ति को प्रमुख मानता है।
2. सुखवाद के सिद्धान्त में मानव स्वभाव का परम उद्देश्य सुख प्राप्ति में रहता है। बुद्धिवाद सिद्धान्त में कर्तव्यपालन को विशेष स्थान दिया गया है।
3. सुखवाद के अनुसार, सुख की प्राप्ति ही निर्णायक आधार है। बुद्धिवाद के अनुसार, कर्म का महत्वपूर्ण स्थान है।
सिनिकवाद
बुद्धिवाद का प्राचीन रूप सिनिकवाद (Cynicism) है। इस रूप का प्रतिपादन एण्टीस्थीनीज (Antisthenes) ने किया। परन्तु प्रश्न यह है कि एण्टीस्थीनीज को सिनिकवाद क्यों कहा जाता है? इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दो मान्यताएँ हैं -
(1) एण्टीस्थीनीज की पाठशाला का नाम सिनोसर्जेस था। इसी कारण एण्टीस्थीनीज तथा उसके अनुयायियों को सिनिक्स कहा जाता है तथा बाद में उनका सिद्धान्त सिनिक्स कहलाया। इस सिद्धान्त को मानने वालों को सिनिकवादी कहा जाने लगा।
(2) एण्टीस्थीनीज तथा उसका शिष्य डायजेनिस स्वभाव से बहुत उदण्ड थे। अतः उन्हें सिनिक कहा जाता था। सिनिकवाद के सिनिक शब्द का अर्थ होता है कुत्ते के समान। अतः उनकी उदण्डता के कारण उन्हें सिनिकवादी कहा जाता था। सिनिकवाद में मुख्य बातें निम्नलिखित थीं-
1. सुखवाद का विरोध - सिनिकवाद में सुखवाद की कटु आलोचना की गई तथा इस सिद्धान्त में सुख प्राप्ति को अनुचित माना गया। सिनिकवादियों के अनुसार, "सुखमय जीवन व्यतीत करना मूर्खता है।' सिनिकवाद के जन्मदाता एण्टीस्थीनीज के अनुसार "सुख अनुभव करने से तो मैं पागल होना अधिक पसन्द करूँगा।'
2. बुद्धिवाद का समर्थन - सिनिकवाद में प्राणी को बौद्धिक प्राणी के रूप में स्वीकार किया गया। इस स्थिति में मात्र बौद्धिक जीवन को ही नैतिक जीवन मानना चाहिए। बौद्धिक जीवन ही व्यक्ति के लिए अभीष्ट जीवन है। व्यक्ति को अपनी बुद्धि द्वारा वासनाओं को नियन्त्रित करना चाहिए। सिनिकवादियों के अनुसार "प्रत्येक के लिए वही एकमात्र शुभ है जो उसका है और वह वस्तु जो केवल मनुष्य की है विवेक या बुद्धि है। अतः सिनिकवाद में बौद्धिक व्यक्ति को ही सद्गुण- प्रधान माना गया है।
3. वैराग्यवाद का समर्थन - सिनिकवाद में वैराग्यवाद का समर्थन किया गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार, आत्म-विरोध द्वारा ही आत्मा की पूर्णता को स्वीकार किया गया है। इस सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक डायजेनिस के अनुसार, "प्रकृति के अनुसार रहो। अधिकांश सिनिकवादियों ने घोर विरक्ति के जीवन को उत्तम माना था।
4. जीवन का प्रथम लक्ष्य सद्गुण है - सिनिकवाद में सद्गुणों को ही जीवन का परम लक्ष्य माना गया है। सद्गुणों से युक्त प्राणी आत्मनिर्भर होता है तथा वह अपने आप में पूर्ण होता है। सद्गुणी व्यक्ति का विशिष्ट गुण विवेक है। वह विवेक को प्रधानता देता है।
आलोचना सिनिकवाद की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की गई है.
(1) घोर वैराग्यवादी सिद्धान्त सिनिकवाद ने वैराग्यवाद का घोर समर्थन किया है। उन्होंने अकीर्ति, दरिद्रता, कठोर परिश्रम, विरक्ति कला-शून्यता तथा रूढ़ि विरोध को प्राणीमात्र के जीवन में महत्वपूर्ण माना है।
(2) व्यक्तिवाद तथा स्वार्थवाद को बढ़ावा सिनिकवादियों ने सम्पूर्ण विश्व में नागरिकतावाद का प्रतिपादन किया। व्यावहारिक रूप से सिनिकवादियों ने देशप्रेम को भी स्वार्थ के अधीन कर दिया। सिनिकवादियों ने स्वार्थवाद तथा व्यक्तिवाद को समर्थन भी प्रदान किया।
(3) निषेधात्मक पक्ष को अधिक महत्व - सिानिकवाद के अनुसार, इन्द्रियों का अधिक समर्थन उचित नहीं है। इसी कारण सिनिकवादी सिद्धान्त एक निराशावादी सिद्धान्त बन गया।
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- प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
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