बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।
उत्तर -
कर्म के सिद्धान्त का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। इस सिद्धान्त से व्यक्ति के जीवन का प्रत्येक पक्ष प्रभावित रहता है। एक ओर जहाँ इस सिद्धान्त ने नैतिक जीवन के विकास में योगदान दिया है वहीं दूसरी ओर कष्ट के समय व्यक्ति को सन्तोष भी प्रदान किया है। इसने भारतीय समाज को संगठित करने में विशेष भूमिका अदा की है।
मैक्स बेबर के अनुसार - "कर्म के सिद्धान्त ने सम्पूर्ण संसार को बुद्धिवादी तथा नैतिक व्यवस्था में परिणत कर दिया।"
इस प्रकार यह सिद्धान्त सम्पूर्ण इतिहास में सबसे अधिक सन्तुलित ईश्वरीय विश्वास का प्रतिनिधित्व करता है।
कर्म के सिद्धान्त का महत्व - कर्म के सिद्धान्त का महत्व निम्न प्रकार से समझा जा सकता है. -
(1) व्यक्तित्व के विकास में सहायक - कर्म के सिद्धान्त को स्वीकार कर लेने पर व्यक्ति मानसिक रूप से सन्तुष्ट रहता है। इस सिद्धान्त को मानने के बाद व्यक्ति किसी प्रकार के दुःख या असफलता से परेशान नहीं होता। कर्म का सिद्धान्त व्यक्ति को कर्म करने के लिए प्रेरित करता है जिससे व्यक्ति का समुचित विकास होता है।
(2) सामाजिक संघर्षों से बचाव - समाज में यदि व्यक्ति अपनी स्थिति या कार्य से असन्तुष्ट रहता है तो सामाजिक संघर्ष की स्थिति बनी रहती है जबकि कर्म का सिद्धान्त इससे बचाव करता है। इस सिद्धान्त को मानने के पश्चात् व्यक्ति अपनी स्थिति से असन्तुष्ट नहीं रहता है तथा उसे व्यक्ति या समाज से कोई विरोध नहीं होता है।
(3) नैतिकता के विकास में सहायक - कर्म का सिद्धान्त व्यक्ति के नैतिक विकास में भी सहायक है। इस सिद्धान्त के अनुसार, यदि मनुष्य अच्छे कर्म करता है तो उसे सुख या अच्छे फल र की प्राप्ति होती है तथा उसे मोक्ष भी प्राप्त होता है। बुरे कर्मों को करने से व्यक्ति को दुःख की प्राप्ति होती है तथा उसे कर्म एवं पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति नहीं मिल पाती।
(4) आशावाद का समर्थन - कर्म का सिद्धान्त आशावाद का भी समर्थन करता है। आशावाद के कारण व्यक्ति यह मानता है कि उसे अपने कर्मों का उचित फल प्राप्त होगा। इस प्रकार वह निराशा से बच जाता है।
(5) समाज कल्याण में सहायक - कर्म का सिद्धान्त समाज कल्याण में भी सहायक होता है। निष्काम कर्म के कारण व्यक्ति लोभ, मोह का त्याग करके समाज के हित का कार्य करता है। अतः इससे समाज कल्याण की भावना को बल मिलता है।
(6) सामाजिक व्यवस्था में सहायक - कर्म का सिद्धान्त सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में भी सहायक है। वर्णव्यवस्था, पारिवारिक दायित्व आदि को निभाने में यह सिद्धान्त प्रेरणा का कार्य करता है। यह समाज के व्यक्तियों को साधारण एवं विशेष कार्यों के प्रति प्रेरित करता है।
(7) पुनर्जन्म के चक्र से बचने में सहायक - व्यक्ति प्रायः जन्म-जन्मान्तर से बचना चाहता है तथा मोक्ष प्राप्त करना चाहता है, इसी कारण वह अच्छे कर्म करता है। वास्तव में, यह सिद्धान्त इसका समर्थन भी करता है कि अच्छे कर्मों के माध्यम से जन्म-जन्मान्तर के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।
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- प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
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- प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
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- प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
- प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
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