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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 1

गद्य साहित्य का स्वरूप

गद्य साहित्य की विधायें एवं वैशिष्ट्य

 

प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।

अथवा
आदिकाल के साहित्यकारों द्वारा लिखित गद्य साहित्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिये।

उत्तर -

इस बात का अभी तक कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिल सका है कि हिन्दी में साहित्य की गद्य विधा का प्रारम्भ कब से किया गया है। यह बात पूर्णतः सही है कि कोई भी व्यक्ति अपने विचारों को गद्य के माध्यम से ही अभिव्यक्त करता है। किन्तु साहित्य रचना हर एक भाषा में काव्य के रूप में ही शुरू की गयी। आगे चलकर रचनाएँ भले ही गद्य में की गयी हों किन्तु शुरूआत पद्य के द्वारा ही होती रही। चाहे "वह अनपढ़ या अव्यस्थित ही क्यों न रही हों। विश्व की कोई भी भाषा रही हो कमोवेश सब की यही स्थिति रही। सभी भाषा के साहित्य पहले पद्य में लिखे गये बाद में गद्य में। यद्यपि पद्य में लिखी रचनाएँ लोग कंठस्थ कर लेते थे तथा उसी रूप में अगली पीढ़ी को हस्तगत कर देते थे किन्तु गद्य में लिखी रचनाओं के साथ ऐसा नहीं हो पाता था। गद्य को याद करना आसान नहीं था और उसे अन्य किसी माध्यम से सुरक्षित रखने की सुविधा भी नहीं थी। प्रारम्भिक अवस्था में गद्य का जो भी रूप लिखा गया होगा, वह जैसा भी रहा हो, उसे सुरक्षित रखने के लिए था। विभिन्न प्रतिलिकाकारों द्वारा उसकी प्रतिलिपि तैयार की गयी होगी अथवा शिलालेखों व ताम्रपत्रों के रूप में उन्हें सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया होगा।

हिन्दी साहित्य के आदिकालीन गद्य की चर्चा करने में सबसे बड़ी समस्या यह सामने आती है कि हिन्दी साहित्य के आदिकाल की सीमा क्या निर्धारित की जाये। हिन्दी के विभिन्न लब्ध प्रतिष्ठ शीर्ष समीक्षकों के विचारों में इस काल की सीमा को लेकर मतैक्य नहीं पाया जाता। इसलिए गद्य साहित्य की खोज के अनुक्रम में यह समस्या सामने आती है कि किस समय की लिखी रचनाओं को हिन्दी की रचनाएँ मानकर उनके बीच गद्य का अन्वेषण किया जाये।

प्रतिपाद्य सन्दर्भ में इस विवाद में न पड़कर हमें भक्तिकाल से पूर्व की रचनाओं में जहाँ कहीं भी गद्य के दर्शन होते हैं उन्हें ही हम आदिकालीन गद्य का रूप कहेंगे। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की समय सीमा ग्यारहवीं शताब्दी से प्रारम्भ होती है और राहुल जी तथा रामकुमार वर्मा आदि की समय सीमा आठवीं शताब्दी के आस-पास से प्रारम्भ होती है। उस क्षेत्र - सीमा में उस समय कौन सी भाषा बोली और साहित्य में अपनायी जाती रही। तत्कालीन भाषा में प्राप्त गद्य रूपों को ही हम आदिकालीन हिन्दी का गद्य रूप कहेंगे।

गत वर्षों में प्राचीन सम्बन्धी जो शोधकार्य हुए हैं; उससे पता चलता है कि उस युग में गद्य में भी काफी साहित्य लिखा गया। उपलब्ध अधिकांश गद्य साहित्य राजस्थान में निर्मित हुआ है। वहाँ एक ओर विभिन्न काव्यरूपों में पर्याप्त गद्य साहित्य लिखा गया और साथ ही साथ गद्य की विभिन्न शैलियों का भी आविर्भाव हुआ। यह गद्य साहित्य जैन तथ जैनेत्तर दोनों प्रकार के लेखकों द्वारा रचा गया है। इनके द्वारा जो गद्य शैलियाँ अपनायी गयीं, उनमें पट्टावली, वंशावली, ख्यात, बात, विगत पीढ़ी, पट्टा, परवाना, वचनिका आदि प्रमुख हैं। गद्य ग्रन्थ भौतिक और अनूदित दोनों रूपों में लिखे गये। इनमें से कुछ रचनाएँ स्वतंत्र गद्य ग्रन्थों के रूप में मिलती हैं और कुछ कृतियों में पद्य के साथ-साथ गद्य का भी प्रयोग किया गया है। आराधना, अतिचार तत्वचिचार पृथ्वीचन्द्र चरित आदि स्वतन्त्र गद्य रचनाएँ हैं तथा कुवल माला कहा, जगत सुन्दरी, प्रयोग माला, कीर्तिलता, कीर्तिपताका आदि में पद्य के बीच गद्य के सुन्दर उदाहरण मिल जाते हैं। ज्योतिरीश्वर ठाकुर का वर्ण-रत्नाकर भी गद्य-ग्रन्थ हैं एक प्रकार से शब्दों की सूची।

दूसरे प्रकार की उपलब्ध रचनाओं में उद्योत नसूरि की कुवलयमालाकहा प्राचीनतम है। इसमें पद्य के बीच अपभ्रंश गद्य के प्रयोग मिलते हैं। 'जगतसुन्दरीप्रयोगमाला 13वीं शताब्दी का एक वैद्यक ग्रन्थ, जिसके बीच-बीच में गद्य के प्रयोग मिलते हैं। इसी प्रकार विद्यापति की कीर्तिलता में स्थान-स्थान पर गद्य का समावेश किया गया है।

डॉ. दासदेव सिंह ने उदभवकालीन गद्य का विवेचन करते हुए इस परिसन्दर्भ में अपने ग्रन्थ साहित्यासदेवसमीक्षा के उदसिहाल में लिखा है कि इस युग में स्वतन्त्र 'हिन्दी साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास में लिखा है कि इस युग में स्वतन्त्र रूप से जो गद्य साहित्य लिखा गया वह मुख्यतः चार प्रकार का था

(अ) धार्मिक गद्य
(स) कलात्मक गद्य
(ब) ऐतिहासिक गद्य
(द) स्फुट गद्य

डॉ. सिंह द्वारा विवेचित इन चारों प्रकार के गद्य साहित्य का संक्षिप्त सार हम यहाँ साभार प्रस्तुत कर रहे हैं -

(अ) धार्मिक गद्य - धार्मिक गद्य जैस लेखकों द्वारा लिखा गया है। प्राचीन गर्जुर काव्य संग्रह में ऐसी बहुत सी रचनाओं को संग्रहित किया गया है, जिनमें 8 मुख्य हैं आराधना, बाल शिक्षा, अतिसार (सम्वत् नक्कार व्याख्यान, सर्वतीर्थनमस्कारस्तवन अतिसार, तत्वविचारप्रकारण तथा धन पालकथा ( 14 वीं शताब्दी)।

इन उपलब्ध कृतियों में 'आराधना' प्राचीनतम है। इसका लेखक अज्ञात है। इसकी हस्तलिपि प्रति पाटण में एक ताम्रपत्र में सुरक्षित है। यह एक धार्मिक रचना है, जिसमें उपासना पद्धति पर प्रकाश डाला गया है। इसकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ प्राचीन हिन्दी के भी प्रयोग मिलते हैं। अतिचार नामक दो कृतियाँ प्राप्त हुई हैं, एक का रचनाकाल सं. 1340 है और दूसरी का 1369 इनकी भी हस्तलिखित प्रतियाँ सुरक्षित हैं। ये भी धार्मिक रचनाएँ हैं जिसमें अतिचार के दोषों से बचने के उपाय बताये गये हैं तत्वविचार प्रकारण 14वीं शताब्दी की रचना है। उसकी हस्तलिखित प्रति श्री अगरचन्द्र नाहता को बीकानेर के 'बड़े ज्ञानभण्डार' से उपलब्ध हुई है। इसमें भी जैन धर्म की विशेषताओं का वर्णन है। धनपाल कथा भी 14वीं शताब्दी की रचना है। इसकी भी हस्तलिखित प्रति बीकानेर के भण्डार में सुरक्षित है। इसकी भाषा राजस्थानी मिश्रित पुरानी हिन्दी है। भाषा का नमूना इस प्रकार "उज्जयनी नाभि नगरी तिहठें भोजदेवु राधा। तीयाहि तगाह पंचह सयह पंडितह मांहि मुख्य धनपाल नाभि पंडितच तीथहिं तणइ धरि अन्यदा कदापि साधु विरहिण निमित्तु पड्ठा।

'दशार्णभद्रकथा' नामक एक अन्य पुस्तक का भी पता चला है। इसमें दशामें दशार्म भद्र की कथा कही गयी है। यह तरुण प्रभु सूरि नामक जैन लेखक की रचना है। उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त जैन लेखकों द्वारा गद्य में टीका, भाष्य और अनुवाद का भी कार्य हुआ है। सोमसुन्दरिसूरि, मेरुसुन्दरिसूरि, पार्श्वचन्द्र आदि ने जैन धर्म के कर्मकाण्ड पर गद्य रचना की है।

(ब) ऐतिहासिक गद्य - ऐतिहासिक गद्य जैन और जैनेत्तर दोनों प्रकार के लेखकों द्वारा लिखा गया है। जैन लेखकों ने गुर्वावली पट्टावली, वंशावली और ऐतिहासिक टिप्पणी की रचना की है। "गुर्वावली' में गुरु-परम्परा का उल्लेख है। 'पट्टावली में आचार्यों की जन्म, दीक्षा और साधना का वर्णन है तथा वंशावली में जैन श्रावकों की विवरणिका दी गयी है।

जैनेत्तर गद्य मुख्य रूप से डिंगल भाषा में लिखा गया है। यह साहित्य ख्याति, बात, विगत, पीढ़ी, वंशावली आदि रूपों में मिलता है। वे एक प्रकार से तत्कालीन इतिहास का बोध कराने वाली रचनाएँ हैं।

(स) कलात्मक गद्य - कलात्मक गद्य मुख्य रूप से वचनिका, द्वावैत सिलोका आदि रूपों में पाया जाता है। वचनिका में गद्य तुकात्मक होता है। चारण शैली में लिखी गयी अचलदास खींची री वचनिका में गद्य तुकात्मक होता है। चारण शैली में लिखी गयी अचलदास खींची री वचनिका तथा राठौर रतन सिंह जी महेरा दैसौत री वचनिका प्रमुख है। द्वावैत कलात्मक गद्य का एक विशेष रूप है। इस पर फारसी शैली का प्रभाव है। यह गद्य-पद्य दोनों में लिखा गया है और जैन तथा अजैन दोनों प्रकार के लोग इसके लेखक हैं। सिकोरा, श्लोक का तद्भव है। इसमें वधू के भाई और वर में संवाद दिखाया जाता है।

(द) स्फुट गद्य साहित्य - उपरोक्त तीन गद्य रूपों के अतिरिक्त वैद्यक, ज्योतिष, योग, व्याकरण आदि विषयों पर भी गद्य रचनाएँ मिलती हैं। 14वीं शताब्दी में गणेश संग्राम सिंह ने 'बालशिला' नामक एक व्याकरण की रचना की थी। इसमें संस्कृत व्याकरण को सरल जनभाषा में समझाया गया है। इसी परम्परा में 'मुक्ति व बोध औक्तिक का भी पता चला है।

इन कृतियों के अतिरिक्त आदिकालीन गद्य की श्रृंखला में कुछ अन्य कृतियों की भी चर्चा की जाती है। जिन्होंने तत्कालीन गद्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन कृतियों के नाम हैं-

(i) राउरबेल
(ii) उक्ति व्यक्ति प्रकरण
(iii) वर्ण-रत्नाकर

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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