बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
अथवा
हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की समीक्षा पद्धति का विस्तृत विश्लेषण कीजिए।
उत्तर -
हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान
हिन्दी आलोचना और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल दोनों एक-दूसरे के पर्याय हैं। आज भी जब कभी हिन्दी आलोचना का जिक्र होता है तो आचार्य शुक्ल का नाम अवश्य लिया जाता है। इसका एकमात्र कारण यह है कि आचार्य शुक्ल ने हिन्दी आलोचना को न केवल चलना सिखाया, अपितु उसे प्रौढ़ता और परिष्कार के शिखरों तक ले जाने का काम भी किया। इसी से शुक्ल जी के युग में और शुक्लोत्तर युग में आचार्य शुक्ल का नाम बराबर लिया जाता है। शुक्ल जी की हिन्दी आलोचना को देन अभूतपूर्व है।
आचार्य शुक्ल का हिन्दी समीक्षा में अवतरण एक अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक घटना थी। शुक्ल जी से पूर्व हिन्दी समीक्षकों के सामने न तो कोई आदर्श था और न कोई ठोस सिद्धान्त शुक्ल जी ने हिन्दी समीक्षा को सुनिश्चित मानदण्ड दिये और विकसित आलोचना-पद्धति प्रदान की। उन्होंने साहित्य को सूक्ष्म शक्ति व भावों के उद्वेलन की शक्ति की समीक्षा की कसौटी पर रखा। उन्होंने सामाजिकता को भी साहित्य का एक तत्व माना और काव्य में लोकमंगल की भावना की स्थापना की। उन्होंने काव्य के भावपक्ष और कलापक्ष दोनों पर समान रूप से विचार किया।
शुक्ल जी ने ही कला के लिये और कला जीवन के लिये सिद्धान्तों का पूर्व सामञ्जस्य प्रस्तुत किया। इस प्रकार शुक्ल जी ने अपनी लोकमंगलवादी और रसवादी जीवन दृष्टि को अपनाया और सन्तुलित मान मूल्यों की स्थापना की। शुक्ल जी ही प्रथम आलोचक थे, जिन्होंने पहले-पहल कवियों की आन्तरिक विशेषताओं पर प्रकाश डाला और पहली बार प्राचीन रस-पद्धति और पाश्चात्य समालोचना-पद्धति का समन्वय किया। आचार्य नंद दुलारे बाजपेयी जी ने लिखा है कि "शुक्ल जी ने रस और अलंकारशास्त्र को नई मनोवैज्ञानिक दीप्ति दी और उन्हें उच्च मानसिक भूमि पर प्रतिष्ठित किया। दूसरे शब्दों में, शुक्ल जी ने समीक्षा के भारतीय साँचे को बना रहने दिया। उन्होंने उच्चतर जीवन-मूल्यों को जीवन-सौन्दर्य का पर्याय बनाकर रस- अलंकार-पद्धति का व्यवहार किया। जहाँ तक उनकी प्रयोगात्मक आलोचना का प्रश्न है उन्होंने तुलसी और जायसी जैसे उच्चतर कवियों को चुना और उनके ऊँचे काव्य-सौन्दर्य के साधारण और अलंकार का विन्यास करके रस-पद्धति को अपूर्व गौरव प्रदान किया।'
हिन्दी आलोचना के इतिहास में शुक्ल जी का प्रवेश उस समय हुआ जब आलोचना के नाम पर मात्र गुण-दोष विवेचन तथा परस्पर कवियों की तुलना की स्थूल पद्धति प्रचलित थी। शुक्ल जी ने अपनी उपस्थिति से सबसे पहले आलोचना की इस पद्धति के सामने ही प्रश्नचिन्ह लगाया और इसकी तुलना में कवियों की अन्तः प्रवृत्तियों के अन्वेषण की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। शुक्ल जी के आते ही हिन्दी आलोचना का केन्द्र बदल जाता है और देव और बिहारी की तुलना से हटकर सारा ध्यान भक्तिकालीन कवियों के आन्तरिक विश्लेषण की तरफ चला जाता है। इसके पूर्व आलोचना या साहित्यिक वाद-विवाद के लिये रीतिकालीन कविता को ही उपयुक्त समझा जाता था। स्वयं सूर, तुलसी आदि की विस्तृत चर्चा करके उन्होंने व्यावहारिक आलोचना दृष्टि का निर्माण किया जिससे हिन्दी पाठकों की रुचियों का भी संस्कार हुआ। पाठक वर्ग भक्तिकालीन मूल्यवादी कविताओं का महत्व समझने लगा। कहने की आवश्यकता नहीं कि पाठकों की रुचियों में यह बदलाव आचार्य शुक्ल के आलोचना-कर्म का परिणाम था जिसने नये सिरे से केवल हमारी आलोचना दृष्टि को ही संगठित नहीं किया बल्कि सारे साहित्य निर्माण की दिशा ही बदल डाली। शुक्ल जी 'कला निपुणता तथा सहृदयता को अलग-अलग मानते हैं और कविता के लिये दोनों की अनिवार्यता स्वीकार करते हैं किन्तु जिसे वे काव्य का स्वरूप संगठित करना कहते हैं उसके लिये सहृदयता की ही आवश्यकता मानते हैं। शुक्ल जी का रस सिद्धान्त भी इसी अर्थ में है। अपने रसवाद में उन्होने अनुभूति को महत्वपूर्ण स्थान दिया और उसे लोक मानस के व्यापक धरातल पर प्रतिष्ठित किया। शुक्ल जी ने काव्य और कला के माध्यम से सिद्ध होने वाले अनुभूति योग या भावयोग को ज्ञान योग और कर्म योग के बराबर माना और लोक में उसके विस्तार पर विशेष बल दिया। मुक्त हृदय से मनुष्य अपनी सत्ता को अपनी लोक सत्ता में लीन किये रहता है, इन अनुभूतियोग के अभ्यास से हमारे मनोविकारों का - परिष्कार तथा शेष सृष्टि के साथ हमारे रागात्मक सम्बन्ध की रक्षा होती है। भावों में शुक्ल जी ने करुणा की सर्वाधिक महत्व दिया है, क्योंकि करुणा को ही वे लोक सत्ता में व्यक्ति सत्ता जोड़ने वाला भाव मानते थे। उनके अनुसार यह वही भाव है जो शीघ्र ही आश्रय को आलम्बन के साथ जोड़ता है आत्म- प्रसार में सहायक होता है और अन्ततः लोकमंगल का विधान करता है। वस्तुतः लोकमंगल के अपने इस आदर्श की स्थापना करके शुक्ल जी ने काव्य को उसकी वास्तविक भूमि पर निरूपित करने का महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित किया है। काव्य की लोकोत्तर भावभूमि उन्हें मान्य नहीं है और वे उसे सहज रूप में लोक सामान्य भूमि पर ही स्थित मानते हैं। रसानुभाव को भारतीय काव्यशास्त्र में लोकोत्तर कहा गया है जिसका उल्लेख करते हुये शुक्ल जी लिखते हैं- "हमारे यहाँ लक्षण ग्रन्थों में रसानुभूति को जो लोकोत्तर और ब्रह्मानंद सहोदर आदि कहा है वह अर्थवाद के रूप में है, सिद्धान्त रूप में नहीं। उसका तात्पर्य केवल इतना है कि रस में व्यक्तित्व का लय हो जाता है।" व्यक्तित्व का लय हो जाना अपने स्वार्थ सम्बन्धों से ऊपर उठकर सामान्य भावभूमि पर पहुँच जाना है। साहित्य के सन्दर्भ में शुक्ल जी की सारी समस्या इसी लोक सामान्य भावभूमि को प्राप्त कर लेने की है। इसी समाजवादी एवं प्रजातान्त्रिक दृष्टि से शुक्ल जी का सम्पूर्ण आलोचनात्मक विवेचन सम्पन्न हुआ है।
शुक्ल जी ने काव्य को लोकोत्तर युग में उतारकर उसका अवमूल्यन किया। वे योग, तन्त्र, रसायन आदि को रहस्य मार्ग मानकर साधना के क्षेत्र में उनका महत्व स्वीकार करते हैं, किन्तु काव्य के साथ उसका सम्बन्ध स्थापित नहीं करते। इसलिये उन्होंने कबीर के रहस्यवाद का विरोध भी किया तथा छायावादी रहस्य-चेतना को भी अपनी स्वीकृति नहीं दी, साथ ही पश्चिमी कलावाद एवं भारतीय आनन्दवाद एवं चमत्कारवाद का विरोध किया। शुक्ल जी ने काल को व्यापक सामाजिक जीवन के सन्दर्भ में देखा और प्रयत्न पक्ष और उपभोग पक्ष जीवन के इन दोनों पक्षों से उनका सम्बन्ध स्थापित किया। शुक्ल जी के विवेचन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने किसी सिद्धान्त या मतवाद से बंधकर रहना मंजूर नहीं किया और जहाँ जब जैसी आवश्यकता हुई अपने विवेक से ही काम किया। इसलिये उन्होंने विभिन्न परम्परित मूल्यों तथा मान्यताओं की व्याख्या भी लीक से हटकर ही प्रस्तुत की।
हिन्दी आलोचना में आचार्य शुक्ल का महत्व प्रतिपादित करने वाले प्रमुख सूत्र निम्न प्रकार हैं-
1. शुक्ल जी ने प्रणेता की व्यक्ति मनःस्थिति और युग की निर्माणकारी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर आलोचना की। इसी से शुक्ल जी युग प्रवर्तक आलोचक कहलाये।
2. आचार्य शुक्ल ने हिन्दी समीक्षा को शास्त्रीय और वैज्ञानिक आधार प्रदान किया।
3. व्यावहारिक समीक्षा के साथ-साथ सिद्धान्त प्रतिपादन का कार्य भी आचार्य शुक्ल ने किया।
4. गवेषणात्मक और व्याख्यात्मक आलोचना को बढ़ावा देकर हिन्दी साहित्य का इतिहास भी शुक्ल जी ने ही लिखा।
5. व्यापक समीक्षादर्श का निरूपण आचार्य शुक्ल ही कर सके। अतः उनका स्थान सर्वोच्च है।
6. आचार्य शुक्ल ने प्राचीन और नवीन पौर्वात्य और पाश्चात्य समीक्षा - सिद्धान्तों का समन्वय करके अपनी गूढ़ प्रतिभा के सहारे हिन्दी समालोचना का पथ प्रशस्त किया।
7. आचार्य शुक्ल की समीक्षा पद्धति में भाव पक्ष और कला पक्ष की सूक्ष्मातिसूक्ष्म विवेचना की प्रवृत्ति, निर्णय प्रवृत्ति, तुलनात्मक और ऐतिहासिक विवेचना क्षमता के साथ-साथ हृदय और बुद्धि का समान योग दिखायी देता है।
स्पष्ट है कि अन्य आलोचक जहाँ अपनी प्रभाववादी शैली में काव्य की व्याख्या करते रहे, वहीं शुक्ल जी ने ढूंढ-ढूँढ कर काव्य भाषा के तत्वों से अपनी आलोचना भाषा को संश्लिष्ट और सृजनात्मक बनाने का महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित किया। इस प्रकार शुक्ल जी की आलोचना भाषा में सजग शब्द प्रयोग, बिम्ब-विधान एवं नाद नाद - सौन्दर्य ये सभी काव्य भाषा के गुण विद्यमान हैं और इसलिये उनकी आलोचना काव्य के समान ही सृजनशील और मूल्यवान है।
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- प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
- प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
- प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
- प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
- प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
- अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
- प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
- प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
- प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
- प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
- प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
- प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
- अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
- अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
- प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
- प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
- प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
- प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
- प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
- अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
- प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
- अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
- अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
- प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
- अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
- प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
- अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
- अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
- प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
- अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
- अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
- अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।