बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 इतिहास बीए सेमेस्टर-3 इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 इतिहास
प्रश्न- टीपू की शासन प्रणाली का सविस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
टीपू सुल्तान के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
टीपू की शासन प्रणाली
(Tipu's Administration)
उस समय भारत में केवल निरंकुशवाद का ही बोलबाला था तथा इसी कारण टीपू का प्रशासन भी भिन्न नहीं हो सकता था। टीपू ही देश में संपूर्ण सैनिक, असैनिक व राजनैतिक शक्ति के केन्द्र बिन्दु थे। वह स्वयं ही अपना विदेश मंत्री व मुख्य सेनापति या न्यायाधीश था।
टीपू पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं था फिर भी वह संयमी व दयालु राजा था। वह कर्मशील तथा कर्तव्यपरायण राजा की तरह कार्य करता था। उसे इस बात का एहसास था कि अपनी प्रजा के व्यवहार के प्रति एक दिन उसे ईश्वर को उत्तर देना होगा और वह हमेशा प्रजा के हितकारी कार्य करता था।
केन्द्रीय प्रशासन - टीपू सुधार तथा नये प्रयोग से लगाव रखता था। इसीलिए जल्द ही उसने अपनी शासन प्रणाली में कई सुधार किये, जो उसे अपने पिता हैदर अली से विरासत में प्राप्त हुई थी। डाडवैल के अनुसार टीपू पहला ऐसा भारतीय राजा था जिसने पाश्चात्य परम्पराओं को भारतीय प्रजा पर लागू करने का प्रयास किया। हर विभाग का एक अलग अधिकारी नियुक्त होता था और बहुत से निम्न स्तर के अधिकारी उसकी सहायता के लिए थे। ये सभी एक बोर्ड के रूप में कार्य करते थे। पूरे वाद- विवाद के बाद ही निर्णय लिया जाता था। इस वाद-विवाद में सदस्यों को मतभेद प्रकट करने का पूरा अधिकार था। सभी निर्णय बहुमत के आधार पर होते थे और बैठकों की कार्यवाही का लेखा-जोखा रखा जाता था लेकिन इन सभी मामलों में अन्तिम निर्णय टीपू सुल्तान ही करता था।
टीपू के शासन में प्रधानमंत्री या वजीर का पद नहीं होता था। सात मुख्य विभाग से जो मीर आसिफ के अधीन होते थे जो स्वयं सुल्तान के प्रति उत्तरदायी था। ये विभाग निम्नलिखित प्रकार के थे -
(i) राजस्व तथा वित्त - मीर आसिफ कचहरी के अधीन,
(ii) सेना विभाग - मीर मीरां कचहरी के अधीन,
(iii) जमरा विभाग - एक अन्य मीर मीरां कचहरी के अधीन,
(iv) तोपखाना तथा दुर्ग रक्षा विभाग - मीर सदर कचहरी के अधीन,
(v) वाणिज्य विभाग - मलिक उत्तुजार के अधीन,
(vi) नाविक विभाग - मीर याम कचहरी के अधीन,
(vii) कोष और टंकन विभाग - मीर खजाना कचहरी के अधीन।
इन सात के अतिरिक्त तीन अन्य छोटे-छोटे विभाग थे डाक तथा गुप्तचर विभाग, लोक निर्माण तथा पशु विभाग।
प्रान्तीय तथा स्थानीय प्रशासन - टीपू ने अपने साम्राज्य को 1784 के बाद सात प्रान्तों में विभाजित कर दिया जिन्हें आसफी टुकड़ी के नाम से जाना जाता था। कालान्तर में इन प्रान्तों की संख्या बढ़कर 17 हो गई। प्रान्तों में मुख्य अधिकारी आसिफ तथा फौजदार होते थे। ये दोनों एक-दूसरे पर नियंत्रण रखते थे। प्रान्तों को जिलों तथा जिलों को ग्रामों में बांट दिया गया था। स्थानीय प्रशासन की व्यवस्था पंचायतें करती थीं।
भूमिकर व्यवस्था - मुख्य रूप से टीपू ने अपने पिता के समय से चली आ रही भूमि कर प्रणाली को बनाये रखा साथ ही उसमें अधिक कार्यक्षमता लाने का भी प्रयास किया। टीपू ने किसान व सरकार से सीधा संपर्क बनाया और जमींदारी प्रणाली का अन्त किया। उसने कर मुक्त इनाम भूमि पर पुनः अधिकार कर लिया तथा पॉलिगारों के पैतृक अधिकार जब्त कर लिये।
सरकार ने प्रेरणा संलग्न अनुरोध की प्रणाली द्वारा अधिक से अधिक भूमि को जोत में लाने का प्रयास किया। आमिल जो जिले का कार्यवाहक था, जिले का दौरा करता था तथा किसानों को अधिक भूमि जोत में लाने के लिये हल व पशुओं के लिए तकावी ऋण दिया जाता था। दूसरे, आमिल यह भी देखता था कि परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक है तथा हल कम है तो वह परिवार के मुखिया को अन्य हल प्राप्त करने की प्रेरणा देता था। आमिल यह भी देखता था कि यदि किसी ग्राम में किसी विशेष फसल के लिए भूमि तो है लेकिन वहां के वासी इस फसल को करने को उद्यत नहीं हैं तो वह उस ग्राम पर उस विशेष फसल की डर से भूमि कर लगा देता था न कि वास्तविक जुती हुई भूमि कर।
भूमिकर 1/3 से 1/2 लिया जाता था, जोकि भूमि की उर्वरता व सिंचाई की सुविधाओं पर निर्भर था। 1792 में भूमि कर की आय एक करोड़ रुपये से अधिक थी जोकि श्री रंगापट्टम की सन्धि के पश्चात् आधी रह गई थी क्योंकि उसे अपने राज्य का आधा भाग शत्रुओं को छोड़ देना पड़ा था। इस क्षति की पूर्ति के लिए टीपू को 1795 में, 1891 के भूमि की दरों में 37 प्रतिशत की वृद्धि करनी पड़ी।
वाणिज्य तथा व्यापार - यूरोपीय शक्तियों की तरह टीपू ने भी इस तथ्य को समझा कि देश अपने वाणिज्य और व्यापार का विकास करके ऊंचा उठ सकता है। इसलिए उसने देशीय तथा अन्तर्देशीय व्यापार का विकास किया तथा अपने गुमाश्ते मस्कट, भुर्ज, जद्दाह और अदन इत्यादि नगरों में नियुक्त किये। उसने बर्मा तथा चीन से भी सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश की। इसलिए उसने एक वाणिज्य बोर्ड की स्थापना की तथा 1793-94 के नियमों के अनुसार इस विभाग के अधिकारियों के कर्त्तव्य निश्चित किये। टीपू ने चन्दन, सुपारी, कालीमिर्च, मोटी इलायची, सोने व चांदी का व्यापार व हाथियों के निर्यात इत्यादि का कार्य केवल सरकार के एकाधिकार में ले लिया। इसी प्रकार आन्तरिक व्यापार के मामले में भी किया। काली मिर्च व चन्दन, केवल सरकार ही मोल ले सकती थी। इसके अतिरिक्त उसने राज्य में कुछ कारखाने भी लगाये यहाँ युद्ध के लिए गोला बारूद, कागज, चीनी, रेशमी कपड़ा, छोटे- छोटे उपकरण व अन्य सुन्दर वस्तुएं बनाई जाती थीं।
सैनिक प्रशासन - समकालीन विवशताओं के कारण सुल्तान के अपने समय का अधिक भाग सैनिक तैयारी में लगाना पड़ता था। टीपू ने अपनी पद्धति सेना का अनुशासन यूरोपीय नमूने पर गठित किया। इसमें फारसी के आदेश शब्दों का प्रयोग किया जाता था। इसमें भी फ्रांसीसी कमाण्डरों द्वारा अपनी सेना के प्रशिक्षण की व्यवस्था थी तथा एक फ्रांसीसी सैनिक टुकड़ी तैयार की परन्तु इनको प्रभावशाली समूह बनने की अनुमति नहीं दी जैसाकि निजाम और सिन्धिया के राज्यों में हुआ। वास्तव में उसकी सेना में फ्रांसीसी सैनिकों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती चली गई। 1794 में यह केवल 20 आयुक्त अधिकारियों और श्रीरंगापट्टम की हार के समय केवल 4 आयुक्त और 45 अनायुक्त अधिकारियों तथा सैनिकों तक ही सीमित थी। टीपू की सेना की संख्या उसकी सैनिक आवश्यकताओं व साधनों के अनुसार बदलती रही। तीसरे आंग्ल मैसूर युद्ध के समय उसके पास 45,000 नियमित पद्धति, 2,000 घोड़े तथा कुछ अनियमित सेना थी। 1793 में, अंग्रेजों तथा उनके मित्रों को आधा राज्य देने के पश्चात् उसके पास 30,000 नियमित पद्धति, 7,000 नियमित घुड़सवार 2,000 तोपची और 6,000 अनियमित घुड़सवार थें।
हैदर अली तथा टीपू दोनों ने नौसेना के महत्व को समझा, लेकिन अपने प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी ईस्ट इंडिया कंपनी के स्तर को कभी प्राप्त नहीं कर सके। जो भी जलपोत हैदर अली ने बनाये थे वे सभी एडवर्ड ह्यूमज ने 1780 में मंगलौर पर आक्रमण के समय नष्ट कर दिये थे।
जब तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध में अंग्रेजों ने टीपू के अधीन मालावार तट के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया तो सुल्तान के लिए जल सेना का महत्व और भी बढ़ गया। 1796 में टीपू ने नौसेना बोर्ड का गठन किया तथा 22 युद्धपोत तथा 20 बेड़े फ्रिगेट बनाने की योजना बनाई। उसने मंगलोर, बाजिदाबाद तथा मोलीदाबाद में पोत बनाने के घाट बनाये परन्तु यह योजना सिरे नहीं चढ़ी। उसके साधन अंग्रेजों के साधनों से बहुत कम थे। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए उसने कहा था कि मैं अंग्रेजों के स्थल साधनों को तो समाप्त कर सकता हूँ लेकिन मैं समुद्र को तो नहीं सुखा सकता।
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- प्रश्न- भारत में सर्वप्रथम प्रवेश करने वाले विदेशी व्यापारी कौन थे? विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में डच शक्ति के आगमन को समझाते हुए डचों के पुर्तगालियों व अंग्रेजों से हुए संघर्षो पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में पुर्तगालियों के पतन के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- फ्रांसीसियों के भारत आगमन एवं भारत में फ्रांसीसी शक्ति के विस्तार को समझाइए।
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- प्रश्न- अंग्रेजों का भारत में किस प्रकार प्रवेश हुआ संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- यूरोपीय फ्रांसीसी कंपनी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- पुर्तगालियों के असफलता के कारण बताइये।
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- प्रश्न- क्लाइव द्वारा बंगाल में द्वैध शासन की विवेचना कीजिये।
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- प्रश्न- प्लासी के युद्ध (सन् 1757 ई.) के परिणाम बताइये।
- प्रश्न- राबर्ट क्लाइव के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- बक्सर के युद्ध का महत्त्व बताइये।
- प्रश्न- बंगाल में द्वैध शासन का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
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- प्रश्न- वेलेजली के अधीन अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार एवं कंपनी के प्रदेश की सीमाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- वेलेजली के अवध के साथ सम्बन्ध पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- लॉर्ड विलियम बेंटिक के प्रशासनिक एवं सामाजिक सुधारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लार्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा तथा अन्य क्रूर प्रथाओं को बन्द करने की क्या नीति अपनाई? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विलियम बैंटिक के समाचार पत्रों के प्रति उदार नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विलियम बैंटिक के द्वारा नैतिक तथा बौद्धिक विकास के लिए किये गये शैक्षणिक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बैंटिक के वित्तीय तथा न्यायिक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड विलियम बैंटिक के प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ब्रिटिश भारत में स्त्रियों की स्थिति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर ब्रिटिश शासन के सामाजिक प्रभाव का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अंग्रेजों द्वारा पारित सामाजिक कानून पर निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- 1833 के चार्टर एक्ट पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी की 'हड़पनीति से आप क्या समझते हैं? इस नीति से ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कैसे प्रोत्साहन मिला?
- प्रश्न- - डलहौजी के द्वारा किए गए रचनात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी द्वारा विद्युत तार एवं डाक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी द्वारा रेलवे विभाग में क्या सुधार किये गये?
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी के प्रशासनिक एवं सैनिक सुधारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत के आधुनिकीकरण में लार्ड डलहौजी का योगदान क्या था?
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी को शिक्षा सम्बन्धी सुधारों में कहां तक सफलता प्राप्त हुई? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 1853 के चार्टर एक्ट पर टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- रणजीत सिंह का डोंगरों और नेपालियों से सम्बन्ध को संक्षिप्त में समझाइये |
- प्रश्न- रणजीत सिंह के प्रशासन के अंतर्गत भूमिकर एवं न्याय प्रशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- मैसूर राज्य का विस्तृत अध्ययन कीजिए।
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- प्रश्न- टीपू सुल्तान और मैसूर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मैसूर व इतिहास लेखन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
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- प्रश्न- 1399 ईस्वी से अठारहवीं सदी के मध्य मैसूर राज्य की स्थिति से अवगत कराइये।
- प्रश्न- स्थायी बंदोबस्त से क्या आशय है? लार्ड कार्नवालिस द्वारा स्थायी बंदोबस्त लागू करने के क्या कारण थे?
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- प्रश्न- 19वीं शताब्दी के प्रमुख सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों को बताइये।
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- प्रश्न- ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धान्तों व कार्यों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- 19-20वीं सदी के जातिवाद विरोधी आंदोलनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अहिंसा और सत्याग्रह पर गाँधी जी के विचारों का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- रामकृष्ण परमहंस पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
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- प्रश्न- आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- एक शासक के रूप में अशोक के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- अश्पृश्यता निवारण के लिए महात्मा गाँधी की सेवाओं का मूल्याँकन कीजिए।
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- प्रश्न- स्वदेशी विचार के विकास का वर्णन कीजिए।
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