बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 इतिहास बीए सेमेस्टर-3 इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 इतिहास
प्रश्न- 19-20वीं सदी के जातिवाद विरोधी आंदोलनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
आधुनिक काल में अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
19-20वीं सदी के जातिवाद विरोधी आंदोलन
साम्राज्यवाद के गर्भ से उत्पन्न होने वाली नई ऊर्जाओं एवं ताकतों ने विशिष्ट अन्तर्विरोध उत्पन्न किया। इससे एक ओर तो भारतीय शिक्षित वर्ग उपनिवेशवाद की शोषण प्रवृत्ति से परिचित होने लगा जिसने भारत की प्राण शक्ति को खोखला करने की सीमा तक जर्जर कर दिया था। दूसरी ओर वे स्वयं भी भारतीय समाज के पुरातनपंथी रूढ़िवादी एवं पिछड़ी प्रवृत्ति से परिचित हुए। भारतीय समाज जिन कुरीतियों- कुप्रथाओं से आग्रस्त था इनमें जातीय आधार पर कूर विभाजन (सवर्ण तथा अवर्ण-निम्न जातियाँ) बहुत बड़ी बुराई थी। इससे मनुष्य जाति एक-दूसरे से इस सीमा तक अलग हो गई कि उसका एक बड़ा समूह 'अछूत' बनकर रह गया था। इनके स्पर्श और कभी-कभी छाया मात्र के स्पर्श या आवाज तक से सवर्ण (उच्च जाति वर्ग) हिन्दू जाति स्वयं को अपवित्र मान बैठती थी। ये निम्न जातियां सामान्यतः ग्रामों में तथा नगरों में नीच कार्य करने वाली जातियाँ थीं। अंग्रेजी शासन काल में जातिगत आधार पर की गई जनगणना ने जातीय जड़ता को तोड़ा और निम्न जातियों को सामाजिक मान्यता, वृत्तियों तथा राजनीतिक समर्थन के लिए चलने वाले आन्दोलनों में सक्रिय कर दिया। 1850 के जाति निर्योग्यता निवारण अधिनियम तथा 1872 के विशेष विवाह संशोधन अधिनियम जैसे कतिपय विधानों से जातिगत उच्चता को दूर करने में सहयोग मिला। प्रमुख जातिवाद विरोधी आंदोलन निम्न हैं-
1. सत्यशोधक समाज - जातिवाद के प्रभावी आरम्भिक आन्दोलनों में इसकी शुरुआत होती है | 1873 में ज्योतिबा फूले ने इसकी स्थापना की थी। ज्योतिबा ने अपनी पुस्तकों 'गुलामगीरी' और सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक और अपने संगठन द्वारा पाखण्डी ब्राह्मणों एवं उनके अवसरवादी धर्मग्रन्थों से निम्न जातियों की रक्षा की आवश्यकता पर बल दिया। फूले का निम्न जातियों के शोषण की विचारधारा मुख्यतः राजनीतिक एवं आर्थिक कारकों की अपेक्षा सांस्कृतिक एवं जातीय कारकों पर केन्द्रित थी। गैल आमेवैदत् का मत है कि सत्यशोधक में उच्च वर्ग आधारित परम्परागत प्रवृत्ति तथा अत्यधिक मुक्ति-युक्त जनाधारित उग्र सुधारवाद दोनों विद्यमान थे।
2. श्री नारायण धर्म परिपालनयोगम् - केरल में अछूत एझवा 19वीं सदी के अन्त तक अपेक्षाकृत समृद्ध वर्ग के रूप में उभरकर सामने आ गए थे। इनके धार्मिक नेता श्री नारायण गुरु (1855- 1928) थे। उन्हीं के नेतृत्व में यह संगठन गठित हुआ, जिसने मंदिरों में प्रवेश अधिकार को लेकर आन्दोलन किया। 1920 के दशक में एस. एन. डी. पी. वाई. पर उनके नेता टी. के. माधवन के नेतृत्व में गाँधीवादी राष्ट्रवाद का असर पड़ा और जाति विरोधी आन्दोलन मंदिर प्रवेश जैसे कार्यों से किया जाने लगा।
3. नामशूद्र आन्दोलन - फरीदपुर के नामशूद्र नामक गरीब किसानों में भी कुछ शिक्षित विशिष्ट लोगों और कतिपय ब्रह्म समाजियों की प्रेरणा और धर्म प्रचार के प्रोत्साहन से जाति संगठनों का विकास होना प्रारम्भ हुआ। वे ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठावान और राष्ट्रीय आन्दोलन के विरोधी थे। उनका विश्वास था कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद के स्थान पर उच्च जातियों के शोषण से मुक्ति कहीं अधिक आवश्यक है। उन्होंने हिन्दू भद्रलोक राष्ट्रवादियों के विरुद्ध एक कार्यक्रम में मुसलमानों का साथ दिया।
4. जस्टिस पार्टी आन्दोलन - 20 नवम्बर 1916 को देश के सबसे पुराने एवं सबसे अधिक समय तक स्थायी रहने वाले ब्राह्मण विरोधी आन्दोलन का उस समय जन्म हुआ, जब मद्रास के कुछ गैर- ब्राह्मण नागरिकों का एक समूह जैसे- डॉ. टी. एम. नायर, सर पित्ती थ्यागराज चेट्टियार और पोंगल के राजा ने एक साथ मिलकर दक्षिणी भारत उदारवादी संघ की स्थापना की। इन्होंने सर्वप्रथम गैर-ब्राह्मणों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की माँग की। इस संघ ने 'जस्टिट' नाम से एक अखबार निकाला और यह संघ धीरे-धीरे जस्टिस पार्टी कहा जाने लगा।
1919-20 के चुनावों में कॉंग्रेस के बहिष्कार के कारण जस्टिस पार्टी मद्रास प्रेसीडेन्सी में चुनाव जीती। ब्रिटिश सरकार ने काँग्रेस के विरुद्ध इन्हें इस्तेमाल किया क्योंकि उस समय अधिकांश शिक्षित युवक एवं उच्च जातीय वर्ग काँग्रेस की ओर आकर्षित हो रहा था।
5. आत्म सम्मान आन्दोलन - जाति विरोधी आन्दोलन में ई वी रामास्वामी नामकर उर्फ पेरियार के शामिल हो जाने से तेजी आई और यह अधिक उग्र हो गया। काँग्रेस छोड़ने के बाद 1925 में पेरियार ने आत्म सम्मान आन्दोलन छेड़ा। इसका उद्देश्य गैर ब्राह्मण समुदाय में जागृति पैदा करना था। इनके पत्र 'कुडि अरसु' और 'आन्दोलन' दोनों ने ही ब्राह्मण पुरोहित के बिना विवाह करने, बलात् मंदिर में प्रवेश करने तथा मनस्मृति की प्रतियाँ जलाने के साथ-साथ कभी-कभी पूर्ण नास्तिकतावाद का समर्थन किया। वास्तव में उन्होंने दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु में सभी गैर-ब्राह्मणों को इस आन्दोलन के झण्डे के नीचे लाने का प्रयत्न किया।
1937 के बाद जस्टिस पार्टी का दायित्व पेरियार को मिला और उन्होंने अपने आन्दोलन को राजनीति के सहारे के बिना सुधारवादी रवैया अपनाया। पेरियार ने मुस्लिम लीग की ही भाँति पृथक राज्य के सिद्धान्त की स्वीकृति दी और पृथक् द्रविड़नाडु की माँग आरम्भ की। शायद इसी वजह से यह आंदोलन सीमित क्षेत्र में सिमट गया और कर्नाटक, आंध्रप्रदेश तथा केरल आदि में यह फैलाव नहीं पा सका। कालान्तर में पेरियार से विवाद के चलते सी. एन. अन्नादुराई के नेतृत्व में द्रविड़ कडगम् के प्रमुख लोगों ने नई पार्टी 'द्रविड़ गुनेत्र कड़गम् बनाई और चुनावी राजनीति में हिस्सा लिया।
6. कोल्हापुर के राजा शाहू जी महाराज के कार्य - 1920 के दशक में जाति विरोधी अस्पृश्यता समाप्ति के लिए शासक वर्ग के ही एक सदस्य तथा कोल्हापुर के शाहू जी महाराज ने अत्यधिक क्रान्तिकारी सुधार कार्य किए। ब्राह्मणों की निरोधक सत्ता को भंग करने के लिए उन्होंने निम्न जातियों की दशा को सुधारने और उन्नत करने के भाव से वैदिक संस्कारों और कर्मकाण्डों को सम्पन्न करने के लिए गैर-ब्राह्मणों को प्रशिक्षित किया। बाद में इन समाज सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने आर्य समाज को आमन्त्रित किया और अपने राज्य की प्रशासनिक सेवा के पचास प्रतिशत पदों को गैर-ब्राह्मणों के लिए आरक्षित कर दिया। उन्होंने दलितों के लिए विद्यालय की भी स्थापना की। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में अंग्रेजों का साथ दिया।
7. काँग्रेस और हरिजन आन्दोलन - प्रारम्भ में काँग्रेस की कार्य सूची में जातीय निर्योग्यताएं न थीं किन्तु 1917 में काँग्रेस ने "दलित वर्गों पर परम्परा द्वारा आरोपित सभी निर्योग्यताओं को समाप्त करने की आवश्यकता, औचित्य तथा न्यायसंगतता" के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया। भारत की सक्रिय राजनीति में गाँधी जी के पदार्पण से जातिविरोधी आन्दोलनों के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ तथा इससे निम्न जातियों के आन्दोलन को प्रोत्साहन मिला। 1921 में कॉंग्रेस ने हिन्दुओं से यह अपील की कि, " वे अस्पृश्यता का निवारण करें तथा दलित लोगों के उद्धार में सहायक बनें। अगले वर्ष 1922 में उसने, “पूरे देश में तथाकथित अछूतों की दशा में सुधार लाने के लिए अपनाए जाने वाले व्यावहारिक उपायों वाली योजना बनाने के लिए" एक समिति का गठन किया गया। 1923 में हिन्दू समाज से इस बुराई को पूरी तरह समाप्त करने तथा इस संदर्भ में उचित कार्यवाही के विचार से अखिल भारतीय हिन्दू महासभा से भी अनुरोध करते हुए फिर से एक प्रस्ताव पारित किया। 1928 में भारतीय राष्ट्रीय समाज सम्मेलन ने भी हिन्दू समाज के एकीकरण की इस बड़ी बाधा को दूर करने की आवाज उठाई। 1931 में काँग्रेस के कराची सम्मेलन ने मूल अधिकारों के कार्यक्रम का प्रतिपादन किया। इसमें जाति पर विचार किए बिना सभी सरकारी नौकरियों में सबको समान अवसर तथा सार्वजनिक सुविधाएँ- सड़कों, कूपों, विद्यालयों आदि के उपयोग का समान अधिकार प्रदान करने पर बल दिया गया।
गाँधी जी ने 20 सितम्बर, 1932 को पृथक् निर्वाचन मण्डल के निर्णय के प्रश्न पर आमरण अनशन आरम्भ कर दिया। 24 सितम्बर, 1932 को सवर्ण हिन्दुओं और हरिजन नेताओं के मध्य हुए पूना समझौते के द्वारा साम्प्रदायिक निर्णय में संशोधन किया गया और हरिजनों के लिए पृथक् मतदान की योजना समाप्त हो गई। इस समझौते के दूसरे ही दिन बम्बई में हिन्दुओं के एक सम्मेलन में यह संकल्प पारित किया गया कि निम्न जातीय लोगों को सभी सार्वजनिक स्थलों सड़क, विद्यालय, कुँओं, मंदिरों में प्रवेश का समान अधिकार होगा। इसका सभी वर्गों में देश भर में स्वागत किया गया।
हरिजनों का उत्थान ही अब गाँधी जी का मुख्य उद्देश्य बन गया। अछूतों की दशा को सुधारने तथा उन्हें चिकित्सा, शिक्षा तथा तकनीकी सुविधाएं प्रदान करने के लिए उन्होंने सितम्बर 1932 में 'अखिल भारतीय अस्पृश्यता विरोधी लीग' या 'हरिजन सेवक संघ' की स्थापना की। 1933 में साप्ताहिक 'हरिजन' का प्रकाशन शुरू किया। गाँधी जी 1933 से अगस्त 1934 तक 12,500 मील की हरिजन यात्रा पर भी गए। उन्होंने कहा कि, "अछूतों के कल्याण का कार्य तपस्या है, जिसे हिन्दुओं को अस्पृश्यता के पाप के प्रक्षालन हेतु करना होगा। 1937 की काँग्रेसी सरकारों ने इस दिशा में काफी कार्य किए। इन सभी प्रयासों से राष्ट्रवाद के सन्देश को आगे चलकर समाज के निचले वर्ग तक पहुँचाने में सफलता मिली।
8. डॉ. भीमराव अम्बेडकर तथा उनका जाति-विरोधी आंदोलन - वे अस्पृश्य महार जाति के थे। उनके कार्यक्रमों का उद्देश्य अछूतों को भारतीय समाज के अंग के रूप में परम्परागत नहीं आधुनिक रूप से संगठित करना था ताकि वे शैक्षिक आधार पाकर राजनीतिक अधिकारों एवं कानून का प्रयोग कर सकें एवं साथ ही सारहीन जातीय कर्मों के निष्पादन को अस्वीकार कर सकें। दलितों पर आरोपित सभी प्रकार के सामन्ती प्रतिबन्धों का निषेध करने के लिये उनके आंदोलन ने अखिल भारतीय संगठन का रूप ले लिया तथा जन-आंदोलन किए. पृथक् निर्वाचन मण्डल की माँग की, मनुस्मृति को जलाया तथा मंदिरों में जाने एवं लाल जैसे निषिद्ध रंग के कपड़े पहनने जैसे जातिगत बन्धनों को भी तोड़ा। उनका यह आंदोलन कार्यक्रम काँग्रेस तथा अतिवादी सुधारों दोनों ही के विपरीत था और यह प्रायः ब्रिटिश राजभक्ति एवं पृथकतावादी दृष्टिकोण की ओर उन्मुख हो गया।
1924 में डॉ. अम्बेडकर ने बम्बई में दलित वर्ग संस्थान (बहिष्कृत हितकारिणी सभा) की स्थापना की। तीन वर्ष बाद 1927 में, उन्होंने मराठी पाक्षिक 'बहिष्कृत भारत' का प्रकाशन आरम्भ किया तथा इसी वर्ष सवर्ण हिन्दुओं तथा अछूतों में सामाजिक समानता के सिद्धान्त का प्रचार करने के लिए 'समाज समता संघ' स्थापित किया। मजदूर वर्ग के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने धर्म निरपेक्ष पद्धति पर 'स्वतंत्र श्रमिक पार्टी का गठन किया। दिसम्बर 1927 में उन्होंने सार्वजनिक कूपों तथा तालाबों में पानी लेने के लिए अछूतों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए 'महार सत्याग्रह का नेतृत्व किया। उन्होंने 1928 के पार्वती मंदिर सत्याग्रह तथा 1930-35 के कलसम् मन्दिर सत्याग्रह जैसे मंदिर प्रवेश आंदोलनों का संयोजन किया।
1930-31 के गोलमेज सम्मेलन से पूर्व ही अम्बेडकर दलित वर्गों के सर्वमान्य नेता के रूप में ख्याति पा चुके थे। उन्होंने पृथकतावादी दृष्टिकोण अपनाया तथा दलितों के लिए संविधान के द्वारा आरक्षण व्यवस्था की माँग की। 1930 के दशक में दलितों द्वारा पृथक् निर्वाचन मण्डल की माँग के कारण अम्बेडकर व गाँधी के मध्य मतभेद बढ़ गया। पूना समझौते से अम्बेडकर के नेतृत्व को कुंदता मिली। 1942 में डा. अम्बेडकर ने 'अनुसूचित जाति परिसंघ की स्थापना की। परिसंघ ने 1946 के आम चुनावों में आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ा। हिन्दूवादी व्यवस्था से त्रस्त होकर बाद में उन्होंने अपने समर्थकों को बौद्ध धर्म स्वीकारने का आह्वान किया।
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- प्रश्न- भारत में सर्वप्रथम प्रवेश करने वाले विदेशी व्यापारी कौन थे? विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में डच शक्ति के आगमन को समझाते हुए डचों के पुर्तगालियों व अंग्रेजों से हुए संघर्षो पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में पुर्तगालियों के पतन के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- फ्रांसीसियों के भारत आगमन एवं भारत में फ्रांसीसी शक्ति के विस्तार को समझाइए।
- प्रश्न- यूरोपीय डच कम्पनी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अंग्रेजों का भारत में किस प्रकार प्रवेश हुआ संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- यूरोपीय फ्रांसीसी कंपनी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पुर्तगालियों की सफलता के कारण बताइये।
- प्रश्न- पुर्तगालियों के असफलता के कारण बताइये।
- प्रश्न- आंग्ल-फ्रेंच संघर्ष के विषय में बताते हुए इसके मुख्य कारणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- "अपनी अन्तिम असफलता के बावजूद भी डूप्ले भारतीय इतिहास का एक प्रतिभावान एवं तेजस्वी व्यक्तित्व है।" क्या आप प्रो. पी. ई. राबर्ट्स के डूप्ले की उपलब्धियों के सम्बन्ध में इस कथन से सहमत हैं?
- प्रश्न- भारत में अंग्रेजों की सफलता के क्या कारण थे?.
- प्रश्न- ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधीन भारत में हुए सामाजिक और आर्थिक अभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अंग्रेजी कम्पनी के अधीन भारत में सामाजिक एवं धार्मिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "भारत में फ्राँसीसियों की असफलता का कारण डूप्ले था।' इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में साम्राज्य स्थापित करने में अंग्रेजों की सफलता के कारण बताइये।
- प्रश्न- प्लासी के युद्ध के कारण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बक्सर के युद्ध के कारण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कर्नाटक के युद्ध अंग्रेजों और फ्रांसीसियों की सदियों से परम्परागत शत्रुता का परिणाम थे, विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- द्वितीय कर्नाटक युद्ध के कारणों और परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- उन महत्त्वपूर्ण कारणों का उल्लेख कीजिए जिनसे भारत में प्रभुत्व स्थापना के संघर्ष में फ्रांसीसियों को पराजय और अंग्रेजों को सफलता मिली।
- प्रश्न- क्लाइव की द्वितीय गवर्नरी में उसके कार्यों की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- क्लाइव द्वारा बंगाल में द्वैध शासन की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- भारत में लार्ड क्लाइव के कार्यों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- "प्रथम अफगान युद्ध भारत के इतिहास में अंग्रेजों की सबसे गम्भीर भूल थी।' समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आंग्ल- फ्रांसीसी संघर्ष क्या था? इसके महत्त्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- द्वैध शासन व्यवस्था के गुण एवं दोषों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध के कारणों एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बंगाल के कठपुतली नवाबों के कार्यकाल पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बंगाल के द्वैध शासन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- द्वैध शासन की असफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- कालकोठरी की दुर्घटना क्या थी?
- प्रश्न- नवाब सिराजुद्दौला के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में डच शक्ति के उत्थान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बक्सर का युद्ध (1764) तथा उसके महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- लॉर्ड क्लाइव द्वारा किये गये सुधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'क्लाइव भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- इलाहाबाद की सन्धि की प्रमुख शर्तें क्या थीं?
- प्रश्न- प्लासी युद्ध के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अलीनगर की सन्धि (सन् 1757 ई.) बताइये।
- प्रश्न- सिराजुद्दौला के विरुद्ध अंग्रेजों के मीर जाफर के साथ षड्यंत्र को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्लासी के युद्ध (सन् 1757 ई.) के परिणाम बताइये।
- प्रश्न- राबर्ट क्लाइव के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- बक्सर के युद्ध का महत्त्व बताइये।
- प्रश्न- बंगाल में द्वैध शासन का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- कालकोठरी की दुर्घटना क्या थी?
- प्रश्न- वारेन हेस्टिंग्स के सुधारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वॉरेन हेस्टिंग्ज के अधीन विदेशी सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 1773 के रेग्युलेटिंग ऐक्ट के गुण-दोष क्या थे?
- प्रश्न- हैदर अली के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध के कारणों एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वॉरेन हेस्टिंग्ज के प्रशासनिक एवं राजस्व सुधारों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- वारेन हेस्टिंग्स के समय नन्दकुमार का क्या मामला था?
- प्रश्न- मराठों के पतन के क्या कारण थे?
- प्रश्न- पानीपत के युद्ध की प्रमुख घटनाएँ क्या थीं?
- प्रश्न- वारेन हेस्टिंग्स के समय अवध की बेगमों का क्या मामला था?
- प्रश्न- लार्ड कॉर्नवालिस के सुधारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बंगाल की स्थायी भूमि कर व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कार्नवालिस ने वॉरेन हेस्टिंग्ज का कार्य पूर्ण किया। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- तृतीय मैसूर युद्ध के क्या कारण थे?
- प्रश्न- भूमि कर नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- एक साम्राज्य निर्माता के रूप में वेलेजली की भूमिका का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- टीपू और वेलेजली के मध्य चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध की कारणों सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लार्ड वेलेजली की सहायक सन्धि प्रणाली को समझाते हुए उसके गुण-दोषों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेलेजली तथा फ्रांसीसियों के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- टीपू सुल्तान की पराजय के कारण बताइए।
- प्रश्न- वेलेजली के अधीन अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार एवं कंपनी के प्रदेश की सीमाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड वेलेजली के आगमन के समय भारत की राजनीतिक स्थितियाँ क्या थीं?
- प्रश्न- वेलेजली की सहायक सन्धि की शर्तें क्या थीं?
- प्रश्न- वेलेजली के अवध के साथ सम्बन्ध पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वेलेजली की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- ठगी को समाप्त करने के लिए लार्ड विलियम बैंटिक ने कहां तक सफलता प्राप्त की?
- प्रश्न- ब्रिटिश कम्पनी की भारत में आर्थिक एवं शैक्षिक नीति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- लॉर्ड विलियम बेंटिक के प्रशासनिक एवं सामाजिक सुधारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लार्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा तथा अन्य क्रूर प्रथाओं को बन्द करने की क्या नीति अपनाई? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विलियम बैंटिक के समाचार पत्रों के प्रति उदार नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विलियम बैंटिक के द्वारा नैतिक तथा बौद्धिक विकास के लिए किये गये शैक्षणिक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बैंटिक के वित्तीय तथा न्यायिक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड विलियम बैंटिक के प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ब्रिटिश भारत में स्त्रियों की स्थिति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर ब्रिटिश शासन के सामाजिक प्रभाव का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अंग्रेजों द्वारा पारित सामाजिक कानून पर निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- 1833 के चार्टर एक्ट पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी की 'हड़पनीति से आप क्या समझते हैं? इस नीति से ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कैसे प्रोत्साहन मिला?
- प्रश्न- - डलहौजी के द्वारा किए गए रचनात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी द्वारा विद्युत तार एवं डाक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी द्वारा रेलवे विभाग में क्या सुधार किये गये?
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी के प्रशासनिक एवं सैनिक सुधारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत के आधुनिकीकरण में लार्ड डलहौजी का योगदान क्या था?
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी को शिक्षा सम्बन्धी सुधारों में कहां तक सफलता प्राप्त हुई? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 1853 के चार्टर एक्ट पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह का परिचय देते हुए अफगानों एवं अंग्रेजों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अंग्रेजों और सिक्खों के प्रथम युद्ध के कारण व प्रसिद्ध घटनाओं और परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- रणजीत सिंह का डोंगरों और नेपालियों से सम्बन्ध को संक्षिप्त में समझाइये |
- प्रश्न- रणजीत सिंह के प्रशासन के अंतर्गत भूमिकर एवं न्याय प्रशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह ने सैनिक प्रशासन में कहाँ तक सफलता प्राप्त की? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सिक्खों और अंग्रेजों के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- हैदराबाद के एक राज्य के रूप में उदय की परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- हैदराबाद अकस्मात ही विघटनकारी शक्तियों का शिकार हो गया था, विवेचनात्मक उत्तर दीजिये।
- प्रश्न- 1724-1802 तक की हैदराबाद की राजनीतिक गतिविधियों का अवलोकन कीजिये।
- प्रश्न- टीपू की शासन प्रणाली का सविस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैसूर राज्य का विस्तृत अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- एंग्लो-मैसूर युद्धों का समीक्षात्मक अध्ययन कीजिये।
- प्रश्न- टीपू सुल्तान और मैसूर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मैसूर व इतिहास लेखन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- 18वीं सदी में, मैसूर की स्थिति से संक्षिप्त रूप से परिचित कराइये।
- प्रश्न- 1399 ईस्वी से अठारहवीं सदी के मध्य मैसूर राज्य की स्थिति से अवगत कराइये।
- प्रश्न- स्थायी बंदोबस्त से क्या आशय है? लार्ड कार्नवालिस द्वारा स्थायी बंदोबस्त लागू करने के क्या कारण थे?
- प्रश्न- ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर भिन्न-भिन्न कर प्रणाली लगाने का क्या उद्देश्य रहा?
- प्रश्न- स्थायी बंदोबस्त ने किस प्रकार जमींदारी व्यवस्था को जन्म दिया?
- प्रश्न- भारतीय पुनर्जागरण के कारणों, परिणामों एवं विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 19वीं शताब्दी के प्रमुख सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों को बताइये।
- प्रश्न- क्या राजा राममोहन राय को 'आधुनिक भारत का पिता' कहना उचित है?
- प्रश्न- भारतीय सामाजिक तथा धार्मिक पुनर्जागरण में आर्य समाज की देनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धान्तों व कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के सामाजिक-धार्मिक पुनरुत्थान में स्वामी विवेकानन्द के योगदान का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- 19-20वीं सदी के जातिवाद विरोधी आंदोलनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अहिंसा और सत्याग्रह पर गाँधी जी के विचारों का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- रामकृष्ण परमहंस पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अछूतोद्धार हेतु भीमराव अम्बेडकर के किए गये कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- एक शासक के रूप में अशोक के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- अस्पृश्यता से आप क्या समझते हैं? इसकी समस्याओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय पुनर्जागरण का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- ब्रह्म समाज से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- प्रार्थना समाज ने समाज सुधार की दिशा में क्या कार्य किए?
- प्रश्न- ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के समाज सुधार में किए गए कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आर्य समाज की मुख्य शिक्षाएँ व समाज सुधार में किए गए योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- थियोसोफिकल सोसाइटी पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के सामाजिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में 19वीं सदी में हुए विभिन्न सुधारवादी आन्दोलनों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- अश्पृश्यता निवारण के लिए महात्मा गाँधी की सेवाओं का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- 20वीं सदी में हुए प्रमुख सामाजिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजवाद पर नेहरू के विचारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक काल में जाति प्रथा पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर पड़े दो पाश्चात्य प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- नाविक विद्रोह 1946 का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- स्वदेशी विचार के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- होमरूल से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- साम्प्रदायिक निर्णय 1932 ई. की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- दाण्डी यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- श्री अरविन्द घोष के जीवन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रामकृष्ण मिशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चैतन्य महाप्रभु पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'पुरुषार्थ आश्रमों के मनोनैतिक आधार हैं। टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- उन्नीसवीं सदीं में सामाजिक जागरण के क्या कारण थे?