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बीए सेमेस्टर-3 इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2646
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 इतिहास

प्रश्न- बंगाल की स्थायी भूमि कर व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

बंगाल की स्थायी भूमि कर व्यवस्था
(Permanent Revenue System For Bengal Land)

जिस समय कॉर्नवालिस की नियुक्ति की गई थी उस समय उसे आदेश दिया गया था कि वह भारत में भूमिकर व्यवस्था का ऐसा हल निकाले जिससे कि कंपनी तथा कृषक दोनों के हितों की रक्षा की जा सके। सबसे पहले उसने बंगाल में प्रचलित भूमि कर, किराया तथा पट्टों का पूर्णरूप से अध्ययन किया। काफी लम्बे समय तक वाद-विवाद चलते रहे जिसमें राजस्व बोर्ड के प्रधान सर जॉन शोर अभिलेख पाल (Record Keeper) जेम्स ग्रांट तथा गवर्नर जनरल ने प्रमुख रूप से भाग लिया। प्रमुख रूप से तीन प्रश्न समस्या उत्पन्न कर रहे थे -

1. कृषक या जमींदारों में से किसके साथ व्यवस्था की जाये।
2. भूमि की उपज में शासन का क्या भाग होना चाहिए।
3. व्यवस्था स्थाई की जाये या फिर कुछ वर्षों के लिए।

कुछ लोगों का कहना था कि जमींदार को कर संग्रहकर्ता अथवा भूमि का स्वामी माना जाये लेकिन इस बात पर जॉन शोर तथा जेम्स ग्रांट के विचार विपरीत थे। शोर कॉर्नवालिस को भूमि का स्वामी मानता था और उनका कहना है कि वह सारी भूमि को अपने बच्चों को बपौती के रूप में दे सकता है। उसे गिरवी रख सकता है अथवा बेच सकता है। जॉन शोर का कहना है कि इस प्रकार की स्थिति मुगल काल से चली आ रही थी। जबकि ग्रांट का कहना है कि समस्त भूमि सरकार की है तथा जमींदार केवल उसकी ओर से भूमि कर के संग्रहकर्ता है। सरकार जब चाहे उसे हटा सकती है। कॉर्नवालिस स्वयं इंग्लैंड का एक जमींदार था जो शोर के विचारों से सहमत था। कंपनी के अधिकारियों के पास इतने प्रशासनिक अनुभव भी नहीं थे कि भूमि कर व्यवस्था को सीधे कृषकों के साथ स्थापित कर सकें। अतः कॉर्नवालिस ने जमींदारों से ही व्यवस्था करने की सोची। प्रश्न यह था कि भूमि कर व्यवस्था कितना हो और उसकी व्यवस्था का आधार क्या हो? ग्रांट का विचार था कि मुगलकाल की अधिकतम सीमा अर्थात् जितना कर 1765 में लिया जाता था वह ही निश्चित किया जाये। दूसरी ओर शोर का कहना था कि मुगलकाल में जो निर्धारित कर संग्रह किया जाता था उसकी अपेक्षा वास्तविक कर प्रायः बहुत कम होता था। सोच-विचार करने के बाद यह पता चला कि 1790-91 में जो कर संग्रह किया गया था अर्थात् 2,68,00,000 रुपये को ही आधार स्वीकार किया गया।

समय के विषय में शोर तथा कॉर्नवालिस के विचारों में भिन्नता थी। शोर का कहना था कि न भू- संपत्तियों (Estate) का सर्वेक्षण किया गया और न ही उनकी सीमाओं का निर्धारण किया गया। अतः इस प्रकार की व्यवस्था 10 वर्ष तक के लिए होनी चाहिए। कॉर्नवालिस का विचार इससे भिन्न था उसका कहना था कि यह व्यवस्था स्थायी तथा शाश्वत होनी चाहिए। समय के विषय में उसका कहना था कि 10 वर्ष का समय इतना अधिक नहीं है कि कोई भी जमींदार भूमि में स्थाई सुधार करने का प्रयास कर पायेगा। इस बात का निर्णय कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स ने कॉर्नवालिस के प्रस्ताव को पारित कर दिया।

व्यवस्था - जब कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी तो उसी समय जमींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया गया तथा 1790 में उनसे 10 वर्ष की व्यवस्था कर दी गई। यही व्यवस्था 1793 में स्थाई कर दी गई और सभी जमींदारों तथा उत्तराधिकारियों को यह ऐलान कर दिया गया कि शाश्वत रूप में इसी दर से भूमि कर देना होगा। भूमि के लगान का 8/9 भाग कंपनी को देना था तथा 1/9 भाग अपनी सेवाओं के लिए अपने पास रखना होता था।

व्यवस्था पर विचार - समकालीन विचारों के अनुसार इस स्थाई व्यवस्था से बहुत से लाभ थे- वित्तीय रूप से इसका प्रमुख लाभ यह था कि वर्षा कम हो अथवा अधिक राज्य की आय निश्चित

दूसरा लाभ यह था कि सरकार को समय-समय पर नई व्यवस्था तथा कर निर्धारण नहीं करना होगा। आर्थिक दृष्टि से यह समझा गया कि इससे कृषि व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा और अधिक मात्रा में भूमि जोती जायेगी तथा जमींदार लोग कृषि के नये-नये तरीके, उर्वरक का प्रयोग तथा फसलों का बदलना इत्यादि अपनायेंगे। इस प्रकार स्थाई व्यवस्था भूमि को अधिक से अधिक प्रयोग करने का मौका मिलेगा, जिससे कृषक संतुष्ट तथा धनी बन जायेंगे कॉर्नवालिस को राजनैतिक रूप से इस बात का विश्वास था कि स्थायी व्यवस्था एक ऐसे राजभक्त जमींदारों की श्रेणी उत्पन्न कर देगी जो कंपनी की हर प्रकार से रक्षा करने का प्रयास करेगी क्योंकि कंपनी ने ही उनके अधिकारों को सुरक्षित किया है। जिस प्रकार 1964 में बैंक ऑफ इंग्लैंड के गठन के पश्चात् एक प्रभावशाली वर्ग ने विलियम तृतीय को समर्थन दिया उसी प्रकार कंपनी को भी इन प्रभावकारी व्यक्तियों का समर्थन मिला और 1857 के विद्रोह में बंगाल के जमींदार सरकार के साथ रहे।

सीटन कार (Seton Car) के अनुसार "इस व्यवस्था के राजनैतिक लाभों ने इसकी आर्थिक हानियों का सन्तुलन कर दिया।'

सामाजिक रूप में जमींदार कृषकों पर यह आशा की गई कि वे सभी प्राकृतिक नेताओं के रूप में कार्य करेंगे तथा ये जमींदार विधा के प्रसार तथा अन्य समाज सेवा कार्यों में मार्गदर्शन करेंगे। अन्त में अब हम यह भी कह सकते हैं कि जो अवगुण अल्पकालीन व्यवस्था से संबंधित होते हैं उन सभी अवगुणों को दूर करने के लिए कंपनी के योग्य अधिकारियों की संख्या न्याय कार्य के लिए रिक्त हो गई हैं। जैसे अन्तिम दिनों में भूमि में फसलें कम उगाने की प्रवृत्ति या फिर कृषकों को तंग करना था ताकि कर निर्धारण कम हो इत्यादि इस व्यवस्था में नहीं थे।

हानियाँ - व्यवस्था के प्रारम्भिक वर्षों में जो कुछ भी लाभ हुए हों सो तो वही संभव है परन्तु बहुत जल्द ही यह व्यवस्था उत्पीड़न तथा शोषण का साधन बन गई। इससे उच्च स्तर पर सामन्तवाद तथा निम्न स्तर पर दास वृत्ति उत्पन्न हुई, बहुत से लाभ तो दिखावटी मात्र थे लेकिन वह वास्तविक नहीं थे। वित्तीय दृष्टिकोण से शासन को दीर्घकाल में बहुत अधिक घाटे का सामना करना पड़ा। स्थायी भूमि को निश्चित करते समय भूमि तथा उत्पादन के भावी मूल्यों की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया जिससे कृषि योग्य भूमि तथा उत्पादन के मूल्यों में कई गुना वृद्धि हो गई। इसके बावजूद भी सरकार को कोई अतिरिक्त धन नहीं मिला। उदाहरण के लिए जमींदारों द्वारा 1901 में जो किराया कृषकों से लिया जाता था सरकार को उसका केवल 28 प्रतिशत मिलता था बाकी बचा हुआ धन उन्हीं जमींदारों के पास रह जाता था। 1973 में निर्धारित भूमिकर 1954 तक उसी स्तर पर चलता रहा।

इस व्यवस्था से बंगाल की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। अधिकांश जमींदारों ने भूमि सुधार की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वे केवल अधिकतम किराया प्राप्त करने में लगे रहे। कृषकों को हर समय बेदखली का भय बना रहता था अतः उन्हें भी भूमि सुधार के विषय में कोई प्रेरणा नहीं थी। जमींदार धन एकत्रित करने एवं ऐश्वर्य जीवन व्यतीत करने के लिए अपनी जागीरों को छोड़कर बड़े-बड़े नगरों में रहना पसन्द किया। इस प्रकार जमींदार छोटे-छोटे गांवों के धन को चूस चूस नगरों में बरबाद करते थे। इसके अतिरिक्त कृषकों तथा सरकार के बीच बहुत से मध्यस्थ (Intermediaries) उत्पन्न हो गये जो अपना- अपना भाग लेने में लगे हुए थे। कई स्थानों पर 50-50 मध्यस्थ स्थापित हो गये। यह समस्त भार गरीब किसानों पर डाल दिया गया और वे किसान प्रायः और गरीब होते गये जिससे उनकी किंकरी अवस्था का सामना करना पड़ा। इस विषय में कारवर महोदय ने लिखा है कि- 'युद्ध अकाल महामारी से नीचे अनुपस्थित जमींदारी है जो ग्रामीण समुदाय के लिए सबसे अधिक बुरी है।

यह बात सत्य है कि राजनैतिक रूप में अंग्रेजों को एक राजभक्त श्रेणी मिल गई परन्तु इससे करोड़ों व्यक्ति अंग्रेजों से नाराज भी हो गये तथा समाज जमींदार तथा असामियों, एक-दूसरे के विरोधी हो गये और अलग-अलग गुटों में विभक्त हो गये।

सामाजिक दृष्टि से यदि देखा जाये तो स्थायी व्यवस्था काफी निन्दनीय है। कंपनी ने जमींदारों का भूमि पर पूर्ण रूप से आधिपत्य स्थापित कर दिया और भूमिपति तथा कृषकों दोनों के हितों की अवहेलना की गई जिससे गरीब किसानों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। भूमिपति जो कल तक अपनी भूमि का मालिक था अब वह एक किरायेदार हो गया तथा किरायेदार अब जमींदारों को अपना स्वामी मानते थे और उनकी दया पर निर्भर रहते थे। जमींदारों का अधिकार हो जाने पर किरायेदारों को अधिक से अधिक किराया देना पड़ता था। ऐसा अन्याय भारत के इतिहास में सबसे पहले कभी नहीं हुआ होगा।

आरम्भिक वर्षों में जमींदारों को बहुत सी बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था जो भी भूमि में उत्पादन होता था उसमें सरकार का भाग अत्यधिक था। इसके अतिरिक्त कर एकत्रित करने का ढंग बहुत कड़ा था। जमींदारों को कोष में धन जमा करने का जो एक निश्चित दिन एवं समय दिया जाता और सूर्यास्त होने से पहले धन को कोष में जमा हो जाना चाहिए। यदि इस प्रकार के नियम का पालन नहीं किया गया तो उनकी जमींन छीन ली जाती थी। सूर्यास्त का नियम लागू होने से कई जमींदारों को अल्पकालिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 1797-98 में लगभग 17 प्रतिशत जमींदारों की भूमि नीलाम हो गई, ये नियम इतने कठोर थे कि जो भी भूमि की नीलामी की जाती थी उस भूमि के लिए कोई भी व्यक्ति नीलामी की बोली करने नहीं आता था। नये-नये जमींदार होने के कारण कृषकों की अवस्था और भी सोचनीय हो गई। अन्त में हम यह कह सकते हैं कि यदि कंपनी को यह व्यवस्था 40 अथवा 50 वर्ष के लिए कर दी जाती तो वे सभी लाभ प्राप्त हो जाते जो कंपनी ने सोचे थे और उसे मिल भी जाते। आने वाली पीढ़ियों को इस व्यवस्था के बन्धन में कसकर रखना कोई बुद्धिमानी का कार्य नहीं है। संभवतः यह भी भय था कि नौकरशाही का शोषण जमींदारों के शोषण से अधिक बुरा हो सकता था। 20वीं शताब्दी में तो सामाजिक अन्याय तथा आर्थिक अयोग्यता से पूर्ण होने पर यह स्थिति बहुत अखरती थी। दूसरी तरफ नौकरशाही राजनैतिक तथा सामाजिक न्याय के भी विरुद्ध थी। इसलिए स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार ने अन्यायपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने के लिए 1955 में West Bengal Acquisition of Estates के अंतर्गत राजकोष से जमींदारों को बहुत धनराशि देकर यह स्थायी समाप्त कर दी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारत में सर्वप्रथम प्रवेश करने वाले विदेशी व्यापारी कौन थे? विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- भारत में डच शक्ति के आगमन को समझाते हुए डचों के पुर्तगालियों व अंग्रेजों से हुए संघर्षो पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भारत में पुर्तगालियों के पतन के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  4. प्रश्न- फ्रांसीसियों के भारत आगमन एवं भारत में फ्रांसीसी शक्ति के विस्तार को समझाइए।
  5. प्रश्न- यूरोपीय डच कम्पनी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  6. प्रश्न- अंग्रेजों का भारत में किस प्रकार प्रवेश हुआ संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- यूरोपीय फ्रांसीसी कंपनी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- पुर्तगालियों की सफलता के कारण बताइये।
  9. प्रश्न- पुर्तगालियों के असफलता के कारण बताइये।
  10. प्रश्न- आंग्ल-फ्रेंच संघर्ष के विषय में बताते हुए इसके मुख्य कारणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- "अपनी अन्तिम असफलता के बावजूद भी डूप्ले भारतीय इतिहास का एक प्रतिभावान एवं तेजस्वी व्यक्तित्व है।" क्या आप प्रो. पी. ई. राबर्ट्स के डूप्ले की उपलब्धियों के सम्बन्ध में इस कथन से सहमत हैं?
  12. प्रश्न- भारत में अंग्रेजों की सफलता के क्या कारण थे?.
  13. प्रश्न- ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधीन भारत में हुए सामाजिक और आर्थिक अभावों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- अंग्रेजी कम्पनी के अधीन भारत में सामाजिक एवं धार्मिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- "भारत में फ्राँसीसियों की असफलता का कारण डूप्ले था।' इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- भारत में साम्राज्य स्थापित करने में अंग्रेजों की सफलता के कारण बताइये।
  17. प्रश्न- प्लासी के युद्ध के कारण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- बक्सर के युद्ध के कारण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- कर्नाटक के युद्ध अंग्रेजों और फ्रांसीसियों की सदियों से परम्परागत शत्रुता का परिणाम थे, विवेचन कीजिये।
  20. प्रश्न- द्वितीय कर्नाटक युद्ध के कारणों और परिणामों की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- उन महत्त्वपूर्ण कारणों का उल्लेख कीजिए जिनसे भारत में प्रभुत्व स्थापना के संघर्ष में फ्रांसीसियों को पराजय और अंग्रेजों को सफलता मिली।
  22. प्रश्न- क्लाइव की द्वितीय गवर्नरी में उसके कार्यों की समीक्षा कीजिये।
  23. प्रश्न- क्लाइव द्वारा बंगाल में द्वैध शासन की विवेचना कीजिये।
  24. प्रश्न- भारत में लार्ड क्लाइव के कार्यों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  25. प्रश्न- "प्रथम अफगान युद्ध भारत के इतिहास में अंग्रेजों की सबसे गम्भीर भूल थी।' समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में आंग्ल- फ्रांसीसी संघर्ष क्या था? इसके महत्त्व की विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- द्वैध शासन व्यवस्था के गुण एवं दोषों की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध के कारणों एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- बंगाल के कठपुतली नवाबों के कार्यकाल पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- बंगाल के द्वैध शासन से आप क्या समझते हैं?
  31. प्रश्न- द्वैध शासन की असफलता के क्या कारण थे?
  32. प्रश्न- कालकोठरी की दुर्घटना क्या थी?
  33. प्रश्न- नवाब सिराजुद्दौला के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारत में डच शक्ति के उत्थान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  35. प्रश्न- बक्सर का युद्ध (1764) तथा उसके महत्व की विवेचना कीजिए।
  36. प्रश्न- लॉर्ड क्लाइव द्वारा किये गये सुधारों का वर्णन कीजिए।
  37. प्रश्न- 'क्लाइव भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था। स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- इलाहाबाद की सन्धि की प्रमुख शर्तें क्या थीं?
  39. प्रश्न- प्लासी युद्ध के महत्व की विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- अलीनगर की सन्धि (सन् 1757 ई.) बताइये।
  41. प्रश्न- सिराजुद्दौला के विरुद्ध अंग्रेजों के मीर जाफर के साथ षड्यंत्र को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- प्लासी के युद्ध (सन् 1757 ई.) के परिणाम बताइये।
  43. प्रश्न- राबर्ट क्लाइव के विषय में आप क्या जानते हैं?
  44. प्रश्न- बक्सर के युद्ध का महत्त्व बताइये।
  45. प्रश्न- बंगाल में द्वैध शासन का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  46. प्रश्न- कालकोठरी की दुर्घटना क्या थी?
  47. प्रश्न- वारेन हेस्टिंग्स के सुधारों की विवेचना कीजिए।
  48. प्रश्न- वॉरेन हेस्टिंग्ज के अधीन विदेशी सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- 1773 के रेग्युलेटिंग ऐक्ट के गुण-दोष क्या थे?
  50. प्रश्न- हैदर अली के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध के कारणों एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
  52. प्रश्न- वॉरेन हेस्टिंग्ज के प्रशासनिक एवं राजस्व सुधारों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  53. प्रश्न- वारेन हेस्टिंग्स के समय नन्दकुमार का क्या मामला था?
  54. प्रश्न- मराठों के पतन के क्या कारण थे?
  55. प्रश्न- पानीपत के युद्ध की प्रमुख घटनाएँ क्या थीं?
  56. प्रश्न- वारेन हेस्टिंग्स के समय अवध की बेगमों का क्या मामला था?
  57. प्रश्न- लार्ड कॉर्नवालिस के सुधारों की विवेचना कीजिए।
  58. प्रश्न- बंगाल की स्थायी भूमि कर व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कार्नवालिस ने वॉरेन हेस्टिंग्ज का कार्य पूर्ण किया। विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- तृतीय मैसूर युद्ध के क्या कारण थे?
  61. प्रश्न- भूमि कर नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  62. प्रश्न- एक साम्राज्य निर्माता के रूप में वेलेजली की भूमिका का मूल्याँकन कीजिए।
  63. प्रश्न- टीपू और वेलेजली के मध्य चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध की कारणों सहित व्याख्या कीजिए।
  64. प्रश्न- लार्ड वेलेजली की सहायक सन्धि प्रणाली को समझाते हुए उसके गुण-दोषों की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- वेलेजली तथा फ्रांसीसियों के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
  66. प्रश्न- टीपू सुल्तान की पराजय के कारण बताइए।
  67. प्रश्न- वेलेजली के अधीन अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार एवं कंपनी के प्रदेश की सीमाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- लार्ड वेलेजली के आगमन के समय भारत की राजनीतिक स्थितियाँ क्या थीं?
  69. प्रश्न- वेलेजली की सहायक सन्धि की शर्तें क्या थीं?
  70. प्रश्न- वेलेजली के अवध के साथ सम्बन्ध पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- वेलेजली की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  72. प्रश्न- ठगी को समाप्त करने के लिए लार्ड विलियम बैंटिक ने कहां तक सफलता प्राप्त की?
  73. प्रश्न- ब्रिटिश कम्पनी की भारत में आर्थिक एवं शैक्षिक नीति की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- लॉर्ड विलियम बेंटिक के प्रशासनिक एवं सामाजिक सुधारों का मूल्यांकन कीजिए।
  75. प्रश्न- लार्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा तथा अन्य क्रूर प्रथाओं को बन्द करने की क्या नीति अपनाई? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  76. प्रश्न- विलियम बैंटिक के समाचार पत्रों के प्रति उदार नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  77. प्रश्न- विलियम बैंटिक के द्वारा नैतिक तथा बौद्धिक विकास के लिए किये गये शैक्षणिक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  78. प्रश्न- बैंटिक के वित्तीय तथा न्यायिक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  79. प्रश्न- लार्ड विलियम बैंटिक के प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- ब्रिटिश भारत में स्त्रियों की स्थिति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- भारत पर ब्रिटिश शासन के सामाजिक प्रभाव का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  82. प्रश्न- अंग्रेजों द्वारा पारित सामाजिक कानून पर निबन्ध लिखिए।
  83. प्रश्न- 1833 के चार्टर एक्ट पर एक टिप्पणी लिखिए।
  84. प्रश्न- लार्ड डलहौजी की 'हड़पनीति से आप क्या समझते हैं? इस नीति से ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कैसे प्रोत्साहन मिला?
  85. प्रश्न- - डलहौजी के द्वारा किए गए रचनात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- लार्ड डलहौजी द्वारा विद्युत तार एवं डाक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  87. प्रश्न- लार्ड डलहौजी द्वारा रेलवे विभाग में क्या सुधार किये गये?
  88. प्रश्न- लार्ड डलहौजी के प्रशासनिक एवं सैनिक सुधारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  89. प्रश्न- भारत के आधुनिकीकरण में लार्ड डलहौजी का योगदान क्या था?
  90. प्रश्न- लार्ड डलहौजी को शिक्षा सम्बन्धी सुधारों में कहां तक सफलता प्राप्त हुई? स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- 1853 के चार्टर एक्ट पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- रणजीत सिंह का परिचय देते हुए अफगानों एवं अंग्रेजों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- अंग्रेजों और सिक्खों के प्रथम युद्ध के कारण व प्रसिद्ध घटनाओं और परिणामों का वर्णन कीजिये।
  94. प्रश्न- रणजीत सिंह का डोंगरों और नेपालियों से सम्बन्ध को संक्षिप्त में समझाइये |
  95. प्रश्न- रणजीत सिंह के प्रशासन के अंतर्गत भूमिकर एवं न्याय प्रशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  96. प्रश्न- रणजीत सिंह ने सैनिक प्रशासन में कहाँ तक सफलता प्राप्त की? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  97. प्रश्न- प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध का वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- सिक्खों और अंग्रेजों के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  99. प्रश्न- हैदराबाद के एक राज्य के रूप में उदय की परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  100. प्रश्न- हैदराबाद अकस्मात ही विघटनकारी शक्तियों का शिकार हो गया था, विवेचनात्मक उत्तर दीजिये।
  101. प्रश्न- 1724-1802 तक की हैदराबाद की राजनीतिक गतिविधियों का अवलोकन कीजिये।
  102. प्रश्न- टीपू की शासन प्रणाली का सविस्तार से वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- मैसूर राज्य का विस्तृत अध्ययन कीजिए।
  104. प्रश्न- एंग्लो-मैसूर युद्धों का समीक्षात्मक अध्ययन कीजिये।
  105. प्रश्न- टीपू सुल्तान और मैसूर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  106. प्रश्न- मैसूर व इतिहास लेखन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  107. प्रश्न- 18वीं सदी में, मैसूर की स्थिति से संक्षिप्त रूप से परिचित कराइये।
  108. प्रश्न- 1399 ईस्वी से अठारहवीं सदी के मध्य मैसूर राज्य की स्थिति से अवगत कराइये।
  109. प्रश्न- स्थायी बंदोबस्त से क्या आशय है? लार्ड कार्नवालिस द्वारा स्थायी बंदोबस्त लागू करने के क्या कारण थे?
  110. प्रश्न- ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर भिन्न-भिन्न कर प्रणाली लगाने का क्या उद्देश्य रहा?
  111. प्रश्न- स्थायी बंदोबस्त ने किस प्रकार जमींदारी व्यवस्था को जन्म दिया?
  112. प्रश्न- भारतीय पुनर्जागरण के कारणों, परिणामों एवं विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- 19वीं शताब्दी के प्रमुख सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों को बताइये।
  114. प्रश्न- क्या राजा राममोहन राय को 'आधुनिक भारत का पिता' कहना उचित है?
  115. प्रश्न- भारतीय सामाजिक तथा धार्मिक पुनर्जागरण में आर्य समाज की देनों का उल्लेख कीजिए।
  116. प्रश्न- ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धान्तों व कार्यों का वर्णन कीजिए।
  117. प्रश्न- भारत के सामाजिक-धार्मिक पुनरुत्थान में स्वामी विवेकानन्द के योगदान का विवरण दीजिए।
  118. प्रश्न- 19-20वीं सदी के जातिवाद विरोधी आंदोलनों का वर्णन कीजिए।
  119. प्रश्न- अहिंसा और सत्याग्रह पर गाँधी जी के विचारों का मूल्याँकन कीजिए।
  120. प्रश्न- रामकृष्ण परमहंस पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  121. प्रश्न- अछूतोद्धार हेतु भीमराव अम्बेडकर के किए गये कार्यों का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- एक शासक के रूप में अशोक के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  124. प्रश्न- अस्पृश्यता से आप क्या समझते हैं? इसकी समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  125. प्रश्न- भारतीय पुनर्जागरण का क्या अर्थ है?
  126. प्रश्न- ब्रह्म समाज से आप क्या समझते हैं?
  127. प्रश्न- प्रार्थना समाज ने समाज सुधार की दिशा में क्या कार्य किए?
  128. प्रश्न- ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के समाज सुधार में किए गए कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- आर्य समाज की मुख्य शिक्षाएँ व समाज सुधार में किए गए योगदान का वर्णन कीजिए।
  130. प्रश्न- थियोसोफिकल सोसाइटी पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  131. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के सामाजिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
  132. प्रश्न- भारत में 19वीं सदी में हुए विभिन्न सुधारवादी आन्दोलनों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  133. प्रश्न- अश्पृश्यता निवारण के लिए महात्मा गाँधी की सेवाओं का मूल्याँकन कीजिए।
  134. प्रश्न- 20वीं सदी में हुए प्रमुख सामाजिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- समाजवाद पर नेहरू के विचारों का उल्लेख कीजिए।
  136. प्रश्न- आधुनिक काल में जाति प्रथा पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  137. प्रश्न- भारतीय समाज पर पड़े दो पाश्चात्य प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
  138. प्रश्न- नाविक विद्रोह 1946 का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- स्वदेशी विचार के विकास का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- होमरूल से आप क्या समझते हैं?
  141. प्रश्न- साम्प्रदायिक निर्णय 1932 ई. की समीक्षा कीजिए।
  142. प्रश्न- दाण्डी यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  143. प्रश्न- श्री अरविन्द घोष के जीवन पर प्रकाश डालिए।
  144. प्रश्न- रामकृष्ण मिशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  145. प्रश्न- चैतन्य महाप्रभु पर एक टिप्पणी लिखिए।
  146. प्रश्न- 'पुरुषार्थ आश्रमों के मनोनैतिक आधार हैं। टिप्पणी कीजिए।
  147. प्रश्न- उन्नीसवीं सदीं में सामाजिक जागरण के क्या कारण थे?

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