बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 |
बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान
प्रश्न- दल-बदल की समस्या (भारतीय राजनैतिक दलों में)।
उत्तर-
राजनीतिक दल-बदल से आशय
(Meaning of Political Defection)
राजनीतिक दल-बदल का अर्थ राजनीतिक निष्ठा में परिवर्तन है। लोकसभा के सचिव सुभाष कश्यप के अनुसार, "किसी विधायक का अपने दल अथवा निर्दलीय मंच का परित्याग कर किसी अन्य दल में जा मिलना, नया दल बना लेना या निर्दलीय स्थिति अपना लेना अथवा दल की सदस्यता त्यागे बिना ही बुनियादी मामलों पर सदन में उसके विरुद्ध मतदान करना दल-बदल कहलाता है।"
दल-बदल राजनीतिक अस्थिरता को जन्म और प्रोत्साहन देता है। भारत में दल-बदल स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ही प्रारम्भ हो गया था। सन् 1947 से 1967 तक दल-बदल कांग्रेस के हित में रहा। सन् 1967 से 1971 तक दल-बदल सत्ताधारी दल और विरोधी दलों के बीच होता रहा। 1977 के बाद से आज तक जनता पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, जनता दल, लोकतान्त्रिक कांग्रेस आदि के पक्ष में दल-बदल की प्रवृत्ति अधिक रही। किन्तु भारत में दल-बदल राजनीतिक निष्ठा में परिवर्तन के कारण न होकर राजनीतिक लाभों की प्राप्ति के लिए किया जाता रहा है।
दल-बदल के कारण
भारत में राजनीतिक दल-बदल के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं
(1) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का स्वरूप - स्वतन्त्रता प्राप्ति से लेकर 1967 ई. तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दल भारतीय राजनीति की सर्वोच्च शक्ति बना रहा। प्रारम्भ में स्वतन्त्रताप्रिय सभी व्यक्तियों इस दल में सम्मिलित हुये, जिससे इसमें सिद्धान्त - बल का अभाव रहा। इस कमी के कारण भारत में राजनीतिक दल की सदस्यता राजनीतिक सुविधा का विषय बन गई और इससे राजनीतिक दल-बदल को बहुत प्रोत्साहन मिला।
(2) कांग्रेस की नीति - भारतीय कांग्रेस की नीति हमेशा से ही दल-बदल की प्रेरित करने की रही है। सन् 1967 के चुनावों से पूर्व दल-बदल की घटनाओं के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार थी। कांग्रेस ने समय-समय पर हार टालने और अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए इस बुराई को बढ़ावा दिया।
(3) राजनीतिक ध्रुवीकरण का अभाव - भारत में राजनीतिक ध्रुवीकरण न होने के कारण भी दल-बदल को बढ़ावा मिला। राजनीतिक दलों के आपसी अनबन के कारण दल-बदल सरलतापूर्वक सिद्ध हो जाता है।
(4) मतभेद और गुटबन्दियाँ - प्रारम्भ से ही भारत के राजनीतिक दलों में आपसी मतभेद एवं गुटबन्धियाँ स्थित रही हैं। सभी दल में सन्तुष्ट और असन्तुष्ट सदस्यों की भरमार रहती है और अवसर आने पर स्वार्थी दल-बदल कर लेते हैं।
(5) राजनीति के प्रति जनता की उदासीनता - देश की जनता की राजनीतिक जागृति दल-बदल की प्रवृत्ति पर रोक लगा सकती है, किन्तु दुर्भाग्यवश भारत की जनता राजनीतिक गतिविधियों के प्रति उदासीन रहती है। परिणामस्वरूप राजनीतिज्ञों को दल-बदल द्वारा अपने स्वार्थों को पूर्ण में सुविधा प्राप्त हो जाती है।
(6) बहुदलीय पद्धति - भारत में बहुदलीय पद्धति विद्यमान है, जिसके कारण छोटे-छोटे राजनीतिक दल दल-बदल को प्रेरित होते हैं। इन राजनीतिक दलों की भूमिका दबाव गुटों के समान होती है और ये सरकारों के निर्माण एवं पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(7) निर्दलीय सदस्यों की बड़ी संख्या - भारत में केवल निर्दलीय सदस्य ही एक बड़ी संख्या में दल-बदल करते हैं। अतः इनकी बड़ी संख्या भी दल-बदल को बढ़ावा देती है।
(8) प्रलोभन - भारतीय राजनीति में अनेक विकार आ गये हैं। देश के राजनीतिज्ञ स्वार्थों एवं पदलोलुप हो चुके हैं। अतः पद, धन तथा स्थान के प्रलोभन से प्रेरित होकर भारतीय विधायक दल-बदल में सम्मिलित रहते हैं।
(9) सैद्धान्तिक मतभेद - अनेक बार दल-बदल सैद्धान्तिक आधारों पर भी हुआ है। आचार्य कृपलानी ने अपने दल का त्याग किया क्योंकि उनके विचारानुसार उनका दल अपने सिद्धान्तों एवं आदर्शों के पीछे हटता जा रहा है।
(10) विधायक तथा दल नेता के मध्य संघर्ष - कई बार किसी विधायक के द्वारा दल के नेता के मध्य व्यक्तिगत संघर्ष तथा स्वभाव के न मिलने के कारण भी अनेक विधायक दल छोड़ने हेतु विवश हो जाते हैं।
( 11 ) लाबियों तथा दबावकारी गुटों का होना - शक्तिशाली लाबियाँ तथा दबावकारी गुटों का होना जिनके प्रति सदस्यों की आस्था उनकी दलगत आस्था से कहीं अधिक होती है।
(12) वरिष्ठ सदस्यों की उपेक्षा - कई बार पार्टी में टिकटों के बँटवारे के समय मन्त्रिमण्डल निर्माण के समय वरिष्ठ सदस्यों की उपेक्षा की जाती है। विभिन्न अवसरों पर मिलने वाली उपेक्षा वरिष्ठ सदस्यों को दल बदलने पर बाध्य कर देती है।
(13) सदस्यों में अंह भावना की प्रवृत्ति - लोकतन्त्र में क्योंकि निर्वाचित सदस्य शासन संचालन करते हैं तथा निर्वाचित सदस्य संख्या में सीमित होते हैं. इसी कारण वे अहं भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। वे अपने तथाकथित सिद्धान्तों से नीचे उतरने को तैयार नहीं होते। सदस्यों की अहं प्रवृत्ति मन्त्रिमण्डल के निर्माण से लेकर नीति-निर्माण में भी झलकती रहती है। इस अहं भावना को पार्टी हाईकमान द्वारा सीमित अथवा कम करने का कोई भी प्रयास सदस्यों को दल बदलने हेतु प्रोत्साहित करता है।
(14) राष्ट्रीय नेता का अभाव - स्वतन्त्रता संग्राम के नेता भी एक-एक करके सक्रिय राजनीति के क्षेत्र से विदा हो चुके थे तथा उस क्षेत्र में कोई भी ऐसा नेता उपस्थित नहीं था जो किसी भी पक्ष पर नियन्त्रण रख सकता। कांग्रेस दल तथा अन्य दलों के नेता समान स्तर के थे। लड़ाई बराबर के बौने में थी, जिसमें कुछ भी मना न था, न कोई विधि निषेध, न कोई नैतिक बन्धन।
(15) विधायकों तथा दलीय नेताओं में संघर्ष - विधायकों तथा दलीय नेताओं के बीच व्यक्तिगत संघर्ष और तेज हो गया जिससे दल-बदल को प्रेरणा मिली। विधायक दल अपने महत्व को समझ गये थे कि वे अपने नेता को कभी भी नीचा दिखा सकते हैं।
|
- प्रश्न- सन 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1909 ई. के मुख्य दोषों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 1935 के भारत सरकार अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1935 ई. का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- 'भारत के प्रजातन्त्रीकरण में 1935 ई. के अधिनियम ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई. के प्रमुख प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन् 1995 ई. के अधिनियम के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति व अधिकारों का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के आयाम से आप क्या समझते हैं? लोकतंत्र के सामाजिक आयामों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के राजनीतिक आयामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले संवैधानिक कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- संघवाद (Federalism) से आप क्या समझते हैं? क्या भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है? यदि हाँ तो उसके लक्षण क्या-क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान संघीय व्यवस्था स्थापित करता है। संक्षेप में बताएँ।
- प्रश्न- संघवाद से आप क्या समझते हैं? संघवाद की पूर्व शर्तें क्या हैं? भारत के सन्दर्भ में संघवाद की उभरती हुई प्रवृत्तियों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भारत के संघवाद को कठोर ढाँचे में नही ढाला गया है" व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राज्यों द्वारा स्वयत्तता (Autonomy) की माँग से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या भारत को एक सच्चा संघ (True Federation) कहा जा सकता है?
- प्रश्न- संघीय व्यवस्था में केन्द्र शक्तिशाली है क्यों?
- प्रश्न- क्या भारतीय संघीय व्यवस्था में गठबन्धन की सरकारें अपरिहार्य हैं? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- क्या क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए संकट है? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के गठन में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में गठबन्धन सरकार की राजनीति क्या है? गठबन्धन धर्म से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- राजनीतिक दलों का वर्गीकरण करें। दलीय पद्धति कितने प्रकार की होती है? गुण-दोषों के आधार पर विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दलीय पद्धति के लाभ व हानियाँ क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय दलीय व्यवस्था में पिछले 60 वर्षों में आए परिवर्तनों के कारणों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक उदारवाद के इस युग में भारत में गठबंधन की राजनीति के भविष्य की आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- दलीय प्रणाली (Party System) में क्या दोष पाये जाते हैं?
- प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय दलों के उदय एवं विकास के लिए उत्तरदायी तत्व कौन से हैं?
- प्रश्न- 'गठबन्धन धर्म' से क्या तात्पर्य है? क्या यह नियमों एवं सिद्धान्तों के साथ समझौता है?
- प्रश्न- क्षेत्रीय दलों के अवगुण, टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है? सामुदायिक विकास कार्यक्रम का क्या उद्देश्य है?
- प्रश्न- 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज से आप क्या समझते हैं? ग्रामीण पुननिर्माण में पंचायतों के कार्यों एवं महत्व को बताइये।
- प्रश्न- भारतीय ग्राम पंचायतों के दोषों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्राम पंचायतों का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
- प्रश्न- क्षेत्र पंचायत के संगठन तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जिला पंचायत का संगठन तथा ग्रामीण समाज में इसकी भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में स्थानीय शासन के सम्बन्ध में 'पंचायत राज' के सिद्धान्त व व्यवहार की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- नगरपालिका क्या है? तथा नगरपालिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय स्वायत्त शासन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्राम सभा के प्रमुख कार्य बताइये।
- प्रश्न- ग्राम पंचायत की आय के प्रमुख साधन बताइये।
- प्रश्न- पंचायती व्यवस्था के चार उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- ग्राम पंचायत के चार अधिकार बताइये।
- प्रश्न- न्याय पंचायत का गठन किस प्रकार किया जाता है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत से आप क्या समझते तथा ग्राम सभा तथा ग्राम पंचायत में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत की उन्नति के लिए सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- ग्रामीण समुदाय पर पंचायत के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पंचायत राज संस्थाएँ बताइये।
- प्रश्न- क्षेत्र पंचायत का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत के महत्व को बढ़ाने के लिए सरकार के द्वारा क्या प्रयास किये गये हैं?
- प्रश्न- नगर निगम के संगठनात्मक संरचना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगर निगम के भूमिका एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय स्वशासन संस्थाओं की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय निकायों की संरचना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नगर पंचायत पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दबाव व हित समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दबाव समूह से आप क्या समझते हैं? दबाव समूहों के क्या लक्षण हैं? दबाव समूहों द्वारा अपनाई जाने वाली कार्यप्रणाली के विषय में बतायें।
- प्रश्न- दबाव समूह अपने हित पूरा करने के लिए किस प्रकार कार्य करते हैं?
- प्रश्न- दबाव समूहों के महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूह के कार्यों को लिखिए। भारत की राजनीति में दबाव समूहों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
- प्रश्न- दबाव समूहों के दोषों का वर्णन करें।
- प्रश्न- भारत में श्रमिक संघों की विशेषताएँ। टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1996 के अंतर्गत चुनाव सुधार के संदर्भ में किये गये प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
- प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- अलगाव से आप क्या समझते हैं? अलगाववाद के कारण क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय राजनीति में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक पक्ष को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सकारात्मक राजनीतिक कार्यवाही से क्या आशय है? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं?
- प्रश्न- जाति को परिभाषित कीजिए। भारतीय राजनीति पर जातिगत प्रभाव का अध्ययन कीजिए। जाति के राजनीतिकरण की विवेचना भी कीजिए।
- प्रश्न- निर्णय प्रक्रिया में राजनीतिक दलों में जाति की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- राज्यों की राजनीति को जाति ने किस प्रकार प्रभावित किया है?
- प्रश्न- क्षेत्रीयतावाद (Regionalism) से क्या अभिप्राय है? इसने भारतीय राजनीति को किस प्रकार प्रभावित किया है? क्षेत्रवाद के उदय के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- भारतीय राजनीति पर क्षेत्रवाद के प्रभावों का अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रवाद के उदय के लिए कौन-से तत्व जिम्मेदार हैं?
- प्रश्न- भारत में भाषा और राजनीति के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- उर्दू और हिन्दी भाषा को लेकर भारतीय राज्यों में क्या विवाद है? संक्षेप में चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भाषा की समस्या हल करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता से आप क्या समझते हैं? साम्प्रदायिकता के उदय के कारण और इसके दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए इसको दूर करने के सुझाव बताइये। भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता का क्या प्रभाव पड़ा? समझाइये।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता के उदय के पीछे क्या कारण हैं?
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता के दुष्परिणामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता को दूर करने के सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- जाति व धर्म की राजनीति भारत में चुनावी राजनीति को कैसे प्रभावित करती है। क्या यह सकारात्मक प्रवृत्ति है या नकारात्मक?
- प्रश्न- "वर्तमान भारतीय राजनीति में धर्म, जाति तथा आरक्षण प्रधान कारक बन गये हैं।" इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'जातिवाद' और सम्प्रदायवाद प्रजातंत्र के दो बड़े शत्रु हैं। टिप्पणी करें।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के बँटवारे की राजनीति को समझाइए।
- प्रश्न- जन राजनीतिक संस्कृति के विकास के कारण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका' संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- चुनावी राजनीति में भावनात्मक मुद्दे पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार से क्या अभिप्राय है? भ्रष्टाचार की समस्या के लिए कौन से कारण उत्तरदायी हैं? इस समस्या के समाधान के लिए उपाय बताइए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं?
- प्रश्न- भ्रष्टाचार उन्मूलन के कौन-कौन से उपाय हैं?
- प्रश्न- भारत में राजनैतिक, व्यापारिक-औद्योगिक तथा धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार क्या है? भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की रोकथाम के सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- लोक जीवन में भ्रष्टाचार के कारण बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रपति शासन क्या है? यह किन परिस्थितियों में लागू होता है? राष्ट्रपति शासन लगने से क्या परिवर्तन होता है?
- प्रश्न- दल-बदल की समस्या (भारतीय राजनैतिक दलों में)।
- प्रश्न- राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के सम्बन्धों पर वैधानिक व राजनीतिक दृष्टिकोण क्या है? उनके सम्बन्धों के निर्धारक तत्व कौन-से हैं?
- प्रश्न- दल-बदल कानून (Anti Defection Law) पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संविधान के क्रियाकलापों पर पुनर्विलोकन हेतु स्थापित राष्ट्रीय आयोग (2002) की दलबदल नियम पद संस्तुति, टिप्पणी कीजिए।