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बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान
प्रश्न- संघवाद से आप क्या समझते हैं? संघवाद की पूर्व शर्तें क्या हैं? भारत के सन्दर्भ में संघवाद की उभरती हुई प्रवृत्तियों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
संघवाद से अभिप्राय
सामान्य तौर पर यही देखा जा रहा है कि पूरे विश्व में संवैधानिक शासन व्यवस्था दो प्रकार की है— संघात्मक और एकात्मक। संघात्मक शासन व्यवस्था के अन्तर्गत राष्ट्र की विभिन्न इकाइयाँ कुछ क्षेत्रों में स्वतन्त्र रहते हुए अपने को एक केन्द्रीय सत्ता में विलीन कर देती हैं। प्रो. गिलक्रिस्ट के अनुसार, “संघवाद का मतलब संधि अथवा अनुबंध है।" संघवाद लैटिन शब्द 'फोएडस' (Foedus) से बना है जिसका तात्पर्य ही संधि या अनुबन्ध है।
संघवाद वह तन्त्र है जिसके द्वारा राज्य की सारी शक्तियों का विभाजन दो प्रकार की शक्तियों के मध्य हो जाता है। ये दो प्रकार की सरकारें—केन्द्रीय और राज्यों की सरकारों के रूप में होती हैं। संघीय सरकार के विषय में फाइनर ने कहा कि यह वह शासन है जिसमें सत्ता और शक्ति का एक भाग स्थानीय क्षेत्रों में निहित होता है और दूसरा भाग केन्द्रीय संस्था में।
संघात्मक शासन व्यवस्था के अन्तर्गत कुछ निश्चित लक्षण स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
(1) लिखित, सर्वोच्च, अपरिवर्तनशील संविधान।
(2) दोहरी सरकार की स्थापना।
(3) शक्तियों का विभाजन।
(4) स्वतंत्र न्यायपालिका।
यद्यपि भारतीय संविधान में 'संघ' शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, लेकिन उपर्युक्त परिभाषाओं के सन्दर्भ में यह एक संघ राज्य है। भारतीय संविधान में संघात्मक व्यवस्था के सभी प्रमुख विद्यमान हैं।
संघवाद की पूर्व शर्तें - संघवाद की निम्नलिखित प्रमुख पूर्व शर्तें हैं-
(1) भौगोलिक समानता - भौगोलिक एकता अथवा समानता संघवाद की एक अनिवार्य पूर्व शर्त हैं। संघ में सम्मिलित होने वाली इकाइयों में भौगोलिक रूप से समानता का होना आवश्यक है। जैसाकि गिलक्राइस्ट लिखते हैं कि - " जहाँ भौगोलिक रूप से लोग एक-दूसरे से बहुत दूर हों वहाँ राष्ट्रीय एकता प्राप्त करना कठिन है। "
(2) ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक एकता - संघवाद की एक अन्य महत्वपूर्ण पूर्व शर्त ऐतिहासिक व सांस्कृतिक एकता का पाया जाना है। जैसा कि ह्वीयरे लिखते हैं कि - "ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक असमानताओं में संघीय सरकार का निर्माण कठिन हो जाता है। "
(3) सजातीयता - संघ निर्माण की एक अन्य पूर्व शर्त सजातीयता मानी जाती है। एक जाति के लोगों में रक्त की समानता होती है, जो उन्हें एक ही धर्म में जकड़ लेती है। जैसा कि गिल लिखते हैं कि “संघ-निर्माण में जाति, भाषा, धर्म इत्यादि की प्रधानता रहती है।'
(4) राजनीतिक एवं सामाजिक चेतना - संघवाद की अपरिहार्य पूर्व शर्त यह भी है कि वहाँ के नागरिकों में राजनीतिक एवं सामाजिक चेतना का स्तर उच्च हो तथा वह संघ के प्रति रुचिपूर्वक निष्ठावान हों।
भारत में संघवाद की उभरती प्रवृत्तियाँ - भारतीय संघवाद की उभरती प्रवृत्तियों में निम्नलिखित' प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख किया जा सकता है
(1) केन्द्र व राज्यों के मध्य खींचतान – वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय संघ में केन्द्र की सरकार और राज्यों की सरकारों के मध्य विभिन्न अवसरों पर विभिन्न मुद्दों को लेकर परस्पर खींचतान की स्थिति उत्पन्न होती है। चूँकि अब एक दलीय वर्चस्व की स्थिति समाप्त होती जा रही है अतः ऐसे में केन्द्र व राज्य में अलग-अलग व परस्पर विरोधी विचारधारा के दलों की सरकारों के मध्य आरोप-प्रत्यारोप तनाव व अनर्गल विवादों की स्थिति निरन्तर बनी रहती है जिसके चलते विकास की प्रक्रिया एवं जनहित प्रभावित होते हैं। यह प्रवृत्ति भारतीय संघवाद के लिए हितकर प्रतीत नहीं होती हैं।
(2) राजस्व के बँटवारे को लेकर तनाव - भारतीय संघवाद में केन्द्र व राज्यों के मध्य संग्रहीत राजस्व के बँटवारे को लेकर भी तनाव उत्पन्न होता रहता है। यद्यपि भारतीय संविधान में इस सन्दर्भ में व्यापक उपबन्ध किये गये हैं, तथापि अक्सर राज्य केन्द्र सरकार पर पक्षपात व पूर्वाग्रही दृष्टिकोण के आरोप लगाते हैं। हालांकि कई मामलों में यह सही भी होते हैं, विशेषकर जब राज्य में केन्द्र से इतर दल की सरकार हो परन्तु अनेक अवसर पर यह भी पाया गया है कि राज्य अपनी अकर्मण्यता, अकार्यकुशलता, एवं भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए भी केन्द्र पर पर्याप्त धन उपलब्ध कराने का आरोप लगाते रहते हैं। धीरे-धीरे यह एक परम्परा या प्रथा बनती जा रही है कि राज्य अपनी हर नाकामी का दोष केन्द्र पर डालकर अपना पल्ला झाड़ते नजर आते हैं।
(3) अलगाव के मुखरित होते स्वर - भारतीय संघ के कई राज्य ऐसे भी हैं जहाँ से अक्सर भारतीय संघ से पृथक राज्य की माँगे उठती रहती हैं। उदाहरण के तौर पर 'जम्मू कश्मीर' राज्य का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है जहाँ राज्य सरकार अप्रत्यक्ष रूप से नियमित रूप से अलगाववादियों को प्रश्रय देती रही है। इसी प्रकार की माँगे दक्षिण भारतीय राज्यों से भी अक्सर उठती रही हैं जोकि भारतीय संघवाद की दृष्टि से अत्यधिक खतरनाक है।
(4) राज्यों के विभाजन की माँगे - भारतीय संघ में सम्मिलित राज्यों में कुछ का क्षेत्रफल अत्यधिक विस्तृत है। इन राज्यों में विकास की गति भी असन्तुलित है जिस कारण छोटे-छोटे अलग-अलग राज्यों के गठन की माँग उठती रहती है। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल की माँग, तेलंगाना की माँग, इत्यादि। इनमें से कई माँगों को तो स्वीकार भी किया जा चुका है और भारत में झारखण्ड, उत्तराखण्ड, तेलंगाना एवं छत्तीसगढ़ नामक नये राज्यों का गठन भी किया जा चुका है परन्तु जिन आधारों पर इन राज्यों का पृथक्करण हुआ था उन आधारों अर्थात् विकास एवं रोजगार के मोर्चे पर यह अभी तक उल्लेखनीय रूप से वहीं जहाँ ये विभाजन से पहले थे। इस प्रकार राज्यों के विभाजन की माँगें एक प्रकार से ओछी व सस्ती लोकप्रियता व राजनीतिक सोच व महत्वाकांक्षाओं का परिणाम है, जोकि भारतीय संघवाद के लिए गम्भीर चुनौती हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त वर्णित प्रवृत्तियाँ भारतीय संघवाद की नवीनतम् उभरती प्रवृत्तियों में से हैं।
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- प्रश्न- सन 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1909 ई. के मुख्य दोषों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 1935 के भारत सरकार अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1935 ई. का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- 'भारत के प्रजातन्त्रीकरण में 1935 ई. के अधिनियम ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई. के प्रमुख प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन् 1995 ई. के अधिनियम के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति व अधिकारों का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के आयाम से आप क्या समझते हैं? लोकतंत्र के सामाजिक आयामों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के राजनीतिक आयामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले संवैधानिक कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- संघवाद (Federalism) से आप क्या समझते हैं? क्या भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है? यदि हाँ तो उसके लक्षण क्या-क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान संघीय व्यवस्था स्थापित करता है। संक्षेप में बताएँ।
- प्रश्न- संघवाद से आप क्या समझते हैं? संघवाद की पूर्व शर्तें क्या हैं? भारत के सन्दर्भ में संघवाद की उभरती हुई प्रवृत्तियों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भारत के संघवाद को कठोर ढाँचे में नही ढाला गया है" व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राज्यों द्वारा स्वयत्तता (Autonomy) की माँग से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या भारत को एक सच्चा संघ (True Federation) कहा जा सकता है?
- प्रश्न- संघीय व्यवस्था में केन्द्र शक्तिशाली है क्यों?
- प्रश्न- क्या भारतीय संघीय व्यवस्था में गठबन्धन की सरकारें अपरिहार्य हैं? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- क्या क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए संकट है? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के गठन में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में गठबन्धन सरकार की राजनीति क्या है? गठबन्धन धर्म से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- राजनीतिक दलों का वर्गीकरण करें। दलीय पद्धति कितने प्रकार की होती है? गुण-दोषों के आधार पर विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दलीय पद्धति के लाभ व हानियाँ क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय दलीय व्यवस्था में पिछले 60 वर्षों में आए परिवर्तनों के कारणों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक उदारवाद के इस युग में भारत में गठबंधन की राजनीति के भविष्य की आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- दलीय प्रणाली (Party System) में क्या दोष पाये जाते हैं?
- प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय दलों के उदय एवं विकास के लिए उत्तरदायी तत्व कौन से हैं?
- प्रश्न- 'गठबन्धन धर्म' से क्या तात्पर्य है? क्या यह नियमों एवं सिद्धान्तों के साथ समझौता है?
- प्रश्न- क्षेत्रीय दलों के अवगुण, टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है? सामुदायिक विकास कार्यक्रम का क्या उद्देश्य है?
- प्रश्न- 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज से आप क्या समझते हैं? ग्रामीण पुननिर्माण में पंचायतों के कार्यों एवं महत्व को बताइये।
- प्रश्न- भारतीय ग्राम पंचायतों के दोषों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्राम पंचायतों का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
- प्रश्न- क्षेत्र पंचायत के संगठन तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जिला पंचायत का संगठन तथा ग्रामीण समाज में इसकी भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में स्थानीय शासन के सम्बन्ध में 'पंचायत राज' के सिद्धान्त व व्यवहार की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- नगरपालिका क्या है? तथा नगरपालिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय स्वायत्त शासन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्राम सभा के प्रमुख कार्य बताइये।
- प्रश्न- ग्राम पंचायत की आय के प्रमुख साधन बताइये।
- प्रश्न- पंचायती व्यवस्था के चार उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- ग्राम पंचायत के चार अधिकार बताइये।
- प्रश्न- न्याय पंचायत का गठन किस प्रकार किया जाता है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत से आप क्या समझते तथा ग्राम सभा तथा ग्राम पंचायत में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत की उन्नति के लिए सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- ग्रामीण समुदाय पर पंचायत के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पंचायत राज संस्थाएँ बताइये।
- प्रश्न- क्षेत्र पंचायत का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत के महत्व को बढ़ाने के लिए सरकार के द्वारा क्या प्रयास किये गये हैं?
- प्रश्न- नगर निगम के संगठनात्मक संरचना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगर निगम के भूमिका एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय स्वशासन संस्थाओं की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय निकायों की संरचना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नगर पंचायत पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दबाव व हित समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दबाव समूह से आप क्या समझते हैं? दबाव समूहों के क्या लक्षण हैं? दबाव समूहों द्वारा अपनाई जाने वाली कार्यप्रणाली के विषय में बतायें।
- प्रश्न- दबाव समूह अपने हित पूरा करने के लिए किस प्रकार कार्य करते हैं?
- प्रश्न- दबाव समूहों के महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूह के कार्यों को लिखिए। भारत की राजनीति में दबाव समूहों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
- प्रश्न- दबाव समूहों के दोषों का वर्णन करें।
- प्रश्न- भारत में श्रमिक संघों की विशेषताएँ। टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1996 के अंतर्गत चुनाव सुधार के संदर्भ में किये गये प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
- प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- अलगाव से आप क्या समझते हैं? अलगाववाद के कारण क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय राजनीति में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक पक्ष को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सकारात्मक राजनीतिक कार्यवाही से क्या आशय है? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं?
- प्रश्न- जाति को परिभाषित कीजिए। भारतीय राजनीति पर जातिगत प्रभाव का अध्ययन कीजिए। जाति के राजनीतिकरण की विवेचना भी कीजिए।
- प्रश्न- निर्णय प्रक्रिया में राजनीतिक दलों में जाति की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- राज्यों की राजनीति को जाति ने किस प्रकार प्रभावित किया है?
- प्रश्न- क्षेत्रीयतावाद (Regionalism) से क्या अभिप्राय है? इसने भारतीय राजनीति को किस प्रकार प्रभावित किया है? क्षेत्रवाद के उदय के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- भारतीय राजनीति पर क्षेत्रवाद के प्रभावों का अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रवाद के उदय के लिए कौन-से तत्व जिम्मेदार हैं?
- प्रश्न- भारत में भाषा और राजनीति के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- उर्दू और हिन्दी भाषा को लेकर भारतीय राज्यों में क्या विवाद है? संक्षेप में चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भाषा की समस्या हल करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता से आप क्या समझते हैं? साम्प्रदायिकता के उदय के कारण और इसके दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए इसको दूर करने के सुझाव बताइये। भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता का क्या प्रभाव पड़ा? समझाइये।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता के उदय के पीछे क्या कारण हैं?
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता के दुष्परिणामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता को दूर करने के सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- जाति व धर्म की राजनीति भारत में चुनावी राजनीति को कैसे प्रभावित करती है। क्या यह सकारात्मक प्रवृत्ति है या नकारात्मक?
- प्रश्न- "वर्तमान भारतीय राजनीति में धर्म, जाति तथा आरक्षण प्रधान कारक बन गये हैं।" इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'जातिवाद' और सम्प्रदायवाद प्रजातंत्र के दो बड़े शत्रु हैं। टिप्पणी करें।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के बँटवारे की राजनीति को समझाइए।
- प्रश्न- जन राजनीतिक संस्कृति के विकास के कारण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका' संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- चुनावी राजनीति में भावनात्मक मुद्दे पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार से क्या अभिप्राय है? भ्रष्टाचार की समस्या के लिए कौन से कारण उत्तरदायी हैं? इस समस्या के समाधान के लिए उपाय बताइए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं?
- प्रश्न- भ्रष्टाचार उन्मूलन के कौन-कौन से उपाय हैं?
- प्रश्न- भारत में राजनैतिक, व्यापारिक-औद्योगिक तथा धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार क्या है? भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की रोकथाम के सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- लोक जीवन में भ्रष्टाचार के कारण बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रपति शासन क्या है? यह किन परिस्थितियों में लागू होता है? राष्ट्रपति शासन लगने से क्या परिवर्तन होता है?
- प्रश्न- दल-बदल की समस्या (भारतीय राजनैतिक दलों में)।
- प्रश्न- राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के सम्बन्धों पर वैधानिक व राजनीतिक दृष्टिकोण क्या है? उनके सम्बन्धों के निर्धारक तत्व कौन-से हैं?
- प्रश्न- दल-बदल कानून (Anti Defection Law) पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संविधान के क्रियाकलापों पर पुनर्विलोकन हेतु स्थापित राष्ट्रीय आयोग (2002) की दलबदल नियम पद संस्तुति, टिप्पणी कीजिए।