बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान
प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता' पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा
निर्वाचन आयोग की स्वतन्त्रता के लिए संवैधानिक प्रावधान।
उत्तर -
भारत में निर्वाचन आयोग एक स्वतन्त्र सांविधानिक निकाय है और संविधान इस बात को सुनिश्चित करता है कि यह उच्चतम और उच्च न्यायालयों की भाँति कार्यपालिका के बिना किसी हस्तक्षेप के स्वतन्त्र और निष्पक्ष रूप से अपने कार्यों को सम्पादित कर सके। इसकी स्वतन्त्रता को बनाये रखने की दृष्टि से निम्नलिखित प्रावधान बड़े महत्वपूर्ण हैं-
निर्वाचन आयोग की स्वतन्त्रता के लिए संवैधानिक प्रावधान -
1. निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है अर्थात इसका निर्माण संविधान ने किया है न कि कार्यपालिका या संसद ने।
2. मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं।
3. मुख्य चुनाव आयुक्त को महाभियोग जैसी प्रक्रिया से ही हटाया जा सकता है।
4. मुख्य चुनाव आयुक्त का दर्जा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर है।
5. नियुक्ति के पश्चात् मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
6. मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य आयुक्तों का वेतन भारत की संचित निधि में से दिया जाता है।
संविधान निर्वाचन आयोग के पदाधिकारियों को पूर्ण संरक्षण प्रदान करता है। जिससे वे अपने कार्यों को निडरता, निष्पक्षता तथा बिना किसी हस्तक्षेप के सम्पादित कर सकें।
निर्वाचन आयोग के पुनर्गठन और कार्यकरण हेतु सुझाव
चुनाव आयोग के गठन और कार्यकरण के प्रसंग में हमें व्यक्ति विशेष और परिस्थितियाँ विशेष से आगे बढ़कर व्यापक परिप्रेक्ष्य में 1951 से लेकर आज तक की स्थिति पर विचार करना होगा। इस सम्बन्ध में सुझाव और आम सहमति के कुछ सूत्र इस प्रकार हैं :
1. चुनाव आयोग बहुसदस्यीय (तीन सदस्यीय) हो - गत 40 वर्षों में और विशेषतया 1971 से लेकर अब तक अनेक बार मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयोग पर राजनीतिक पक्षपात का आरोप लगाया जाता रहा है तथा इस स्थिति को समाप्त करने के लिए तारकुण्डे समिति तथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चुनाव आयोग को 'बहुदलीय आयोग' बनाने का सुझाव दिया गया है।
प्रमुख राजनीतिक दलों में भी इस बात पर सहमति है कि चुनाव आयोग 'तीन सदस्यीय' होना चाहिए। भारत के तीन भूतपूर्व चुनाव आयुक्तों ने इस आधार पर सदस्यीया योग का विरोध किया था कि चुनाव सम्बन्धी मामलों में तत्काल निर्णय करने होते हैं तथा बहुसदस्यीय आयोग सम्भवतया तत्काल निर्णय नहीं ले सकेगा। बहुसदस्यीय आयोग की समस्त कार्य-प्रणाली ऐसी होनी चाहिए कि वह अवसर के अनुकूल गतिशीलता को अपनाते हुए शीघ्र निर्णय ले सकें।
2. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के सम्बन्ध में व्यवस्था - चुनाव आयोग के लिए राजनीतिक निष्पक्षता नितान्त आवश्यक है। अतः सभी पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि इस सम्बन्ध में शासन को मनमानी करने की स्थिति प्राप्त नहीं होनी चाहिए। विविध पक्षों की ओर से प्रस्तुत एक प्रमुख सुझाव यह है कि चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति ऐसी समिति द्वारा की जाए, जिसके सदस्य मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमन्त्री तथा संसद में विपक्ष का नेता हो।
3. चुनाव आयोग की निष्पक्षता हेतु व्यवस्था - चुनाव आयोग से पद निवृत होने वाले आयुक्तों को भविष्य में किसी भी लाभ के पद पर नियुक्त न किया जाये। वस्तुतः चुनाव आयोग के सदस्यों (मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों) को न केवल निष्पक्ष होना चाहिए, वरन उनकी निष्पक्षता सन्देह के परे होनी चाहिए। चुनाव आयोग, जिसका कार्यकरण राजनीतिक दलों से सम्बद्ध है। 'उसके सदस्यों पर पद निवृति के बाद एक निश्चित अवधि ( 2 या 3 वर्ष) तक किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित होने तथा विधायी पद प्राप्त करने पर रोक होनी चाहिए। इससे उनकी राजनीतिक तटस्थता की गारण्टी होगी तथा इस पद की विश्वसनीयता बढेगी "
4. बहुसदस्यीय आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त की भूमिका - चुनाव आयोग के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि बहुसदस्यीय चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त की स्थिति अन्य चुनाव आयुक्तों के समान होनी चाहिए या उन्हें चुनाव आयुक्तों पर प्रमुखता की स्थिति प्राप्त होनी चाहिए। चूँकि चुनाव आयोग को चुनाव सम्बन्धी कुछ मामलों में तत्काल निर्णय लेने होते हैं और यह तभी सम्भव है जबकि चुनाव आयुक्त को चुनाव आयोग में महत्वपूर्ण स्थिति प्रदत्त की जाये।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 (3) में स्पष्ट रूप से निर्देशित किया गया है कि 'जब कोई अन्य निर्वाचित आयुक्त इस प्रकार नियुक्त किया जाता है तब मुख्य निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयोग के
अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा। इस प्रकार संविधान में अन्य चुनाव आयुक्तों पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त की वरिष्ठता का प्रावधान किया गया है, यद्यपि मुख्य निर्वाचन आयुक्त की उक्त वरिष्ठता या प्रमुखता सीमित नहीं है। मुख्य चुनाव आयुक्त से पहली अपेक्षा की जाती है कि वह अन्य चुनाव आयुक्तों को आयोग के काम- काज में सहयोग प्रदान करे।
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- प्रश्न- सन 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1909 ई. के मुख्य दोषों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 1935 के भारत सरकार अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1935 ई. का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- 'भारत के प्रजातन्त्रीकरण में 1935 ई. के अधिनियम ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई. के प्रमुख प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन् 1995 ई. के अधिनियम के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति व अधिकारों का परीक्षण कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले संवैधानिक कारकों पर प्रकाश डालिये।
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- प्रश्न- 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज से आप क्या समझते हैं? ग्रामीण पुननिर्माण में पंचायतों के कार्यों एवं महत्व को बताइये।
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- प्रश्न- नगरीय स्वायत्त शासन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्राम सभा के प्रमुख कार्य बताइये।
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- प्रश्न- नगरीय स्वशासन संस्थाओं की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय निकायों की संरचना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नगर पंचायत पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दबाव व हित समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दबाव समूह से आप क्या समझते हैं? दबाव समूहों के क्या लक्षण हैं? दबाव समूहों द्वारा अपनाई जाने वाली कार्यप्रणाली के विषय में बतायें।
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- प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूह के कार्यों को लिखिए। भारत की राजनीति में दबाव समूहों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
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- प्रश्न- भारत में श्रमिक संघों की विशेषताएँ। टिप्पणी कीजिए।
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- प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
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