बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र
प्रश्न- श्रम आन्दोलन की आधुनिक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'श्रम आन्दोलन' की परिभाषा दीजिए।
अथवा
भारत में 'व्यापार संघ आन्दोलन' का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर -
भारत में औद्योगिक क्रांति के अनुरूप ही श्रमिक संघों का संगठन अत्यधिक विलम्ब से हुआ। सशक्त श्रम संघों के अभाव में श्रम आन्दोलनों का भी स्वतंत्रता पूर्व के भारत में कम पैमाने पर विस्तार हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् कुछ भारत के कुछ उद्योगों में श्रमिकों ने आंदोलन किए किन्तु इनका विस्तार अधिक फैला हुआ नहीं था और न ही इनका प्रभाव पाया गया। यद्यपि श्रमिकों की स्थिति को बेहतर करने के लिए 31 अक्टूबर, 1920 ई० को अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस एवं 1947 में भारतीय राष्ट्रीय मजदूर संघ कांग्रेस की स्थापना हुई किन्तु स्वतंत्रता पूर्व श्रमिक संघों के आन्दोलन विदेशी शासन, भारतीय मजदूर की अप्रवासी स्थिति, चन्दा देने में असमर्थ माली हालत, अशिक्षा एवं भर्ती में मध्यस्थों के योगदान के कारण कमजोर ही रहे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने श्रमिकों को भी अपनी स्थिति सुधारने के लिए आंदोलित कर दिया तथा स्वतंत्रोत्तर भारत में अनेक सफल श्रमिक आंदोलन हुए। भारत में श्रम आन्दोलन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ निम्नांकित हैं-
(1) सर्वोदय - श्रमिक आंदोलनों के उद्देश्यों को नया रूप प्रदान करने में सर्वोदय एक आधुनिक के लाभ की अवधारणा है। इसका अर्थ है सबका उदय अर्थात् विकास। इस अर्थ में सर्वोदय बहुमत ओर ध्यान न देकर प्रत्येक व्यक्ति के लाभ की ओर ध्यान केन्द्रित करता है। इस प्रकार, यह श्रमिक आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान करता है जिसमें किसी एक भी श्रमिक के शोषण का विरोध किया जाता है और सभी के कल्याण के लिए कार्य किया जाता है।
(2) आन्दोलन का विस्तार - आधुनिक श्रमिक आन्दोलन न केवल उद्योग के भीतर की समस्याओं को लेकर किए जाते हैं वरन् उद्योगों के परिसर से बाहर की समस्याओं यथा गंदी बस्तियों के उद्धार, शिक्षा, रोजगार आदि अनेक ऐसे मुद्दों को आधार बनाकर भी किए जाते हैं जिनसे श्रमिक अपरोक्ष रूप से समस्याग्रस्त होते हैं। ऐसी समस्याएँ सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक किसी भी स्वरूप को धारण किए हो सकती हैं और इनसे श्रमसंघ इसी के अनुरूप निपटने का खाका बनाते हैं एवं तदोपरांत कार्यवाही को अंजाम देते हैं।
(3) सामाजिक सुरक्षा पर विशेष बल सामाजिक सुरक्षा का अर्थ है अभाव, रोग, अज्ञान, गन्दगी एवं बेकारी से अप्रभावित होना। इस प्रकार, सामाजिक सुरक्षा जहाँ एक ओर श्रमिकों के आज को सुखी बनाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है वहीं उनके कल अर्थात् बुढ़ापे को भी सहारा प्रदान करने के उपाय को भी उतना ही महत्त्व देती है। इस अवधारणा के अनरूप आज के श्रमिक आंदोलन कर्मचारियों की भविष्य निधि, सामाजिक बीमा, बेरोजगारी भत्ता, अपगंता भत्ता एवं अकाल मृत्यु के विरुद्ध सुरक्षा के मुद्दों पर अधिक ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं।
(4) कल्याण समरूपता के लिए संघर्ष - श्रमिक आंदोलन के आरम्भिक चरणों में जहाँ उद्योगों में कार्य दशाएँ एवं श्रमिकों को मानवीय सुविधाएँ प्रदान करने पर बल दिया जाता था वहीं आज किसी एक उद्योग में प्रदान की जा रही श्रम कल्याण सेवाओं को दूसरे उद्योगों में भी लागू करने की माँग की जाती है। दूसरे शब्दों में, आधुनिक युग में कल्याण कार्यक्रमों में समरूपता लाने के लिए श्रमिक आंदोलन देखने को मिलते हैं I
(5) दबाव गुटों को हतोत्साहन - श्रम आन्दोलनों के कारण जहाँ रोजगार के अवसर घटे हैं वही सकारात्मक परिवर्तन भी देखने को मिलते हैं। भारत का मानचेस्टर कहा जाने वाला अहमदाबाद महानगर श्रम आन्दोलनों की मार के कारण बहुत हद तक कमजोर हुआ और पूर्व का मानचेस्टर कहा जाने वाला कानुपर महानगर भी श्रम आन्दोलनों के कारण ही लगभग मृतप्राय हो गया हैं। इतनी कम्पनियाँ सरकारी व निजी क्षेत्र में कार्य करती थीं परन्तु श्रम-आन्दोलनों की नकारात्मकता के कारण बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ लगभग बन्द हो चुकी हैं। लघु व सीमान्त फैक्ट्रियाँ अपनी साँसे गिन रही हैं। श्रम आन्दोलन जहाँ देश को अन्धकार की ओर ले गयें वहीं कुछ आधुनिक प्रवृत्तियाँ इन आन्दोलनों में उभर कर सामने आ रही हैं। दबाव गुट की विभीषिका से लोग परिचित होने के बाद मिल-मालिक व मजदूर दबाव गुटों को महत्व नहीं दे रहे हैं। जब दाबव-गुट स्वस्थ रूप में कार्य करने लगेगें तो समाज में आर्थिक प्रगति व खुशहाली आने लगेगी।
( 6 ) श्रम विभाजन को बढ़ावा - श्रम आन्दोलनों के फलस्वरूप यह तथ्य निष्कर्षीकृत हुआ कि जब तक मजदूरों में विशेषीकृत लक्षण विद्यमान नहीं होंगे तब तक उन्हें उचित पारिश्रमिक प्राप्त नहीं होगा। धन के अभाव में मजदूर अपना समुचित विकास नहीं कर पाता जिसके कारण विकास की दौड़ में वह पीछे रह जाता है, इसका लाभ उठाकर श्रम-आन्दोलन के नेतागण, मजदूरों को गुमराह करने में सफल हो जाते हैं। मिल मालिक और मजदूरों के बीच खूनी संघर्ष आरम्भ हो जाता है जिसके फलस्वरूप अनेक सामाजिक बुराइयों को अवसर प्राप्त हो जाता है और निश्चित रूप से व्यक्ति व समाज की प्रगति अवरूद्ध हो जाती हैं। अतः कलह के निवारण के लिए श्रमिकों में श्रम विभाजन का होना अपरिहार्य है।
(7) प्रशिक्षित मजदूरों को प्रोत्साहन - मजदूरों की एक बड़ी फैहरिस्त आज अप्रशिक्षित रूप में कार्य कर रही है जिन्हें उनके पारिश्रमिक का बहुत कम अनुपात में धन प्राप्त होता है। यहाँ तक कि जोखिम भरे कामों में छोटे-छोटे बच्चे व महिलाएँ कार्य कर रही हैं। यहाँ तक कि वे बेगारी के रूप में भी कार्य कर रहे हैं। कृषि और बागवानी के क्षेत्र में बहुतायत मात्र में महिलाएँ मजदूरी कर रही हैं जिनका पेट भरना भी मुश्किल होता है। आदिवासी, बनवासी व पहाड़ी क्षेत्रों में गैर-प्रशिक्षित मजदूरों की भरमार है। जीविका यापन करने के लिये बड़े-बड़े महानगरों में गैर-प्रशिक्षितं मजदूर ठेकेदारों व दलालों के मकड़जाल में फँस जाते हैं और सम्पूर्ण जीवन खाने-कमाने में समाप्त हो जाता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आज प्रशिक्षित मजदूरों को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए अनेक श्रम आन्दोलन कार्य रहे हैं। सरकार की विभिन्न योजनाओं निजी प्रयत्नों से मजदूरों में स्किल डेवलेपमेंट को प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रशिक्षित मजदूर को उसकी योग्यता व क्षमता के आधार पर वेतन प्राप्त होता है जिससे उसकी समस्त आवश्यकताएँ परिपूरित होती हैं।
(8) नवीन अधिनियमों का अधिनियमन - मजदूरों के कल्याण के लिये समय-समय पर सरकार अनेक अधिनियमों का अधिनियम करती है। फिर भी वर्तमान परिदृश्य को ध्यान में रखकर अनेक नवीन अधिनियमों का उपबन्धन करना सरकार का कर्त्तव्य होता है। अनेक अधिनियम वर्तमान समय के साथ समीचीन नहीं हैं इसलिये अनेक अधिनियमों को शून्य करने की भी आवश्यकता है। जन-आन्दोलन परिवर्तन का द्योतक होता है। अतः आन्दोलनों के माध्यम से मालिक और मजदूर का हित समन्वयकारी बना रहे इसलिये अनेक हितकारी अधिनियमों का उपबन्धन होना चाहिये। अधि नियमों के माध्यम से अनेक निर्योग्यताओं को समाप्त किया जा सकता है और मजदूरों के जीवन में नया उजाला भरा जा सकता है। आन्दोलन सदैव परिवर्तनकारी व सुखदायी होता है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि आधुनिक श्रमिक आन्दोलन अधिकाधिक विस्तृत, गहन एवं सूक्ष्म होते जा रहे हैं जो व्यक्तिवादी एवं सामूहिक दोनों स्तरों पर श्रमिकों के कल्याण के उद्देश्य से चलाए जा रहे हैं।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन (Cultural Lag) के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी ने पारिवारिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित व परिवर्तित किया है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए- (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैविकीय कारक का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- विकास के अर्थ तथा प्रकृति को स्पष्ट कीजिए। बॉटोमोर के विचारों को लिखिये।
- प्रश्न- विकास के आर्थिक मापदण्डों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के आयामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति की सहायक दशाएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति के मापदण्ड क्या हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
- प्रश्न- क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? क्रान्ति के कारण तथा परिणामों / दुष्परिणामों की विवेचना कीजिए |
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास क्या है?
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबलन के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक ) एवं भावात्मक ( विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सैडलर के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का प्राकृतिक प्रवरण का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- संस्कृतिकरण का अर्थ बताइये तथा संस्कृतिकरण में सहायक अवस्थाओं का वर्गीकरण कीजिए व संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषतायें बताइये। संस्कृतिकरण के साधन तथा भारत में संस्कृतिकरण के कारण उत्पन्न हुए सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करते हुए संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- भारत में संस्कृतिकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण का अर्थ एवं परिभाषायें बताइये। पश्चिमीकरण की प्रमुख विशेषता बताइये तथा पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणाम बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण ने भारतीय ग्रामीण समाज के किन क्षेत्रों को प्रभावित किया है?
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन में संस्कृतिकरण एवं पश्चिमीकरण के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण में सहायक कारक बताइये।
- प्रश्न- समकालीन युग में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जातीय संरचना में परिवर्तन किस प्रकार से होता है?
- प्रश्न- स्त्रियों की स्थिति में क्या-क्या परिवर्त हुए हैं?
- प्रश्न- विवाह की संस्था में क्या परिवर्तन हुए स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- परिवार की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक रीति-रिवाजों में क्या परिवर्तन हुए वर्णन कीजिए?
- प्रश्न- अन्य क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डा. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डा. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ तथा परिभाषा बताइये? भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा व तत्व बताइये। लौकिकीकरण के कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण की सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर वैश्वीकरण और उदारीकरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य, 2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क, 3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
- प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलनों का एक उपयुक्त वर्गीकरण प्रस्तुत करिये। इसके लिये भारत में हुए समकालीन आन्दोलनों के उदाहरण दीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विकास के चरण अथवा अवस्थाओं को बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विभिन्न सिद्धान्तों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "क्या विचारधारा किसी सामाजिक आन्दोलन का एक अत्यावश्यक अवयव है?" समझाइए।
- प्रश्न- सर्वोदय आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर्वोदय का प्रारम्भ कब से हुआ?
- प्रश्न- सर्वोदय के प्रमुख तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ? इसके स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन के प्रकोप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की क्या-क्या माँगे हैं?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की विचारधारा कैसी है?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का नवीन प्रेरणा के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का राजनीतिक स्वरूप बताइये।
- प्रश्न- आतंकवाद के रूप में नक्सली आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- "प्रतिक्रियावादी आंदोलन" से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न - रेनांसा के सामाजिक सुधार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सम्पूर्ण क्रान्ति' की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिक्रियावादी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के संदर्भ में राजनीति की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में सरदार वल्लभ पटेल की भूमिका की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रतिरोधी आन्दोलन" पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन क्या है? भारत में किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन की आधुनिक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में मजदूर आन्दोलन के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' के बारे में अम्बेडकर के विचारों की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में दलित आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारकों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- महिला आन्दोलन से क्या तात्पर्य है? भारत में महिला आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरण संरक्षण के लिए सामाजिक आन्दोलनों पर एक लेख लिखिये।
- प्रश्न- "पर्यावरणीय आंदोलन" के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये। -
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलन के सामाजिक प्रभाव क्या हैं?