बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र
अध्याय - 10
रूसो
(Rousseau)
प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
रूसो के अनुसार 'प्रकृति की और लौटो' का क्या अर्थ है?
उत्तर -
रूसो का प्रकृतिवाद
(Naturalism of Rousseau)
रूसो के अनुसार, "प्रकृति के निर्माता के यहाँ से संसार में सभी वस्तुएँ अच्छे और सुन्दर रूप में आती हैं। मनुष्य के हाथों में आते ही वे दूषित हो जाती हैं। " रूसो सामाजिक व्यवस्था और व्याप्त कुरीतियों से बहुत दुःखी था और व्याप्त कृत्रिमता को दूर करने के लिए प्रकृति की ओर लौटने का उसने सन्देश दिया। उसके अनुसार, समाज की विविध कलायें और संस्थायें व्यक्ति के जीवन को बनावटी बनाकर उसे पतन में पहुँचा देती हैं। आदिकालीन मानव आज के सभ्य मानव से अधिक सुखी था, क्योंकि वह प्राकृतिक जीवन व्यतीत करता था। आज भी मनुष्य सभी कष्टों से छुटकारा पा सकता है यदि वह प्रकृति के नियमों का अनुसरण करने लगे। रूसो का नारा था - 'मनुष्य तू प्रकृति की ओर लौट तो तेरा कल्याण होगा। '
रूसो का विचार था कि बालक को समाज से बहुत दूर रखा जाये, अन्यथा उसमें सामाजिक बुराइयाँ आ जायेंगी। वह नहीं समझ पाया कि सामाजिक बुराइयों से बालक का बचाव समाज से पृथक् रखकर नहीं वरन् प्रेम, सहयोग, त्याग आदि भावनाओं के बल पर भी हो सकता है। पेस्तालॉजी समाज-सुधार का आधार मानव और समाज के प्रेम को मानता था। रूसो को समाज और परिवार से सुख नहीं मिला। उसे केवल कष्ट मिले इसलिए उसके मन में समाज के प्रति घृणा थी।
रूसो समाज विरोधी विचारों का समर्थक था। सामाजिक आधार उसकी शिक्षा के आधार नहीं थे। अपनी 'सोशल काण्ट्रैक्ट' नामक पुस्तक से उसका मत है कि ठीक राजनीतिक सिद्धान्तों का अनुसरण करके नवीन सभ्यता का विकास सम्भव नहीं है। वह उस समय के प्रचलित स्कूलों की शिक्षा का कट्टर विरोधी था। वह शिक्षा का आधार मानव-सम्भव को मानता है। वह ऐसे 'प्रकृतिवाद के मनुष्य' की कल्पना करता है जो अपने स्वभाव के अनुकूल स्वतन्त्रतापूर्वक विकास करता है और असभ्य होते हुए भी सामाजिक परम्पराओं से दूर रहता है। रूसो के अनुसार, बालक के स्वभाव का पता लगे तभी तो उसे स्वाभाविक शिक्षा दी जाती है। परन्तु बालक के स्वभाव का पता लगाना सरल काम नहीं है। रूसो कहता है - "हमें मनुष्य बनना है या नागरिक यह निर्णय लेना है तथा प्रकृति और समाज की शक्तियों से लड़ना है। हम मनुष्य और नागरिक दोनों एक साथ नहीं बन सकते।" वह एमील को मनुष्य बनाना चहाता है, कोई नागरिक या सामाजिक व्यक्ति नहीं बनाना चाहता। अठारहवीं शताब्दी में जो परिस्थितियाँ विद्यमान र्थी, सम्भवतः उनको देखते हुए रूसो का विरोध स्वाभाविक ही था।
रूसो के अनुसार, दूसरों या समाज के विचारों और अनुभवों पर निर्भर रहकर विकास करना मूर्खता है। व्यक्ति को अपनी प्रकृति, अपने स्वभाव और प्रकृति के आधार पर कार्य करना चाहिए। दूसरे के अनुभव हानिकारक और अप्राकृतिक या अस्वाभाविक होते हैं। हमें अपने स्वभाव, प्रकृति और आन्तरिक भावना के अनुकूल कार्य करना चाहिए। वह बालक में कोई भी आदत (Habit ) डालना ठीक नहीं समझता था। वास्तव में 'कोई भी आदत न डालने की आदत ही' बालक के विकास के लिए उचित है। रूसो के अनुसार, व्यक्ति को किसी भी आदत का दास नहीं होना चाहिए। व्यक्ति जो मन में आये, वह करे, इसी में सुख है।
रूसो को प्रकृति से प्यार था इसी कारण वह सभी को प्रकृति की ओर लौटने का परामर्श देता है। बच्चा मनुष्य और समाज के सम्पर्क में आकर बिगड़ता है। परन्तु जीव जन्तुओं, पशुओं, वनस्पतियों आदि के सम्पर्क में आकर सुधरता है। रूसो शहर को नैतिक और शारीरिक दृष्टि से मानव जाति की कब्र मानता है। उसके अनुसार, समाज अत्याचारी है इसलिए पीड़ित व्यक्ति एकान्त में रहना पसन्द करता है। इन्हीं मान्यताओं के कारण रूसो बालक को समाज और उसकी संस्कृति से बिल्कुल अलग रखना चाहता है और प्राकृतिक वातावरण में रखकर उसे विकास का स्वतन्त्र अवसर देना चाहता है। लोगों की दृष्टि में रूसो का प्रकृतिवाद समाज में व्याप्त असमानता, बुराई, शोषण की अपेक्षा अधिक अच्छा लगा। इसी के फलस्वरूप शिक्षा बाल-केन्द्रित बन सकी।
रूसो का प्रकृतिवाद और शिक्षा
(Naturalism of Rousseau and Education)
रूसो का विचार था कि बालक को बालक समझकर ही शिक्षा देना ठीक है उसे वयस्क समझकर शिक्षा देना ठीक नहीं। प्रौढ़ और बालक की आवश्यकताओं में भेद होता है। इसलिए दोनों की शिक्षा समान नहीं हो सकती। शिक्षा तभी उपयोगी होगी जब वह व्यक्ति (बालक) के स्वभाव के अनुकूल हो। पहले बालक के स्वभाव या प्रकृति (Nature) को जाना जाये तभी उसकी शिक्षा-व्यवस्था की जाये।
स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा अनुपयोगी है क्योंकि वह बालकों के स्वभाव के अनुकूल नहीं है, वह उन पर लादी जाती है। बालक को ज्ञान लादकर बड़ा न किया जाए वरन् जब तक वह स्वयं बड़ा नहीं हो जाता उसे बालक ही रहने दिया जाये। रूसो के अनुसार, शिक्षा वह है जो बालक के अंगों और जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक विकास करे। "पहले बालक के स्वभाव और उसकी आवश्यकताओं को समझो तब उसके लिए स्वाभाविक शिक्षा-व्यवस्था करो। स्वभावनुकूल दी जाने वाली शिक्षा बालक के लिए सर्वाधिक उपयोगी होगी।
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- प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
- प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
- प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए - (i) तत्व-मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
- प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये |
- प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
- प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक की भूमिका को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है?
- प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों?
- प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
- प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्त्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
- प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं? लिखिए।
- प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन का क्या अभिप्राय है? बताइए।
- प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर की शिक्षा दर्शन की शिक्षण विधियाँ क्या हैं? बताइए। शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है? सोदाहरण समझाइए।
- प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं?
- प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम के निर्धारण में जॉन डीवी के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
- प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
- प्रश्न- बहुलवाद, बहुलवादी शिक्षा से आपका क्या आशय है? इसकी विधियाँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया को बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में जाति, वर्ग एवं लिंग की भूमिका बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं? विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एवं इसकी आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन की परिभाषाए देते हुए विद्यालय संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? इनसे सम्बन्धित धारणाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रारूप बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
- प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा इनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- 'अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
- प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- राज्य के उन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
- प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की भूमिका को विस्तार से बताइए।
- प्रश्न- सतत् विकास के लिए शिक्षा से आप क्या समझते हैं? सतत् विकास में शिक्षा की अवधारणा और उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सहस्राब्दी विकास लक्ष्य मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का निर्धारण कौन-सा संस्थान करता है?
- प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
- प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा के प्रमुख अभिकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) व सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) क्या है? बताइए।