बी ए - एम ए >> बी.ए._बी.एस-सी._बी.कॉम. ( III सेमेस्टर) मानव मूल्य एवं पर्यावरण अध्ययन बी.ए._बी.एस-सी._बी.कॉम. ( III सेमेस्टर) मानव मूल्य एवं पर्यावरण अध्ययनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.ए./बी.एस-सी./बी.कॉम. ( III सेमेस्टर) मानव मूल्य एवं पर्यावरण अध्ययन
धर्म एवं जीवन प्रबंधन
वर्तमान समय में धर्म को लेकर अनेक प्रकार की चर्चाएँ सुनने को मिलती हैं। धर्म के वास्तविक स्वरूप को जाने बिना भ्रांतिपूर्ण विचारों के कारण धर्म की जो व्याख्या अनेक स्थानों पर मिल जाती है उसके कारण अशांति और असंतोष ही अधिक पनपे हैं। वास्तव में धर्म एक व्यापक जीवन दृष्टि है जिसके अभाव में व्यवस्थित एवं सार्थक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि संकीर्णतापूर्ण सोच के दायरे से बाहर निकलकर धर्म को उसके वास्तविक अर्थ में ग्रहण किया जाए तथा उसे उसकी संपूर्ण समग्रता के साथ जीवन में उतारा जाए।
श्रेष्ठ कर्म किए जाते रहें इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि मानव जीवन का एक श्रेष्ठतम लक्ष्य निर्धारित हो। और इस लक्ष्य की प्राप्ति तभी संभव है जब जीवन का बेहतर प्रबंधन किया जाए। जीवन प्रबंधन अर्थात् उचित मानव जीवन जीने के लिए योजनाबद्ध जीवन शैली का विकास। किंतु प्रश्न यह उठता है की योजनाबद्ध जीवन शैली कैसे विकसित की जाए? इस प्रश्न का उत्तर हमें पौराणिक ग्रंथों एवं शास्त्रों में यदा-कदा मिल ही जाता है। शास्त्रों में मानव जीवन की समग्रता के विकास के लिए धर्म की स्थापना और प्रतिष्ठा पर बल दिया गया है। इसीलिए हमारे शास्त्र, हमारे ग्रंथ सांस्कृतिक दस्तावेज कहे जा सकते हैं, जिनसे निरंतर मार्गदर्शन हमें प्राप्त हो सकता है। धर्मानुकूल आचरण को ही मानव जीवन में प्रतिष्ठित कर जीवन जीने की प्रेरणा महापुरुषों ने भी अपने उपदेशों में दी है। वास्तव में धर्म मानव के लिए निर्धारित कर्तव्य कर्म से अनुप्राणित होता है। वह कर्त्तव्य जो मानव के लिए निर्धारित किए गये हैं। असल में धर्म का अर्थ ही है जीवन में स्वयं के अनुशासन के लिए स्वीकृति। हालाँकि इस मार्ग पर चलना साहस का काम है और साहस का काम इसलिए क्योंकि यह पथ साधना मूलक होने के कारण कुछ कठिन अवश्य प्रतीत होता है किंतु नामुमकिन नहीं, क्योंकि धर्म तो मानव जीवन के लिए एक मार्गदर्शिका है, एक पथ प्रदर्शक है जो धारणा की मूल प्रवृत्ति पर आधारित है। 'धारणा' अर्थात जिसकी स्वीकृति हो, जो धारण करने योग्य हो, वही धर्म है।
विडंबना है कि धर्म को बाद में जातिगत विचारधाराओं के साथ जोड़कर देखा जाने लगा किंतु इसे मनुष्य का केवल मतिभ्रम कहा जा सकता है क्योंकि जब किसी तत्त्व का वास्तविक ज्ञान हमें नहीं होता है तो भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो ही जाती है। इस वैचारिक संकट से बचने के लिए "धार्यते इति धर्मः" के सिद्धांत को जानने-समझने की आवश्यकता है। संतों ने बार-बार उपदेश के माध्यम से धर्म की महत्ता और उपयोगिता को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया है।
इस तथ्य के प्रमाण स्वरूप रामायण में वर्णित कतिपय प्रसंग यहाँ उल्लेखनीय हैं। प्रथम तो भरत जी का उदाहरण सर्वोपरि है जो भातृप्रेम के पर्याय के रूप में जाने जाते हैं। किंतु क्या उनका प्रेम मात्र भातृ प्रेम ही था शायद नहीं क्योंकि भरत स्वयं धर्म स्वरूप कहे गए हैं, जिनके लिए धर्म से बढ़कर कुछ भी नहीं। इसीलिए उनकी श्रद्धा, उनका अनन्य प्रेम बड़े भाई से अधिक धर्मावतार श्रीराम के लिए था जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए जीवन के हर संकट को सहर्ष स्वीकार किया। इतना ही नहीं राम वनवास का वास्तविक कारण ज्ञात होने पर उन्होंने अपनी जन्मदायिनी माँ से भी मुख मोड़ लिया क्योंकि जो कुछ हुआ अथवा किया गया, उनकी दृष्टि में वह धर्म के अनुकूल नहीं था। राम एवं भरत दोनों ने मर्यादा की प्रतिष्ठा और नैतिक कर्त्तव्य के परिपालन के पथ पर कभी कोई समझौता नहीं किया, इसीलिए उनका चरित्र आज भी मानव समाज के लिए अनुकरणीय है। एक अन्य प्रसंग में बालि द्वारा श्रीराम से पूछे जाने पर कि धर्म की रक्षा के लिए अवतरित होने के बावजूद उसे छुपकर मारने के पीछे आखिर क्या प्रयोजन है-
(i) धर्म हित अवतरेहु गोसाई।
मारेहूँ मोहि व्याघ की नाईं।।
मैं बैरी, सुग्रीव पियारा।
अवगुण कवन नाथ मोहि मारा।
तुलसीदास जी ने बालि की शंका का समाधान करते हुए श्रीराम के माध्यम से उल्लेखित किया
(ii) अनुजबधू भगिनी सुत नारी।
सुनु सठ कन्या सम यह चारी।।
इन्हीं कुदृष्टि बिलोकहिं जोई।
ताहि बधे कछु पाप न होई।।
बालि का अवगुण तो सिर्फ यही था कि वह धर्म मार्ग से भटक गया था। स्पष्ट है कि धर्म की रक्षा के लिए कभी-कभी शस्त्र उठाना भी धर्म सम्मत ही होता है क्योंकि उस समय यही मानव का धर्म है। द्वापर युग में मानवीय कर्त्तव्यों के प्रति विरोधाभास की जो स्थिति दिखाई देती है उसके कारण चारों ओर अधर्म का ही वातावरण निर्मित हुआ। अधर्म अर्थात् वे कर्म जो मानव के लिए धारण करने योग्य नहीं हैं, स्वीकार करने योग्य नहीं है। इसीलिए अधर्म को कभी प्रकृतिगत स्वीकृति मिल ही नहीं सकती। यही कारण है कि धर्म की स्थापना के लिए ईश्वरीय शक्तियाँ बार-बार धरती पर अवतरित होती हैं। कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण ने स्वयं उद्घोष किया है, जो आज भी मानव को सचेत करता हुआ प्रतीत होता है-
(iii) यदा यदा ही अधर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:,
अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ||
मनु स्मृति के 8वें अध्याय में उल्लेखित 15वें श्लोक की चर्चा यहाँ आवश्यक है। इस श्लोक में धर्म का सार निहित है। विद्वानों के अनुसार सर विलियम जोन्स के द्वारा 1776 में इस श्लोक के अंग्रेजी में अनुवाद किए जाने संबंधी जानकारी भी मिलती है। इतना ही नहीं यह भी जानकारी मिलती है कि ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा हिंदू कानून बनाने के लिए इस श्लोक का आधार ग्रहण किया गया था। वह पूरा श्लोक इस प्रकार है-
(iv) धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोवधीत।।
अर्थात् जो लोग धर्म की रक्षा करते हैं उनकी रक्षा स्वयं हो जाती है। धर्म का आशय ही है व्यक्ति के अपने कर्त्तव्य, नैतिक नियम, आचरण, चरित्र, सकारात्मक सोच आदि। जो व्यक्ति जीवन में इन गुणों का पालन करता है वह धर्म की रक्षा करने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति कभी भटकता नहीं, कभी दिग्भ्रमित नहीं होता।
अपने उत्तम आचरण से वह उचित मार्ग का अनुसरण कर ही लेता है। इस प्रकार धर्म व्यक्ति की रक्षा करता है।
मनुष्य का जीवन उसके आचरण एवं चरित्र का दर्पण होता है। मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह इस दर्पण पर अधर्म अर्थात् न करने योग्य कार्यों की धूल न जमने दे। इसके लिए आवश्यक है कि वह सतत अपने कर्मों, अपनी सोच और अपने आचरण पर निगरानी रखे। मनुष्य अपने बाह्य एवं आभ्यान्तरिक स्तर पर धर्म के अनुकूल जीवन दृष्टि को विकसित करने का प्रयास करे। इसके लिए किसी बड़े अवसर की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। छोटे-छोटे प्रयास तब तक किए जाते रहें जब तक वह हमारी आदत नहीं बन जाते। प्रबंधन का अर्थ ही है उथल-पुथल की स्थिति से निकलकर व्यवस्था पूर्ण शैली का विकास करना। जीवन में उन्हीं मानवोचित गुणों को धारण करना जिनसे मानव जीवन की सार्थकता सिद्ध हो सके, यही धर्म का मार्ग है यही जीवन प्रबंधन का भी श्रेष्ठ मार्ग है। जीवन में सौंदर्य दृष्टि का पर्याय भी यही है। मानव का यही मार्ग समाज कल्याण का पथ प्रशस्त करता है इसी भावना के बल पर विश्वकल्याण की सोच को बल मिलता है।
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- अध्याय-1 मानव मूल्य (Human Values) पाठ्य सामग्री
- मूल्यों के प्रकार
- भारतीय संस्था में विकसित मूल्य
- उद्यम प्रबन्धन में मूल्य
- पेशे के प्रति वफादारी की श्रेणियाँ
- पेशे के प्रति वफादारी के मूल्य के सिद्धान्त
- समाज कार्य पेशे के प्रति निष्ठा का पालन
- प्रबन्धन में सांस्कृतिक मानवीय मूल्य
- दर्शन
- सांस्कृतिक मूल्य
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञांत कीजिए।
- अध्याय - 2 चरित्र निर्माण में स्वामी विवेकानन्द के सिद्धान्त (The Principles of Swami Vivekanand in Character Building) पाठ्य सामग्री
- भारत के युवाओं के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
- सात पापों की गाँधीवादी अवधारणा
- अहिंसा का दर्शन और गाँधी
- माता-पिता तथा अध्यापकों की भूमिका के प्रति डॉ० ए० पी० जे० अब्दुल कलाम के विचार
- माता-पिता तथा शिक्षक की भूमिका के प्रति APJ अब्दुल कलाम के विचार
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
- अध्याय - 3 मानव मूल्य और वर्तमानव्यवहार-मुद्दे : भ्रष्टाचार एवं रिश्वत (Human Values and Present Behaviour Issues: Corruption and Bribe) पाठ्य सामग्री
- भ्रष्टाचार के दुष्प्रभाव
- भ्रष्टाचार व असमानता
- विभिन्न क्षेत्रों में भ्रष्टाचार
- संचार माध्यमों (मीडिया) का भ्रष्टाचार
- चुनाव सम्बन्धी भ्रष्टाचार
- नौकरशाही का भ्रष्टाचार
- कॉरपोरेट भ्रष्टाचार
- शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार
- विविध भ्रष्टाचार
- भ्रष्टाचार और स्विस बैंक
- समाधान
- रिश्वत
- सामाजिक नेटवर्क एवं संचार में व्यक्तिगत नीति
- विशिष्ट संरचना
- ऑनलाइन शॉपिंग
- यूनाइटेड किंगडम का रिश्वत अधिनियम
- सामान्य रिश्वतखोरी अपराध
- विदेशी सरकारी अधिकारियों की रिश्वत
- अभियोजन और दंड
- अन्य प्रावधान
- रिश्वत अधिनियम का अनुपालन
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
- अध्याय - 4 नीतिशास्त्र के सिद्धान्त (Principles of Ethics) पाठ्य सामग्री
- महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ
- नीतिशास्त्र के प्रमुख सिद्धान्त
- आध्यात्मिक मूल्य
- भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ
- निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate social responsibility या "CSR" )
- रतन नवल टाटा
- अजीम हाशिम प्रेमजी
- बिल गेट्स
- माइक्रोसॉफ्ट
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
- अध्याय - 5 निर्णय निर्माण में धार्मिकता (Holistic Approach in Decision Making) पाठ्य सामग्री
- समस्या का विश्लेषण करने के तरीके
- श्रीमद्भगवत् गीता : प्रबंधन में तकनीक (The Bhagwat Gita : Techniques in Management)
- धर्म एवं जीवन प्रबंधन
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
- अध्याय - 6 चर्चा द्वारा दुविधाओं की व्याख्या (Elaboration of Dilemmas through Discussion) पाठ्य सामग्री
- विपणन संगठन : अर्थ व उद्देश्य
- मार्केटिंग की दुविधा
- भारतीय दवा उद्योग
- जेनेरिक दवा (Generic Drug)
- निजीकरण में दुविधा (Dilemma of Privatisation)
- सार्वजनिक उद्यमों द्वारा संतोषजनक कार्य न करने के कारण
- निजीकरण
- उदारीकरण में दुविधा (Dilemma on Liberalisation)
- भारतीय अर्थव्यवस्था पर उदारीकरण का प्रभाव
- सोशल मीडिया एवं साइबर सुरक्षा में दुविधा (Dilemmas in Social Media and Cyber Security)
- सोशल मीडिया और भारत
- सोशल मीडिया से जुड़ी समस्याएँ
- सोशल मीडिया और निजता का मुद्दा
- साइबर सुरक्षा दृष्टिकोण के समक्ष समस्याएँ
- साइबर सुरक्षा की दिशा में किये गए सरकार के प्रयास
- जैविक खाद्य पदार्थों की दुविधा (Dilemma on Organie Food)
- खाद्य मानक का महत्त्व
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
- अध्याय - 7 पारितन्त्र (Ecosystem) पाठ्य सामग्री
- पारितन्त्र की संरचना एवं कार्य प्रणाली (Structure and Functioning of Ecosystem)
- आहार श्रृंखला (Food Chain)
- खाद्य जाल (Food Web)
- ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow)
- पारिस्थितिक पिरामिड (Ecological Pyramids)
- जैव विविधता का संरक्षण (Conservation of Biodiversity)
- जर्मप्लाज्म बैंक अथवा जीन बैंक (Germplasm Bank or Gene Bank)
- स्वस्थानें एवं उत्स्थाने संरक्षण (In situ conservation & Ex-situ Conservation of Biodiversity)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न - निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
- अध्याय - 8 व्यक्ति विशेष की प्रदूषण नियंत्रण में भूमिका (Role of Individual in Pollution Control) पाठ्य सामग्री
- जनसंख्या एवं पर्यावरण Population & Environment)
- दीर्घकालिक या ठोस विकास (Sustainable Development)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
- अध्याय - 9 भारत एवं संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के लक्ष्य (Sustainable Development Goals of India and UN) पाठ्य सामग्री
- यूएनडीपी की भूमिका
- सर्कुलर अर्थव्यवस्था की अवधारणा एवं उद्योग उपक्रम (Concept of circular economy and entrepreneurship)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
- अध्याय - 10 पर्यावरणीय नियम (Environmental Laws) पाठ्य सामग्री
- वन अधिकार अधिनियम 2006
- स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार
- पर्यावरणीय संरक्षण में अन्तर्राष्ट्रीय उन्नति (International Advancement in Environmental Conservation)
- वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF)
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal)
- NGT के महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
- अध्याय - 11 हवा की गुणवत्ता (Quality of Air) पाठ्य सामग्री
- संयुक्त राष्ट्र की रिर्पोट के अनुसार
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम
- वायु गुणवत्ता सूचकांक
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
- भारतीय परम्परागत पर्यावरणीय ज्ञान का महत्त्व (Importance of Indian Traditional knowledge on Environment)
- पर्यावरणीय गुणवत्ता का जैव मूल्यांकन (Bio Assessment of Environmental Quality)
- पर्यावरण का क्षेत्र
- पर्यावरण का महत्त्व
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।
- अध्याय - 12 पर्यावरण प्रबन्धन (Environment Management) पाठ्य सामग्री
- पर्यावरण प्रबंधन की प्रणालियाँ
- पर्यावरण आकलन का महत्त्व (Importance of Environment Assessment )
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के उद्देश्य
- भारत में पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन
- पर्यावरणीय ऑडिट (Environmental Audit)
- पर्यावरण ऑडिट कितने प्रकार के होते हैं?
- पर्यावरण लेखा परीक्षा के लाभ
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए।