बी एस-सी - एम एस-सी >> बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान
प्रश्न- जन्तुओं में लिंग निर्धारण की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सेक्स गुणसूत्र सेक्स निर्धारण में किस प्रकार भूमिका निभाते हैं?
2. हिमेनेप्टेरा कीटों में लिंग निर्धारण की विधि को समझाइए।
3. लिंग निर्धारण पर वातावरण का नियन्त्रण समझाइए।
4. सेक्स गुणसूत्र या लिंग गुणसूत्र से आप क्या समझतें है?
उत्तर -
लिंग निर्धारण
(Sex Determination)
लिंग निर्धारण निषेचन के समय लिंग गुणसूत्रों (sex chromosomes) द्वारा होता है जैसे मनुष्य में X गुणसूत्र स्त्री तथा Y गुणसूत्र पुरुष के लिंग का निर्धारण करता है। अतः XXX गुणसूत्र वाले युग्मनज (zygote) से मादा का विकास होता है तथा XY गुणसूत्र वाले युग्मनज से नर का विकास होता है। लैंगिक अंगों का द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के विकास को लिंग विभेदन (sex differentiation) कहते हैं। कशेरुकी प्राणियों में यह हारमोन के नियन्त्रण में होता है जबकि समुद्री जन्तु बोनेलिया (Bonellia) में यह वातावरणं द्वारा प्रभावित होता है।
जन्तुओं में लिंग निर्धारण क्रियाविधि
(Mechanism of Sex Determination in Animals)
जन्तुओं में लिंग निर्धारण की क्रियाविधि को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया जा सकता है-
(A) वातावरणीय लिंग निर्धारण (Environmental Sex Determination) - कुछ प्राणियों में लिंग निर्धारण आनुवंशिकरहित (nongenetic) होता है। अतः उन्हें बाह्य वातावरण पर निर्भर होना पड़ता है। इस प्रकार के जीवधारियों में नर तथा मादा पाये जाते हैं जिनमें जीन संरचना समान होती है और बाह्य वातावरण के उद्दीपन के फलस्वरूप ही इनमें लिंग विकास (sex development) होता है। समुद्री जन्तु बोनेलिया (Boenellia) में मादा बड़े आकार की होती है, किन्तु नर बहुत छोटे आकार का होता है और नर जन्तु मादा के जनन तन्त्र में स्थित रहता है। यह नर इसी स्थिति में मादा के अण्डों का निषेचन करता है। यदि मादा के अण्डों को शरीर से पृथक करके उनमें कृमि बनने के लिए सभी साधन उपलब्ध कराये जाते हैं तो यह देखा जाता है कि उन अण्डों से उत्पन्न सभी कृमि मादा होते हैं। इसके पश्चात् अण्डों से निकले हुए कृमियों को ऐसे जल में रख दिया जाता है जिसमें सभी प्रौढ़ मादाएँ होती हैं तो देखा गया है कि कुछ अल्पवयस्क कृमि प्रौढ़ मादाओं की ओर आकर्षित होकर उनकी शुण्डों (proboscis) के समीप पहुँच जाते हैं और उनके शरीर में प्रवेश कर जनन तन्त्र में आ जाते हैं जिनसे नर कृमि बन जाते हैं। ऐसा मालूम होता है कि मादा कृमियों की शुण्ड में एक प्रकार का रस निकलता है जो अल्पविकसित कृमियों को नर कृमियों में बदल देता है।
(B) गुणसूत्री लिंग निर्धारण (Chromosomal Sex Determination) - लैंगिक जनन (sexual reproduction) में नर तथा मादा युग्मक (gametes) संयुग्मन (fusion) करके युग्मनज का निर्माण करते हैं। युग्मक के केन्द्रक में गुणसूत्र निश्चित संख्या में पाये जाते हैं, जो निम्नलिखित दो प्रकार के हो सकते हैं -
1. अलिंग गुणसूत्र (Autosomes) - वे गुणसूत्र जिनमें प्राणियों के दैहिक लक्षणों के जीन्स होते हैं, अलिंग गुणसूत्र कहलाते हैं। ये गुणसूत्र प्राणी के लिंग निर्धारण में कोई भाग नहीं लेते हैं केवल उसके दैहिक लक्षणों को प्रदर्शित करते हैं।
2. लिंग निर्धारण ( Sex Cromosomes) - वे गुणसूत्र जो किसी प्राणी का लिंग निर्धारित करते हैं, लिंग गुणसूत्र अथवा हेटरोसोम्स (heterosomes) अथवा ऐलोसोम्स (allosomes) अथवा ओड गुणसूत्र (odd chromomosomes) अथवा इडिओसोम्स (idiosomes) के नाम से जाने जाते हैं। इनमें नर तथा मादा लक्षणों के जीन्स होते हैं। यह सामान्यतया X तथा Y गुणसूत्र अथवा Z तथा W गुणसूत्र के द्वारा प्रदर्शित किये जाते हैं। यह गुणसूत्र नर तथा मादा में भिन्न-भिन्न होते हैं। नर अथवा मादा किसी एक लिंग में यह गुणसूत्री समरूपी (homomorphic - XXX) तथा दूसरे में विषमरूपी (heteromorphic - XY) होते हैं।
एच. हेनकिंग (H. Henking, 1891) ने एक हेमिप्टेरस कीट (Hemipterous insect) स्कवास बग (Squash bug) पायरोकोरस एपीरस (Pyrrochoris operus) की जनन कोशिकाओं में अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis division) का अध्ययन किया। उन्होंने गहरी अभिरंजित (dark stained) संरचनाओं को एक्स बॉडी (X-body) कहा। ये रचनाएँ गुणसूत्र होती हैं। मैकक्लंग (Mc-Clung, 1902) ने बताया कि गुणसूत्र लिंग निर्धारण में भाग लेते हैं। इसका अनुमोदन' प्रसिद्ध वैज्ञानिक ई. बी. विल्सन (E.B. Wilson, 1905) ने भी किया और अब ये एक्स बॉडी लिंग गुणसूत्र (X-body sex chromosomes) या एक्स गुणसूत्र (X-chromosome) कहलाते हैं। मिस स्टीवेन्स (Miss Stevens, 1905) ने बताया कि ड्रोसोफिला मेलेनोगेस्टर (Drosophilla melanogaster) की कायिक कोशिकाओं (somatic cells) में आठ गुणसूत्र होते हैं, जो चार जोड़ों (pairs) में पाये जाते हैं। नर मक्खियों में गुणसूत्र का एक जोड़ा विशिष्ट प्रकार का होता है अर्थात् प्रत्येक जोड़े के दोनों गुणसूत्र असमान आकार (unequal size) के होते हैं। इनमें से एक गुणसूत्र जो मादा मक्खी के गुणसूत्र के समान होता है X गुणसूत्र (X-chromosome) कहलाता है। विल्सन (Wilson, 1901) के अनुसार दूसरा विषम (odd) गुणसूत्र Y गुणसूत्र (Y-chromosome) कहलाता है। अतः ड्रोसोफिला की नर मक्खी में XY गुणसूत्र (XY-chromosomes) तथा मादा मक्खी में XX - गुणसूत्र (XX-chromosomes) होते हैं, जिनकी गणना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है -
नर (Male) - 6A + XY
X तथा Y गुणसूत्र एक-दूसरे से लम्बाई में भिन्न होते हैं। ड्रोसोफिला में Y गुणसूत्र, X - गुणसूत्र की अपेक्षा बड़ा होता है। Y गुणसूत्र हेटरोक्रोमेटिक होते हैं जिन पर बहुत कम बिन्दु पथ (loci) होते हैं और X गुणसूत्र के समजात (homologous) होते हैं।
गुणसूत्री लिंग निर्धारण के लिए अनेक मत प्रस्तुत किये गये हैं, जिन्हें निम्नलिखित पाँच भागों
में विभाजित किया जा सकता है -
(i) XX मादा (Female), XO नर (Male) - इस तरह की स्थिति टिड्डों (grasshoppers) तथा अन्य कीटों में पायी जाती है। इनकी मादा में अलिंग गुणसूत्र (autosomes) के सामान्य जोड़े तथा X - गुणसूत्र का एक जोड़ा होता है। किन्तु नर में अलिंग गुणसूत्र का एक सामान्य जोड़ा होता है किन्तु एक X गुणसूत्र पाया जाता है अर्थात् एक गुणसूत्र कम होता है।
शुक्रजनन (spermatogenesis) के समय जब अर्द्धसूत्री विभाजन की क्रिया होती है तब विषम गुणसूत्र (odd chromosomes) बिना जोड़े के बना रहता है और अर्द्धसूत्री विभाजन के पश्चात् दो प्रकार के शुक्राणु (sperms) बनते हैं। एक प्रकार के शुक्राणु में X गुणसूत्र होता है, किन्तु दूसरे प्रकार के शुक्राणु में यह गुणसूत्र नहीं होता है। मादाओं मंी एक जोड़ी अलिंग गुणसूत्र के अतिरिक्त दो X-गुणसूत्र पाये जाते हैं। अतः इनमें अर्द्धसूत्री विभाजन के पश्चात् एक ही प्रकार के अण्ड (egg) बनते हैं और प्रत्येक अण्ड में एक X गुणसूत्र पाया जाता है।
टिड्डे तथा फ्यूमिया में लिंग निर्धारण की क्रियाविधि
एक लिंग में XX गुणसूत्र तथा विपरीत लिंग में XO गुणसूत्र होते हैं
जब कोई अण्ड X गुणसूत्र वाले शुक्राणु में निषेचन करता है तो एक युग्मनज बनता है जिसमें XX - गुणसूत्र पाये जाते हैं अर्थात् उत्पन्न सन्तान (offspring) मादा होती है। किन्तु जब कोई अण्ड X रहित गुणसूत्र (non-X-chromosome) वाले शुक्राणु से संयुग्मन करता है तो उससे प्राप्त नर सन्तति (male offspring) XO प्रकार की होती है।
इस मत के अनुसार लिंग निर्धारण क्रियाविधि उन्हीं जीवधारियों से प्रदर्शित की जा सकती है जिनके नरों (males) में केवल एक X गुणसूत्र पाया जाता है अर्थात् इसके द्वारा ऐसे प्राणियों में लिंग निर्धारण की क्रियाविधि का अध्ययन नहीं किया जा सकता है जिनके नर एवं मादा जीवों में गुणसूत्र में एक ही प्रकार के जोड़े पाये जाते हैं।
(ii) XO मादा (Female) - XX नर (Male) कुछ कीटों में इस विधि द्वारा लिंग निर्धारण होता है, जैसे फ्यूमिया (Fumea)। इस कीट की मादा में केवल एक X गुणसूत्र पाया जाता है तथा नर में XX - गुणसूत्र होते हैं। मादा से दो प्रकार के अण्डे उत्पन्न होते हैं -
(i) 50% अण्डों में X गुणसूत्र पाया जाता है।
(ii) शेष 50% अण्डों में X गुणसूत्र नहीं पाया जाता है।
अतः फ्यूमिया की मादा विषमयुग्मकी लिंग (heterogametic sex) वाली होती है। इसके विपरीत सभी नर समयुग्मकी लिंग (homogametic sex) वाले होते हैं जिनके सभी X गुणसूत्र वाले होते हैं। जब X गुणसूत्र वाले अण्डों से कोई भी शुक्राणु (sperm) संयुग्मन करता है तो XX - गुणसूत्र के नर (male) उत्पन्न होते हैं। किन्तु जब X -रहित गुणसूत्र से कोई शुक्राणु संयुग्मन करता है तो केवल X- गुणसूत्र प्राप्त होने से मादा उत्पन्न होगी।
(iii) XX मादा (Female) XY नर (Male) - इस प्रकार के लिंग निर्धारण में नर तथा मादा जनकों (parents) में समान संख्या में गुणसूत्र पाये जाते हैं अर्थात् माता में XX - गुणसूत्र तथा पिता में XY - गुणसूत्र होते हैं। माता से उत्पन्न सभी अण्डों में X गुणसूत्र पाया जाता है और पिता से उत्पन्न 50 प्रतिशत शुक्राणुओं में Y गुणसूत्र पाये जाते हैं। नर का X गुणसूत्र मादा के X- गुणसूत्र से निषेचित होकर XX वाली पुत्री को जन्म देता है तथा Y गुणसूत्र मादा के X गुणसूत्र को निषेचित करके XY पुत्र को जन्म देता है। इस प्रकार का लिंग निर्धारण अनेक पौधों, स्तनधारियों, मछलियों आदि में भी पाया जाता है।
(iv) द्विगुणित (2n) मादा (Female), अगुणित (n) नर (Male) - इस प्रकार का लिंग निर्धारण हाइमेनोप्टेरा (Hymenoptera) के कीटों, जैसे चींटी, मधुमक्खी तथा दीमक आदि में होता है। इन कीटों में मादा की कायिक गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित (diploid = 2n) होती है किन्तु नर में यह संख्या अगुणित (haploid=n) होती है।
मधुमक्खियों में लिंग निर्धारण :
द्विगुणित मादा तथा अगुणित नर की उत्पत्ति प्रदर्शन
जिर्यजोन (Dziergon, 1850) ने यह सिद्ध कर दिया कि मधुमक्खियों में मादा से सभी अण्डे अगुणित (n) होते हैं और नर से भी अगुणित (n) शुक्राणु (sperms) उत्पन्न होते हैं। निषेचन के फलस्वरूप द्विगुणित (2n) भ्रूण बनता है जिससे मादा लार्वा बनता है जो बन्ध्य (sterile) मादा वयस्कों (adults) में परिवर्धित होते हैं और श्रमिक (workers) कहलाते हैं। द्विगुणित लारवा से केवल रानी. मक्खियाँ विकसित होती हैं जो मादा होती हैं तथा इन्हें रॉयल जैली भोजन के रूप में खिलायी जाती है। इस जैली में मृत श्रमिकों के शरीर से निकले हॉरमोन्स, शहद एवं परागकण मिले हुए होते हैं। अनिषेचित (unfertilized) अण्डों से अगुणित लारवा बनते हैं जो नर मक्खियों में विकसित हो जाते हैं।
(C) जीनिक विधियाँ (Genic Methods) एकजीनीय लिंग निर्धारण (Monogenic Sex Determination) - कुछ जन्तुओं में अलैंगिक गुणसूत्रों पर स्थित एक जीन के कारण लिंग निर्धारण अथवा लिंग परिवर्तन हो जाता है जो एकजीनीय लिंग निर्धारण कहलाता है, जैसे मनुष्य, - ड्रोसोफिला आदि। इनमें लिंग गुणसूत्र भी पाये जाते हैं।
ड्रोसोफिला में गुणसूत्र III (chromosome III) पर रूपान्तरक जीन (transfer gene) tra स्थित होता है जो अप्रभावी (recessive) होता है। इस स्थानान्तरक जीन (tra) का नर मक्खी पर कोई प्रभाव नहीं होता है। किन्तु XX युग्मनज (zygote) के समयुग्मज (homozygous) में जब tra tra उपस्थित होता है तो युग्मन से बनने वाली मक्खी नर होती है अर्थात् मादा नहीं होती है। इस प्रकार से उत्पन्न नर बन्ध्य (sterile) होता है। अलिंग गुणसूत्र (autosome) पर पाये जाने वाला tra जीन XX गुणसूत्र वाले युग्मनज से भी नर मक्खी उत्पन्न होती है।
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- प्रश्न- कोशिका-एडहेसन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (i) माइक्रोट्यूब्ल्स (ii) माइक्रोफिलामेन्टस (iii) इन्टरमीडिएट फिलामेन्ट
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- प्रश्न- न्यूक्लिओसोम का वर्णन कीजिए।
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