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बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2676
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र

प्रश्न- शुंगकालीन मूर्तिकला का प्रमुख केन्द्र भरहुत के विषय में आप क्या जानते हैं?

उत्तर -

शुंगकालीन मूर्तिकला का दूसरा प्रमुख केन्द्र भरहुत है। यह शिल्प कला की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है। यह मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित है। सन् 1873 ई. में जनरल अलेक्जेण्डर कनिंघम ने खुदाई करवाकर यहाँ एक बड़े बौद्ध स्तूप का अंकन प्राप्त किया। स्तूप के टीले में कनिंघम को मौर्यकालीन ईंटें प्राप्त हुई थीं। इससे यह ज्ञात होता है कि यह स्तूप मौर्य काल से ही विद्यमान था और शुंगकाल में इसका विकास, विस्तार एवं साज-सज्जा इत्यादि हुई। स्तूप का अधिकांश भाग लगभग इस समय तक नष्ट हो चुका था क्योंकि आस-पास के गाँव वाले मकान बनाने के लिए इसमें से ईंट व पत्थर निकालकर ले गये थे। बेनी माधव बरूआ का विचार है कि यह स्तूप तीन विभिन्न कालान्तरों में निर्मित किया गया। इन तीनों कालों की तिथियाँ बरूआ ने मौर्य अथवा मौर्यत्तर काल से लेकर लगभग 100 वर्षों के समय तक निर्धारित हैं। इस क्रम में सर्वप्रथम स्तूप का निर्माण एवं शिलाच्छादन किया गया। वेदिका एवं तोरण बनाये गये। अंत में धनभूति नामक राजा ने शुंगों के शासनकाल में पूर्वी तोरण का निर्माण कराया। आकृतियों की शैली से प्राप्त भेदों से स्पष्ट है कि सभी आकृतियाँ किसी एक समय में नहीं, वरन् समय के अंत में बनीं। मजूमदार ने भी भरहुत के स्तूप के निर्माण के विभिन्न कालक्रमों को अभिलेखों के आधार पर मान्यता दी है। उनका अनुमान था कि भरहुत के अभिलेख लगभग 185 ई. पू. से लेकर 75 ई. पू. तक के अन्तर में लिखे गये हैं। स्तूप की वेदिका तथा पूर्वी तोरण के कुछ अवशेष प्राप्त हुए हैं उन्हें 1875 ई. में कोलकाता के संग्रहालय में इलाहाबाद के म्यूनिसिपल संग्रहालय तथा अन्य अवशेष देश-विदेश के संग्रहालयों में सुरक्षित रखवा दिया।

भरहुत की रचना - भरहुत का स्तूप अर्द्धगोलाकार गुम्बद के रूप में ईंटों का बना हुआ था। इसका पत्थर लाल रंग का तथा चुनार जैसा खादार है। इसके तल का व्यास 68 फीट था। आधार के चारों ओर एक ऊँची मेधि बनी हुई थी। जिस पर जाने के लिए सीढ़ियाँ थीं। साँची की भाँति इसके भी चारतोरण थे, जिनकी ऊँचाई 22 फीट से अधिक है। वेदिका में आयताकार स्तम्भ लगे हुए हैं जो सूचियों के द्वारा एक-दूसरे से संलग्न हैं। सूचियाँ खड़ी पंक्तियों पर व्यवस्थित हैं। प्रत्येक पंक्ति में तीन सूचियाँ थीं जो दोनों ओर से स्तम्भों से जुड़ी हुई थीं। स्तम्भों की मुंडेरियों पर उष्णीय आच्छादित थे। इसकी पूरी ऊँचाई 7 फीट 1 इंच थी। इस वेदिका के प्रत्येक अंश पर ही बौद्ध कथाओं, यक्ष आदि देव योनियों तथा बेल-बूटेदार अलंकरणों का अंकन है। तोरणों में दो स्तम्भ हैं। प्रत्येक स्तम्भ आठ पहल का है। इनके शिखर अशोकीय स्तम्भों की भाँति उल्टे कमल के आकार के तथा दो पर वृषभ तथा दो पर सिंह हैं जो एक-दूसरे की ओर पीठ किये बैठे हैं। स्तम्भों के शीर्ष भाग तीन सूचियों को संभाले हैं जो बीच में थोड़ी-सी कमानीदार है। इन सूचियों के बीच में गई छोटे-छोटे स्तम्भ हैं। इसी तोरण पर उत्कीर्ण एक अभिलेख से पता चलता है कि इसका निर्माण शुंगकाल में हुआ था।

भरहुत की कला की विषय-वस्तु - भरहुत की विषय-वस्तु का अध्ययन जनरल कनिंघम ने निम्नलिखित आधार पर किया है-

(1) बुद्धचरित, जातक एवं अवदान कथायें,
(2) मानुषी बुद्धों से सम्बन्धित दृश्य,
(3) देव समुदाय,
(4) तत्कालीन समाज : कुलीन तथा सामान्य व्यक्ति एवं स्त्रियाँ,
(5) आलंकरित कथा, इत्यादि।

प्रवेष्टिनी की चारों दिशाओं में चार तोरणद्वार थे। स्तूप, बाड़, तोरण द्वारों, स्तम्भों, बड़ेरियों पर बौद्ध कथायें, अलंकरण, गोमूत्रिका, बेलें, यक्ष-यक्षिणियाँ, नाग व भगवान बुद्ध के जीवन की ऐतिहासिक घटनाओं का अंकन किया गया है। इसके पूर्व की ओर के तोरण द्वार पर के लेख से यह ज्ञात होता है कि इसका निर्माण शुंगकाल के समय में किया गया है। मानव जीवन में प्रयोग आने वाली अनेक वस्तुओं का अंकन किया गया। जैसे कपड़े, बर्तन, अस्त्र-शस्त्र, नाव, रथ पताका, राज-चिह्न इत्यादि। विभिन्न अलंकरणों में कमल, माला व कटहल आदि की गोमूत्रिका बेलें बनी हुई हैं। इनमें भी कमल की गोमूत्रिका सबसे गुंथी हुई है। गोल मण्डलाकारों में गजलक्ष्मी तथा बेलों के बीच-बीच में गहने आदि बनाये गये हैं। जातक दृश्यों में कुछ बड़े हास्यास्पद दृश्य भी हैं। मुख्यतः जिनमें बन्दरों से सम्बन्धित दृश्य हैं। उदाहरण के लिए एक दृश्य में बन्दरों का समूह गाजे-बाजे के साथ जा रहा है। एक अन्य दृश्य में एक मनुष्य का दाँत एक बड़े संडासे से उखाड़ा जा रहा है जिसे एक हाथी खींच रहा है।

बुद्ध चरित, जातक एवं अवदान कथायें - बुद्ध के जीवन की प्रत्येक घटना, उनके महान व्यक्तित्व के सम्बन्ध में होने वाले नाते, बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए पुनीत एवं महत्वपूर्ण थी। इन घटनाओं का बड़ा ललित एवं शृद्धायुक्त विवरण, बौद्धों के पाली एवं संस्कृत साहित्य में प्राप्त है। कला के क्षेत्र में बुद्ध चरित से सम्बन्धित घटनाएँ भरहुत की कला में हुआ। बुद्ध के जीवन की  इन चारों प्रमुख घटनाओं के अतिरिक्त अन्य घटनाएँ जिनका अंकन भरहुत से प्राप्त होता है, वे हैं-

(1) श्रावस्ती में बुद्ध द्वारा चमत्कार प्रदर्शन।
(2) त्रायस्त्रिंश, स्वर्ण के देवताओं को बुद्ध द्वारा उपदेश।
(3) देवताओं द्वारा बुद्ध चूड़ा की पूजा एवं उत्सव।
(4) बुद्ध के स्वर्गावतरण से सम्बन्धित संकिसा का रत्न चक्रम्।
(5) अनायपिंडक श्रेष्ठी द्वारा बुद्ध को चेतवन विहार का दान। (6) प्रसेनजित द्वारा बुद्ध चर्या।
(7) मुचलिंद नाग द्वारा बुद्ध की सुरक्षा।

उपर्युक्त घटनाओं से सम्बन्धित दृश्यों की यह विशेषता है कि इनमें बुद्ध की मानवीय छवि नहीं मिलती, बल्कि बुद्ध की उपस्थिति का आभास विभिन्न प्रतीकों, जैसे- पाद एवं छत्रयुक्त आसन, छत्र, बोधिवृक्ष, पदचिह्न इत्यादि द्वारा व्यक्त किया गया है। अनेक जातक दृश्य भरहुत के कला संदर्भ से अथवा उनके साथ प्राप्त अभिलेखों से अथवा दोनों की सहायता से पहचाने गये हैं। इनमें से कुछ बुद्ध के पूर्वजन्म की कथाएँ हैं। साहित्य में इन कथानकों का विशद् वर्णन हुआ है। जातकों के शिलांकन के लिए चुनिंदा विषयों में विविधता दृष्टव्य है। गूढ़ दार्शनिक विषयों का अंकन, हास्य विनोद विषयक दृश्यों को बनाया गया। जातक दृश्यों में बुद्ध के चरित्र के दार्शनिक एवं करुणा सम्बन्धी पक्षों को वर्णित किया गया है उनमें से छदन्त जातक, महाजनक जातक, सुजात जातक, वेस्सान्तर जातक मूगपक्ख जातक इत्यादि। छम्मसाटक जातक एवं आराम दूसक जातक प्रमुख हैं। भरहुत में अनेक स्थानों पर नागों के दृश्य भी अंकित दिखाई देते हैं। इन्हें कहीं- कहीं पर मूल रूप में अंकित किया गया। कहीं पर मनुष्य के रूप में जिनके सिर पर उनका प्रतीक नागफन रहता है। भरहुत के अन्य अर्द्धचित्र में एक दुमंजिले भवन की छत पर कुछ स्त्रियाँ जो इन्द्र की सभा की अप्सराएँ हैं नृत्य कर रही हैं। उनके अंकित नामों में सुभद्रा, सुदर्शना, मित्र केशी और अलम्बुषा। यद्यपि बौद्ध धर्म में नृत्य-संगीत का कोई स्थान नहीं है परन्तु साँची व भरहुत का शिल्प लोक-जीवन से सम्बन्धित अनुप्रेरित था। भरहुत के शिल्प में सर्वाधिक उत्कृष्ट अर्द्धचित्र हैं- माया देवी का स्वप्न और जेतवन दान। माया देवी के स्वप्न दृश्य के अन्तर्गत माया देवी शान्त भाव से सो रही हैं। रात्रि का समय बनाया गया है। एक कोने में दीपक जल रहा है, दासियाँ ऊँघ रही हैं। पलंग के पीछे की ओर एक देवपुरुष खड़ा है। ऊपर की ओर एक हाथी अंकित है जो सम्भवतः आकाश से दौड़ता हुआ उनकी ओर आ रहा है।

जेतवन दान की कथा भी भरहुत के शिल्प में बहुत ही सुन्दर अभिव्यंजना दृष्टव्य है। इस कथा के अनुसार अनाथपिंडक ने राजकुमार जेत से उतनी ही स्वर्ण मुद्राओं के मूल्य पर भूमि ली थी जितनी उस पर बिछ जायें। अनाथपिंडक को यह भूमि बुद्ध को दान में देनी थी। भरहुत के इस अर्द्धचित्र में मुहरें गाड़ियों में से उड़ेलकर जमीन पर बिछायी जा रही हैं। राजकुमार जेत खड़े हैं और अनाथपिंडक भी जल की झारी लेकर वन का दान कर रहे हैं। एक ओर संघ की भीड़ खड़ी है। भरहुत के अन्य स्तम्भ पर अजातशत्रु द्वारा बुद्ध-पूजा का दृश्य बनाया गया है जिसमें वे अपनी रानियों सहित हाथी पर आते हुए बनाये गये हैं। बुद्धासन के ऊपर छत्र बनाया गया और अजातशत्रु विनीत भाव से दोनों हाथ जोड़े हुए बैठे हैं। भरहुत के शिल्पी ने कमल के विभिन्न प्रकार के आलेखन में अपनी मौलिक सृजनशक्ति व कल्पनात्मकता का परिचय दिया है। भरहुत की इस शिल्प कला में लोक-शैली के दर्शन हमें शुंगयुग के लोगों के रहन-सहन और पहनावे का भी पता चलता है। कमल के वृत्ताकार शिल्पचित्र। वज्रासन तथा बोधिवृक्ष की पूजा का दृश्य, बोधिवृक्ष के दोनों ओर चैत्य अंकित है तथा दो उड़ते हुए गन्धर्व अंकित हैं।

भरहुत कला में बढ़ते हुए ग्रीक तथा भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्धों की पुष्टि इसी समय विदिशा में स्थापित एक गरुड़ स्तम्भ से भी होती है जिसके अभिलेख से पता चलता है कि हेलिउदोरस नामक तक्षशिला के किसी शिल्पी ने भारतीय धर्म स्वीकार किया उसकी स्मृति में इस स्तम्भ को वासुदेव की प्रसन्नता के लिए बनाया गया था। परन्तु सामान्यतः आकृतियों में कोई ग्रीकपन नहीं है। उभारदार आकृतियों की शैली तथा खोदने की विधि मौर्यकालीन कला का ही स्वाभाविक विकास है। मानवीय आकृतियाँ वास्तविक नहीं हैं। स्मृति के आधार पर बनाई गई हैं। सतह के अलंकरण की ओर अधिक ध्यान दिया गया। आकृतियों का गहरा न होकर छिछला होना यह बताता है कि भरहुत का शिल्प लकड़ी या हाथी दाँत पर आकृतियाँ खोदने वाले शिल्पियों की कला का पत्थर में अनुवाद है। कठोरता एवं प्रारम्भिकता के साथ-साथ प्राकृतिक सरलता इन आकृतियों की विशेषतायें हैं। इस स्तूप की वेदिका पर लगभग 20 जातकों, 30 यक्ष-यक्षणियों और नाग के चित्र अंकित हैं। यक्षणियों को इस स्तूप के अभिलेखों में देवता कहा गया है क्योंकि संस्कृत में देवता शब्द स्त्रीलिंग है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- दक्षिण भारतीय कांस्य मूर्तिकला के विषय में आप क्या जानते हैं?
  2. प्रश्न- कांस्य कला (Bronze Art) के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइये।
  3. प्रश्न- कांस्य मूर्तिकला के विषय में बताइये। इसका उपयोग मूर्तियों एवं अन्य पात्रों में किस प्रकार किया गया है?
  4. प्रश्न- कांस्य की भौगोलिक विभाजन के आधार पर क्या विशेषतायें हैं?
  5. प्रश्न- पूर्व मौर्यकालीन कला अवशेष के विषय में आप क्या जानते हैं?
  6. प्रश्न- भारतीय मूर्तिशिल्प की पूर्व पीठिका बताइये?
  7. प्रश्न- शुंग काल के विषय में बताइये।
  8. प्रश्न- शुंग-सातवाहन काल क्यों प्रसिद्ध है? इसके अन्तर्गत साँची का स्तूप के विषय में आप क्या जानते हैं?
  9. प्रश्न- शुंगकालीन मूर्तिकला का प्रमुख केन्द्र भरहुत के विषय में आप क्या जानते हैं?
  10. प्रश्न- अमरावती स्तूप के विषय में आप क्या जानते हैं? उल्लेख कीजिए।
  11. प्रश्न- इक्ष्वाकु युगीन कला के अन्तर्गत नागार्जुन कोंडा का स्तूप के विषय में बताइए।
  12. प्रश्न- कुषाण काल में कलागत शैली पर प्रकाश डालिये।
  13. प्रश्न- कुषाण मूर्तिकला का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- कुषाण कालीन सूर्य प्रतिमा पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- गान्धार शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  16. प्रश्न- मथुरा शैली या स्थापत्य कला किसे कहते हैं?
  17. प्रश्न- गांधार कला के विभिन्न पक्षों की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- मथुरा कला शैली पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- गांधार कला एवं मथुरा कला शैली की विभिन्नताओं पर एक विस्तृत लेख लिखिये।
  20. प्रश्न- मथुरा कला शैली की विषय वस्तु पर टिप्पणी लिखिये।
  21. प्रश्न- मथुरा कला शैली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- मथुरा कला शैली में निर्मित शिव मूर्तियों पर टिप्पणी लिखिए।
  23. प्रश्न- गांधार कला पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- गांधार कला शैली के मुख्य लक्षण बताइये।
  25. प्रश्न- गांधार कला शैली के वर्ण विषय पर टिप्पणी लिखिए।
  26. प्रश्न- गुप्त काल का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- "गुप्तकालीन कला को भारत का स्वर्ण युग कहा गया है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  28. प्रश्न- अजन्ता की खोज कब और किस प्रकार हुई? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करिये।
  29. प्रश्न- भारतीय कला में मुद्राओं का क्या महत्व है?
  30. प्रश्न- भारतीय कला में चित्रित बुद्ध का रूप एवं बौद्ध मत के विषय में अपने विचार दीजिए।
  31. प्रश्न- मध्यकालीन, सी. 600 विषय पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- यक्ष और यक्षणी प्रतिमाओं के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइये।

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