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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।

उत्तर -

'हिन्दी आलोचना'

हिन्दी आलोचना का अपना एक स्वतन्त्र अस्तित्व है। कुछ लोग उसके स्वतन्त्र अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते। वे उसे संस्कृत काव्यशास्त्र की परम्परा मानते हैं अथवा पाश्चात्य आलोचना का अनुकरण कहते हैं। परन्तु, हिन्दी आलोचना संस्कृत काव्यशास्त्र और पश्चिमी समीक्षा से जुड़े रहने पर भी अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखती है। उसका सैद्धांतिक पक्ष यदि उसे संस्कृत काव्यशास्त्र के निकट ले जाता है, तो व्यावहारिक पक्ष पश्चिम समीक्षा से जोड़ देता है।

हिन्दी आलोचना अपने बीज रूप में भक्तिकाल में मिलती है। रीतिकालीन काव्यशास्त्र में उसका और अधिक विकसित रूप दिखाई देता है। परन्तु यह संस्कृत काव्यशास्त्र वा अन्धानुसरण मात्र है और इसमें समीक्षा का केवल सैद्धांतिक पक्ष उजागर हुआ है। यद्यपि डॉ. नगेन्द्र ने यह कहकर कि इसमें संस्कृत की भाँति 'ध्वनि' पर जोर देकर 'रस' पर जोर दिया गया है, इसको संस्कृत काव्यशास्त्र से पृथक् करने की चेष्टा की गयी है। परन्तु, यह अन्तर कोई विशेष महत्वपूर्ण नहीं है। इस प्रकार हिन्दी आलोचना संस्कृत-काव्यशास्त्र से जुड़ी हुई है, परन्तु यह बात केवल भक्तिकाल और रीतिकाल के काव्यशास्त्रीय विवेचना के लिए कही जा सकती है। वर्तमान काल में हिन्दी समीक्षा का जो स्वरूप विकसित हुआ है वह युगीन जीवन-मूल्यों की उपज है। इस आधार पर पश्चिम की व्यावहारिक समीक्षा प्रणाली को अपनाते हुए भी हिन्दी आलोचना ने उसे भारतीय रसवादी दृष्टि के परिप्रेक्ष्य में व्यवहृत किया है। अतः संस्कृत और पश्चिम के काव्यशास्त्र के प्रभावों को झेलते हुए भी अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखती है।

यद्यपि हिन्दी आलोचना का स्वतन्त्र स्वरूप आधुनिक युग के भारतेन्दु काल में ही प्रकट होता है, परन्तु परम्परा से जुड़े रहने के कारण हम उसे हिन्दी के भक्तिकाल और रीतिकाल के काव्यशास्त्र में देख सकते हैं।

भक्तिकाल - भक्तिकाल का हिन्दी काव्यशास्त्र जिन रचनाओं में मिलता है- सूरदास की 'साहित्य लहरी', नन्दनदास की 'रसमंजरी' व 'विरह मंजरी, ध्रुवदास की 'रस हीरावली, कृपाराम की 'हित तरंगिणी, बलभद्र मिश्र का 'नख-शिख', तथा रहीम का 'बरबैनायिका भेद'।

इन भक्तियुगीन ग्रन्थों का मूल प्रेरणा सिद्धांत विवेचन की लालसा न होकर प्रतिपाद्य का चित्रण मात्र है। इन कवियों का लक्ष्य नायिका-भेद को समझना न होकर अपने इष्टदेव की लालाओं का गान है। इन ग्रन्थों का आधार संस्कृत के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ नहीं हैं।

रीतिकाल - हिन्दी काव्यशस्त्र की अविछिन्न धारा रीतिकाल में मिलती है। केशवदास से इसका सूत्रपात हुआ और पद्माकार तक यह चलती रही।

प्रमुख कवि एवं उनके ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं -

कवि ग्रन्थ
(1)  केशवदास कविप्रिया, रसिकप्रिया।
(2)  चिन्तामणि कविकुलकल्पतरू।
(3)  कुलपति रस-रहस्य।
(4)  देव भाव-विलास, काव्य-रसायन।
(5)  श्रीपति काव्य-सरोज।
(6)  सोमनाथ रस पीयूषनिधि।
(7)  भिखारीदास रस-सारांश, काव्य-निर्णय, शृंगार-निर्णय।
(8) प्रतापसाहि काव्य-विलास।
(9) पदमाकर जगद्वविनोद।

इन रीतिकालीन काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों का कोई विशेष महत्व नहीं है। इनमें मौलिकता का अभाव है। संस्कृत काव्यशास्त्र का ब्रजभाषा पद्य में अनुवाद कर देना ही इनका लक्ष्य रहा है। फिर इनमें विवेचन की प्रौढ़ता गम्भीरता भी नहीं है। गद्य का प्रयोग न होने के कारण यह समीक्षा का सच्चा-स्वरूप प्रस्तुत करने में असमर्थ रहे हैं। इन ग्रन्थों का महत्व केवल इस दृष्टि से है कि इन्होंने संस्कृत न जानने वाले जन-समूहों को काव्यशास्त्र के सामान्य नियमों से परिचित कराया और संस्कृत की परम्परा को जीवित बनाये रखा।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

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