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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?

उत्तर -

मार्क्सवादी आलोचक प्रायः ऐतिहासिक आलोचना पद्धति का आश्रय लेते हैं। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक एडवर्ड अवर्ड लिखते हैं -

"साहित्यिक मानव समाज और प्रकृति - समन्वित सतत् परिवर्तनशील पदार्थ जंगत् से उद्भूत वस्तु है और उसे प्रतिबिम्बित करता है। कवि की उपमा उत्प्रेक्षाएँ और औपन्यासिक पात्र उसके निरे दिमाग की उपज नहीं होते, बल्कि उसके चारों ओर के संसार से निर्दिष्ट होते हैं।'

मार्क्सवादी आलोचकों का विचार है कि कलाकृति के निर्माण में परिस्थितियों और जातीय चेतना का बड़ा हाथ होता है। ऐतिहासिक समालोचक किसी भी साहित्यकार और उसकी रचतना को युग की धारा से अलग करके नहीं देख सकते बल्कि वह उन प्रेरणाओं की खोज करता है जिनके कारण उस रचना का निर्माण होता है। ऐतिहासिक आलोचक का उद्देश्य होता है कि वह साहित्य और संस्कृति की अभिनव धारा में रखकर रचना के वर्ण्य विषय, भाव, विचारधारा, शैली आदि का मूल्याँकन करें। ऐतिहासिक आलोचक युग चेतना के प्रभावों का भी अध्ययन करता है। विशेषकर, साहित्य के समष्टिगत रूप के अध्ययन के लिए यह प्रक्रिया अत्यधिक उपयोगी है। इससे राष्ट्र तथा युग की सांस्कृतिक एकता भी स्पष्ट हो जाती है। इससे उस रचना के महत्व का भी ज्ञान हो जाता है। ऐतिहासिक आलोचकों का कहना है कि किसी कलाकार और उसकी रचना को युग और जाति से अलग करके देखना उसे विकलांग बनाना है।

ऐतिहासिक आलोचना पद्धति में विश्वास करने वाले आलोचक साहित्य में अक्सर व्यक्ति के महत्व की उपेक्षा करते हैं। उनका कहना है कि कलाकार का व्यक्तित्व पूर्णतः परिवृत्ति का परिणाम नहीं है क्योंकि कलाकार में एक अंश ऐसा भी होता है जो बाह्य जगत् की वस्तुओं को अपने अनुरूप बनाना चाहता है। प्रत्येक व्यक्ति संसार और उसकी वस्तुओं के बारे में अपने ढंग से सोचता है और वह अपने ढंग से उनके बारे में विचार प्रकट करता है। उदाहरण के रूप में जिन कलाकारों का व्यक्तित्व केवल समाज का उपयोग मात्र है वे समाज के उपभोक्ता कहला सकते हैं उसके निर्णायक नहीं। ऐसा साहित्य समाज के लिए दर्पण तो हो सकता है पर पथ- प्रदर्शक नहीं हो सकता परन्तु एक प्रतिभा सम्पन्न कलाकार की रचना संस्कृति को विकास की ओर ले जाती है क्योंकि ऐसा कलाकार ही मानवता के विकास के नूतन मार्गों का अनुसंधान करता है। उसका साहित्य मानव के विकास को शक्ति और प्रेरणा देता है। एक प्रतिभाशाली साहित्यकार ही विकास की नवीन दिशाएँ दिखाता है। प्रतिभा सम्पन्न कवियों के अभाव में साहित्य, समाज और संस्कृति पूर्णतया स्थिर हो जाते हैं और आगे चलकर दूषित हो दुर्गन्ध छोड़ने लगते हैं। हिन्दी का रीतिकाल कुछ ऐसी ही स्थिरता का आभास देता है।

ऐतिहासिक तत्त्वों के साथ यदि कलाकार के व्यक्तित्व के महत्त्व को स्वीकार कर लिया जाये तो फिर आलोचना स्वाभाविक मार्ग का सहारा लेकर प्रौढ़ बन जाती है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम कलाकार के व्यक्तित्व की अवहेलना करें। प्रत्येक रचना की प्रेरणा के दो स्रोत होते हैं -

कलाकार का व्यक्तित्व और युग चेतना कलाकार का व्यक्तित्व और युग चेतना दोनों को एक-दूसरे को प्रभावित करते रहते हैं। कलाकार के व्यक्तित्व का बहुत बड़ा भाग युग चेतना का परिणाम और निर्णायक होता है। इसलिए साहित्य में कलाकार के व्यक्तित्व के साथ युग- चेतना का अध्ययन भी नितान्त जरूरी होता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

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