बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य
अध्याय - 1
विद्यापति
प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर -
मैथिल कोकिल विद्यापति का जन्म 1360 ई. के लगभग मिथिला के एक सुशिक्षित, धनाढ्य एवं सम्पन्न परिवार में हुआ था। वैसे विद्यापति का आविर्भाव काल विवादास्पद है। कुछ विद्वान् सन् 1350, कुछ विद्वान् सन् 1357, कुछ विद्वान् सन् 1370 तथा कुछ विद्वान् उनका आविर्भाव काल सन् 1372 मानते हैं। उनके पूर्वज अपनी विद्वता के बल पर बड़े-बड़े राजपदों पर प्रतिष्ठित हो चुके थे। उनके जनक गणपति ठाकुर उच्चकोटि के विद्वान् और राज्य मंत्री थे। इससे विद्यापति को प्राचीन साहित्य एवं भाषाओं के अध्ययन की पूर्ण सुविधा प्राप्त हुई। प्रतिभा इनको विरासत में मिली थी तथा अध्ययन करने की प्रवृत्ति का विकास इनके पारिवारिक परिवेश का परिणाम था। कुल परम्परा एवं प्रतिभा के बल पर उन्हें क्रमशः कीर्ति सिंह, देव सिंह, भाव सिंह जैसे उदार नरेशों का आश्रय प्राप्त हुआ। राजा शिव सिंह ने तो विद्यापति को अत्यधिक सम्मान प्रदान कर उन्हे एक गांव भी दान में दे दिया था। विद्यापति का स्वर्गवास डॉ. जयकान्त मिश्र ने 1448 ई. में माना है।
रचनाएं - विद्यापति की रचनाओं को भाषा की दृष्टि से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
(1) संस्कृत में रचित,
(2) अवहट्ट में रचित
(3) लोक-भाषा में रचित।
संस्कृत में रचित -
(1) शैव सर्वस्व सार,
(2) गंगा वाक्यावली,
(3) दुर्गा भक्त तरंगिणी,
(4) भू- परिक्रमा,
(5) दान वाक्यावली,
(6) पुरुष, परीक्षा,
(7) विभाग-सार,
(8) गया पत्तलक वर्ण कृत्य,
(9) लिखनावली आदि रचनाएँ आती हैं।
दूसरे वर्ग में उनकी दो ऐतिहासिक गद्य पद्य मिश्रित रचनाएं- कीर्तिलता और कीर्ति पताका आती है। 'कीर्तिलता' में महाराजकुमार वीर सिंह एवं कीर्ति सिंह के युद्ध एवं सौन्दर्य का चित्रण किया गया हैं। जबकि कीर्ति पताका में राजा शिव सिंह एवं कुछ मुस्लिम आक्रमणकारियों के युद्ध का वर्णन ओजपूर्ण शैली में हुआ है। तीसरे वर्ग में उनके गीतों का समग्र 'पदावली आती है।
वस्तुतः रचनाओं की संख्या की दृष्टि से विद्यापति संस्कृत और अवहट्ट के साहित्यकार कहे जा सकते हैं, किन्तु हिन्दी साहित्य के इतिहास में उन्हें उनकी हिन्दी रचना 'पदावली' के आधार पर ही स्थान दिया जाता है।
वैसे तो मैथिली में विभिन्न प्रकार की रचनाएँ लिखी गयी हैं, किन्तु उसका सबसे अधिक प्रमुख काव्य रूप गीति है। न केवल हिन्दी में अपितु इससे पूर्व संस्कृत एवं अपभ्रंश में भी गीति-परम्परा को प्रचलित करने का श्रेय मुख्यतः इसी प्रदेश के कवियों को है। सर्वप्रथम अपभ्रंश के सिद्ध कवियों ने जिनमें से अनेक का आविर्भाव इसी प्रदेश में गीतियों के माध्यम से अपनी अनुभूतियों का प्रकाशन किया। सम्भवतः सिद्धों की गीति शैली का स्रोत जन साधारण के लोकगीत थे। आगे चलकर जयदेव ने अपनी संस्कृत रचना 'गीत-गोविन्द में गीति शैली का प्रयोग करके उसे नया वैभव प्रदान किया। जयदेव को ही परम्परा में मिथिला में विद्यापति का आविर्भाव हुआ, जिन्होंने मैथिली भाषा में गीति काव्य की एक सुदृढ़ एवं दीर्घ परम्परा स्थापित की। इस प्रकार मैथिली प्रदेश अपभ्रंश संस्कृत एवं मैथिली (हिन्दी) तीनों भाषाओं के गीति काव्य का जन्मस्थान रहा।
स्वच्छन्द प्रेम का निरूपण - प्रेम के क्षेत्र में विद्यापति पूर्णतः स्वच्छन्द या रोमांटिक कवि के रूप में दिखाई पड़ते हैं। उनका प्रेम समाज की मर्यादाओं को स्वीकार करता हुआ आगे नहीं बढ़ता, अपितु वह कुल की प्रतिष्ठा, परिजनों के भय, समाज के बन्धनों एवं धर्म के नियमों को ठुकराता हुआ निर्बाध रूप में अग्रसर होता है। उनकी सौन्दर्य भावना एवं रसिकता. इतनी अधिक बढ़ी हुई है कि वे नारी के अंग-विशेषों का वर्णन करते समय उन्हें कई बार अपने इष्ट देव शिव से भी बढ़कर घोषित कर देते हैं।
चन्द्र चरच् पयोधर रे, ग्रिम गज मुकुता हार।
भसम भरल जनि शंकर रे, सिर सुरसरि जलधार।
X X X
कुच भय कमल-कोरक जल मुदि रहु,
घट परवेस हुतासे।
दाड़िम सिरिफल गगन वास करु,
शम्भु गरल कठ ग्रासे।
स्वच्छन्द प्रेम की उत्पत्ति प्रायः प्रथम दर्शन से होती है। विद्यापति के नायक और नायिका प्रथम दर्शन से ही प्रेम वेदना से पीड़ित हो जाते हैं। एक ओर नायक कृष्ण कहते हैं।
“पथ गति पेरपल मो राधा।
तरवनुक भाव परान भए पीड़ित रहलकुमुद निदि साधा॥'
तो दूसरी ओर नायिका भी साँवरे सुन्दर को राह में देखकर ही उसमें अनुरक्त हो जाती है -
सामर सुन्दर ए बाट आएल,
तो मोरि लागलि आँखि।
स्वच्छन्द प्रेम या रोमांस के लिए अपेक्षित एक अन्य तत्त्व साहस का भी प्रयोग विद्यापति की परेम- भावन में दृष्टिगोचर होता है किन्तु उसका आश्रय नायिकाएँ हैं नायक नहीं। नायक तो विलास के रस में भौरों की तरह निरन्तर डूबे रहते हैं। नायिकाएँ समस्त बिघ्नों एवं संकटों का सामना करती हुई संकेत स्थलों पर पहुँचती हैं। एक उदाहरण देखिए -
तपन के ताप तपत भेल महीतल,
तातल बाबू दहन समाना,
चढ़ल मनोरथ भामिनी चलु पत
ताप तपत नहीं जाना।
किन्तु विद्यापति की नायिकाओं का यह स्वच्छन्द प्रेम अन्त में असफल हो जाता है और निराशा तथा शोक की अनुभूति में परिणित हो जाता है। नायिकाओं के रूप रस के लोभी नायकों की ठगी ही इस असफलता का मूल कारण सिद्ध होती है। प्रणय-वंचिता-नायिकाओं की बेबसी एवं पश्चाताप का चित्रण मार्मिक शब्दों में किया गया है -
झापल कूप देखहि नाहि पारल, आरति चललहु धाई।
तरवन लघु गुरु किछु नहिं गूनल, अब पछताबक जाई।
X X X
चन्दन भसम सिमर आलिंगन, सालि रहल हिय काँट।
वस्तुतः विद्यापति ने स्वच्छन्द प्रणय की यह परिणति अत्यन्त सहज स्वाभाविक रूप में सामाजिक परिस्थितियों के अनुकूल दिखाई है जिसका अनुमोदन आधुनिक मनोविज्ञान भी करता है। विद्यापति के काल में, जहाँ प्रेम के क्षेत्र में अनेक व्यवधान थे, यह स्वच्छन्द प्रेम सफल दाम्पत्य में परिणत नहीं हो सकता था, अतः उसकी परिणति निर्वेद में सम्भव थी। यद्यपि अनुरक्ति एवं विरक्ति दो सर्वथा विरोधी मनः स्थितियाँ हैं किन्तु यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि परिस्थितियों की प्रतिक्रिया से एक ही परिणति दूसरी में सम्भव है।
स्वच्छन्द प्रेम के अलावा दाम्पत्य का भी चित्रण गौण रूप में हुआ है, जिसमें प्रथम समागम से लेकर पति के परदेश गमन तक के प्रसंगों का चित्रण अनुभूतिपूर्ण शब्दों में हुआ है। यहाँ नायिका प्रेयसी न होकर पत्नी है, अतः उसके हृदय में प्रणय की वैसी स्वच्छन्दता, व्यापकता एवं गम्भीरता नहीं आ पाती जैसी कि अनेक संघर्षों का सामना करके प्रणय-पथ पर अग्रसर होने वाली प्रेयसी में मिलती है। उसमें भावनाओं की सूक्ष्मता की अपेक्षा वासना की स्थूल प्रेरणा की प्रमुखता दिखाई पड़ती है -
अंकुर तपन ताप जति जारब,
कि करब बारिद मेहे।
इह नव जोवम विरह गमाओब,
कि करब से पिया गेहे।
प्रौढा नायिकाएँ ऐसा नहीं सोचती। उनमें यौवन की चंचलता एवं वासना के वेग के स्थान पर प्रणय की ही आकांक्षा अधिक मिलती है। उन्हें अपने यौवन के व्यर्थ बीत जाने की अपेक्षा परदेशवासी पति के स्नेह में कमी आ जाने की चिन्ता अधिक हैं -
सबकर पहु परदेस बसि सजनी,
आएल सुमिरि सिनेह।
हमर एहन पति निरदय सजनी,
नहिं मन बाढ़ए नेह।
इस प्रकार हम देखते हैं कि विद्यापति ने स्वच्छन्द प्रणय और दाम्पत्य भाव दोनों का ही विकास सहज स्वाभाविक रूप में दिखाया है।
काव्य रूप एवं शैली की दृष्टि से भी विद्यापति सकल कवि हैं। उन्होंने एक ओर जहाँ सौन्दर्य, प्रेम और विरह की सूक्ष्माति सूक्ष्म भावनाओं को अपने काव्य का विषय बनाया है, वहीं दूसरी ओर उन्हीं के अनुरूप गीति शैली को चुनकर अपना काव्यात्मक प्रतिभा का परिचय दिया है। सफल गीति के लिए अपेक्षित भावात्मक, वैयक्तिकता, संगीतात्मकता, संक्षिप्तता, कोमलता आदि सभी गुण उनके पदों में विद्यमान है।
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- प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
- प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
- प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
- प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
- प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
- प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
- प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
- प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
- प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
- प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
- प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
- प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
- प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
- प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
- प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
- प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)