बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य
अध्याय - 3
कबीर
प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
अथवा
कबीर के जीवन वृत्तान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर -
हिन्दी के अन्य प्राचीन कवियों के समान कबीरदास के जीवन से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री नहीं के समान है। कवि ने अपनी रचनाओं में जीवन वृत्तान्त के बारे में यत्र-तत्र थोड़ा बहुत उल्लेख किया है। यही नहीं उसके जीवन के बारे में कुछ जनश्रुतियाँ भी प्रचलित हैं। मध्यकाल के भक्ति कवियों का परिचय देने वाले कुछ चरितों तथा वर्ताओं का भी उल्लेखन हुआ है। परन्तु इनमें भी हमें कवियों की प्रामाणिक जीवनी नहीं मिलती। बल्कि इसके स्थान पर दार्शनिक विचारों तथा चमत्कारिक घटनाओं का सन्निवेश स्पष्ट हुआ है। इधर कुछ जनश्रुतियों तथा किवदंतियों ने भक्तिकालीन कवियों को पौराणिक पुरुष बना दिया है। फलतः कबीरदास जैसे समर्थ कवि के प्रामाणिक जीवन वृत्तान्त को जानना काफी कठिन हो गया है। फिर भी अन्तः साक्ष्य तथा वाहर्साक्ष्य के आधार पर हम कबीर के जीवन का थोड़ा सा परिचय प्राप्त कर सकते हैं।
1. जन्म कबीरदास की जन्मतिथि तथा जन्मस्थान को लेकर विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। डॉ. हंटर ने कबीर का जन्मकाल सम्वत् 1473 स्वीकार किया है। परन्तु पादरी वैस्ट कॉट ने सम्वत् 1497 को ही कबीर का जन्म काल माना है। धर्मदास कबीर के प्रधान शिष्यों में से एक थे। उनके एक पद्य के अनुसार कबीर का जन्म का जन्म 1455 माना जाता है। यह पद्य इस प्रकार है -
'चौदह सौ पचपन साल गए,
चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसायत को,
पूरण मासी तिथि प्रगट भये॥
इस छन्द के आधार पर कबीरदास का जन्म सम्वत् 1455 जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा सोमवार को होना चाहिए। परन्तु सम्वत् 1455 या 56 में कोई भी एक ज्येष्ठ पूर्णिमा नहीं थी जिस दिन सोमवार था। डॉ. पारसनाथ तिवारी ने चन्द्रवार को दिन का सूचक न मानकर स्थान का सूचक माना है। इसका उल्लेख 'निर्भय ज्ञान' तथा अनुराग सागर में मिलता है। डॉ. श्यामसुन्दर दास, आचार्य रामचंद्र शुक्ल तथा डॉ. पारसनाथ तिवारी ने समवत् 1456 जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को कबीर की जन्मतिथि स्वीकार किया है।
2. जन्मस्थान एवं बाल्यावस्था - कबीर के जन्म स्थान के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। एक जनश्रुति के अनुसार कबीर का जन्म काशी की एक विधवा ब्राह्मणी से हुआ जो लोकलाज के डर के कारण शिशु कबीर को लहरतारा तालाब की सीढ़ियों पर छोड़कर चली गई। नीरू तथा नीमा जुलाहा दम्पत्ति को यह बालक वहाँ से प्राप्त हुआ और उन्होंने ही उसे पाल-पोस कर बड़ा किया। फिर भी वह सरोवर कहा है? इसके बारे में कुछ निर्णय नहीं हो सका। श्री गुरु ग्रन्थ साहब, राग रामकली, पद तीन के अनुसार कबीर का जन्म मगहर में हुआ। लेकिन इसी ग्रन्थ के राग गौड़ी के 15 वें पद में लिखा है कि कबीरदास ने समूचा जीवन शिवपुरी काशी में व्यतीत किया तथा मरते समय वे मगहर पहुँच गये।
'सगल जनम शिवपुरी गँवाइया।
मरती बार मगहर उठि आइआ॥
इस मत के विपरीत डॉ. सुभद्र झा ने कबीरदास को मिथिला में उत्पन्न स्वीकार किया है। उधर बनारस गजेटियर के अनुसार कबीर का जन्म आजमगढ़ जिले के बेलहरा गांव में हुआ था। चन्द्रबली पांडे के अनुसार बेलहरा गांव वेलहरा पोखर ही तालाब है, जहाँ विधवा ब्राह्मणी ने नवजात शिशु का त्याग किया था। परन्तु कबीर पंथी काशी के पास स्थित लहरतारा तालाब को जो कबीर जी का जन्म स्थान मानते हैं। फिर भी डॉ. पारसनाथ तिवारी द्वारा चन्द्रावार को कबीरदास का जन्मस्थान मानना कुछ-कुछ ठीक लगता है। फिर भी चन्द्रवार स्थान कहाँ है। इसके बारे में भी कोई सही निर्णय नहीं हो पाया।
कबीरदास की बाल्यावस्था के बारे में अनेक प्रकार की किवदंतियाँ प्रचलित हैं। कहते हैं कि उन्हें भूख नहीं लगती थी। माता-पिता को चिन्तित देख बकरी ने दूध पानी स्वीकार किया। परन्तु यह दुध एक अनव्याही बछिया का था। नीरू और नीमा के बचपन से ही कबीर को बुनकरी का काम सिखा दिया था। परन्तु वे उसे त्यागकर प्रभु भक्ति में लीन हो गये। लिखा भी है -
'तननां बुननां तज्यौ कबीर रामं नामं लिखि लियौ सरीर॥
मुसि मुसि रोवै कबीर की माई। यह बारिक कैसे जीवै खुदाई।
जब लगि तागं वहौं वेहि। तब लगि विसरै राम सनेही॥
कहत कबीर सुनहु मेरी माई पूरन हारा लिथुअन दाई।
3. गुरुदीक्षा की समस्या - प्रायः यह धारणा है कि स्वामी रामानन्द ही कबीर के गुरु थे। इस धारणा के सन्दर्भ में निम्नलिखित पंक्ति उद्धृत की जाती है-
'काशी में हम प्रगट भये है, रामानन्द चेताए।
परन्तु यह काव्य कबीरदास द्वारा स्वयं रचित काव्य नहीं है। गुरु ग्रन्थ साहिब में भी इसका उल्लेख नहीं मिलता। फिर भी विद्वानों का एक वर्ग यह स्वीकार करता है कि रामानन्द ही कबीर गुरु थे। इस संबंध में डॉ. श्यामसुन्दर दास कहते हैं - 'हो सकता है बाल्यकाल में बार-बार रामानन्द के साक्षात्कार तथा उपदेश श्रवण से या दूसरों के मुख से उनके गुण या उपदेश सुनने से बालक कबीर के चित्त पर गहरा प्रभाव पड़ा हो और आगे चलकर उन्होंने उन्हें गुरु मान लिया हो। इस संदर्भ में एक जनश्रुति यह भी मिलती है कि मुसलमान परिवार में पलने के कारण काशी के ब्राह्मणों ने आपत्ति की क्योंकि वे वैष्णव यथोचित आचार-व्यवहार कर रहे थे। उन्होंने कहा की निगुरे वैष्णव को मुक्ति नहीं मिलती। अतः कबीरदास ने एक मुक्ति से स्वामी रामानन्द जी के गुरु मंत्र से दीक्षित कर लिया हो। रामानन्द से स्वामी रामानन्द जी के गुरु मंत्र से दीक्षित कर लिया हो। रामानन्द पंच गंगाघट पर प्रतिदिन ब्रम्ह मुहुर्त में स्नान करने जाते थे। कबीरदास उसी घाट की सीढ़ियों पर लेट गये। अंधकार के कारण स्वामी जी का पैर कबीर के सिर पर लगा तथा खेद रूप में उनके मुख से राम राम निकला। कबीरदास ने इसी राम-राम की गुरु दीक्षा के रूप में स्वीकार कर लिया तथा स्वामी रामानन्द को अपना गुरु घोषित कर दिया। परन्तु यह घटना जनश्रुति पर आधारित है प्रामाणिक नही।
4. पारिवारिक जीवन - ऐसा बताया जाता है कि कबीरदास विवाहित थे। उनकी पत्नी का नाम लोई था। ऐसी जनश्रुति था लोई एक बनखंडी वैरागी की पोषित कन्या थी। जब वह वैरागी गंगा स्नान के लिए गया था तो उसने एक लोई में शिशु कन्या को बैठे देखा। लोई में लिपटी होने के कारण इसका नाम लोई पड़ा। कालान्तर में इस युवती से कबीर का विवाह हुआ। परन्तु कुछ विद्वानों का विचार है कि लोई उसकी पत्नी न होकर उनकी शिष्या थी जो आजन्म उनके साथ रही। लोई से कबीर के एक कमाल तथा कमाली नाम के पुत्र-पुत्री प्राप्त हुए। कबीर ने लोई को संबोधित कर अनेक पत्र भी लिखे हैं। परन्तु कुछ लोग लोई का अर्थ लोक लगाते हैं। परन्तु एक पद में कबीर तथा लोई का एक घर होना कहा गया है
'रे यामैं क्या मेरा तेरा, लाज न मरहिं कहत घर मेरा।
कहत कबीर सुनहु रे लोई, हम तुम विनति रहे गासोई॥
इस प्रकार से कबीरदास के जीवन से अनेक काल्पनिक घटनाएँ जुड़ी हुई हैं। कबीर के भक्तों ने अतिरंजित शैली में इन घटनाओं का वर्णन किया है। कहते हैं कि सिकन्दर लोधी की आज्ञा पर कबीर को बेड़ियों में जकड़कर नदी में फेंक दिया गया था। लेकिन वे जंजीरों से मुक्त हो तैरते हुए नदी के किनारे पर आ गये। इस प्रकार से कबीर को जलते हुए अग्नि कुंड में भी जलाने का प्रयास किया गया तथा एक मस्त हाथी के पैरों से भी कुचलवाने की कोशिश की गई। इन सब घटनाओं का उल्लेख कबीर के पदों में मिलता है। यहाँ तक कि 'भक्त-माल' के टीकाकार प्रियादास तथा दादू के शिवय रज्जबदास ने भी इन घटनाओं की चर्चा की है।
5. जाति तथा धर्म - कबीरदास की जाति तथा धर्म को लेकर भी विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है। यह निर्णय करना कठिन है कि वे मुस्लिम थे या हिन्दू। कुछ लोग उन्हें बौद्ध मतावलम्बी भी कहते हैं। परन्तु कबीर ने अपनी रचनाओं में स्वयं को बड़े ही गर्व से जुलाहा घोषित किया है। लेकिन एक स्थल पर वे स्वयं को कोरी भी कहते हैं। नीचे लिखे पदों से पता चलता है कि वे जाति के जुलाहा थे -
(क) तू बाम्हन मैं कासी का जुलाहा।
(ख) हरि के नाउ बिन किन गति पाई।
कहै जुलाह कबीर।
(ग) जैसे जल जलही दुरि मिलियौ।
त्यों दुरि मिला जुलाहा।
उपर्युक्त सभी पंक्तियाँ कबीर की प्रमाणिक पंक्तियाँ हैं। गुरु अनन्तदास, रज्जबदास आदि ने भी कबीर को जुलाहा घोषित किया है। यही नहीं कबीरदास की रचनाओं में अनेक स्थलों पर मुस्लिम संस्कारों का भी वर्णन हुआ है। परन्तु ऐसे स्थानों की कमी नहीं है जहाँ हिन्दू संस्कारों का वर्णन हुआ है अतः इस प्रकार के वर्णन से यह सिद्ध करना कठिन है कि कबीरदास मुसलमान थे। उधर आचार्य क्षितिमोहन सेन और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कबीरदास को योगियों को ऐसे वर्ग से जोड़ते हैं जिनसे थोड़े समय पूर्व मुस्लिम वर्ग को ग्रहण किया था। फलतः उनके परिवार में हिन्दू-मुस्लिम दोनों वर्गों के रीति-रिवाजों का पालन होता होगा। इस संदर्भ में डॉ. पारसनाथ तिवारी ने लिखा भी है -
"वस्तुतः भारत तथा अरब का संबंध बहुत पुराना है अतः भारत में मुस्लिमों के आगमन से पूर्व ही दोनों देशों की विचारधारायें एक-दूसरे को प्रभावित करती रही। मुसलमानों के आगमन के पश्चात् तो विचारधाराओं का और भी आदान-प्रदान हुआ जिससे दोनों संस्कृतियों की समान मान्यताओं का उल्लेख हिन्दू-मुस्लिम दोनों प्रकार के रचनाकारों में समान रूप से मिल सकता है अतः इस तर्क के आधार पर किसी कवि की जाति का निर्णय करना समीचीन नहीं कहा जा सकता।"
परन्तु डॉ. वड़थवाल कबीर के योगियों का अनुवायी कहते हैं। वे लिखते हैं 'मेरी समझ में कबीर भी किसी प्राचीनतम कोरी किन्तु जुलाहा कुल के थे जो मुसलमान होने से पहले योगियों का अनुवायी था" डॉ. विद्यावती मालविका ने कबीरदास को कोली राजपूतों का वंशज स्वीकार किया है। उनका कहना है कि इस जाति का मुख्य व्यवसाय कृषि करना है तथा वस्त्र बुनना। मुसलमानों के आक्रमण से पूर्व ही ये कोहली राजपूत बौद्ध बन गये थे। लेकिन बाद में इन्होंने मुस्लिम धर्म को अपना लिया। डॉ. विद्यावती मानती है कि कबीर इसी कोहली या कोरी जाति से संबंधित थे। यही कारण है कि कबीर की रचनाओं में हिन्दू और मुस्लिम धर्मों की विचारधारा के अनेक तत्व देखे जा सकते हैं।
6. निधन - कबीरदास के जन्म के समान उनके निधन के तिथि को भी लकेर काफी मतभेद है। किसी एक तिथि पर ये विद्वान् एकमत नहीं हैं। कबीर पंथी साहित्य में कबीर की मृत्यु सम्वत् के बारे में चार दोहे उपलब्ध होते हैं -
(क) 'संवत् पंद्रह सौ पचहत्तरा, किया मगहर को गौन।
माघ सुदी एकादसी, रक्तो पौन में पौन।
(ख) पन्द्रह सौ और पाँच में मगहर कीन्हों गौन।
अगहन सुदि एकादसी, मिल्यौ पौन में पौन॥
(ग) पंद्रह सौ उनयास में, मगहर कीन्हों गौन।
अगहन सुदि एकादसी, मिल्यौ पौन में पौन॥
(घ) संवत् पंद्रह सौ उनहतरा रहाई।
सतगुरु चले उड़ि हंसा ज्याई॥
उपर्युक्त दोहों में कोई भी दोहा प्रामाणिक नहीं कहा जा सकता। प्रथम दोहे के तीसरे चरण में माघ सुदी एकादसी के स्थान पर कहीं-कहीं अगहन सुदी एकादसी का भी पाठ भी मिलता है। पुनः जिन रचनाओं से ये दोहे उद्धृत है, वे सभी मौखिक परम्परा से प्रचलित है। डॉ. परशुराम चतुर्वेदी ने कबीरदास के निधन का काल का निर्णय करते समय सम्वत् 1552 और 16वीं शताब्दी के प्रथम चरण को विवेच्य काल माना है। उधर कबीर पंथी कबीरदास की आयु 120 वर्ष मानते हैं। तद्नुसार कबीर का निधन काल सम्वत् 1575 होना चाहिए। अधिकांश विद्वानों ने इसी तिथि को सही मान लिया है। यदि हम सम्वत् 1575 की तिथि को स्वीकार कर लेते हैं तो सिकन्दर लोधी गुरुनानक देव तथा रामानन्द से कबीरदास की समकालीनता सही बैठ जाती है। उधर आचार्य क्षितिमोहन सेन, डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थवाल तथा आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने सम्वत् 1505 को कबीर की निधन तिथि को स्वीकार किया है। परन्तु यदि हम निधन तिथि 1505 तथा जन्मतिथि 1455 मान लेते हैं तो कबीरदास की आयु केवल पचास वर्षों की सिद्ध होती है। उधर कबीरदास के जो चित्र प्राप्त हुए हैं वे पचास वर्ष की से अधिक काल के लगते हैं। ऐसी स्थिति में संवत् 1505 को कबीरदास का निधनकाल मानना समीचीन प्रतीत नही होता। धर्मदास द्वारा रचित द्वादश पंथ के आधार पर डॉ. माता प्रसाद गुप्त ने सम्वत् 1569 को कबीरदास की निर्वाण तिथि स्वीकार किया है। द्वादश पंथ का दोहा इस प्रकार से है -
'सुमन्त पन्द्र सौ उन्हत्तरा हाई।
सतगुरु चले उठ हंसा ज्याई॥
लेकिन यह छन्द भी प्रामाणिक नहीं है। "उठ हंसा ज्याई" के पाठ भेद भी मिल जाते हैं अतः सम्वत् 1575 को ही कबीरदास की निधन तिथि स्वीकार करना चाहिए।
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- प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
- प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
- प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
- प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
- प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
- प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
- प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
- प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
- प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
- प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
- प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
- प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
- प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
- प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
- प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
- प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)