बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य
प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
'पदावली' में भक्त हृदय का स्पन्दन नहीं दिख पड़ता, उसमें तो श्रृंगारी कवि का उल्लासपूर्ण मादक स्वर ही मुखरित हुआ है। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
अथवा
आप 'पदावली' को भक्ति प्रधान रचना मानते हैं अथवा श्रृंगार प्रधान। तर्क देते हुए अपने मत की पुष्टि कीजिए।
उत्तर -
विद्यापति संस्कृत, अवहट्ट तथा मैथिल भाषा के सुविज्ञ हस्ताक्षर थे, परन्तु उनकी कीर्ति की अमर स्मारिका उनकी पदावली है जो मिथिला भाषा में लिखी गई है। यह एक प्रगीतात्मक मुक्तक काव्य है जिसमें लगभग 900 पद पाये जाते हैं। इनका सर्वेक्षण करने के पश्चात् विद्वानों की इस विषय में विभिन्न धारणाएं हैं कि विद्यापति भक्त कवि थे या शृंगारिक वस्तुतः, भक्ति-भावना और श्रृंगारसात्मकता दोनों परस्पर विरोधिनी वृत्तियाँ हैं। जो कवि मूलतः भक्त है उसका श्रृंगारिकता की ओर झुकाव संभव नहीं है। दूसरी ओर, जिसे कवि की भावभिव्यक्ति का मूल आधार श्रृंगारिकता है वह भक्त नहीं हो सकता। विद्यापति की सम्पूर्ण पदावली पर यदि दृष्टिपात किया जाये तो इस सम्बन्ध में विद्वान् अनुसंधित्सुओं के आधार पर तीन पक्ष संभव है - विद्यापति की भक्तिभावना, श्रृंगारिकता तथा रहस्याभिव्यक्ति।
(1) विद्यापति की भक्ति-भावना - विद्यापति भक्त कवि थे इस विषय में निम्नांकित आधारों को प्रस्तुत किया जा सकता है -
(क) पदावली में अनेक पद ऐसे पाये जाते हैं जिनमें विद्यापति की सुन्दर भक्तिभावना है। उन्होंने केवल कृष्ण की ही भक्ति प्रस्तुत नहीं की, बल्कि शिव की उपासना के विषय में संस्कृत व अवहठ्ठ के अनेक ग्रन्थ लिखे थे और शिवभक्ति-भावना से ओत-प्रोत अनेक पद भी मैथिली भाषा में प्राप्य है। कहीं उन्होंने शक्ति की देवी दुर्गा की भक्ति प्रस्तुत की है तो कहीं सूर्य, अग्नि, गणेश, शिव, शक्ति इन पांच देवों के प्रति एक साथ आराधना व्यक्त की है। इसी कारण उन्हें कोई वैष्णव कहता है तो कोई शैव, कहकर पुकारता है, कोई एकेश्वरवादी के रूप में जानता है, तो कोई उन्हें शाक्त मानता है। इसका मूल कारण है कि उनकी पदावली में इसी प्रकार की भक्तिभावना विद्यमान है। उदाहरण के लिए वे भावनीदेवी की वंदना करते हुए कहते हैं -
जय-जय भैरवि असुर भयाउनि
पशुपति भामिनी माया।
सहज सुमति वर दिअओ गोसाउनि
अनुगति गति तुअ पाया।
X X X
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक,
पुत्र बिसरु जनि माता।
(हे असुरों को भयभीत करने वाली भवानी माता। आपकी जय हो। आप पशुपति की पत्नी हो। मुझे एकमात्र आपके चरणों का ही सहारा रहें - यही मुझें वरदान प्रदान करो। हे माता ! आप अपने पुत्र को कभी न भूलना और सदा कृपा दृष्टि रखना।)
इसी प्रकार शिव की स्तुति करते हुए वे लिखते हैं -
जय-जय शंकर जय त्रिपुरारि।
जय अध-पुरुष, जय अध-नारि॥
इस प्रकार भक्ति भावनात्मक अनेक पद, उनकी पदावली में पाये जाते हैं।
(ख) कुछ विद्वान् आलोचक विविध तथ्यों के आधार पर विद्यापति को भक्त कवि सिद्ध करते हैं। बाबू ब्रज नन्दन सहाय, यदि विद्यापति को वैष्णव भक्ति से ओत-प्रोत मानते हैं तो डॉ. श्यामसुन्दरदास उन पर निम्बार्क और विष्णु स्वामी का प्रभाव सिद्ध करते हुए कहते हैं -
'विद्यापति ने राधा और कृष्ण की प्रेमलीला का जो विशद वर्णन किया है उस पर विष्णुस्वामी तथा निम्बार्क मतों का प्रभाव प्रत्यक्ष है। - डॉ. श्यामसुन्दर
विपिन बिहारी मजूमदार का कथन है कि पदावली में अंकित राधा-कृष्ण के शृंगार-चित्रों में माधुर्यभाव की भक्ति ही प्रस्फुटित है।
(ग) मिथिला और बंगाल में विद्यापति के पदों को कीर्तन व धार्मिक उत्सवों पर गाया जाता है। डॉ. उमेश मिश्र ने विद्यापति को अनेक आधारों पर भक्त कवि सिद्ध किया है तथा कहा है -
"बंगाल में विद्यापति वैष्णव कवि तथा भक्त कवि कहलाते थे। इसका कारण यह है कि विद्यापति की कविता ने राधा-कृष्ण की भक्ति की थी तथा उसी तरह की कविता रचने की जड़ बोई थी।"
डॉ. मिश्र ने यह भी सिद्ध किया है कि मिथिला में आज भी ऐसी कोई स्त्री नहीं है जिसे विद्यापति की दस बीस कविताएँ कंठस्थ न हों। विवाह के अवसर पर जो विद्यापति के पद गाये जाते हैं उन्हें 'वरगवनी' कह कर पुकारते हैं।
इसके अतिरिक्त चैतन्य महाप्रभु जैसे भक्त विद्यापति के पदों को गाते समय भावावेश में भरकर मूर्छित हो जाते थे।
(घ) विद्यापति के विषय में कुछ किंवदन्तियाँ ऐसी हैं जिनके आधार पर उन्हें भक्त ही कहा जा सकता है। एक ओर तो उनका 'उगना' नामक सेवक था जो साक्षात् शिव जी थे। दूसरी ओर, वे अन्त समय गंगा स्नान करने की इच्छा से जा रहे तो रास्ते में ही उन्हें गंगा ने दर्शन दिये थे। सर्वमान्य जनश्रुति के आधार पर विद्यापति एक पहुंचे हुए भक्त थे। उनके भक्ति के पद और 'नचारी' इसी बात का प्रमाण है।
इन आधारों पर सिद्ध होता है कि विद्यापति भक्त कवि थे।
(2) विद्यापति की शृंगारिकता - पदावली के अधिकांश पद श्रृंगारिक है। अतः प्रायः विद्वानों की धारणा रही है कि विद्यापति की कविता का मूल उद्देश्य शृंगारिक भावों की अभिव्यक्ति था। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किये जा सकते हैं
(क) अधिकांश विद्वान और आलोचक यह सिद्ध करते हैं कि विद्यापति श्रृंगारिक कवि थे उनके पदावली का मूल उद्देश्य श्रृंगार रस के संयोग व वियोग दोनों अवस्थाओं का चित्रण करना था। भक्ति के फुटकर पद उनमें यदा-कदा भले ही दिखाई पड़े, परन्तु रति क्रीड़ा, काम लीला व वासना का खुला चित्रण उनके पदों में पर्याप्त रूप में है। वहाँ राधा एक विलासिनी नायिका है और श्रीकृष्ण एक कामुक नायक। दोनों ही कामुक चेष्टाओं रति-सम्बन्धों व संभोगात्मक चित्रों को कवि ने स्पष्ट प्रस्तुत किया है। इस विषय में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का मत है -
"आध्यात्मिक रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गये हैं। उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने 'गीत-गोविन्द' के पदों को आध्यात्मिक संदेश बनाया है वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी.... - इन लीलाओं का दूसरा अर्थ निकालने की आवश्यकता नहीं।"
डॉ. रामकुमार वर्मा ने विद्यापति की कविता को विलासिता की सामग्री माना है। नायिका की वयः संधि, सद्यः स्नाता, अभिसार, नखशिख वर्णन, मान, मानभंग, विलास, मिलन आदि शृंगारिकता के अन्तर्गत है। अतः उन्होंने कहा है -
'विद्यापति ने राधा कृष्ण का जो चित्र खींचा है उसमें वासना का रंग बहुत ही प्रखर है। आराध्य देव के प्रति भक्ति का जो पवित्र विचार होना चाहिए वह लेशमात्र भी नहीं है। राधा का प्रेम भौतिक और वासनामय है। - डॉ. रामुकमार वर्मा
इसी प्रकार डॉ. गोविन्दराम शर्मा ने अनेक प्रमाणों को प्रस्तुत करते हुए विद्यापति की पदावली में श्रृंगारिकता का समावेश प्रमुख रूप से सिद्ध किया है तथा कहा है -
'विद्यापति की पदावली एक श्रृंगारी रचना सिद्ध होती है। उसमें राधा और कृष्ण की प्रेम क्रीड़ाओं एवं उनके संयोग और वियोग की विविध अवस्थाओं के वासना पूर्ण मादक चित्र अंकित किये गये हैं। ये चित्र एक भक्त हृदय की देन न होकर एक सहृदय श्रृंगारी कवि की कलाकृतियाँ हैं।
विद्यापति की श्रृंगारिकता के विषय में बाबूराम सक्सेना, पं0 हर प्रसाद शास्त्री, डॉ. आनन्द प्रसाद दीक्षित आदि अनेक विद्वान हैं जो अपने-अपने प्रमाणों के आधार पर विद्यापति को शृंगारी कवि सिद्ध करते हैं।
(ख) पदावली का कथ्य भी इस बात का साक्षी है कि इसमें वासनाजन्य लौकिक प्रेम का चित्रण है। राधा और कृष्ण के अंगों का सौन्दर्य, उनकी यौवन सुलभ कामुक क्रीड़ाएँ, उनकी स्वच्छन्द और वासनात्मक शारीरिक रति, श्रृंगार रस के स्थूल और मादक चित्र, विपरीत रति आदि सभी चित्रों में कवि की श्रृंगारिकता झलकती है। उनके कृष्ण गीता के उपदेशक तथा दुष्टों के संहारक नहीं बल्कि कामकला में दक्ष धीरललित नायक, धूर्त या शठ पति है। विद्यापति ने नायक-नायिका की रति का चित्रण करते हुए कहा है -
दुहु क संजुत चिकुर फूजल।
दुहु क दुहू बलाबल बूझल॥
दुहू क अधर दसन लागल।
दुहु क मदन चौगुन जागल॥
इस प्रकार कवि का मुख्य लक्ष्य नायक-नायिका की कामवासना प्रस्तुत करके श्रृंगारिकता को अभिव्यक्त करना था।
(ग) विद्यापति की जन्म स्थली मिथिला में जो पदावली के पद गाये जाते हैं वे मन्दिरों या पूजा- उपासना आदि धार्मिक कार्यों के अवसर पर नहीं, बल्कि विवाह पश्चात् प्रथम मिलन के अवसर पर नववधू के लिए इस प्रकार के पद गाये जाते हैं -
सुन्दरि चललिहु पहु-धरना।
चहु दिस सखी सबकर डरना॥
जाइतहु लागु परम डरना।
जइसे ससि कॉप राहु डरना॥
ये पद नवविवाहिता को कामकला की शिक्षा देने के लिए ही प्रस्तुत है। इसी कारण स्त्रियाँ ही प्रायः उनके गीतों को यथावसर गाती है, पुरुष समाज में वे पद नहीं गाये जाते। इस विषय में शिवनन्दन ठाकुर का कथन है-
'कौतुक ग्रह (कोहवर) से आने और जाने के समय रमणी समाज विद्यापति के पदों द्वारा शृंगार रस की रसमय शिक्षा देकर उस नवीन गृहस्थ के हृदय में श्रृंगार रस अंकुरित करता है।"
दूसरी बात यह है कि विद्यापति यदि भक्ति भावना को मूल रूप से अपने पदों में अभिव्यक्त करते हैं तो उनका सम्मान भक्तों में विशेष रूप से होता और उनके पद मन्दिरों में गाये जाते, परन्तु ऐसा नहीं है।
(घ) विद्यापति के पदों का मूल आदर्श जयदेव का 'गीत-गोविन्द' था। इसके अतिरिक्त, उनके पदों पर गाथासप्तशती, आर्यासप्तशती, अमरुकशतक, शृंगारतिलक आदि शृंगारिक ग्रन्थों का पर्याप्त प्रभाव है जिस आधार पर विद्यापति को श्रृंगारिक कवि कहा जा सकता है।
(ङ) विद्यापति की यह शृंगारिकता पदावली में ही नहीं है, बल्कि इससे पूर्व 'पुरुष परीक्षा' तथा 'कीर्तिपताका' नामक उनकी संस्कृत और अवहट्ठ की रचनाओं में भी श्रृंगार रस के चित्रण है। अतः उनका शृंगारिक रचनाओं की ओर पहले से ही झुकाव था।
(च) चैतन्य महाप्रभु ने विद्यापति के कुछ पद अवश्य गाएँ हैं, इसका प्रमुख कारण था उनकी सच्ची भक्ति भावना। चैतन्य महाप्रभु ने तो कण-कण में राधा और कृष्ण को देखा था। यदि विद्यापति के दो-चार पदों में भी उन्हें भक्ति दिखाई दी है तो इससे विद्यापति को भक्त कवि नहीं कहा जा सकता।
इन साक्ष्यों के आधार पर विद्यापति को श्रृंगारिक कवि कहा जा सकता है।
(3) विद्यापति की रहस्याभिव्यक्ति - विद्यापति के पदों में कुछ विद्वान आलोचक रहस्यवादी भावना का समावेश सिद्ध होता है।
डॉ. ग्रियर्सन ने यह सिद्ध किया है कि राधा जीवात्मा है और कृष्ण परमात्मा के प्रतीक है। आत्मा का परमात्मा से मिलने का निरन्तर प्रयत्न चलता रहता है जो दूती रूपी गुरु से भी सम्भव है। जीवात्मा की तृष्टि तभी होती है जब वह परमात्मा के चिन्तन, मनन, दर्शन आदि को प्राप्त करता हुआ उसमें एकाकार नहीं हो जाता।
श्री मन्मथ गुप्त, डॉ. जनार्दन मिश्र, कुमारी स्वामी, प्रो0 विमन विहारी मजूमदार, डॉ. श्यामसुन्दर आदि का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने विद्यापति को रहस्यवादी कवि सिद्ध किया है तथा उनकी पदावली पर तत्कालीन रहस्यवादी भावना का प्रभाव प्रस्तुत किया है। श्रीकुमार स्वामी ने विद्यापति के श्रृंगारिक पदों में रूपकत्वक का समावेश करते हुए कहा है
'वृन्दावन की कृष्ण लीला शाश्वत है। यमुना का किनारा इस संसार का प्रतीक है और राधा और कृष्ण अर्थात् जीव और ईश्वर की लीला भूमि है। वंशी की ध्वनि अदृश्य सत्ता का स्वर है, जीव को परमात्मा की ओर अग्रसर होने का आह्वान है।
वस्तुतः इन विद्वानों की श्रृंगारिकता में भक्ति भावना को देखा है। भगवान अदृश्य है और उसके प्रति की गई आत्मा की लीलाएँ भी नहीं देखी जा सकती। अतः नायक-नायिका या राधा कृष्ण के माध्यम से स्त्री-पुरुष की प्रेमलीला मानों आत्मा परमात्मा की आध्यात्मिक क्रीड़ाएँ है, उनका सात्विक प्रेम और मिलन है। इसी भावना को ध्यान में रखकर मान्य विद्वान् विद्यापति में रहस्यवादी भावना मानते हैं। वस्तुतः यह धारणा विद्यापति को भक्त ही सिद्ध करती है, श्रृंगारिक कवि नहीं। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो ये विद्वान् श्रृंगारिकता को अपने आध्यात्मिक का आश्रय लिया था जिससे गहन अनुभावों को व्यक्त किया जा सके। व्यवहार में भी श्रृंगारिक भाषा के माध्यम से ही आध्यात्मिक भावों को प्रस्तुत किया जा सकता है। विद्यापति के अनेक अश्लील पद वैष्णवों में अत्यन्त सम्मान के साथ देखे जाते हैं। यही परम्परा सूफी ग्रन्थों में भी पाई जाती है। इसी कारण भी विद्यापति की पदावली में रहस्यवादी भावना मानी जाती है।
(4) निर्णायक मत - विद्यापति भक्त कवि थे या श्रृंगारी, उनमें रहस्यवादी भावना थी या प्रेममूलक वासना थी? ये प्रश्न आज भी विवादास्पद है। विभिन्न विद्वान विविध तर्कों के आधार पर उन्हें कभी भक्ति के क्षेत्र में ले जाते हैं तो कभी श्रृंगारिक परिधि में बांधते हैं। दोनों पक्षों में अन्तः व बाह्य प्रमाण हैं।
सच यह है कि सच्चा साहित्यकार अपने युग से प्रभावित होता है तथा उसका साहित्य युग को प्रतिबिम्बित करता है। वह परिस्थितियों से बचकर नहीं रह सकता। विद्यापति के भक्ति के पद निःसंदेह उनकी उदात्त भक्ति भावना के द्योतक हैं। वे चाहे शिव के भक्त रहे हों भवानी देव, आधा शक्ति या राधा कृष्ण के उपासक। यह उनके व्यावहारिक जीवन से संबंधित है। वे अपने दैनिक जीवन में भगवद् भजन, अर्चन या उपासना करते रहे होंगे यह अस्वीकार्य नहीं हो सकता। मूल रूप से उनका जीवन राजकवि के रूप में व्यतीत हुआ था। उनके समग्र जीवन से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने विभिन्न आश्रयदाताओं के आश्रय में रहकर दरबारी कवि के रूप में जीवन यापन किया है। जहाँ से वे आजीविका - वृत्ति भी चलाते थे तथा सम्मान के लिए इन्हें विविध उपाधियों से भी अलंकृत किया गया था। दरबारी कवि के लिए यह आवश्यक है कि वह राजप्रशंसा करके अपने आश्रयदाता को प्रसन्न रखे और तत्कालीन वातावरण के अनुरूप पदों का निर्माण करके सभासदों की भी वाह वाह लेने में समर्थ हो। विद्यापति पहले संस्कृत में रचना करते थे फिर अवहट में लिखने लगे। संभव है कि जब उन्हें इन भाषाओं में लोकप्रियता या राजप्रशंसा प्राप्त न हुई हो तो इन्होंने तत्कालीन लोकभाषा मैथिल में लिखना प्रारम्भ किया हो। जैसा कि वे कीर्तिलता में कहते हैं -
सक्कै वानी बुअ अन भावे,
पाओं रस को भम्म न पावे।
देसिल बैना सब जन मिट्ठा।
(संस्कृत वाणी बुद्धिमानों को अच्छी लगती है। प्राकृत में रस की सरसता नहीं हैं। देशी बोली सभी को मीठी लगती है।)
विद्यापति ने यद्यपि संस्कृत और प्राकृत में अनेक ग्रन्थ लिखे थे, परन्तु उनकी कीर्ति पताका फहराने वाली उनकी पदावली ही है। पदावली में उन्होंने अपने पदों में विविध आश्रयदाताओं का नाम उल्लेख किया है उदाहरण के लिए -
(क) राजा सिंसिध रूपनारायड़ लखिमा देइ पति भाने।
(ख) मोदवती - पति राघवसिंह गति, कवि विद्यापति गाई।
(ग) देव सिंह नृप नागर रे, हासिनि देइ कंत।
(घ) विद्यापति कवि, एहो रसभाव-राए सिबसिंध सब रस क निधान।
राजा शिवसिंह व रानी लाखिमादेवी के आश्रय में विद्यापति अधिक रहे। अतः उन्हीं का नाम अपेक्षाकृत अधिक पदों में हैं। कहीं-कहीं तो विद्यापति ने राजा शिवसिंह को श्री कृष्ण व रानी लखिमा को राधा कहकर पुकारा है जैसे: -
राजा सिबसिंघ रूपनारायण
साम सुन्दर काय।
निःसंदेह वह युग भोग-विलास से युक्त था। राजा और सामंत सभी अनेक पत्नियाँ रखते थे और कामोन्मत्त रहते थे। उनके लिए श्रृंगारिक कविता ही सर्वथा उपयुक्त थी। शिव नंदन ठाकुर के शब्दों में -
'विद्यापति राजकवि और राज सभासद थे। उन्हें जिस तरह का गाना बनाने की फरमाइश मिलती थी उसी तरह का गाना बनाते थे और राजा को प्रसन्न रखने के लिए राज परिवार के नाम भी उसमें जोड़ दिये जाते थे।
इससे स्पष्ट है कि विद्यापति के पद श्रृंगारिकता को लेकर प्रस्तुत किये गये हैं, वे राधा कृष्ण की भक्ति से सम्बन्धित नहीं माने जा सकते।
दूसरी ओर विद्यापति के पदों में श्रृंगारिकता की स्थूलता है अंगप्रदर्शन, मांसलता, कामोद्दीप्तता, तीव्र अभिलाषा व मिलन आदि की अभिव्यक्ति सर्वथा श्रृंगारिक है। राधा और कृष्ण दोनों ही कामपीड़ित दिखाई पड़ते हैं। उनकी सभी चेष्टाएँ वासना की दुर्गन्ध और मादकता व कामुकता की कीचड़ से परिव्याप्त है। वहाँ भक्ति की एक भी झलक नहीं दिखायी पड़ती। सूर की गोपियाँ जहाँ श्रीकृष्ण के दर्शन मात्र से अपना अहोभाग्य मानती हैं, वहाँ विद्यापति की राधा रमण करने को उत्सुक और व्याकुल प्रतीत होती है। डॉ. गोविन्द राम शर्मा के शब्दों में -
"पदावली में राधा एक साधारण प्रेयसी कामकेलि विशारदा नायिका के रूप में ही हमारे सामने आती है। इसी प्रकार पदावली के कृष्ण भी विलासी नायक के रूप को धारण किए हुए हैं। वे भक्तों को भवसागर से पार उतारने वाले भक्त वत्सल कृष्ण नहीं है।'
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- प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
- प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
- प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
- प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
- प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
- प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
- प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
- प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
- प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
- प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
- प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
- प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
- प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
- प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
- प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
- प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)