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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2680
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

अध्याय - 1

गोदान - प्रेमचन्द

 

प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।

अथवा
"गोदान में कृषक जीवन का जो चित्र अंकित वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
अथवा
गोदान की समस्याओं में आपको प्रमुख समस्या कौन सी लगती है? और क्यों? सतर्क विवेचना कीजिए।

उत्तर -

हिन्दी औपन्यासिक संसार में प्रेमचन्द प्रथम उपन्यासकार हैं जिनकी दृष्टि साहित्य के द्वारा सामाजिक यथार्थ को अभिव्यक्ति देने की रही है। इन्होंने यद्यपि सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक अचेतना में अपने रचना-संसार को पल्लवित किया लेकिन मानव जीवन के उत्कर्ष को उच्चस्थ-शिखर तक पहुँचने में नैतिक उत्थान और आदर्शधर्मिता की सहायता भी खूब ली। 'गोदान प्रेमचन्द का सामाजिक यथार्थवादी उपन्यास है जिसमें भारतीय ग्रामीण जीवन की समग्रता का आकलन हुआ है। ग्रामीण जीवन, कृषि, संस्कृति की परम्परा, लोक व्यवहार, रीति- रिवाज, रहन-सहन, आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक फलकों पर इतनी सम्पूर्णता से विचार, करने वाला हिन्दी साहित्य में यह पहला उपन्यास है। परतन्त्र भारत में अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों से पीसा जाता हुआ भारतीय कृषक समाज समस्याओं की अनवरत चपेटों में उलझा हुआ था। चूँकि प्रेमचन्द ने इस उपन्यास में सम्पूर्ण कृषक जीवन की स्थितियों पर विचार किया है इसलिए व्याप्त समस्याओं का दिग्दर्शन गोदान की विशिष्टता बन पड़ी है। गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचन निम्नोक्त बिन्दुओं द्वारा किया जा सकता है-

(1) जमींदारों, महाजनों, पटीदारों की समस्या
(2) संयुक्त परिवार की समस्या
(3) कृषक जीवन की समस्या
(4) दहेज और विवाह की समस्या
(5) वर्ग-विषमता की समस्या
(6) नारियों की समस्या

उपरोक्त बिन्दुओं पर क्रमशः विचार करने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक हैं कि इन समस्याओं में कृषक समाज मात्र उलझा हुआ ही नहीं था। अपितु इन समस्याओं से उबरने के प्रयासों से अपने जीवन का ठोग भी कर रहा था। जीवन की आहुति देकर समस्याओं का मुकाबला इन कृषकों की नियत रही है और इनमें राजनीतिक अव्यवस्था, सामाजिक शोषण के विरुद्ध संगठन और सामुदायिक एकता का अभाव भी था।

जमींदारी व्यवस्था किसानों की पहली और अन्तिम ऐसी समस्या है जिसकी आँच में तपकर इनका जीवन और भी अभिशप्त हो उठा है। जमींदारों को बाकी चुकाना, बेगारी देना, नजराना देना जहाँ इनका धर्म समझा जाता रहा है वहाँ बेदखली, लगान और कुड़की जब्ती का भय तो इन्हें सीधी गऊ की तरह व्यवहार करने के लिए मजबूर करती है। इन समस्याओं का नाम अपना विषदन्त लेकर इनके सामने सदैव खड़ा रहता है। अपने बीस वर्षों के वैवाहिक जीवन में लगान चुकाने की लाचार स्थिति से दुःखी होकर धनियाँ का कथन "चाहे कितनी ही कतरब्योत करें, कितना ही पेट तन काटें चाहे एक-एक कौड़ी को दाँत से पकड़ों, मगर लगान वेवाक होना मुश्किल हैं। बदलते समाजिक मूल्यों के परिपेक्ष्य में इन जमींदारों ने अपनी दृष्टि शोषण की अनुकूलता बनाए रखने में ही लगाए रखी है। समाज में थोड़े बहुत परिवर्तन के चिन्ह उभरने लगे हैं। इसलिए क्रोध, गुस्सा, दम्भ अभिमान की जगह शोषण वृत्ति के दाँव-पेंच बदल गये हैं, अब तो गाँधी टोपी लगाकर झूठी सेवा भावना प्रदर्शित कर जेल की यातना भोगकर, भोली- भाली जनता का हृदय जीतकर इन जमींदारों ने अपना उल्लू सीधा करना शुरू कर दिया हैं। यही कारण है कि राय साहब होरी के समक्ष अपनी स्वार्थपरता का अन्दाज बदलते हुए कहते हैं "अरे ये रुपये जिनसे राय साहब का वैभव विलास सजता है, तुमसे और तुम्हारे भाइयों से वसूल किये जाते हैं, भाले की नोंक पर। मुझे तो आश्चर्य होता है कि क्यों तुम्हारी आहो का दवानल हमें भस्म नही कर डालता। मगर नही, आश्चर्य करने की कोई बात नहीं। भस्म होने में बहुत देर नहीं लगती हम जौ - नौ और अंगुल-अंगुल और पोर-पोर भस्म हो रहे हैं उस, हाहाकार से बचने के लिए हम पुलिस की, हुक्काम की, अदालत की वकील की शरण लेते हैं। ..... यह परिस्थिति ही हमारा सर्वनाश कर रही है और जब तक सम्पत्ति की यह बेड़ी हमारे पैरों से न निकलेगी, जब तक यह अभिशाप हमारे सिर पर, मँडराता रहेगा, हम मानवता का वह पद न पा सकेगे, जिस पर पहुँचना ही जीवन का अन्तिम लक्ष्य है। होरी की दुखी आत्मा को प्रसन्नता होती है कि मात्र किसान की दुखों के बोझ से दबे नहीं, बल्कि जमींदार भी उसी के शिकार हैं। यद्यपि किसानों का अगुआ यह होरी तो यूँ भी इस व्यवस्था की परिणति और अपने दुर्भाग्य की अनिवार्यता समझता है तभी तो विद्रोह करने के बदले नियति - स्वीकार्य उसे भाता है। वह करता है' जब दूसरों के पावों तले अपनी गर्दन दबी हुई है तो उन पावों को सहलाने में ही कुशल हैं।

इसी तरह जमींदार रायसाहब की अगवानी भी किसानों की नियति है। महाजनी सभ्यता के ठेकेदार मि. खन्ना और तन्खा, छोटे तबकों के महाजनों में सहुआइन, मँगरू और दातादीन की शिकार-वृत्ति से एक ओर जहाँ पूँजीपतियों को लूटा जाता है। तो दूसरी ओर गरीब किसान भी पिसते रहते हैं। ओंकारनाथ जैसा आदर्शवादी सम्पादक भी आवश्यकता पड़ने पर रायसाहब जैसे लोगों का शोषण नहीं छोड़ता। इस प्रकार इस उपन्यास में जमींदारी व्यवस्था, महाजनी सभ्यता और पूंजीवादी शोषण की समस्याओं का आद्योपान्त उभारा गया है।

गोदान में वर्णित दूसरी मूल समस्या संयुक्त परिवार की है। संयुक्त परिवार की भित्ति भारतीय ग्रामीण समाज की परम्परा रही है। स्पष्ट है जीवन के सुख-दुख, हास-रादेन, रोहार्ण और कटुता को समूचा परिवार झेलता है। किसानों की तंगी भरी जिन्दगी में तो खुसियों और सुखों की वर्षा तो हो नहीं सकती, उनके अरमान तो कर्ज से मुक्ति पाने में पेट की आँत को शान्त करने में ही सिमट जाते हैं। प्रेमचन्द ने संयुक्त परिवार की समस्याओं को कथा नायक होरी के परिवार के सन्दर्भ में ही मूल रूप से दिखाया है। गोबर का झुनिया से प्रेम विवाह और विवाहोपरान्त पंचायत में दण्ड भरना, हीरा द्वारा घर से भाग जाने पर पुनियाँ और उसके परिवार की जिम्मेदारी निर्वाह करते हुए होरी ने मर्यादा पालन का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है। सख्यों की लम्बी कतार का बोझ उतारना, निवाहना, आर्थिक विपन्नता की आफत झेलना, विद्रोह भूलकर समझौतावादी बनना संयुक्त परिवार की और खासकर कृषक समाज की लाचारी है। इसके अतिरिक्त पूँजीवादी व्यवस्था, आधुनिकीकरण के प्रभावों से उत्पन्न आर्थिक वैषम्य, अन्धविश्वास और पारस्परिक सन्देह के भी भाव पारिवारिक विघटन एवं जर्जरता के कारण हैं। गोदान में वर्णित होरी का परिवार इन समस्यों को बखूबी झेलता भी है। होरी ग्रामीण समाज में शोषित होकर भी पारिवारिक विघटन को रोकने की चेष्टा करता है, गोबर ग्रामीण संकटों से उबरने के लिए शहर भागता तो है। लेकिन शोषण चक्र में फँसकर जिस अर्थ एकत्रण की चिन्ता में घुलता है, वह उसके निजी परिवार की चिन्ता हैं।

कृषकों का जीवन तो सम्पूर्णतः समस्याओं की भट्टी में जलती ही रहती है, कर्ज चुकाना, लगान देना, नजराना भरना, परिवार का पेट भरना, अनाज समाप्त होने पर खेत में लगे अधपके फलों को बेंच देना, तंगी से रहकर साहूकारों, पटीदारों, महाजनों और जमींदारों की जेब भरना कृषक जीवन की वह निर्यात है। जिससे उबरने में पूरा जीवन संघर्षमय बना रहता है। और इनका अन्त मृत्यु से ही होता है होरी आजीवन इन समस्याओं से लड़ता रहता है। उसकी छोटी से गऊ पालने की इच्छा भी पूरी नहीं हो पाती और संघर्ष की धधकती ज्वाला उसे निगल ही लेती है। मरणोपरान्त गोदान की समस्या मुँह बाये खड़ी रहती है। इस प्रकार भारतीय सामाजिक परिवेश में कृषक जीवन की समस्याओं का दिग्दर्शन 'गोदान' में उपलब्ध तो होता ही है। विशिष्टता यह है कि मर्मातक समस्याओं का समाधान बीज रूप में 'विद्रोहात्मक स्वर' दिखाकर उपन्यासकार ने न वो कथा-विकास की विसंगति बिगाड़ी है और न सामाजिक जीवन के धीरे- धीरे बढ़ते चरणों की श्रृंखला तोड़ी है।

दहेज और विवाह की समस्या 'गोदान' की निजी विशेषता नहीं है। सम्पूर्ण प्रेमचन्द - साहित्य इस समस्या को रूपाकार देता है हाँ, परिवर्ती उपन्यासकारों की भाँति गोदान में इसका निर्वाह आदर्शवादी दृष्टि से न देकर उन्होंने यथार्थ जीवन की सामाजिक मान्यताओं की बदलती माँगों के अनुरूप रखा है। अनमेल विवाह और अन्तर्जातीय विवाह की उपस्थिती देखकर प्रेमचन्द ने जहाँ एक ओर किसानों की अर्थ, विपन्नता, धर्म-निर्वाह और अनिवार्य सामाजिक विधान पूरा किया है। वहाँ अन्तर्जातीय विवाह की स्थापना द्वारा उन्होंने वर्तमान सामाजिक मूल्यों के बदल रहे आयामों को उभारा है। रूपा की शादी वृद्ध से की जाती है। रूपा पिता समान पति पाकर भी विद्रोह नहीं करती मातादीन ब्राह्मण होकर भी सिलिया चमारिन से ब्याह करता है। धर्म बिगड़ जाने का डर और सामाजिक मर्यादा के निर्वाह के विरुद्ध मातादीन और सिलिया का विवाह संयोजिक कर प्रेमचन्द ने व्यक्ति के स्वतन्त्र आस्तित्व और उसकी प्रेम-भावना को अत्यधिक महत्व दिया है। लेकिन समाज की अस्वीकृति और होरी की आहत स्वाभिनी चाह इन वैवाहिक - सम्बन्धों को स्वीकार नहीं कर पाती है।

दहेज की समस्या तो रूपा की शादी में अपना विकराल रूप धारण करती है जहाँ दो सौ रुपये कर्ज लेकर होरी अपनी प्यारी बेटी रूपा का हाथ अपनी आयु के वृद्ध को सौंपता तो है लेकिन उसकी दुश्चिन्ता दर्शाते हुए प्रेमचन्द कहते हैं

"होरी ने रुपये लिए तो उसका हाँथ काँप रहा था, उसका सिर ऊपर न उठ सका मुँह से एक शब्द न निकला, जैसे अपमान के गढ़े में गिर पड़ा हो और गिरता चला जाता हो। आज तीस साल तक जीवन से लड़ते रहने के बाद वह परास्त हुआ है। और ऐसा परास्त हुआ है कि मानो उसको नगर के द्वार पर खड़ा कर दिया गया है और जो आता है उसके मुँह पर थूक देता है।

दूसरी ओर मातादीन की शादी में जाति-धर्म की समस्या आगे आ खड़ी होती है। वैचारिक भिन्नता में जहाँ खन्ना और उसकी पत्नी का विवाह उदाहरणीय है वहाँ भोला और नेहरी के विवाह में अनमेल संगति का भास दिखाकर उसके घातक परिणामों का इशारा भर किया है। 'गोदान' में गोबर और झुनिया का विवाह, रूपा और रामसेवक का विवाह जमींदार के बेटे रुद्रपाल सिंह और मालती की बहन सरोज का विवाह और (मातादीन) ब्राह्मण और सिलिया चमारिन का विवाह चार भिन्न परिस्थितियों और चिन्ताओं की आधार भूमि है। गोबर विधवा झुनिया से प्रेम-विवाह करता है, रूपा का विवाह अनमेल विवाह है, सरोज अपनी स्वतन्त्र चेतना से रुद्रपाल का वरण करती है और मातादीन का विवाह अन्तर्जातीय विवाह है। इन भिन्न प्रकार के विवाहों के सन्दर्भ में एक तथ्य स्पष्ट है कि थोड़ी बहुत परेशानियों के बाद सामाजिक मान्यता सबों को मिलती है। इसके कारण की व्याख्या को प्रेमचन्द ने मेहता द्वारा प्रस्तुत किया है। 'विवाह को मैं सामाजिक समझौता समझता हूँ और उसे तोड़ने का अधिकार न पुरुष को हैं, न स्त्री को। समझौता करने के पहले आप-स्वाधीन है, समझौता हो जाने के बाद आप के हाथ कट जाते हैं। इसी प्रकार वर्ग-विषमता की समस्या तो गोदान की रीढ़ है। जिसका आधार पाकर कथा अग्रसर होती है। एक ओर रायसाहब जैसे जमींदार, खन्ना और तन्खा जैसे बड़े महाजन, डॉ. काल और मालती तथा ओंकारनाथ जैसे उच्चवर्गीय पात्रों की उपस्थिती है तो दूसरी ओर होरी और भोला जैसे निम्न वर्गीय किसानों का वर्णन मिलता है।

मध्यवर्गीय पात्रों में सहुआइन, दातादीन और मंगरू जैस महाजन भी हैं। इन भिन्न-भिन्न वर्गों की नियोजना भिन्न स्तरीय समस्याओं को जन्म देती है। सामाजिक अव्यवस्था राजनीतिक अचेतना, धार्मिक पाखण्डों और आर्थिक शोषण के मूल में वर्ग विषमता ही है। अपनी स्वार्थ सिद्धि में उच्च वर्ग के लोगों ने जहाँ सम्पूर्ण निम्नवर्गीय जीवन-पद्धति को ही नियतिवादी बना दिया है वहाँ दूसरी ओर निम्नवर्गीय जीवन पद्धति भी अपने दुर्भाग्य पर आंसू बहाने का सौभाग्य नहीं पाता, वरन् उन्हें तो श्रम-सीकर बहाकर अपे अर्थोपार्जन की सोच ही खाती रहती है।

इस प्रकार 'गोदान' में समस्याओं का जो व्यापक दिग्दर्शन है उसमें तत्कालीन समाज की स्थिति अपनी सम्पूर्णता में व्यक्त है। सामाजिक वैषम्यों, आर्थिक आभावों, राजनीतिक चेतनाओं और धार्मिक आडम्बरों के बीच पीसता हुआ कृषक समाज अपनी निराशा, कुण्ठा वैफल्य और लाचारी पर आँसू बहाता है। अध्ययनोपरान्त इस निकष पर पहुँचना अस्वाभाविक नहीं लगता कि बड़े-बड़े उद्योगपतियों, जमींदारों साहूकारों और पूंजीपतियों की अट्टालिकाओं में इन गरीब 'किसानों की आहें ही गुम्फित है उनके शराबे दौर में विपन्न किसानों का खून ही बोलता है।

गोदान की समस्यापरक उन्मुखता में नारी जाति कि समस्याओं पर विचार करना भी प्रेमचन्द का अभीष्ट अंग रहा है। इसमें चित्रित नारियों में धनिया, झुनिया, पुनिया, सिलिया, दुलारी, नौहरी, मालती और गोविन्दी के चरित्र कई एक अर्थों पर व्याख्यायित हैं। धनिया पतिवत्य का उदाहरण है जो सामाजिक विपदाओं में सांस लेती हुई अपने पति की सेवा में तत्पर रहती है। झुनिया और सिलिया के चित्रण में उसके अवैध - प्रेम की चर्चा की गयी है दुलारी नारी शोषक के रूप में चित्रित है ता नौहरी का कुलटापन भी इसमें वर्णित मिलता है। पुनिया छोटे विचारों वाली ईर्ष्यालु स्त्री है। जो मालती का चरित्र खुलापन लिए 'हृदय-परिवर्तन' से परिष्कृत ऐसी स्त्री है जो काम स्वार्थपरता और पुरुषों को आकर्षण बद्ध करने से लेकर सेवा, त्याग, सहिष्णुता और मानवता के उदात्त गुणों से युक्त होकर हमें आनन्दित करती है। गोविन्दी का चरित्र देवोत्तम गुणो से सम्पृक्त है जिसमें पतिवत्य, सेवा, त्याग कर्तव्यपरायणता और सब कुछ पी जाने वाली शक्ति मौजूद है। इन नारियों के चित्रण में प्रेमचन्द ने नारी के स्वतंन्त्र्य चेतना को अत्याधिक महत्व दिया है सामाजिक विषमता को जीतने का सामर्थ्य लेकर ग्रामीण नारियों में जहाँ संघर्षरत होने, श्रमरत होने और अपने वैकल्य में धैर्य धारण किये रहने की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। वही कुछेक नारियों की चारित्रिक पवनों और इन पवनों को जन्म देने वाले कारणों की व्यथा कथा है। तो दूसरी ओर मालती और गोविन्दी का चरित्र हमें भिन्न मनोदशाओं का ज्ञान देता है। साधन-सम्पन्न इन दो महिलाओ में मालती नारी चांचल्य कामजन्य मांसलता और स्वतन्त्र चेतना से उठकर सेवा त्याग, सहनशीलता का दिग्दर्शन कराती है। तो गोविन्दी का अन्तर्मन गहरे चोट में घायल उस वीरांगना का चरित्र दर्पण है। जो धैर्य, साहस, आत्मविश्वास और कर्तव्यपरायणता का नैसर्गिक सौन्दर्य लुटता है।

प्रेमचन्द ने अपने यथार्थवादी उपन्यास 'गोदान' में तत्कालीन कृषक जीवन की समग्रता को निरूपित किया है और कृषि-संस्कृति के चरित्र में जीवन मूल्यों की आहूति देने वाले किसानों की व्यथा- कथा को अमरता दी है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- 'गोदान' के नामकरण के औचित्य पर विचार प्रकट कीजिए।
  3. प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?
  4. प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- "गोदान और कृषक जीवन का जो चित्र अंकित है वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक दारुण सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
  6. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।
  7. प्रश्न- उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से 'गोदान' की संक्षिप्त समालोचना कीजिए।
  8. प्रश्न- 'गोदान' महाकाव्यात्मक उपन्यास है। कथन की समीक्षा कीजिए।
  9. प्रश्न- गोदान उपन्यास में निहित प्रेमचन्द के उद्देश्य और सन्देश को प्रकट कीजिए।
  10. प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यासों की संक्षेप में विशेषताएँ बताइये।
  12. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यासों की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिए।
  13. प्रश्न- 'गोदान' की भाषा-शैली के विषय में अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी के यथार्थवादी उपन्यासों का विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- 'गोदान' में प्रेमचन्द ने मेहनत और मुनाफे की दुनिया के बीच की गहराती खाई को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। प्रमाणित कीजिए।
  16. प्रश्न- क्या प्रेमचन्द आदर्शवादी उपन्यासकार थे? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
  17. प्रश्न- 'गोदान' के माध्यम से ग्रामीण कथा एवं शहरी कथा पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- होरी की चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- धनिया यथार्थवादी पात्र है या आदर्शवादी? स्पष्ट कीजिए।
  20. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' के निम्न गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'मैला आँचल एक सफल आँचलिक उपन्यास है' इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- उपन्यास में समस्या चित्रण का महत्व बताते हुये 'मैला आँचल' की समीक्षा कीजिए।
  23. प्रश्न- आजादी के फलस्वरूप गाँवों में आये आन्तरिक और परिवेशगत परिवर्तनों का 'मैला आँचल' उपन्यास में सूक्ष्म वर्णन हुआ है, सिद्ध कीजिए।
  24. प्रश्न- 'मैला आँचल' की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  25. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणुजी ने 'मैला आँचल' उपन्यास में किन-किन समस्याओं का अंकन किया है और उनको कहाँ तक सफलता मिली है? स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
  27. प्रश्न- नामकरण की सार्थकता की दृष्टि से 'मैला आँचल' उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
  28. प्रश्न- 'मैला आँचल' में ग्राम्य जीवन में चित्रित सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास को आँचलिक उपन्यास की कसौटी पर कसकर सिद्ध कीजिए कि क्या मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास है?
  30. प्रश्न- मैला आँचल में वर्णित पर्व-त्योहारों का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- मैला आँचल की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
  32. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास के कथा विकास में प्रयुक्त वर्णनात्मक पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- कथावस्तु के गुणों की दृष्टि से मैला आँचल उपन्यास की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  34. प्रश्न- 'मैला आँचल' उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत है या मेरीगंज का आँचल? स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास की संवाद योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मैला आँचल)
  37. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का सारांश लिखिए।
  39. प्रश्न- कहानी के तत्त्वों के आधार पर 'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  40. प्रश्न- प्रेम और त्याग के आदर्श के रूप में 'उसने कहा था' कहानी के नायक लहनासिंह की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- सूबेदारनी की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बातों और अन्य शहरों के इक्के वालों की बातों में लेखक ने क्या अन्तर बताया है?
  43. प्रश्न- मरते समय लहनासिंह को कौन सी बात याद आई?
  44. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- 'उसने कहा था' नामक कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  46. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (उसने कहा था)
  47. प्रश्न- प्रेमचन्द की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- कफन कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  49. प्रश्न- कफन कहानी के उद्देश्य की विश्लेषणात्मक विवेचना कीजिए।
  50. प्रश्न- 'कफन' कहानी के आधार पर घीसू का चरित्र चित्रण कीजिए।
  51. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं, इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  52. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- घीसू और माधव की प्रवृत्ति के बारे में लिखिए।
  54. प्रश्न- घीसू ने जमींदार साहब के घर जाकर क्या कहा?
  55. प्रश्न- बुधिया के जीवन के मार्मिक पक्ष को उद्घाटित कीजिए।
  56. प्रश्न- कफन लेने के बजाय घीसू और माधव ने उन पाँच रुपयों का क्या किया?
  57. प्रश्न- शराब के नशे में चूर घीसू और माधव बुधिया के बैकुण्ठ जाने के बारे में क्या कहते हैं?
  58. प्रश्न- आलू खाते समय घीसू और माधव की आँखों से आँसू क्यों निकल आये?
  59. प्रश्न- 'कफन' की बुधिया किसकी पत्नी है?
  60. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कफन)
  61. प्रश्न- कहानी कला के तत्वों के आधार पर प्रसाद की कहांनी मधुआ की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मधुआ)
  65. प्रश्न- अमरकांत की कहानी कला एवं विशेषता पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- अमरकान्त का जीवन परिचय संक्षेप में लिखिये।
  67. प्रश्न- अमरकान्त जी के कहानी संग्रह तथा उपन्यास एवं बाल साहित्य का नाम बताइये।
  68. प्रश्न- अमरकान्त का समकालीन हिन्दी कहानी पर क्या प्रभाव पडा?
  69. प्रश्न- 'अमरकान्त निम्न मध्यमवर्गीय जीवन के चितेरे हैं। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जिन्दगी और जोंक)
  71. प्रश्न- मन्नू भण्डारी की कहानी कला पर समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से मन्नू भण्डारी रचित कहानी 'यही सच है' का मूल्यांकन कीजिए।
  73. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी के उद्देश्य और नामकरण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  75. प्रश्न- कुबरा मौलबी दुलारी को कहाँ ले जाना चाहता था?
  76. प्रश्न- 'निशीथ' किस कहानी का पात्र है?
  77. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (यही सच है)
  78. प्रश्न- कहानी के तत्वों के आधार पर चीफ की दावत कहानी की समीक्षा प्रस्तुत कीजिये।
  79. प्रश्न- 'चीफ की दावत' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- चीफ की दावत की केन्द्रीय समस्या क्या है?
  81. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चीफ की दावत)
  82. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  84. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन-परिचय लिखिए।
  89. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  90. प्रश्न- क्या फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों का मूल स्वर मानवतावाद है? वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है?
  92. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तीसरी कसम)
  93. प्रश्न- 'परिन्दे' कहानी संग्रह और निर्मल वर्मा का परिचय देते हुए, 'परिन्दे' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  94. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परिन्दे' कहानी की समीक्षा अपने शब्दों में लिखिए।
  95. प्रश्न- निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व और उनके साहित्य एवं भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  96. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (परिन्दे)
  97. प्रश्न- ऊषा प्रियंवदा के कृतित्व का सामान्य परिचय देते हुए कथा-साहित्य में उनके योगदान की विवेचना कीजिए।
  98. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर ऊषा प्रियंवदा की 'वापसी' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  99. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (वापसी)
  100. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  101. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है। स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  103. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (पिता)

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