बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलतासरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 |
एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता
अध्याय - 4
भारत में स्तरीकरण, असमानता और गतिशीलता
(Stratification, Inequalities and Mobility in India)
प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
उत्तर -
भारत की जाति - व्यवस्था अपने आप में एक अनूठी संस्था है। यह इतनी प्रभावशाली रही है कि हमारे समाज का कोई भी नियम या समूह इससे अछूता नहीं रहा है। जाति-व्यवस्था का रूप सदैव से ही एक सा नहीं रहा है बल्कि समय के साथ-साथ जटिल होता गया है। आज इसी जटिलता के कारण 3000 जातियाँ और उपजातियाँ भारत में पाई जाती हैं। श्री हट्टन के शब्दों में, "भारतीय जाति-व्यवस्था के समुचित अध्ययन के लिये विशेषज्ञों की एक सेना की आवश्यकता होगी।" भारत में जाति की व्यापकता एवं महत्व को बताते हुये डॉ० मजूमदार ने लिखा है, "जाति-व्यवस्था भारत में अनुपम है। सामान्यतः भारत जातियों एवं सम्प्रदायों की परम्परात्मक स्थली माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ की हवा में जाति घुली हुई है और यहाँ तक कि मुसलमान तथा ईसाई भी इससे अछूते नहीं बचे हैं। " श्रीमती कर्वे का मत है कि यदि हम भारतीय संस्कृति के तत्वों को समझना चाहते हैं तो जाति प्रथा का अध्ययन नितान्त आवश्यक है।
(Meaning and Definition of Caste)
जाति के लिये अंग्रेजी में Caste शब्द का प्रयोग किया जाता है। Caste पुर्तगाली भाषा में Casta शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है 'प्रजाति या नस्ल'। इसी आधार पर 'जाति' शब्द का प्रयोग हम उस सामाजिक समूह के लिये करते हैं जिसकी सदस्यता का आधार वंशानुक्रम होता है, अर्थात् किसी व्यक्ति की जाति उसके जन्म से निश्चित होती है। जाति का अर्थ और अधिक स्पष्ट करने के लिये हम उनकी प्रमुख परिभाषाओं को देखेंगे।
चार्ल्स कूले - "जब कोई भी वर्ग पूर्णतया वंशानुक्रम पर आधारित हो जाता है तो वह जाति कहलाता है। "
मजूमदार और मदान - " जाति एक बन्द वर्ग है। "
रिजले - " जाति परिवारों के समूहों का एक संकलन है जिसका एक सामान्य नाम होता है जो एक काल्पनिक पूर्वज, मानव या देवता से सामान्य वंश परम्परा होने का दावा करते हैं। एक ही परम्परागत व्यवसाय को करने पर जोर देते हैं और सजातीय समूह के रूप में उनके द्वारा मान्य होते हैं जो अपना ऐसा मत व्यक्त करने योग्य हैं।"
होयबेल - " अन्तर्विवाह तथा वंशानुक्रम द्वारा प्रदत्त स्थिति की सहायता से सामाजिक वर्ग को स्थिर कर देना ही जाति है।"
मार्टिन्डेल तथा मौनाकेसी - " जाति व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जिसके उत्तरदायित्व तथा विशेषाधिकार जन्म से निश्चित होते हैं और जिनको जादू और धर्म में से किसी एक का या दोनों का समर्थन प्राप्त होता है। "
मैकाइवर तथा पेज -" जब व्यक्ति की स्थिति पूर्व निश्चित होती है अर्थात् जब व्यक्ति अपनी स्थिति में किसी भी तरह के परिवर्तन की आशा लेकर नहीं उत्पन्न होता तब व्यक्ति समूह या वर्ग जाति के रूप में स्पष्ट होता है। "
एन० के० दत्त - "एक जाति के सदस्य जाति के बाहर विवाह नहीं कर सकते। अन्य जाति के लोगों के साथ भोजन करने और पानी पीने के सम्बन्ध में इसी प्रकार के परन्तु कुछ कम कठोर नियन्त्रण हैं। अनेक जातियों में कुछ निश्चित व्यवसाय हैं। जातियों में संस्तरणात्मक श्रेणियाँ हैं जिनमें सर्वोपरि ब्राह्मणों की सर्वोच्च स्थिति है। मनुष्य की जाति का निर्णय जन्म से होता है। यदि व्यक्ति नियमों को भंग करने के कारण जाति से बाहर न निकाल दिया गया है तो एक जाति से दूसरी जाति में परिवर्तन होना सम्भव नहीं है। "
केतकर - " जाति जिस रूप में आज है उसे एक सामाजिक समूह के रूप में समझा जा सकता है जो मुख्यत: दो विशेषताओं से मिलकर बनता है— पहली, यह कि इसके सदस्य जन्म से ही बन जाते हैं, दूसरी, यह कि सभी सदस्य अत्यन्त कठोर नियमों (सामाजिक नियम) द्वारा समूह से बाहर विवाह करने से रोक दिये जाते हैं।"
ब्लण्ट - " जाति एक अन्तर्विवाही समूह अथवा अन्तर्विवाही समूहों का संकलन है, जिसका एक सामान्य नाम होता है जिसकी सदस्यता अनुवांशिक होती है, जो मानसिक सहवास के क्षेत्र में अपने सदस्यों पर कुछ प्रतिबन्ध लगाती है, इसके सदस्य या तो एक सामान्य परम्परागत व्यवसाय को करते हैं अथवा किसी सामान्य आधार पर अपनी उत्पत्ति का दावा करते हैं और इस प्रकार एक समरूप समुदाय के रूप में मान्य होते हैं।"
माइकेल - " जाति-व्यवस्था धार्मिक विश्वासों पर आधारित एक ऐसे आनुवंशिक संस्तरण, अन्तर्निवाही तथा व्यावसायिक समूह की ओर संकेत करती है जिसमें अनेक कर्मकाण्डों के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को पूर्व-निर्धारित करके इसमें किसी भी तरह के परिवर्तन पर नियन्त्रण लगा दिया गया हो।"
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि जाति व्यक्तियों का ऐसा समूह है जिसके सदस्यों की सामाजिक स्थिति पूर्णतया जन्म अथवा वंशानुक्रम से निर्धारित होती है अर्थात् उस प्रदत्त स्थिति को बदलना उनके अपने वश में नहीं होता। इसके अतिरिक्त जाति विवाह, खानपान, छुआछूत, व्यवसाय आदि के सम्बन्ध में अनेक प्रतिबन्धों से बंधी होती है। दूसरे शब्दों में, कहा जा सकता है कि जाति एक आनुवंशिक अन्तर्विवाही समूह है जो सामाजिक संस्तरण में व्यक्ति का स्थान व व्यवसाय आदि निश्चित करती है।
जाति प्रथा की विशेषतायें
जाति प्रथा की मुख्य विशेषतायें निम्नलिखित हैं -
(1) जाति जन्मजात होती है - जाति की सदस्यता जन्म द्वारा निश्चित होती है। जो मनुष्य जिस जाति में जन्म लेता है वह सदैव उसी जाति का सदस्य कहलाता है और पद, व्यवसाय, शिक्षा, धन आदि में परिवर्तन होने पर भी उसकी जातीय सदस्यता में परिवर्तन नहीं होता। पढ़ा-लिखा चमार भी चमार ही रहता है और मूर्ख ब्राह्मण, ब्राह्मण ही होता है।
(2) जाति में खान-पान सम्बन्धी नियम होते हैं - हर एक जाति के अपने खान-पान सम्बन्धी कुछ निश्चित नियम होते हैं। फल, दूध, मेवा, घी तथा पक्के भोजन में साधारणतया कोई रोक-टोक नहीं होती, परन्तु कच्चा भोजन (रोटी आदि) केवल अपनी जाति तथा अपने ऊँचे जाति के व्यक्ति के हाथ का ही खाया जा सकता है।
(3) अधिकांश जातियों के व्यवसाय निश्चित होते हैं - हिन्दू शास्त्रों में वर्णित जाति की मूल वर्ण व्यवस्था में हर एक वर्ण के व्यवसाय निश्चित थे। अतः अधिकतर जातियों के व्यवसाय भी लगभग निश्चित से ही होते हैं। मनु के अनुसार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के कार्य निश्चित होते थे। ब्राह्मण का कार्य अध्ययन, अध्यापन, यज्ञ करना, दान देना और दान लेना; क्षत्रियों का कार्य अध्ययन, यज्ञ, दान, दुष्टों को दण्ड देना और युद्ध करना; वैश्य का कार्य अध्ययन, यज्ञ, दान, कृषि, व्यापार और पशु-पालन तथा शूद्र का कार्य अन्य वर्गों की सेवा है। हिन्दू समाज में आज भी चमार का लड़का चमार, बढ़ई का लड़का बढ़ई और लोहार का लड़का लोहार का व्यवसाय करता है।
(4) जाति अन्तर्विवाही होती है - हर एक जाति के सदस्य विवाह सम्बन्ध अपनी ही जाति में करते हैं, किसी अन्य जाति में नहीं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र, वैश्य सभी अपनी जातियों में ही विवाह करते हैं। वैस्टरमार्क ने इसको जाति की मुख्य विशेषता माना है। अन्तर्जातीय विवाह को हिन्दू समाज में भी अच्छा नहीं समझा जाता।
(5) जाति में ऊँच-नीच और छुआछूत के नियम होते हैं - हिन्दू सामाजिक संगठन की भिन्न-भिन्न जातियाँ एक-दूसरे से उतार-चढ़ाव के सोपान क्रम में बँटी हुई हैं। इस क्रम में ब्राह्मणों को सबसे ऊँचा और अछूतों को सबसे नीचा स्थान प्राप्त है। ऊँच-नीच के भाव के साथ-साथ छुआछूत का नियम भी लगा हुआ है। ऊँच-नीच की भावना दक्षिण में अभी भी बहुत है। अत्यन्त नीची जातियों के स्पर्श तथा कभी-कभी छाया तक से ऊँची जाति का व्यक्ति अपवित्र हो जाता है। केरल में कहीं-कहीं नम्बूदरी ब्राह्मण नायरों के स्पर्श से परन्तु दिया जाति के व्यक्ति से छत्तीस पग से कम दूरी पर और पुलयन जाति के व्यक्ति से छियानवे पग से कम दूरी पर आने से ही अपवित्र हो जाता है। छुआछूत की प्रथा के कठोरता से पालन होने पर हिन्दू समाज की कुछ नीची जातियाँ अस्पृश्यता अथवा अछूत कहलाने लगीं जिनको मन्दिर में प्रवेश करने, श्मशान घाटों का प्रयोग करने, विद्यालयों, जलमार्गों और होटलों, सार्वजनिक कुओं का उपयोग करने तथा नगर में रहने तक की मनाही हो गयी।
(6) एक जाति में अनेक उपजातियाँ - यद्यपि हिन्दू धर्मशास्त्रों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र केवल इन चार जातियों का वर्णन किया गया है किन्तु यथार्थ यह है कि इनमें से प्रत्येक जाति अनेक उपजातियों में बंटी हुई है। ये उपजातियाँ भी परस्पर विवाह सम्बन्धी प्रतिबन्धों का पालन करती हैं अर्थात् एक उपजाति के सदस्य दूसरी उपजाति में विवाह सम्बन्ध नहीं करते।
(7) सामाजिक तथा धार्मिक निर्योग्यतायें - जाति-व्यवस्था के अन्तर्गत कुछ जातियों को विशेष रूप से सामाजिक तथा धार्मिक अधिकार प्राप्त होते हैं। इन विशेषाधिकारों के साथ-साथ विभिन्न जातियों के साथ अनेक निर्योग्यतायें भी जुड़ी हुई हैं। डॉ० इरावती कर्वे के अनुसार ये निर्योग्यतायें जातियों के व्यवसायों के आधार पर निश्चित की गई हैं अर्थात् जो काम निम्न श्रेणी के समझे जाते हैं, उन्हें करने वाली जातियों को सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों में भाग लेने का अधिकार नहीं दिया गया। कार्यों में यह उच्चता व निम्नता का भेद शारीरिक व बौद्धिक कार्यों के आधार पर किया गया। अर्थात् बौद्धिक कार्यों को ऊँचा स्थान तथा शारीरिक कार्यों को निम्न स्थान प्रदान किया गया।
(8) जातीय चेतना - जाति-व्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता जातीय चेतना है। प्रत्येक जाति अन्य जातियों की तुलना में अपने को श्रेष्ठ समझती है। एक जाति के सदस्य आपस में घनिष्ठता तथा अपनत्व का अनुभव करते हैं। हिन्दुओं का प्रत्येक कार्य इस जातीय भावना से प्रभावित होता है।
(9) आर्थिक असमानता - जाति व्यवस्था में यह भावना प्रबल रूप से पाई जाती है कि जो निम्न है, उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं होने चाहियें। निम्न जाति के कार्य यद्यपि जीवन-यापन की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी होते हैं, पर वे मूल्य की दृष्टि से हीन समझे जाते हैं। इन सबका परिणाम यह हुआ है कि उनकी आय, सम्पत्ति व सांस्कृतिक उपलब्धियाँ बहुत कम रही हैं। सामान्यतः देखा जाता है कि उच्च जातियों की आर्थिक स्थिति उच्च तथा निम्न जातियों की आर्थिक स्थिति निम्न रहती है।
(10) जाति का राजनीतिक रूप - डॉ० आर० एन० सक्सैना के शब्दों में, "जाति एक राजनीति इकाई भी है क्योंकि प्रत्येक जाति व्यावहारिक आदर्श के नियम प्रतिपादित करती है और अपने सदस्यों पर उनको लागू करती हैं। जाति-पंचायत, उसके कार्य और संगठन जाति के राजनीतिक पक्ष के ही प्रतीक है। जाति के द्वारा विधायिक, न्यायिक और निष्पादित कार्य भी सम्पन्न होते हैं जिनके कारण उसे राजनीतिक इकाई का रूप मिलता है। " जहाँ तक जाति-पंचायतों के संगठन का प्रश्न है, यह उच्च जातियों की अपेक्षा निम्न जातियों में अधिक सुदृढ़ है। ब्रिग्ज के अनुसार, जाति के कल्याण और सुरक्षा सम्बन्धी सभी कार्य जाति-पंचायत के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
लेकिन जाति की इन विशेषताओं में वर्तमान समय में बहुत कुछ परिवर्तन आ गए हैं जिनके परिणामस्वरूप जाति का संरचनात्मक एवं सांस्कृतिक स्वरूप काफी कुछ बदल गया है।
|
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
- प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
- प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
- प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
- प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
- प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
- प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
- प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
- प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
- प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
- प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
- प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
- प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
- प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
- प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
- प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
- प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
- प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
- प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
- प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
- प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।