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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2696
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

प्रश्न- अनुसन्धान के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये तथा तथ्य व सिद्धान्त के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

अनुसन्धान के उद्देश्य

अनुसन्धान के उद्देश्यों को प्रमुख रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(क) सैद्धान्तिक या वैज्ञानिक उद्देश्य और
(ख) उपयोगितावादी या व्यावहारिक उद्देश्य।

विभिन्न समाज वैज्ञानिकों की परिभाषाओं से यह पता चलता है कि अनुसन्धान के प्रथम उद्देश्य पर अधिक बल दिया गया है लेकिन साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि द्वितीय उद्देश्य-उपयोगितावादी उद्देश्य की भी पूर्ण रूप से अवहेलना नहीं की गई है। निम्नलिखित व्याख्या से यह भली भाँति स्पष्ट हो जायेगा।

(क) सैद्धान्तिक या वैज्ञानिक उद्देश्य

सैद्धान्तिक या वैज्ञानिक उद्देश्य को सुविधापूर्वक समझने के लिए चार उपविभागों में बाँटा जा सकता है-

(1) जीवन व घटनाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त करना - अनुसन्धान का सैद्धान्तिक उद्देश्य जीवन ब घटनाओं के बारे में विशुद्ध ज्ञान प्राप्त करना है। सामाजिक व सांस्कृतिक परिस्थितियाँ स्थायी नहीं हैं। उनमें निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। इसलिए विभिन्न तथ्यों के सम्बन्ध में हमारा जो ज्ञान है, वह आगे चलकर सही नहीं उतरता। ऐसी स्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि हम नवीन तथ्यों के सम्बन्ध में अनुसन्धान द्वारा ज्ञान प्राप्त करें और पुराने तथ्यों की पुनः परीक्षा कर लें ताकि उनके सम्बन्ध में पता लग जाये कि हमारा ज्ञान ठीक है या नहीं।

(2) घटनाओं में पाये जाने वाले प्रकार्यात्मक सम्बन्धों का ज्ञान - कोई भी घटना या तथ्य प्रकार्यविहीन नहीं होता है। सच तो यह है कि विभिन्न घटनाओं या तथ्यों में अपने-अपने कार्यों के आधार पर प्रकार्यात्मक सम्बन्ध पाये जाते हैं और इन प्रकार्यात्मक सम्बन्धों के आधार पर ही जीवन में निरन्तरता बनी रहती है। अनुसन्धान का उद्देश्य इन प्रकार्यात्मक सम्बन्धों का भी ज्ञान प्राप्त करना है। उदाहरणार्थ, बाल-अपराध की घटना को हम तभी समझ सकते हैं जबकि बाल-अपराध व परिवार, 2. बाल-अपराध व निर्धनता, बाल-अपराध व स्कूल आदि में पाये जाने वाले कार्य-कारण सम्बन्धों को भली प्रकार समझ लिया जाये।

(3) प्रयोगसिद्ध तथ्यों के आधार पर वैज्ञानिक अवधारणाओं का निर्माण - अनुसन्धानों का सैद्धान्तिक उद्देश्य पारिभाषिक शब्दों व अवधारणाओं का प्रमापीकरण करना भी है। ऐसा होने पर ही सामाजिक विज्ञान की प्रगति सम्भव हो सकेगी। यदि पारिभाषिक शब्दों तथा अवधारणाओं के प्रमापीकरण करने में समाज वैज्ञानिकों को सफलता मिल जाती है तो यह इस दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी।

(4) सामाजिक घटनाओं में अन्तर्निहित स्वाभाविक नियमों को ढूंढ निकालना - घटनाएँ भी प्राकृतिक घटनाओं की भाँति कुछ स्वाभाविक नियमों द्वारा संचालित व नियमित होती हैं। इन नियमों का व्यवस्थित पद्धतियों द्वारा पता लगाना या ढूँढना भी अनुसन्धान का सैद्धान्तिक उद्देश्य है।

(ख) उपयोगितावादी या व्यावहारिक उद्देश्य

अनुसन्धान का गौण अथवा दूसरा उद्देश्य उपयोगितावादी या व्यावहारिक है। इसका अभिप्राय यही है कि प्राप्त ज्ञान के आधार पर समस्याओं का हल करना या सामाजिक जीवन को अधिक प्रगतिशील बनाने हेतु योजनाओं में सहायता देना। वास्तव में, अनुसन्धान के उपयोगितावादी उद्देश्य को भी चार उपविभागों में बाँटा जा सकता है-

(1) संघर्षो की स्थिति को दूर करने में सहायक - अनुसन्धान से प्राप्त ज्ञान के आधार पर पाये जाने वाले विभिन्न सामाजिक संघर्षों का उचित निदान ढूंढा जा सकता है। उदाहरणार्थ, भारत में विद्यमान विभिन्न संघर्ष-सम्प्रदायवाद, भाषावाद, जातिवाद आदि को अनुसन्धान से प्राप्त वैज्ञानिक व यथार्थ ज्ञान के द्वारा सफलतापूर्वक दूर किया जा सकता है।

(2) समस्याओं के सुलझाने में सहायता प्रदान करना - अनुसन्धान द्वारा प्राप्त ज्ञान के आधार पर पाये जाने वाले विभिन्न संघर्षों का उचित निदान ढूंढा जा सकता है। इस ज्ञान की सहायता से नेता, समाज सुधारक, शासक व प्रशासक आदि जटिल समस्याओं का निदान सरलतापूर्वक कर सकते हैं।

(3) नियन्त्रण में सहायक - अनुसन्धान से प्राप्त ज्ञान का उपयोग सफल सामाजिक नियन्त्रण में सहायक हो सकता है। उदाहरणार्थ, मजदूर-वर्ग में अन्तर्निहित प्रतिक्रियाओं, उनके विचारों, मनोवृत्तियों, आवश्यकताओं आदि का जितना अधिक ज्ञान होगा उतनी ही सफलता के साथ उन पर नियन्त्रण रखा जा सकता है। इतना ही नहीं, विशुद्ध ज्ञान के आधार पर उचित सामाजिक विधानों का नियन्त्रण हेतु निर्माण भी किया जा सकता है।

(4) योजनाओं के बनाने में सहायक - अनुसन्धान से प्राप्त ज्ञान के द्वारा सामाजिक पुनर्निर्माण की योजनाओं को बनाने में सहायता मिलती है। वास्तव में, योजनाओं की उपयोगिता अनुसन्धान द्वारा उपलब्ध वैज्ञानिक व यथार्थ ज्ञान पर ही आधारित रहती है। यही कारण है कि सभी प्रगतिशील देश योजनाओं की सफलता की दृष्टि से अनुसन्धान के महत्व को स्वीकार करते हैं।

तथ्य एवं सिद्धान्त में पारस्परिक सम्बन्ध तथा इनका महत्व

तथ्य तथा सिद्धान्त दोनों सम्बन्धित हैं, इन्हें एक-दूसरे से पृथक् करके नहीं देखा जा सकता। सिद्धान्त का निर्माण तथ्यों के आधार पर ही होता है। इस सन्दर्भ में मर्टन ने ठीक ही लिखा है, "वास्तव में सिद्धान्त उपयुक्त तथ्यों के उत्तम भोजन पर ही पनपते हैं।" सच तो यह है कि तथ्य जो निरन्तर ही घटित होते रहते हैं, परन्तु उनमें से वे तथ्य हमारे लिए महत्वपूर्ण आकर्षण बन जाते हैं जिन्हें किसी वैज्ञानिक अथवा सिद्धान्त की पुष्टि या विरोध हेतु स्वीकार कर लिया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है किं तथ्यों के आधार पर ही नवीन सिद्धान्तों की रचना अथवा पुराने सिद्धान्तों की जाँच की जाती है। इस दृष्टि से तथ्य तथा सिद्धान्त का पारस्परिक घनिष्ठ व अटूट सम्बन्ध स्वतः हो जाता है। समाज वैज्ञानिक या वैज्ञानिक तथ्यों के घटित होने के बारे में सदैव सतर्क रहता है और जब कभी भी कोई नवीन. तथ्य या समूह उसकी दृष्टि में आते हैं, तो वह उन तथ्यों के पारस्परिक सम्बन्धों को खोजने का वैज्ञानिक आधार पर प्रयास करता है और इस बात की परीक्षा व पुनः परीक्षा करता है कि इन नवीन तथ्यों के आधार पर प्रचलित सिद्धान्तों में संशोधन या परिवर्तन की आवश्यकता है या नहीं। वस्तुतः नवीन तथ्यों के घटित होने पर अनेक पुराने सिद्धान्तों में बड़े परिवर्तन या संशोधन की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर वर्तमान समय में अपराध, वेश्यावृत्ति, आत्महत्या, प्रजाति, जाति, बेकारी, निर्धनता आदि की उत्पत्ति से सम्बन्धित अनेक पुराने सिद्धान्त, उपलब्ध वास्तविक तथ्यों के आधार पर रद्द कर दिए गये हैं और इतना ही नहीं अनेको सिद्धान्तों में आवश्यक संशोधन या परिवर्तन भी किए गए हैं। यह ठीक ही है, क्योंकि विज्ञान की प्रगति इसी बात में निहित है कि वह अपने किसी भी सिद्धान्त को अन्तिम, स्थायी या शाश्वत न माने। कुछ भी हो, उपरोक्त विवेचन से तथ्य व सिद्धान्त का पारस्परिक सम्बन्ध व महत्व बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है। गुडे व हाट ने तथ्य तथा सिद्धान्त के महत्व को संक्षेप में निम्न प्रकार व्यक्त किया है-

(1) तथ्यों का महत्व-

(i) सिद्धान्तों की रचना के लिए आवश्यक कच्चा माल जुटाना।
(ii) किसी प्रचलित सिद्धान्त को अस्वीकार या आवश्यक संशोधन, परिवर्तन आदि करने के लिए आवश्यक सामग्री को जुटाना।
(iii) किसी सिद्धान्त की परीक्षा, पुनः परीक्षा, स्पष्टीकरण आदि में सहायक होना।

(2) सिद्धान्त का महत्व-

(i) संकलित किये गए तथ्यों की सीमा को परिभाषित करना।
(ii) सम्बन्धित घटनाक्रम को व्यवस्थित तौर पर वर्गीकृत व अन्तःसम्बन्धित करने की दृष्टि से एक अवधारणात्मक योजना की रचना करना।
(iii) तथ्यों को प्रयोग-सिद्ध सामान्य नियमों व सामान्यीकरण की व्यवस्थाओं के अन्तर्गत संक्षिप्त निष्कर्ष के रूप में प्रस्तुत करना।
(iv) प्रचलित या विद्यमान ज्ञान के बारे में कमियों की ओर ध्यान आकर्षित करना। कुछ भी हो, अन्त में यह कहना उचित होगा कि सिद्धान्त शोध कार्य के लिए महत्त्वपूर्ण व उपयोगी हैं। सिद्धान्त के आधार पर शोध कार्य को आगे बढ़ाने में यह लाभ होता है कि शोधकर्त्ता को स्पष्ट तौर पर यह पता रहता है कि उसे सम्बन्धित सिद्धान्त की परीक्षा की दृष्टि से कौन-कौन से तथ्यों को संकलित करना होगा। ऐसा करने से अध्ययन में निश्चितता लायी जा सकती है और इधर-उधर भटकने से बचा जा सकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- अनुसंधान की अवधारणा एवं चरणों का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- अनुसंधान के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये तथा तथ्य व सिद्धान्त के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
  3. प्रश्न- शोध की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- शोध के अध्ययन-क्षेत्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वैज्ञानिक पद्धति' क्या है? वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  6. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  8. प्रश्न- अनुसन्धान कार्य की प्रस्तावित रूपरेखा से आप क्या समझती है? इसके विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- शोध से क्या आशय है?
  10. प्रश्न- शोध की विशेषतायें बताइये।
  11. प्रश्न- शोध के प्रमुख चरण बताइये।
  12. प्रश्न- शोध की मुख्य उपयोगितायें बताइये।
  13. प्रश्न- शोध के प्रेरक कारक कौन-से है?
  14. प्रश्न- शोध के लाभ बताइये।
  15. प्रश्न- अनुसंधान के सिद्धान्त का महत्व क्या है?
  16. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के आवश्यक तत्त्व क्या है?
  17. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ लिखो।
  18. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताओ।
  19. प्रश्न- गृह विज्ञान से सम्बन्धित कोई दो ज्वलंत शोध विषय बताइये।
  20. प्रश्न- शोध को परिभाषित कीजिए तथा वैज्ञानिक शोध की कोई चार विशेषताएँ बताइये।
  21. प्रश्न- गृह विज्ञान विषय से सम्बन्धित दो शोध विषय के कथन बनाइये।
  22. प्रश्न- एक अच्छे शोधकर्ता के अपेक्षित गुण बताइए।
  23. प्रश्न- शोध अभिकल्प का महत्व बताइये।
  24. प्रश्न- अनुसंधान अभिकल्प की विषय-वस्तु लिखिए।
  25. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के चरण लिखो।
  26. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के उद्देश्य क्या हैं?
  27. प्रश्न- प्रतिपादनात्मक अथवा अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्ररचना से आप क्या समझते हो?
  28. प्रश्न- 'ऐतिहासिक उपागम' से आप क्या समझते हैं? इस उपागम (पद्धति) का प्रयोग कैसे तथा किन-किन चरणों के अन्तर्गत किया जाता है? इसके अन्तर्गत प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख स्रोत भी बताइए।
  29. प्रश्न- वर्णात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  30. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प क्या है? इसके विविध प्रकार क्या हैं?
  31. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध का अर्थ, विशेषताएँ, गुण तथा सीमाएँ बताइए।
  32. प्रश्न- पद्धतिपरक अनुसंधान की परिभाषा दीजिए और इसके क्षेत्र को समझाइए।
  33. प्रश्न- क्षेत्र अनुसंधान से आप क्या समझते है। इसकी विशेषताओं को समझाइए।
  34. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ व प्रकार बताइए। इसके गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
  35. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख प्रकार एवं विशेषताएँ बताइये।
  36. प्रश्न- सामाजिक अनुसन्धान की गुणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के गुण लिखो।
  38. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के दोष बताओ।
  39. प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान के दोष बताओ।
  40. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन और सर्वेक्षण अनुसंधान में अंतर बताओ।
  41. प्रश्न- पूर्व सर्वेक्षण क्या है?
  42. प्रश्न- परिमाणात्मक तथा गुणात्मक सर्वेक्षण का अर्थ लिखो।
  43. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ बताकर इसकी कोई चार विशेषताएँ बताइए।
  44. प्रश्न- सर्वेक्षण शोध की उपयोगिता बताइये।
  45. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न दोषों को स्पष्ट कीजिए।
  46. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति कीक्या उपयोगिता है? सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति की क्या उपयोगिता है?
  47. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न गुण बताइए।
  48. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या सीमाएँ हैं?
  50. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की सामान्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या उपयोगिता है?
  52. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की विषय-सामग्री बताइये।
  53. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में तथ्यों के संकलन का महत्व समझाइये।
  54. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के प्रमुख चरणों की विवेचना कीजिए।
  55. प्रश्न- अनुसंधान समस्या से क्या तात्पर्य है? अनुसंधान समस्या के विभिन्न स्रोतक्या है?
  56. प्रश्न- शोध समस्या के चयन एवं प्रतिपादन में प्रमुख विचारणीय बातों का वर्णन कीजिये।
  57. प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
  58. प्रश्न- समस्या का सीमांकन तथा मूल्यांकन कीजिए तथा समस्या के प्रकार बताइए।
  59. प्रश्न- समस्या के चुनाव का सिद्धान्त लिखिए। एक समस्या कथन लिखिए।
  60. प्रश्न- शोध समस्या की जाँच आप कैसे करेंगे?
  61. प्रश्न- अनुसंधान समस्या के प्रकार बताओ।
  62. प्रश्न- शोध समस्या किसे कहते हैं? शोध समस्या के कोई चार स्त्रोत बताइये।
  63. प्रश्न- उत्तम शोध समस्या की विशेषताएँ बताइये।
  64. प्रश्न- शोध समस्या और शोध प्रकरण में अंतर बताइए।
  65. प्रश्न- शैक्षिक शोध में प्रदत्तों के वर्गीकरण की उपयोगिता क्या है?
  66. प्रश्न- समस्या का अर्थ तथा समस्या के स्रोत बताइए?
  67. प्रश्न- शोधार्थियों को शोध करते समय किन कठिनाइयों का सामना पड़ता है? उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?
  68. प्रश्न- समस्या की विशेषताएँ बताइए तथा समस्या के चुनाव के अधिनियम बताइए।
  69. प्रश्न- परिकल्पना की अवधारणा स्पष्ट कीजिये तथा एक अच्छी परिकल्पना की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  70. प्रश्न- एक उत्तम शोध परिकल्पना की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- उप-कल्पना के परीक्षण में होने वाली त्रुटियों के बारे में उदाहरण सहित बताइए तथा इस त्रुटि से कैसे बचाव किया जा सकता है?
  72. प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
  73. प्रश्न- उपकल्पना के स्रोत, उपयोगिता तथा कठिनाइयाँ बताइए।
  74. प्रश्न- उत्तम परिकल्पना की विशेषताएँ लिखिए।
  75. प्रश्न- परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? किसी शोध समस्या को चुनिये तथा उसके लिये पाँच परिकल्पनाएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- उपकल्पना की परिभाषाएँ लिखो।
  77. प्रश्न- उपकल्पना के निर्माण की कठिनाइयाँ लिखो।
  78. प्रश्न- शून्य परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
  79. प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
  80. प्रश्न- शैक्षिक शोध में न्यादर्श चयन का महत्त्व बताइये।
  81. प्रश्न- शोधकर्त्ता को परिकल्पना का निर्माण क्यों करना चाहिए।
  82. प्रश्न- शोध के उद्देश्य व परिकल्पना में क्या सम्बन्ध है?
  83. प्रश्न- महत्वशीलता स्तर या सार्थकता स्तर (Levels of Significance) को परिभाषित करते हुए इसका अर्थ बताइए?
  84. प्रश्न- शून्य परिकल्पना में विश्वास स्तर की भूमिका को समझाइए।

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