बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 |
बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य
प्रश्न- लोकतंत्रीय समाज में शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए? उनमें से किसी एक की सविस्तार विवेचना कीजिए।
उत्तर -
(The Aims of Education in a Democratic Society)
स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने की दृष्टि से केन्द्र सरकार ने विभिन्न अवसरों पर विभिन्न शिक्षा आयोगों की नियुक्ति की है। लोकतंत्रीय समाज में आज जन-जन तक शिक्षा पहुँचाना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि तभी राष्ट्र दिनों-दिन प्रगति कर सकता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति को भी शिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि यदि वह शिक्षित होगा तो अपने मानवीय गुणों का अपने चारित्रिक विकास का समुचित विकास कर पाना तथा अपने जीवन को प्रगति के मार्ग में आगे बढ़ा पाना सम्भव है अन्यथा यह कार्य असम्भव ही दृष्टिगत होता है।
शिक्षा नीति के अन्तर्गत शिक्षा के सर्वोत्तम उत्तरदायित्व का निर्धारण इस प्रकार किया गया है- "शिक्षा का सबसे बड़ा कार्य है, शिक्षा के पिरामिड की नींव मजबूत करना। यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि जो इस पिरामिड के शिखर पर हों, वे विश्व में सर्वोत्तम स्तर के हों।' राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा के भविष्य पर निम्नलिखित टिप्पणी की गयी है -
"भारत में शिक्षा का भावी स्वरूप इतना पेचीदा है कि उसके बारे में स्पष्ट रूपरेखा बना सकना सम्भव नहीं है फिर भी हमारी उन परम्पराओं को देखते हुए जिन्होंने हमेशा बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों को महत्व प्रदान किया है, इसमें किसी भी प्रकार का सन्देह नहीं कि हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल होंगे।'
केन्द्र सरकार ने जनतांत्रिक मूल्यों के अनुकूल शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्यों के निर्धारण पर बल दिया है -
1. विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग, 1948 - डॉ. राधाकृष्णन विश्वविद्यालय - शिक्षा आयोग के अध्यक्ष थे। उन्हें 1948-49 में उच्च शिक्षा के सन्दर्भ में कहा था "प्रजातंत्र का जीवन सामान्य व्यावसायिक एवं जीविकोपार्जन सम्बन्धी शिक्षा के सर्वोच्च स्तर पर निर्भर है। अतः हमारे समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विद्यालयों का कार्य होना चाहिए विवेक का प्रसार, नवीन ज्ञान के लिए तीव्र आंकाक्षा, जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधिक प्रयत्न तथा जीविकोपार्जन की शिक्षा जिससे की हमारे समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।'
2. माध्यमिक शिक्षा आयोग, -1952-53 - डॉ. लक्ष्मण स्वामी मुदालियर माध्यमिक शिक्षा आयोग के अध्यक्ष थे। उन्होंने शिक्षा के उद्देश्य को इस प्रकार व्यक्त किया है "शिक्षा व्यवस्था की आदतों, दृष्टिकोणों एवं चारित्रिक गुणों के विकास में योगदान देना चाहिए जिससे कि नागरिक योग्यतापूर्वक लोकतांत्रिक नागरिकता के दायित्वों का पालन करने में समर्थ हो सके तथा विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का विरोध कर सकें जो राष्ट्रीय एवं धर्मनिरपेक्षता के दृष्टिकोण में बाधक है।'
3. राष्ट्रीय शिक्षा आयोग 1964-66 - डॉ. दौलत सिंह कोठारी राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष थे। यह शिक्षा नीति राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इसने शिक्षा के निम्नलिखित महत्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित किये हैं-
(i) व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास,
(ii) प्रजातांत्रिक मूल्यों का उन्नयन,
(iii) नेतृत्व क्षमता का विकास,
(iv) राष्ट्र की प्रगति में वृद्धि करना,
(v) अन्तर्राष्ट्रीयता का विकास,
(vi) व्यावसायिक कुशलता में गुणात्मक सुधार।
यह अत्यन्त व्यापक आयोग है। इस आयोग ने लिखा है- "भारतीय शिक्षा का लक्ष्य आत्मनिर्भरता, बेरोजगारी की समाप्ति राजनीतिक एवं सामाजिक एकता की स्थापना लोकतंत्र की सुदृढ़ता तथा सामाजिक नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का विकास होना चाहिए।'
राष्ट्रीय आयोग ने इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये हैं-
(i) शिक्षा के द्वारा आधुनिक ज्ञान की प्राप्ति करना,
(ii) शिक्षा के द्वारा उत्पादन की कुशलता में वृद्धि करना,
(iii) शिक्षा द्वारा सामाजिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक तथा नैतिक मूल्यों का विकास,
(iv) शिक्षा द्वारा सामाजिक एवं राजनैतिक एकता स्थापित करना।
लोकतन्त्रीय समाज में शिक्षा के उद्देश्य
आधुनिक भारत की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं के सन्दर्भ में शिक्षा के उद्देश्यों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है -
1. शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य
2. शिक्षा के समाज सम्बन्धी उद्देश्य
3. शिक्षा के राष्ट्र सम्बन्धी उद्देश्य।
शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य
शिक्षा के वे उद्देश्य जिनका सम्बन्ध व्यक्ति के विकास से है, शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य कहे जाते हैं। इन उद्देश्यों का तात्पर्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है क्योंकि वह सम्पूर्ण शिक्षा की गतिविधि का केन्द्र है तथा समाज की संगठनात्मक इकाई है। इसलिए इसके बहुमुखी विकास से ही सम्पूर्ण समाज का कल्याण सम्भव है।
शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के अन्तर्गत निम्नलिखित उद्देश्यों को जाना जाता है -
1. चारित्रिक विकास - चरित्र विकास शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है। वर्तमान शिक्षा नीति ने बालक के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक विकास के नियमन, समन्वयन तथा मानवीय मूल्यों के अनुरूप क्रियान्वयन के लिए आध्यात्मिक विकास को शिक्षा के उद्देश्य के रूप में स्वीकार किया है। इससे बालकों के चरित्र निर्माण में सहायता मिलेगी।
श्री अरविन्द के अनुसार - "हम में से हर एक कुछ दैवीय है, कुछ अपना स्वयं का है, जो हमें पूर्णता और शक्ति प्राप्त करने के अवसर प्रदान करता है। हमारा कार्य है इसका पता लगाना, इसे विकसित करना और इसका प्रयोग करना। शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए विकसित होने वाली आत्मा को सर्वोत्तम प्रकार से विकसित करने में सहायता देना और श्रेष्ठ कार्य पूर्ण करना।
2. शारीरिक विकास - शारीरिक विकास अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 - ने शारीरिक विकास की अभिवृद्धि हेतु खेलकूदों पर बल देते हुए लिखा है- "भारत के पारम्परिक खेलों पर उचित बल प्रदान किया जायेगा। शरीर एवं मन के विकास के लिए योग शिक्षा पर विशेष बल दिया जायेगा। सभी विद्यालयों में योग की शिक्षा की व्यवस्था के लिए प्रयास किये जायेंगे।"
3. जीवन-यापन की कला का प्रशिक्षण - शिक्षा व्यक्ति को समाज केकी कला से प्रशिक्षित करती है। अनुकूल जीवन-यापन
डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार - "हमें युवकों को यथासम्भव सर्वोत्तम प्रकार से सर्वकुशल व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए। उन्हें यह शिक्षा दी जानी चाहिए कि वे शिष्टाचार तथा सम्मान के अलिखित नियमों का स्वेच्छा से पालन करें
4. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास - वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने से देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की प्रगति के विकास के साथ ही प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा भी हो सकेगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विज्ञान की महत्ता को स्वीकार करते हुए लिखा है- "विज्ञान शिक्षा को सुदृढ़ किया जायेगा ताकि बच्चों में जिज्ञासा की भावना, सृजनात्मकता, वस्तुनिष्ठ प्रश्न करने का साहस एवं सौन्दर्य बोध जैसी योग्यतायें और मूल्य विकसित हो सकें।'
5. सांस्कृतिक विकास - राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अन्तर्गत शिक्षा के सांस्कृतिक विकास के उद्देश्य की आवश्यकता को इस प्रकार स्पष्ट किया गया है "वर्तमान समय में शिक्षा की औपचारिक पद्धति एवं देश की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक परम्पराओं के मध्य एक खाई है, जिसे पाटना आवश्यक है। आधुनिक प्रौद्योगिकी की धुन में यह नहीं होना चाहिए कि नयी पीढ़ी भारतीय इतिहास और संस्कृति के मूल से ही अलग हो जाये। संस्कृतिविहीनता, अमानवीयता और परायेपन के भाव से हर कीमत पर बचना होगा। परिवर्तनशील प्रौद्योगिकी और सतत् चली आ रही देश की अक्षुण्ण सांस्कृतिक परम्परा में एक सुन्दर समन्वय की आवश्यकता है और शिक्षा इस उत्तरदायित्व को भली प्रकार निभा सकती है।
6. मानसिक विकास - शिक्षा प्राचीनकाल में भी मानसिक क्षमताओं के विकास तथा लक्ष्य प्राप्ति में सहायक थी।
7. व्यक्तित्व का विकास - शिक्षा मानव के सर्वांगीण विकास में सहायक होती है। शिक्षा नीति स्पष्ट से कहा गया है "भारतीय विचारधारा के अनुसार मनुष्य स्वयं एक बेशकीमती संसाधन है, अमूल्य सम्पदा है! आवश्यकता इस बात की है उसका परवरिश गतिशील एवं संवेदनशील हो सके और सावधानीपूर्वक की जाये। प्रत्येक व्यक्ति का अपना विशिष्ट व्यक्तित्व होता है।'
8. व्यावसायिक क्षमताओं का विकास - छात्रों में व्यावसायिक क्षमता का विकास करना शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कहा गया है कि "व्यवस्थित एवं सुनियोजित व्यावसायिक शिक्षा कार्यक्रम का दृढ़ता से क्रियान्वयन करना आवश्यक है। इससे व्यक्तियों के रोजगार पाने की क्षमता बढ़ेगी। आजकल कुशल कर्मचारियों की माँग एवं आपूर्ति में जो असन्तुलन है वह समाप्त होगा और ऐसे छात्रो को एक वैकल्पिक मार्ग मिल सकेगा जो इस समय बिना किसी विशेष रुचि या उद्देश्य के उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं।"
|
- प्रश्न- समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र को जन्म देने वाली प्रवृत्तियाँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- शाब्दिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- पारिभाषिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ समझाइये |
- प्रश्न- समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज के आधुनिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बालक पर भारतीय समाज के विभिन्न प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को देखते हुए पाठ्यक्रम में किस प्रकार के बदलाव किये जाने चाहिये?
- प्रश्न- शिक्षा की समाजशास्त्रीय प्रवृत्ति ने शिक्षा में कौन-सी नयी विचारधाराओं को उत्पन्न किया?
- प्रश्न- शान्तिपूर्ण व सामूहिक जीवन हेतु विभिन्नता में एकता की स्थापना करने वाले घटकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शान्तिपूर्ण एवं सामूहिक रहने के लिये विभिन्नता में एकता स्थापित करने में शैक्षिक संस्थाओं की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता का अर्थ स्पष्ट करते हुए धर्मनिरपेक्षता की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय सन्दर्भ में धर्मनिरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी प्रावधानों को भी स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता को प्रोत्साहित करने वाले कारक कौन-से हैं? धर्मनिरपेक्षता के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के कारण भारतीय समाज में क्या परिवर्तन हुए?
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की विशेषताओं एवं इसके विकास में विद्यालय की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के विकास में विद्यालय की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रक्रिया, रूप एवं प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रूप बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन और शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास का क्या अर्थ है? आर्थिक विकास के साधन के रूप में शिक्षा के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- संस्कृति से आप क्या समझते हैं? संस्कृति की आवश्यकता एवं महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए।
- प्रश्न- "शिक्षा एक सामाजिक एवं गत्यात्मक प्रक्रिया है। " इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा प्रक्रिया की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक परिवर्तन से क्या तात्पर्य है? सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में शिक्षा की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- व्यक्ति और समाज के मध्य सम्बन्धों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- वर्तमान समाज में परिवार का स्वरूप बदल गया है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय सामाजिक व्यवस्था में असमानताओं को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
- प्रश्न- सामाजीकरण में परिवार का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- सामाजिक व्यवस्था की मुख्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विरासत से आप क्या समझते हैं? यह शिक्षा से किस प्रकार सम्बन्धित है?
- प्रश्न- सांस्कृतिक विकास की कुछ समस्याएँ बताइये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा सांस्कृतिक परिवर्तन कैसे लाती है?
- प्रश्न- शिक्षा के सामाजिक आधार से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (समाजशास्त्र और शिक्षा का सम्बन्ध)
- प्रश्न- संविधान की परिभाषा दीजिये। संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की अवधारणा बताइए। भारतीय संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अन्तर्गत वर्णित शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न धाराओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न प्रावधान क्या-क्या हैं?
- प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान में लिखित नीति-निदेशक तत्त्वों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- समानता, बन्धुता, न्याय व स्वतंत्रता की संवैधानिक वादे के संदर्भ में शिक्षा के लक्ष्यों से सम्बन्धित संवैधानिक मूल्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों की कार्यप्रणाली के विषय में बताइए तथा संविधान निर्माण की विभिन्न समितियाँ कौन-सी थीं?
- प्रश्न- प्रस्तावना से क्या आशय है? भारतीय संविधान की प्रस्तावना तथा इसके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा उनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्वों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 45 का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र का अर्थ स्पष्ट करते हुए प्रजातन्त्र के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र के प्रमुख गुण व दोषों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र का क्या अर्थ है? भारतीय लोकतंत्र के सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय लोकतन्त्र के मूल सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्रीय समाज में शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए? उनमें से किसी एक की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "आधुनिक शिक्षा में लोकतांत्रिक प्रवृष्टि दृष्टिगोचर होती है।' स्पष्ट कीजिए तथा लोकतांत्रिक समाज में विद्यालयों की भूमिका पर भी प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जनतंत्र केवल प्रशासन की एक विधि ही नहीं है वरन् यह एक सामाजिक प्रणाली भी है। व्याख्या कीजिए |
- प्रश्न- भारत जैसे लोकतन्त्रीय राष्ट्र में शिक्षा के उद्देश्य किस प्रकार के होने चाहिए?
- प्रश्न- शिक्षा का लोकतन्त्रीकरण क्या है? स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जनतंत्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। जनतंत्र पर शिक्षा के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में जनतन्त्र से आप क्या समझते हैं? सोदाहरण पूर्णतः स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विद्यालय में प्रजातन्त्र से आप क्या समझते हैं? विद्यालय में प्रजातान्त्रिक वातावरण बनाए रखने के लिए आप क्या प्रयास करेंगे?
- प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र और अनुशासन में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षक एवं शिक्षार्थी में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- लोकतंत्र में विद्यालयों की क्या भूमिका होती है?
- प्रश्न- लोकतंत्र में शिक्षा का अन्य पहलू क्या है?
- प्रश्न- लोकतंत्र के लिए शिक्षा की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारत का संविधान )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शिक्षा एवं प्रजातंत्र )
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं? समानता के क्षेत्र एवं भारत में यह कहाँ तक उपलब्ध है?
- प्रश्न- अनुसूचित जातियों से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं को बताइये तथा इनके समाधान के उपायों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अनुसूचित जाति की समस्याओं के समाधान के उपाय बताइये।
- प्रश्न- अल्पसंख्यक की अवधारणा बताइये। अल्पसंख्यकों की शिक्षा के लिये किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- ईसाई धर्म ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित किया है? उचित उदाहरणों की सहायता से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में सार्वभौमीकरण से क्या तात्पर्य है? शिक्षा में सार्वभौमीकरण की कितनी अवस्थायें एवं वर्तमान में इनकी आवश्यकता एवं महत्व के कारण बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा की सार्वभौमीकरण की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सार्वभौम एवं समावेशी शिक्षा में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाने में शिक्षक की भूमिका की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- भारत में अधिगम संदर्भ में व्याप्त विविधताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भाषायी विविधता के संदर्भ में अध्यापक से क्या अपेक्षाएँ होती हैं?
- प्रश्न- 'जातीय व सामाजिक विविधता तथा अध्यापक' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध से आप क्या समझते हैं? आज के युग में अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास हेतु शिक्षा का कार्य और शिक्षा की योजना कीजिए?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा का सिद्धान्त आवश्यक है समझाइये |
- प्रश्न- पाठ्यक्रम और शिक्षा विधि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अध्यापक का योगदान व स्कूल का वातावरण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विकसित करने के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना के प्रसार में यूनेस्को की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- यूनेस्को के उद्देश्य व कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? वैश्वीकरण के गुण एवं दोष बताइये।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय समझ की बाधाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के प्रमुख कारण स्क्रेच स्रोत क्या हैं? इन्हें दूर करने हेतु व्यावसायिक सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक चुनौतीपूर्ण बच्चों को विद्यालय पर समान शैक्षिक अवसर कैसे उपलब्ध कराए जा सकते हैं?
- प्रश्न- कोठारी आयोग के द्वारा प्रवेश शिक्षा के अवसर व समानता व इससे सम्बन्धित सुझाव बताइए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में शिक्षा की असमानता को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए गए?
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय आयोग के शैक्षिक अवसरों की समानता सम्बन्धी सुझावों को बताइए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान में अल्पसंख्यकों की सुविधाओं के लिये क्या प्रावधान किये गये हैं?
- प्रश्न- शिक्षा आयोग (1964-66) द्वारा शैक्षिक अवसरों की समानता के लिये दिये गये सुझाव क्या हैं?
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता में शिक्षक की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- शिक्षा के सार्वभौमीकरण में बाधक 'शैक्षिक असमानता' को दूर करने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से क्या तात्पर्य है? इसकी आवश्यकता क्यों अनुभव की गई?
- प्रश्न- शिक्षा किस प्रकार से अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना का विकास कर सकती है?
- प्रश्न- विद्यालय को समाज से जोड़ने में शिक्षक की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- लोकतान्त्रिक अन्तःक्रिया के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण में शिक्षक की क्या भूमिका हो सकती है?
- प्रश्न- आदर्श भारतीय समाज के निर्माण में शिक्षक की भूमिका।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक अवसरों की समानता )
- प्रश्न- सर्व शिक्षा के बारे में बताइये एवं इसके लक्ष्यों, क्रियान्वयन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय साक्षरता मिशन क्या है? विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सम्पूर्ण साक्षरता अभियान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री साक्षरता कार्यक्रम पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मध्याह्न भोजन योजना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कॉमन स्कूल पद्धति का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- प्रश्न- समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय के बारे में बताइये।
- प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मिड डे मील स्कीम के गुण एवं दोष की गणना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक कार्यक्रम )