बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र
अध्याय - 6
हरित लेखांकन
(Green Accounting)
हरित लेखांकन किसी देश की कृषि आय, उत्पादन तथा सामाजिक व राजनैतिक अंकगणित को इस प्रकार व्यक्त करता है जिससे कि अर्थ व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के अन्तः सम्बन्धों को स्पष्ट करने में किसी प्रकार की कठिनाई न हो। यह लेखांकन पूरे देश की कृषि से प्राप्त होने वाली आय का सही चित्र प्रस्तुत करता है। हरित लेखा वस्तुतः कृषि आय पर निर्भर करता है। अतः यह स्पष्ट है कि हरित लेखा किसी देश की अर्थ व्यवस्था के कृषि के ढाँचे के अध्ययन की रीति के अलावा और कुछ नहीं है इस प्रकार हरित लेखा वह रीति है जिसकी सहायता से सामूहिक कृषि क्रियाओं की जानकारी प्राप्त किया जाता है तथा उसका मापन किया जाता है। पिछले काफी समयों से अर्थशास्त्री सकल राष्ट्रीय उत्पादन के बिना किसी आलोचना के आर्थिक विकास का मूल मापक मानते चले आ रहे थे। वे राष्ट्रीय आय की वृद्धि को ही आर्थिक वृद्धि मानते रहे हैं परन्तु वर्तमान में इस अवधारण के विरुद्ध कई प्रकार के प्रश्न उठाये जाने लगे। ऐसे प्रश्नों में आधुनिक परिप्रेक्ष्य में वृद्धि की परिभाषा क्या हो तथा वृद्धि के वितरण पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद का प्रभाव क्या होना चाहिए आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है। विकासशील देशों में वितरण की असमानता, पर्यावरण तथा नैतिक मूल्यों के पतन की मुख्य समस्यायें हैं। यदि विकास का उद्देश्य केवल सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि करना ही माना जाये तो यह अनुचित होगा। वस्तुतः यह भी देखा जाना चाहिए कि आज वितरण में समानता, स्थाई विकास तथा मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना है। विकास की प्रक्रिया इस प्रकार से संचालित की जानी चाहिए जिससे कि प्राकृतिक संसाधनों तथा पारिस्थितिक तंत्र को कोई खतरा न हो। इससे प्रदूषण में वृद्धि न होती हो तथा मानव कल्याण बढ़ता हो। वर्तमान समय में अर्थशास्त्रियों द्वारा 'हरित-सकल राष्ट्रीय उत्पाद का सुझाव दिया जा रहा है। इस सकल राष्ट्रीय उत्पाद की अनेक विशेषतायें हैं। यह प्राकृतिक पर्यावरण का निरन्तर व स्थायी प्रयोग सुनिश्चित करता है तथा प्राकृतिक पर्यावरण के विकास के लाभों का समान रूप से वितरण करना चाहता है। पर्यावरण विचार का राष्ट्रीय आय में महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि पर्यावरण का हमारी शारीरिक संरचना, स्वास्थ्य तथा मन पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण के प्राकृतिक संसाधन जितने स्वच्छ और निर्बल होंगे उतना ही हमारा शरीर और मन स्वस्थ तथा अच्छा होगा और जब हमारा शरीर और मन स्वस्थ और अच्छा रहेगा तो प्रत्येक व्यक्ति अच्छा कार्य करेगा। जिससे उसकी आय अधिक होगी और जब उसकी आय अधिक होगी तो प्रति व्यक्ति आय भी अधिक होगी जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होगी। इस संबंध में चाणक्य की भी यह स्पष्ट मान्यता थी कि राष्ट्रीय आय की स्थिरता पर्यावरण की स्वच्छता पर निर्भर करता है। इसके विपरीत पर्यावरण के प्रदूषित होने पर हमारा जीवन भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है। जिसके फलस्वरूप प्रति व्यक्ति आय कम होती है और इसके बाद राष्ट्रीय आय भी प्रभावित होती है।
पर्यावरण तत्त्व जैसे प्राकृतिक संसाधनों आदि का राष्ट्रीय आय में योगदान होता है। अतः राष्ट्रीय आय के लेखांकन में इन्हें शामिल करके विभिन्न देशों द्वारा अपनी सार्वजनिक नीतियाँ तैयार की जाती हैं। पर्यावरणीय संरक्षण पर किया जाने वाले व्यय हमारे स्वास्थ्य को सकारात्मक ढंग से प्रभावित करता है और इसके संरक्षण से हम विभिन्न प्राकृतिक उपहारों को सुरक्षित रखते हुए इनका उपभोग कर सकते हैं। अतः राष्ट्रीय आय अंकेक्षण में पर्यावरणीय सरोकारों को सम्मिलित किया जाना आवश्यक है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- हरित लेखांकन से तात्पर्य 'कृषि से प्राप्त आय से है। हरित लेखा में कृषि आय को शामिल किया जाता है। हरित लेखा कृषि आय पर निर्भर करती है।
- हरित लेखांकन पूरे देश की कृषि से प्राप्त होने वाली आय का सही चित्र प्रस्तुत करता है। सकल घरेलू उत्पाद को कल्याण का, बढ़ती आवश्यकता का तथा कारोबार का सूचक माना जाता है।
- विकासशील देशों की आय की मुख्य समस्यायें असमानता पर्यावरण क्षरण, मूल्यों का पतन है। नार्मन बारेलग को कृषि में हरिक्रान्ति का जन्मदाता माना जाता है।
- 1970 में आपरेशन फ्लड कार्यक्रय का शुभारम्भ हुआ।
- 1995 में ग्रीन जी. एन. पी. की अवधारणा का शुभारम्भ हुई। ग्रीन जी. एन. पी. में भारत का 173वाँ स्थान है। ऑस्ट्रेलिया का ग्रीन जी. एन. पी. में प्रथम स्थान है। ग्रीन जी. एन. पी. में अन्तिम पायदान पर इथोपिया है। वर्ष 2005 में वर्षा बीमा योजना का शुभारम्भ हुआ।
- आगत-निर्गत लेखांकन की प्रमुख विशेषता दृढ़ माडल, स्थिर गुणांक मान्यता, साधन स्थानपन्नता की असम्भवता है।
- निधियों के प्रवाह लेखांकन को कृषि एवं अकृषि व्यवसाय, निगामित एवं अनिगमित व्यवसाय, स्थानीय राज्य एवं केन्द्र सरकार में शामिल किया जाता है।
- निधियों के प्रवाह लेखां की अवधारणा में सरकारी संस्थाओं वित्तीय संस्थाओं, घरेलू एवं अवित्तीय निगम को शामिल किया जाता है।
- राष्ट्रीय आय की स्थिरता पर्यावरण की स्वच्छता पर निर्भर करता है।
- पर्यावरण का सही माप पर्यावरण चेतना विकसित करके किया जा सकता है।
- यंग के अनुसार "काली तरलता वित्त का वैकल्पिक स्रोत बनकर मौद्रिक अधिकारियों की साख राशनिंग नीतियों के साथ टकराव उत्पन्न करती है।
- सार्वजनिक वित्त एवं नीति संस्थान का कथन है कि "सरकार स्वयं शीशे के मकान में रहती है क्योंकि पिछले दो दशकों में इसके द्वारा व्यय में वृद्धि ने काले धन के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।"
- प्रो. गुन्नर मिडल के अनुसार - "काले धन की समान्तर अर्थव्यवस्था पनपती जा रही है यह समस्त आयोजन को विकृत और राजनीति जीवन को विषाग्रह कर देती है।"
- निधियों के अवाह लेखों का आधार अर्थव्यवस्था में घरेलू तथा अवित्तीय निगमों, स्थनीय तथा राज्यराज्य एवं केन्द्रीय सरकारें तथा वित्तीय संस्थाओं को शामिल किया जाता है।
- राष्ट्रीय आय लेखांकन में पर्यावरण संस्कारों पर ज़ोर दिये जाने का मुख्य कारण प्राकृतिक संसाधनों का राष्ट्रीय विकास में योगदान बढ़ाना, गैर विकसित प्राकृतिक उपहारो को राष्ट्रीय विकास लेखांकन में शामिल करना तथा गैर विकसित प्राकृतिक सेवाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल करना है।
- पर्यावरण का राष्ट्रीय आय में महत्व होने का प्रमुख कारण - यह हमारी शारीरिक संरचना, स्वास्थ एवं मन पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।
- सकल घरेलू उत्पाद को अक्सर लोगों के कल्याण का सूचक माना जाता है। सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि का तात्पर्य है लोगों के कल्याण के स्तर में वृद्धि, किन्तु इसकी कुछ सीमाएं हैं जैसे— कालाबाजार अर्थव्यवस्था में मूल्य वृद्धि, आर्थिक दोष आदि।
- गैर विपणन क्रियाओं को सकल घरेलू उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता है जिसके कारण सकल घरेलू उत्पाद अपने वास्तविक स्तर पर प्रदर्शित नहीं हो पाता है।
- सकल घरेलू उत्पाद में परिवर्तन तथा आर्थिक कल्याण में परिवर्तन के बीच अपसरण होने पर भी सकल घरेलू उत्पाद अपने वास्तविक रूप में प्रकट नहीं हो पाता है।
- हरित लेखा वह रीति है जिसकी सहायता से सामूहिक कृषि क्रियाओं की जानकारी एवं मापन किया जाता है।
- विगत दीर्घकाल से अर्थशास्त्री सकल राष्ट्रीय उत्पाद को बिना किसी आलोचना के आर्थिक विकास का मूल मापक मानते आये हैं।
- आज विकासशील देशों में वितरण की समानता, पर्यावरणीय अवनयन तथा जीवन के गुणों के पतन की समस्यायें हैं।
- यदि विकास का उद्देश्य केवल सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि करना ही माना जाय तो यह अप्रासंगिक होगा।
- पर्यावरणीय तत्व जैसे प्राकृतिक संसाधन आदि का राष्ट्रीय आय में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। राष्ट्रीय आय लेखांकन में पर्यावरणीय बातों को शामिल करके देश सार्वजनिक नीतियाँ तैयार करते हैं।
- पर्यावरण द्वारा देश को बहुत सी वस्तुएँ जैसे इमारती लकड़ी, मांस-मछलियाँ, औषधियाँ, आदि मुफ्त में उपलब्ध करायी जाती है। इस कारण इन्हें राष्ट्रीय आय लेखांकन से शामिल करना आवश्यक होता है।
- पर्यावरण, गैर विक्रीत सेवाएँ जैसे वनों द्वारा जल छप्पर अथवा निमग्न पादप के द्वारा जल का शुद्धिकरण होता है अतः इन सेवाओं को भी राष्ट्रीय आय लेखांकन में शामिल करके सही राष्ट्रीय आय प्राप्त की जा सकती है।
- पर्यावरण विचार का राष्ट्रीय आय में इसलिए महत्त्व है क्योंकि पर्यावरण का हमारी शारीरिक संरचना, स्वास्थ्य और मन पर सीधा पड़ता है।
- पर्यावरण के महत्त्व को रेखांकित करते हुए चाणक्य ने कहा था कि "राष्ट्रीय आय की स्थिरता पर्यावरण की स्वच्छता पर निर्भर करती है।"
- वर्तमान समय में अर्थशास्त्रियों द्वारा 'हरित सकल राष्ट्रीय उत्पाद का सुझाव दिया जा रहा है जो पर्यावरण एवं राष्ट्रीय आय के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
- अर्थशास्त्रियों के अनुसरण हरित सकल राष्ट्रीय उत्पाद निम्न प्रकार से लाभकारी हो सकता है- (अ) प्राकृतिक पर्यावरण का निरन्तर व स्थाई प्रयोग सुनिश्चित करना, तथा (ब) प्राकृतिक पर्यावरण के विकास के लाभों का समान वितरण होना।
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- अध्याय - 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macro Economics)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
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- अध्याय - 2 राष्ट्रीय आय एवं सम्बन्धित समाहार (National Income and Related Aggregates)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 राष्ट्रीय आय लेखांकन एवं कुछ आधारभूत अवधारणाएँ (National Income Accounting and Some Basic Concepts)
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 4 राष्ट्रीय आय मापन की विधियाँ (Methods of National Income Measurement)
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 5 आय का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow of Income)
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 6 हरित लेखांकन (Green Accounting)
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- अध्याय - 7 रोजगार का प्रतिष्ठित सिद्धान्त (The Classical Theory of Employment)
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- अध्याय - 8 कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (Keynesian Theory of Employment)
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- अध्याय - 9 उपभोग फलन (Consumption Function)
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- अध्याय - 10 विनियोग गुणक (Investment Multiplier)
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- अध्याय - 11 निवेश एवं निवेश फलन(Investment and Investment Function)
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- अध्याय - 12 बचत तथा निवेश साम्य (Saving and Investment Equilibrium)
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- अध्याय - 13 त्वरक सिद्धान्त (Principle of Accelerator)
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- अध्याय - 14 ब्याज का प्रतिष्ठित, नव-प्रतिष्ठित एवं कीन्सीयन सिद्धान्त (Classical, Neo-classical and Keynesian Theories of Interest)
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- अध्याय - 15 ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त (IS-LM व्याख्या) Modern Theory of Interest (IS-LM Analysis )
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- अध्याय - 16 मुद्रास्फीति की अवधारणा एवं सिद्धान्त (Concept and Theory of Inflation)
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- अध्याय - 17 फिलिप वक्र (Philips Curve)
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