बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 |
बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र
अध्याय - 8
कीन्स का रोजगार सिद्धान्त
(Keynesian Theory of Employment)
शुम्पीटर के शब्दों में व्यावहारिक कीन्सवाद ऐसा नव पादप है जिसे विदेशी धरती में नहीं रोपित किया जा सकता वहाँ वह मुरझा जाता है और मुरझाने से पहले जहरीला बन जाता है। परन्तु यदि इसे इंग्लैण्ड की धरती में छोड़ा जाये, तो यह नव पादप बहुत स्वस्थ रहता है और फल तथा छाया दोनों ही प्रदान करने का आश्ववासन देता है। यह बात कीन्स द्वारा की गई नसीहत के प्रत्येक अंश के सम्बन्ध में सत्य है।
कीन्सवादी अर्थव्यवस्था निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है जो कि अल्पविकसित देशों के सम्बन्ध में उसकी व्यवहार्यता को परिसीमित करती है
यह प्रभावी माँग के अभाव के कारण नहीं बल्कि पूँजीगत साधनों की कमी का परिणाम होती है। चिरकालिक बेरोजगारी के समाधान पर कीन्स ने विचार नहीं किया है। अतः चक्रीय बेरोजगारी तथा आर्थिक अस्थिरता के सम्बन्ध में कीन्स की धारणायें अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में लागू नहीं होती।
कीन्स का अर्थशास्त्र अल्पकालीन विश्लेषण है जिसमें कीन्स वर्तमान कुशलता तथा उपलब्ध श्रम की मात्रा, तकनीक, उपभोक्ता की रुचि, फैशन व स्वभाव आदि को दिया हुआ मान लेता है, जबकि विकास अर्थशास्त्र दीर्घकालीन विश्लेषण है जिसमें यह सब परिवर्तित होते रहते हैं।
कीन्स अर्थशास्त्र की धारणा है कि अर्थव्यवस्था में श्रम तथा अन्य पूरक साधनों का आधिक्य रहता है, जबकि अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में आर्थिक सक्रियता स्थैतिक होती है तथा पूँजी व अन्य साधनों का अभाव पाया जाता है।
कीन्सवादी विश्लेषण के अनुसार श्रम व पूँजी दोनों एवं साथ सेवामुक्त होते हैं, जबकि अल्पविकसित देशों में ऐसा नहीं होता। वहाँ जब श्रम बेरोजगार होता है, पूँजी की अत्यधिक कमी पायी जाती है।
कीन्स द्वारा प्रतिपादित विभिन्न धारणाओं की अल्पविकसित देशों में व्यवहार्यता प्रभावी माँग, उपभोग प्रवृत्ति, गुणक, पूँजी की सीमान्त उत्पादकता, बचत प्रवृत्ति, ब्याज की दर।
प्रतिष्ठित रोजगार का सिद्धान्त प्रो. जे. बी. से. के बाजार नियम पर आधारित है कि पूर्ति स्वयं अपनी माँग उत्पन्न कर लेती है। अतः सामान्य उत्पाद एवं बेरोजगारी की दशाएँ उत्पन्न नहीं हो सकती हैं। प्रतिष्ठित रोजगार का सिद्धान्त स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था और पूर्ण प्रतियोगिता पर आधारित है।
इसके विपरीत प्रो. कीन्स ने प्रतिष्ठित सिद्धान्तों की मान्यताओं को ठुकराते हुए प्रभावपूर्ण माँग का विचार प्रस्तुत किया। इसे निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है
आर्थिक प्रणाली स्वचालित नहीं, मजदूरी में कटौती एवं रोजगार में वृद्धि, अर्द्ध- रोजगार सन्तुलन की व्याख्या, समग्र दृष्टिकोण से व्याख्या, दीर्घकालीन सन्तुलन, मुद्रा एवं मूल्य के सिद्धान्त का समन्वय, सन्तुलित बजट के स्थान पर घाटे के बजट का प्रतिपादन, रोजगार बढ़ाने में सार्वजनिक ब्याज एवं बचत की भूमिका, पूँजीवादी प्रणाली में संशोधन।
प्रो. कीन्स के रोजगार का महत्व यह निम्नलिखित है -
(a) सैद्धान्तिक महत्व - समष्टि मूलक व्याख्या, अल्प-रोजगार सन्तुलन की व्याख्या, सामान्य सिद्धान्त, विनियोग का महत्व |
(b) व्यावहारिक महत्व - अर्थव्यवस्था में लागू होना, राजकीय हस्तक्षेप, मजदूरी कटौती और रोजगार से के बाजार नियम का विरोध।
कीन्स ने प्रभावपूर्ण माँग के सम्बन्ध में कहा है कि- "प्रभावपूर्ण माँग समाज के रोजगार स्तर को निर्धारित करती है क्योंकि ज्यों-ज्यों माँग बढ़ती है, त्यों-त्यों कुल पूर्ति बढ़ती है, जहाँ कुल माँग व कुल पूर्ति एक-दूसरे को काटते हैं, वही बिन्दु पूर्ण रोजगार का बिन्दु होता है।"
कीन्स के रोजगार सिद्धान्त की आलोचनाएँ इसका वर्णन निम्नलिखित हैं -
असामान्य सिद्धान्त, बेरोजगारी की समस्या का समाधान नहीं, अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित, प्रभावपूर्ण माँग और रोजगार में सीधा सम्बन्ध नहीं, दीर्घकाल पर ध्यान न देना।
कीन्स द्वारा प्रतिपादित रोजगार के सिद्धान्त की मान्यतायें -
(i) बेरोजगारी ऐच्छिक नहीं होती है।
(ii) इसके अन्तर्गत श्रम की मात्रा, उत्पादन, उत्पादन विधि, उत्पादन संगठन आदि को स्थिर माना गया है।
(iii) इसमें कच्चा माल आदि कार्यवाहक पूँजी की पूर्ति भी लोचदार होती है।
"यदि किसी देश की समग्र माँग को बढ़ाने के बावजूद भी उत्पादन और रोजगार में कोई वास्तविक वृद्धि न हो तो यह पूर्ण रोगार की दशा कहलाएगी।" - कीन्स
एक साधारण केन्जीयन मॉडल में सरकारी व्यय गुणकों का निर्धारण -
1
ΔY = ------- ΔG
1-C
ΔΥ 1
या व्यय गुणक Kg = -------- = ---------
ΔG 1-C
जो यह बताता है कि आय में परिवर्तन (ΔY) बराबर है गुणक (1 / 1-C) गुणा स्वायत्त सरकारी व्यय में परिवर्तन (ΔG) के।
यदि c = 1/3 तो
1
Kg = ------ = 3
12/3
सरकारी व्यय गुणक इकाई से अधिक होता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- कीन्स का सिद्धान्त प्रत्येक समाज व अर्थव्यवस्था पर लागू नहीं होता है। यह केवल उन्नत प्रजातन्त्रात्मक पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं पर ही लागू होता है।
- कीन्सवादी अर्थशास्त्र चक्रीय बेरोजगारी की धारणा पर आधारित है जो मन्दी के दौरान होती है। यह प्रभावी माँग की कमी से उत्पन्न होती है और माँग के स्तर में वृद्धि करके बेरोजगारी को
- दूर किया जा सकता है। परन्तु अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी चक्रीय न होकर चिरकालिक होती है।
- कीन्स का विचार बन्द अर्थव्यवस्था की धारणा पर आधारित है जबकि अल्पविकसित अर्थव्यवस्थायें खुली अर्थव्यवस्थायें होती हैं जिनके विकास में विदेशी व्यापार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- प्रभावी माँग का सिद्धान्त उन अर्थव्यवस्थाओं पर लागू होता है जहाँ अति बच्चों के कारण बेरोजगारी पैदा होती है और ऐसी स्थिति में विविध मौद्रिक तथा राजकोषीय तरीकों से उपभोग तथा विनियोग स्तरों में वृद्धि करके बेरोजगारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है। यदि गुणक सिद्धान्त को (विभिन्न मान्यताओं के रहते हुए) अल्पविकसित देशों पर लागू किया जाये तो गुणक का मूल्य किसी उन्नत देश के गुणक मूल्य से भी बहुत अधिक होगा।
- कीन्स के अनुसार बचत एक सामाजिक दोष है क्योंकि बचत की अधिकता प्रभावी माँग में कमी लाती है।
- कीन्स ने ब्याज के तरल पसन्दगी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। पसन्दगी के निर्धारक तत्व है लेन-देन उद्देश्य व दूरदर्शिता उद्देश्य और सट्टा उद्देश्य। कीन्स के अनुसार केवल सट्टा उद्देश्य ही ब्याज की दर को प्रभावित करता है, जबकि अल्पविकसित देशों में लेन-देन तथा दूरदर्शिता उद्देश्यों के लिए तरलता पसन्दगी अधिक होती है और सट्टा उद्देश्य से कम। प्रो. ए. के. दास गुप्ता के अनुसार, "कीन्स के सामान्य सिद्धान्तों की क्रियाशीलता अल्पविकसित देशों में अत्यन्त सीमित है।"
- डॉ. वी. के. आर. वी. राव के अनुसार, "कीन्स के यन्त्रों का अल्पविकसित देशों की आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए अन्धाधुन्ध प्रयोग बहुत ही घातक सिद्ध हुआ है।" प्रतिष्ठित अर्थशासियों का मानना है कि आर्थिक प्रणाली स्वचालित एवं स्वयं समायोजित होने वाली होती है। उनकी यह मान्यता प्रो. से के बाजार नियम 'पूर्ति स्वयं अपनी माँग उत्पन्न कर लेती है' पर आधारित है।
- प्रो. पीगू का मानना था कि मजदूरी में कटौती करके रोजगार में वृद्धि की जा सकती है, किन्तु इन्होंने इसका सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण से खण्डन किया है।
- प्रो. कीन्स के अनुसार, "समाज में सदैव पूर्ण रोजगार से कम की स्थिति पायी जाती है तथा इन्होंने अर्द्ध-सन्तुलन की धारणा प्रस्तुत की है।”
- प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के लिए घाटे का बजट अव्यवहारिक था। अतः उन्होंने सन्तुलित बजट की अवधारणा का प्रतिपादन किया। इसके साथ इन्होंने मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति की अवहेलना की।
- कीन्स का सिद्धान्त रोजगार के सभी स्तरों की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट किया है कि किन तत्वों पर पूर्ण रोजगार निर्भर करता है। केन्स ने मुद्रा प्रसार एवं मुद्रा संकुचन की स्थितियों में भी रोजगार के सिद्धान्त की व्याख्या की है।
- प्रो. कीन्स ने अपने रोजगार के सिद्धान्त में विनियोग को रोजगार निर्धारक के रूप में महत्वपूर्ण स्थान दिया है।
- प्रो. पीगू की मान्यता यह थी कि रोजगार में वृद्धि करने के लिए मजदूरी में कटौती करना आवश्यक है। प्रो. केन्स ने इसका विरोध करते हुए बताया है कि मजदूरी में कटौती करने से आय में कमी होगी, जिससे प्रभावपूर्ण माँग में भी कमी आयेगी तथा उत्पादन कम होगा और रोजगार भी कम होगा।
- प्रो. डी. डिलाई के अनुसार, "केन्स के रोजगार सिद्धान्त का प्रथम प्रारम्भिक बिन्दु प्रभावपूर्ण माँग है।"
- "प्रभावपूर्ण माँग उस सम्पूर्ण व्यय को बताती है जोकि रोजगार के किसी सन्तुलन स्तर पर किये गये कुल उत्पादन पर किया जाता है।
- प्रभावपूर्ण माँग उपभोग क्रिया के साथ-साथ विनियोग क्रिया पर भी निर्भर करती है।
- कुल माँग कीमत वह सकल राशि है जो एक निर्धारित रोजगार के स्तर पर होने वाले सकल उत्पादन को बेचकर प्राप्त करने की आशा होती है।
- कुल पूर्ति कीमत (Aggregate Supply Price) - कुल पूर्ति कीमत वह राशि या विक्रय-प्राप्ति (Sale Proceeds) है जोकि रोजगार के विशेष स्तर पर उत्पादित माल को बेचने से उद्यमकर्ताओं को अवश्य प्राप्त होनी चाहिए।
- कीन्स का सिद्धान्त उचित रोजगार पर ध्यान नहीं देता है। कीन्स ने अपने इस सिद्धान्त में अस्थायी बेरोजगारी पर कोई ध्यान नहीं दिया है इन्होंने केवल क्रीय बेरोजगारी पर बल दिया है। कीन्स ने अपने सिद्धान्त में दीर्घकाल की अवहेलना करते हुए कहा है कि दीर्घकाल में हम सभी की मृत्यु हो जाती है।.
- कीन्स ने अपने इस सिद्धान्त में इसी समस्या का विश्लेषण किया है कि किस प्रकार चक्रीय उच्चावचनों में स्थिरता प्रदान की जाए, किन्तु अल्पविकसित देशों की प्रमुख समस्या "आर्थिक विकास" की है। अल्प विकसित देशों में बेरोजगारी का प्रमुख कारण पूँजी की अपर्याप्तता है। इसी कारण से देश में हर समय बेरोजगारी की समस्या बनी रहती है।
- प्रतिष्ठित विचारकों ने बेरोजगारी दूर करने के सम्बन्ध में यह सुझाव दिया कि चालू आय के प्रवाह में से बचत करके पूँजीगत वस्तुओं की वृद्धि की जाए, जिससे उद्योगों की स्थापना की जा सके और अधिक से अधिक श्रमिकों को रोजगार की प्राप्ति हो सके।
- केन्ज का त्रिक्षेत्र मॉडल निवेश और उपभोग पर निर्भर करता है जिसमें सरकारी व्यय और कर शामिल करने से त्रि-क्षेत्र गुणक मॉडल बन जाता है।
- जब निजी उपभोग और स्वायत्त निवेश में, वस्तुओं और सेवाओं पर सरकारी निवेश जोड़ देने से आय में जो वृद्धि होती है, उसे सरकारी व्यय गुणक कहते हैं।
|
- अध्याय - 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macro Economics)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 2 राष्ट्रीय आय एवं सम्बन्धित समाहार (National Income and Related Aggregates)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 3 राष्ट्रीय आय लेखांकन एवं कुछ आधारभूत अवधारणाएँ (National Income Accounting and Some Basic Concepts)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 4 राष्ट्रीय आय मापन की विधियाँ (Methods of National Income Measurement)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 5 आय का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow of Income)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 6 हरित लेखांकन (Green Accounting)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 7 रोजगार का प्रतिष्ठित सिद्धान्त (The Classical Theory of Employment)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 8 कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (Keynesian Theory of Employment)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 9 उपभोग फलन (Consumption Function)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 10 विनियोग गुणक (Investment Multiplier)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 11 निवेश एवं निवेश फलन(Investment and Investment Function)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 12 बचत तथा निवेश साम्य (Saving and Investment Equilibrium)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 13 त्वरक सिद्धान्त (Principle of Accelerator)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 14 ब्याज का प्रतिष्ठित, नव-प्रतिष्ठित एवं कीन्सीयन सिद्धान्त (Classical, Neo-classical and Keynesian Theories of Interest)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 15 ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त (IS-LM व्याख्या) Modern Theory of Interest (IS-LM Analysis )
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 16 मुद्रास्फीति की अवधारणा एवं सिद्धान्त (Concept and Theory of Inflation)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला
- अध्याय - 17 फिलिप वक्र (Philips Curve)
- वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- उत्तरमाला