बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन बीए सेमेस्टर-2 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन - सरल प्रश्नोत्तर
कौटिल्य का युद्ध दर्शन
(Kautilya's Philosophy of War)
प्रश्न- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित सैन्य पद्धति पर प्रकाश डालिए।
अथवा
"कौटिल्य एक प्रतिभाशाली सैन्य विशेषज्ञ था। उसके सैन्य विचार एवं प्रचार कई शताब्दियों के लिए नियम बन गये। समीक्षा कीजिए।
अथवा
"कौटिल्य एक प्रतिभाशाली सैन्य विशेषज्ञ था।" इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
कौटिल्य द्वारा वर्णित सैन्य व्यवस्था की विवेचना कीजिये।
अथवा
कौटिल्य के युद्ध दर्शन का उल्लेख कीजिए।
अथवा
कौटिल्य द्वारा वर्णित सैन्य संगठन एवं युद्धकला का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. कौटिल्य के युद्ध के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
2. कौटिल्य द्वारा किये गये युद्धों के वर्गीकरण को लिखिए।
3. "कौटिल्य एक प्रतिभाशाली सैन्य विशेषज्ञ था।' समीक्षा कीजिए
उत्तर -
(Kautilya's Philosophy of War)
कौटिल्य प्राचीन भारत के महान युद्धशास्त्री, कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ तथा दूरदर्शी थे। कौटिल्य ने अपने युद्ध सम्बन्धी विचारों तथा प्राचीन कालीन यौद्धिक क्रियाओं के बारे में स्वरचित ग्रन्थ अर्थशास्त्र में वर्णन किया है। कौटिल्य ने युद्ध सम्बन्धी समस्त जानकारियों तथा सैन्य क्रियाओं को अपने इस ग्रन्थ अर्थशास्त्र में विस्तृत रूप से लिखा है। अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने सैन्य संगठन, सैन्य प्रशिक्षण, शस्त्रास्त्र, दुर्ग निर्माण तथा व्यूहरचना सम्बन्धी विचारों को बहुत ही सुन्दर ढंग से इस ग्रन्थ में वर्णित किया है। कौटिल्य ने भारत का सैन्य विकास करने में अपने इन विचारों का महत्वपूर्ण सहयोग दिया है। कौटिल्य के युद्ध दर्शन सम्बन्धी विचार निम्नलिखित हैं-
1. सैन्य संगठन एव प्रशासन सम्बन्धी विचार - कौटिल्य के अनुसार सैन्य संगठन का निर्माण पैदल, अश्व, गज तथा रथ सेना को मिलाकर किया है। इन सेनाओं के कार्य इनकी क्षमताओं के आधार पर अलग-अलग कार्यों के लिए किया जाता है। रथ सेना एक प्रकार से परिवहन कार्य में भी सहयोग प्रदान करती थी। कौटिल्य के शब्दों में, "अपनी सेना की रक्षा, शत्रु सेना के मार्ग में रुकावट डालना, अपने वीरों को शत्रु से छुड़ाना शत्रु सैनिकों को पकड़ना तथा भयंकर शोर तथा गति के द्वारा शत्रु सेना में भय उत्पन्न करना आदि रथ सेना के कार्य है। हस्ति सेना के कार्यों को कौटिल्य ने शत्रु सेना को कुचलना तथा मार्ग की रुकावटों को दूर करना तथा दुर्गों की दीवारों तथा दरवाजों को तोड़ना बताया है।
कौटिल्य ने कर्मभेद के अनुसार भी हाथियों को चार भागों में बांटा है -
(i) दम्य (शिक्षा द्वारा दमन करने योग्य),
(ii) सन्नाह (युद्धोपयोगी)
(iii) उपवाह्न (सवारी के योग्य) तथा
(iv) ब्याला (घातक स्वाभाव का)।
कौटिल्य ने अश्व सेना के कार्यों को बताते हुए कहा है कि "अश्वारोही सेना शत्रु पर प्रथम प्रहार, शत्रु सेना के भीतर घुसकर भय उत्पन्न करना, शत्रु का कोष लूटना, भागती हुई शत्रु सेना का पीछा करना तथा शत्रु सैनिकों को बन्दी बनाने का कार्य करती है। कौटिल्य ने घोड़ों के वर्गीकरण एवं प्रशिक्षण का भी वर्णन किया है।
पैदल सेना के सामरिक प्रयोग के विषय में कौटिल्य ने इतना ही लिखा है कि इसका कर्त्तव्य सम-विषम आदि सभी प्रदेशों और ऋतुओं में शस्त्रधारण और युद्धोपयोगी व्यायाम करना है। कौटिल्य ने पैदल सेना का कोई विशेष महत्व नहीं बताया है, परन्तु पैदल सेना के विभिन्न कार्यों को देखते हुए पैदल सेना के छः प्रकारों का भी वर्णन किया है -
(1) मौल बल
(2) भृतक बल
(3) श्रेणी बल
(4) मित्र बल
(5) अमित्र बल
(6) आटवी बल।
पैदल सेना अन्य सेनांगों की सहयोगी सेना होती थी इसका कार्य सेना के शिविर आदि का प्रबन्ध करना, आवश्यकताओं की पूर्ति करना पैदल सेना का कार्य होता था।
कौटिल्य ने चार सहायक बलों का भी उल्लेख अर्थशास्त्र में किया है
(i) देशिक बल
(ii) विष्टि बल
(iii) चर बल
(iv) नौ बल।
2. युद्ध नीति एवं सामरिकी सम्बन्धी विचार - कौटिल्य ने युद्ध नीति एवं सामरिकी सम्बन्धी विचारों को भी अर्थशास्त्र में प्रस्तुत किया है। कौटिल्य ने दो प्रकार के युद्धों का वर्णन किया है-
(i) धर्म युद्ध तथा
(ii) कूट युद्ध।
कौटिल्य के अनुसार धर्म युद्ध में अनेकों नियमों का प्रयोग किया जाता था। इस प्रकार के युद्ध में योद्धा अपने समान शक्ति के योद्धा से युद्ध करता था। घायल, निःशस्त्र शत्रु पर प्रहार धर्म युद्ध के विरुद्ध माना जाता था। इस प्रकार के युद्धों में शत्रु को धोखा नहीं दिया जाता था।
कूट युद्ध में सभी प्रकार के कौशल, कूट युक्ति, छल-कपट, धोखाधड़ी आदि का प्रयोग करके किसी भी प्रकार शत्रु को पराजित करने में किया जाता था। कौटिल्य ने इस प्रकार के युद्धों का बड़ा विस्तृत वर्णन किया है। आग लगा देना, कुएं का पानी विषैला कर देना। शत्रु जब थका हुआ, सोया हुआ हो तो उस पर अचानक आक्रमण करके उसे नष्ट कर देना आदि कार्यवाहियाँ की जा सकती हैं।
3. व्यूहरचना (Tactical Formatic) - सेना की व्यूहरचना करने का पता हमें प्राचीन भारत के वैदिक काल से ही चलता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में व्यूह रचना के विषय में कई अध्याय है। कौटिल्य ने व्यूहों के बहुत से भेद बताये हैं। उसके अनुसार व्यूह सम या विषम किसी प्रकार का होता है। इन दोनों प्रकार के व्यूहों के 5 भेद हैं अर्थात् रथ हाथी, अश्व, पैदल तथा मिश्रित व्यूह। रथ व्यूह में तीन- तीन की पंक्तियों में नौ रथ आगे और इसी प्रकार से नौ-नौ रथ दो पक्षों व दोनों कक्षाओं में रखे। इस प्रकार रथ व्यूह में पैंतालीस रथ होते हैं। इसी प्रकार से अन्य सेनांगों के व्यूह बनते हैं।
सम और विष व्यूह के अतिरिक्त कौटिल्य ने चार प्रकार के व्यूहों का उल्लेख किया है -
(i) दण्ड - व्यूह
(ii) भोग- व्यूह
(iii) मंडलाकार - व्यूह
(iv) असंहत - व्यूह
कौटिल्य ने इन चार प्रकार के व्यूहों के अनेक भेद बताये हैं। कौटिल्य ने लिखा है कि व्यूहरचना इस प्रकार की जाये जिससे उसका मुख दक्षिण की ओर न पड़े, सूर्य व्यूह के पृष्ठ भाग पर पड़े और वायु उसकी विपरीत दिशा में न बहे। सम भूमि पर दंडाकार एवं मंडलाकार व्यूह बनाये। विषम भूमि पर भोग या असंहत व्यूह की रचना करे।
4. शस्त्रास्त्र सम्बन्धी विचार- कौटिल्य ने दो प्रकार के हथियारों का वर्णन किया है। स्थिर यंत्र तथा चल यंत्र जिनमें क्रमशः 10 तथा 17 प्रकार के हथियार होते थे। जिनमें मुगदर, असि, वज्र, शतघ्नी तथा पट्टिश हथिया आदि प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त कौटिल्य ने लगभग 11 प्रकार के भालों, 5 प्रकार के धनुष-बाण, 3 प्रकार के आग्नेयास्त्र, 4 प्रकार के खडग या तलवारों आदि का वर्णन किया है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र से पता चलता है कि कवच अनेक प्रकार के होते थे। ये सींग, लोहा अथवा खाल किसी भी चीज से बनाये जा सकते थे। कवच बनाने के लिए कछुआ, गैंडा, भैंस, हाथी आदि जानवरों की खाल का बहुधा प्रयोग किया जाता था। इन कवचों में प्रायः शिरस्त्राण, कंठ त्राण, वारपाश, कणक, वारदान तथा नागेन्द्रिक कवच शरीर पर ऊपर से नीचे तक क्रमानुसार पहने जाते थे।
5. दुर्ग तथा शिविर निर्माण सम्बन्धी विचार - कौटिल्य ने दुर्ग तथा शिविर निर्माण सम्बन्धी कार्यों को अर्थशास्त्र में वर्णित किया है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि "राजा को चाहिए कि वह अपने देश के चारों तरफ युद्धोपयोगी एवं दैवनिर्मित पर्वत, नदी, वन व मरुस्थल जैसे विकट स्थानों को दुर्ग रूप से परिणत कर दे।' इस प्रकार प्राकृतिक दुर्ग चार प्रकार के बताये हैं -
(i) पर्वत दुर्ग - पर्वत व कन्दराओं से घिरा दुर्ग।
(ii) जल दुर्ग - जो किसी नदी के मध्य में स्थित हो या चारों ओर जल से घिरा हो।
(iii) वन दुर्ग - जिसके चारों ओर सघन वृक्ष तथा कांटेदार झाड़ियाँ हों।
(iv) धान्वन दुर्ग (Desert Fort) - जो मरुस्थलीय प्रदेश के मध्य में स्थित हो या जल और घास आदि से रहित हो।
इन दुर्गों में पर्वत दुर्ग प्रतिरक्षा की दृष्टि से सर्वोत्तम माना जाता था। इसके पश्चात् जल-दुर्ग को महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। आपत्ति के समय राजा और जनता आत्मरक्षा के लिए दुर्गों में शरण लेते थे।
दुर्गों के साथ ही कौटिल्य ने शिविर निर्माण संबंधी विचार भी प्रकट किये हैं। कौटिल्य ने लिखा है कि 'वास्तु विद्या के पारंगत पुरुषों द्वारा अनुमोदित वस्तु भूमि पर नायक (सेनापति), वर्धकि (राजगीर) तथा अन्य महत्वपूर्ण अधिकारी गोलाकार, लम्बा, चौकोर अथवा निर्माण भूमि की स्थिति के अनुसार आकार का चार फाटक और उत्तर दक्षिण के लम्बान में तीन, कुल छः मार्गों और नौ मुहल्लों युक्त स्कन्धाकार सैनिक शिविर डालें। शिविर के भीतर आने और जाने वालों के पास राजमुद्रांकित आज्ञा-पत्र हो। जो सैनिक अपना स्थान छोड़कर इधर-उधर घूमता पाया जाये तो उसे शून्यपाल कैद करके कारागार में डाल दे।
इस प्रकार सैनिक शिविर में कड़ा अनुशासन बनाये रखने के नियमों को कौटिल्य ने लागू करने का विचार दिया है।
युद्ध संचालन - कौटिल्य ने युद्ध संचालन के लिए कुछ विभागों का वर्णन किया है -
1. युद्ध समिति (War Council) - कौटिल्य ने लिखा है कि "युद्ध से पूर्व राजा तीन या चार मंत्रियों के साथ मंत्रणा करेगा। युद्ध से पूर्व युद्ध विषयक बातों पर परामर्श देन वाली एक समिति होती थी जिसमें राजा लोग किसी भी अभियान से पूर्व, तथा उसके दौरान इस समिति के साथ विचार-विमर्श करते थे।
2. युद्ध वित्त विभाग (War Finance) - युद्ध के लिए उचित वित्तीय व्यवस्था का प्रबन्ध युद्ध वित्त विभाग का कर्त्तव्य होता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि सेना को सन्तुष्ट रखने तथा शक्तिशाली बनाये रखने के लिए सैनिकों को नियमित रूप से वेतन दिया जाना आवश्यक है। राज्य की वित्तीय व्यवस्था ठीक रखने के लिए कौटिल्य ने लिखा है कि, "जब राजा युद्ध यात्रा के समय अपनी सेना एकत्र करे तो व्यापारी (वेषधारी गुप्तचर) युद्ध के उपकरण स्वरूप सब प्रकार की वस्तुयें सैनिकों को दुगुने दामों पर इस शर्त पर बेचे कि युद्ध के बाद उनका दाम उन्हें मिल जायेगा। इस प्रकार राजकीय व्यापारी वस्तुएँ खप जायेंगी और योद्धाओं को वेतन के रूप में दिया हुआ बहुत सा धन फिर से राजकोष में लौट आयेगा
3. आयुधागार (Arsenal) - कौटिल्य ने आयुधागार पर एक अध्याय लिखा है और इस विभाग के प्रमुख अधिकारी आयुधागाराध्यक्ष के कर्त्तव्यों का निरूपण करते हुए कहा है कि "आयुधागाराध्यक्ष युद्धोपयोगी दुर्ग निर्माण के लिए आवश्यक सामान, अस्त्र-शस्त्र, कवच, हाथी व रथ सामग्री को कुशल कारीगरों के द्वारा निर्माण करवाये।"
अस्त्र-शस्त्र का सही मूल्यांकन तथा उपयोगिता और चुनाव करना चाहिए। आयुधागार में जिन वस्तुओं को रखा जाये उन्हें सुरक्षित रखना चाहिए। इन वस्तुओं को उचित मात्रा में धूप और हवा मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए।
4. विष्टि विभाग (Commissariat) - विष्टि विभाग का कार्य सैनिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति करना तथा प्रबन्धात्मक व्यवस्था करना होता है। कौटिल्य ने विष्टि विभाग को युद्ध संचालन के समय अति महत्वपूर्ण विभाग बताया है। कौटिल्य ने इस विभाग में चिकित्सक, मनोरंजन, परिवहन आदि की सुविधायें होना बताया है। यह विभाग युद्ध के समय सौनिकों तक आपूर्ति करने का कार्य करता है। इस विभाग की मदद से युद्ध के संचालन में कोई बाधा नहीं पहुंचती है।
5. गुप्तचर व्यवस्था - प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था में तथा युद्ध में शत्रु की गतिविधियों के विषय में निरन्तर सूचनायें प्राप्त करने के लिए गुप्तचरों का प्रयोग किया जाता था। कौटिल्य ने कूच करती हुई सेना के साथ शिविरों में तथा युद्धस्त सेना के साथ भी गुप्तचरों के होने की बात कही है। कौटिल्य ने एक स्थान पर लिखा है कि "शत्रु के किले के अन्दर व्यापारी या गृहस्थ के रूप में रहकर गुप्तचर उसके पोषण के स्रोत, भंडार तथा अन्न आदि को नष्ट कर दे।'
युद्ध के समय में यह गुप्तचर वेष-भूषा बदलकर शत्रु की सेना में घुस जाते थे और शत्रु की योजनाओं और उद्देश्यों को जानने का प्रयास करने और महत्वपूर्ण सूचनाएं अपनी सेना को भेजते रहना इनका कार्य होता था।
कौटिल्य ने गुप्तचरों के विभिन्न रूपों को निम्नलिखित प्रकार से बताया है -
(1) कापटिक (कपट वृत्ति छात्र),
(2) गृहपति (गृहस्थ)
(3) उदास्थित (उदासीन सन्यासी),
(4) तापस (तपस्वी).
(5) वैदेहिक (वाणिक)
(6) रसद (विष देने वाला) तथा भिक्षु की (सन्यासिनी) आदि यह चर सन्देश भेजने के लिए प्रयोग करते थे।
युद्ध-स्थल एवं युद्धकाल - कौटिल्य ने इस बात का भी निरूपण किया है कि किस प्रकार के युद्ध स्थल में किस प्रकार की सेना का प्रयोग किया जाये? उसके अनुसार जिस प्रदेश में पुष्कल जल हो और जिस समय वर्षा हो रही हो, वहाँ गज सेना का प्रयोग करना चाहिए। जिस प्रदेश में जल की कमी हो वहाँ ऊंट तथा घोड़ों की सेना का प्रयोग किया जाये।
कौटिल्य ने आगे लिखा है कि जिस देश में विशेष रूप से गर्मी अधिक पड़ती हो और जहाँ पशुओं के लिए घास, चारा, ईंधन और जल बहुत थोड़ा मिलता हो, उस देश पर हेमन्त काल में चढ़ाई की जाये। जिस देश में निरन्तर वर्षा होती हो, जहाँ बड़े गहरे सरोवर हो और जहाँ वृक्षों की झुरमुट अधिक हो। उस देश में ग्रीष्म ऋतु में आक्रमण किया जाये।
निष्कर्ष - कौटिल्य के युद्ध-दर्शन सम्बन्धी विचारों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकलता है कि कौटिल्य महान युद्धशास्त्री होने के साथ कूटनीतिज्ञ तथा दूरदर्शी व्यक्ति तथा एक प्रतिभाशाली सैन्य विशेषज्ञ था। कौटिल्य ने युद्ध क्षेत्र में अपने विचारों का महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आधुनिक युग के युद्धों में भी कौटिल्य की अर्थशास्त्र में लिखे विचारों को बहुत महत्व दिया जाता है तथा आधुनिक युद्धों में उनके विचार महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
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- प्रश्न- वैदिककालीन सैन्य पद्धति एवं युद्धकला का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य एवं पुराणकालीन सैन्य पद्धति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में गुप्तचर व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए गुप्तचरों के प्रकार तथा कर्मों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राजदूतों के कर्त्तव्यों का विशेष उल्लेख करते हुए प्राचीन भारत की युद्ध कूटनीति पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- समय और कालानुकूल कुरुक्षेत्र के युद्ध की अपेक्षा रामायण का युद्ध तुलनात्मक रूप से सीमित व स्थानीय था। कुरुक्षेत्र के युद्ध को तुलनात्मक रूप में सम्पूर्ण और 'असीमित' रूप देने में राजनैतिक तथा सैन्य धारणाओं ने क्या सहयोग दिया? समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक कालीन "दस राजाओं के युद्ध" का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैदिकयुगीन दुर्गों के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन सैन्य संगठन पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सैन्य पद्धति का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- भारतीय सैन्य पद्धति के अध्ययन के स्रोत कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्धों के वास्तविक कारण क्या होते थे?
- प्रश्न- पौराणिक काल के अष्टांग बलों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास में कितने प्रकार के राजदूतों का उल्लेख है? मात्र नाम लिखिये।
- प्रश्न- धनुर्वेद के अनुसार आयुधों के वर्गीकरण पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्ध के कौन-कौन से नियम होते थे?
- प्रश्न- महाकाव्यकालीन युद्ध के प्रकार एवं नियमों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक काल के रण वाद्य यन्त्रों के बारे में लिखिये।
- प्रश्न- वैदिककालीन दस राजाओं के युद्ध का क्या परिणाम हुआ?
- प्रश्न- पौराणिक काल में युद्धों के क्या कारण थे?
- प्रश्न- वैदिक काल की रथ सेना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन काल में अश्व सेना के कार्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में राजूदतों के कार्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय सेना के युद्ध के नियमों को बताइये।
- प्रश्न- किन्हीं तीन प्रकार के प्राचीन हथियार एवं दो प्रकार के कवचों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- धर्म युद्ध से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- किलों पर विजय प्राप्त करने की विधियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- झेलम के संग्राम (326 ई.पू.) में पोरस की पराजय के कारणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- झेलम के संग्राम से क्या सैन्य शिक्षाएं प्राप्त हुई?
- प्रश्न- झेलम के संग्राम के समय भारत की यौद्धिक स्थिति का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सिकन्दर की आक्रमण की योजना की समीक्षा करो।
- प्रश्न- पोरस तथा सिकन्दर की सैन्य शक्ति की तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सिकन्दर तथा पुरू की सेना का युद्ध किस रूप में प्रारम्भ हुआ?
- प्रश्न- सिकन्दर तथा पोरस की सेना को कितनी क्षति उठानी पड़ी?
- प्रश्न- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित सैन्य पद्धति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कौटिल्य के अनुसार मौर्यकालीन युद्ध कला एवं सैन्य संगठन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य कौन था? उसकी पुस्तक का नाम लिखिए।
- प्रश्न- कौटिल्य द्वारा वर्णित सैन्य बलों की श्रेणियां लिखिये।
- प्रश्न- कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में कितने प्रकार के राजदूतों का वर्णन किया है
- प्रश्न- कौटिल्य के सैन्य संगठन सम्बन्धी विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य के व्यूहरचना (Tactical Formatic) सम्बन्धी विचारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य के द्वारा बताये गये दुगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य ने युद्ध संचालन के लिए कौन-कौन से विभागों का वर्णन किया है?
- प्रश्न- कौटिल्य द्वारा बताये गये गुप्तचरों के रूप लिखिए।
- प्रश्न- राजपूत सैन्य पद्धति और युद्धकला पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- तराइन के द्वितीय संग्राम (1192 ई०) का वर्णन कीजिए। हमें इस युद्ध से क्या शिक्षाएँ मिलती हैं?
- प्रश्न- तराइन के दूसरे युद्ध ( 1192 ई०) में राजपूतों की पराजय तथा मुसलमानों की विजय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- तराइन के युद्ध की सैन्य शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजपूतों के गुणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "राजपूतों में दुर्गुणों का भी अभाव न था।" इस कथन को साबित कीजिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के सैन्य संगठन और युद्ध कला पर प्रकाश डालिए। बलबन तथा अलाउद्दीन के सैन्य सुधारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- मुगल काल में अश्वारोही सैनिक कितने प्रकार के होते थे?
- प्रश्न- तोप और अश्वारोही सेना मुगलकालीन सेना के मुख्य सेनांग थे जिनके ऊपर उन्हें विजय प्राप्त करने का विश्वास था। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आघात समरतंत्र (Shock Tactics) क्या है?
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत की सैन्य व्यवस्था तथा विस्तार पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मुगल स्त्रातजी तथा सामरिकी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1526 ई० में पानीपत के प्रथम संग्राम का सचित्र वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलों की सेना में कितने प्रकार के सैनिक थे?
- प्रश्न- मुगल सैन्य पद्धति के पतन के क्या कारण थे?
- प्रश्न- सेना के वह मुख्य भाग क्या थे? जिन पर मुगलों की विजय आधारित थी? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगल तोपखाने पर संक्षेप में लिखिये।
- प्रश्न- युद्ध क्षेत्र में मुगल सेना की रचना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगल काल में अश्वारोही सैनिक कितने प्रकार के होते थे?
- प्रश्न- तोप और अश्वारोही सेना मुगलकालीन सेना के मुख्य सेनांग थे जिनके ऊपर उन्हें विजय प्राप्त करने का विश्वास था। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- खानवा की लड़ाई (1527 ई०) का सचित्र वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजपूतों की असफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- राजपूतों की युद्ध कला पर संक्षेप में लिखिये।
- प्रश्न- राजपूतों का सैन्य संगठन कैसा था?
- प्रश्न- राजपूतों के गुणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राजपूतों में दुर्गणों का भी अभाव न था। इस कथन को साबित करिये।
- प्रश्न- तराइन के दूसरे युद्ध (1192 ई.) में राजपूतों की पराजय तथा मुसलमानों की विजय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- 1527 ई० की खानवा की लड़ाई में राजपूतों और मुगलों की तुलनात्मक सैन्य शक्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 17वीं शताब्दी में मराठा शक्ति के उत्कर्ष के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मराठा सैन्य पद्धति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मराठा सेनाओं की युद्ध कला एवं संगठन का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- पानीपत के तीसरे संग्राम (1761 ई०) का सचित्र वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मराठा शक्ति के उदय पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिवाजी के समय मराठों का सैन्य संगठन का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मराठों की युद्धकला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मराठा सैनिकों के सैन्य गुणों को बताइये।
- प्रश्न- शिवाजी के सैन्य गुणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पानीपत के तृतीय युद्ध ( 1761 ई०) में मराठों और अफगानों की सैन्य शक्ति का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पानीपत के तृतीय युद्ध का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पानीपत के तीसरे युद्ध (1761 ई.) में मराठों की पराजय के प्रमुख कारण लिखिए।
- प्रश्न- सिक्ख सैन्य पद्धति, युद्ध कला तथा संगठन का पूर्ण विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह के पूर्व सिक्ख सैन्य पद्धति की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "रणजीत सिंह भारत का गुस्तावस एडोल्फस माना जाता है। इस कथन के संदर्भ में रणजीत सिंह द्वारा सिक्ख सेना के किये गये विभिन्न सुधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सोबरांव के संग्राम (1864 ई०) का वर्णन करते हुए सिक्ख सेना की पराजय के कारण बताइये।
- प्रश्न- दल खालसा पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सिक्ख सैन्य संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गुरु गोविन्द सिंह ने सिक्खों को सैनिक क्षेत्र में क्या योगदान दिये?
- प्रश्न- सिक्खों के सेनांग का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह से पूर्व सिक्खों के समरतंत्र पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- खालसा युद्ध कला पर लिखिये।
- प्रश्न- महाराजा रणजीत सिंह के तोपखाने का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह ने सेना में क्या-क्या सुधार किये?
- प्रश्न- सोबरांव के युद्ध (1846) में सिक्खों की मोर्चे बन्दी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सोबरांव के युद्ध में सिक्खों की पराजय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- सिक्ख दल खालसा का युद्ध के समय क्या महत्व था?
- प्रश्न- ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सैन्य पद्धति का वर्णन कीजिए तथा 1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कारण बताइये।
- प्रश्न- सन् 1858 से लेकर सन् 1918 तक अंग्रेजों के अधीन भारतीय सेना के संगठन तथा विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वतंत्रता पश्चात् सशस्त्र सेनाओं के भारतीयकरण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सेना के भारतीयकरण में मोतीलाल नेहरु की रिपोर्ट का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- 1939-45 के मध्य भारतीय सशस्त्र सेनाओं के विस्तार और भारतीयकरण का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भारतीय नभ शक्ति की विशेषताओं तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय कवचयुक्त सेना पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सैन्य संगठन की रचना एवं तत्वों का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय थल सेना के अंगों का विस्तृत विवरण दीजिए।
- प्रश्न- भारत के लिए एक शक्तिशाली नौसेना क्यों आवश्यक है? नौसेना के युद्ध कालीन कार्य बताइए।
- प्रश्न- भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के सैन्य संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लार्ड क्लाइव ने सेना में क्या-क्या सुधार किये?
- प्रश्न- लार्ड कार्नवालिस के सैन्य सुधारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कमाण्डर-इन-चीफ लार्ड रॉलिन्सन ने क्या सुधार किये?
- प्रश्न- कम्पनी सेना की स्थापना के क्या कारण थे?
- प्रश्न- प्रेसीडेन्सी सेनाओं के विकास का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- क्राउनकालीन भारतीय सेना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ब्रिटिशकालीन भारतीय सेना को किन कारणों से राष्ट्रीय सेना नहीं कहा जा सकता?
- प्रश्न- भारतीय मिसाइल कार्यक्रम पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- ब्रह्मोस क्या है?
- प्रश्न- भारत की नाभिकीय नीति का संक्षेप में विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- भारत ने व्यापक परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (CTBT) पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किया है?
- प्रश्न- पोखरन-II परीक्षणों में भारत ने किस प्रकार के अस्त्रों की क्षमता का परिचय दिया था?
- प्रश्न- भारत की प्रतिरक्षात्मक तैयारी का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत की स्थल सेना के कमाण्ड्स के नाम व उनके मुख्यालय लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय वायु सेना के कार्यों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय वायु सेना के संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय वायुसेना के कमाण्ड्स के नाम व उनके मुख्यालय लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय वायुसेना पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भारतीय स्थल सेना की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वायुसेना का महत्व समझाइये।
- प्रश्न- भारत की स्थल सेना के कमाण्ड्स के नाम व उनके मुख्यालय लिखिए।
- प्रश्न- प्रथम भारत-पाक युद्ध या कश्मीर युद्ध (1947-48) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय सेनाओं द्वारा लड़े गये युद्धों का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- 1948 के भारत-पाक युद्ध में स्थल सेना की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कश्मीर विवाद 1948 में सैन्य कार्यवाही के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- 1948 का युद्ध भारत पर अचानक आक्रमण था। कैसे?
- प्रश्न- कश्मीर सैन्य कार्यवाही, 1948 के राजनैतिक परिणाम क्या थे? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "भारतीय उपमहाद्वीप में शान्ति भारत-पाक सम्बन्धों पर अवलम्बित है।" इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- भारत-पाक युद्ध 1948 में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका।
- प्रश्न- 1962 में चीन के विरुद्ध भारत की सैनिक असफलताओं के कारण बताइए।
- प्रश्न- 1948 तथा 1962 के युद्धों में प्रयुक्त समरनीति का तुलनात्मक विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में तिब्बत की सुरक्षा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत-चीन युद्ध 1962 में वायुसेना की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत-चीन संघर्ष, 1962 ने भारतीय सेना की कमजोरियों को उजागर किया। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- नदी बाहुल्य क्षेत्र में वायुसेना की महत्ता समझाइये।
- प्रश्न- "भारत में रक्षा अनुसंधान एवं रेखास संगठन की भूमिका' पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 1965 में भारत और पाकिस्तान के मध्य हुए युद्ध का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 1965 के भारत-पाक संघर्ष के प्रमुख कारणों को आंकलित कीजिए।
- प्रश्न- 1965 के कच्छ के विवाद पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ताशकन्द समझौता क्यों हुआ? स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- मरुस्थल के युद्ध की समस्याएँ लिखिए।
- प्रश्न- कच्छ के रन का रेखाचित्र बनाइये।
- प्रश्न- कच्छ के रण का महत्व समझाइये।
- प्रश्न- ताशकन्द समझौते के मुख्य प्रस्तावों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कच्छ सैन्य अभियान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत-पाक युद्ध 1971 का वर्णन कीजिए तथा युद्ध के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 1971 के युद्ध में जैसोर तथा ढाका की घेराबन्दी अभियान तथा ढाका के आत्मसमर्पण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के लिए कारगिल क्यों महत्वपूर्ण है?
- प्रश्न- कारगिल युद्ध 1999 की उत्पत्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कारगिल युद्ध 1999 में भारतीय वायुसेना की आक्रामक कार्यवाही का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- कारगिल संघर्ष 1999 के कारणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कारगिल युद्ध के पीछे पाकिस्तान की मंशा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कारगिल युद्ध (1999) के समय भारतीय सेनाओं के समक्ष आई समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- कारगिल युद्ध 1999 में भारतीय वायुसेना की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- 1 - वैदिक एवं महाकाव्यकालीन सैन्य व्यवस्था (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 2 - झेलम संग्राम - 326 ई. पू. (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 3- कौटिल्य का युद्ध दर्शन (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
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- 4 - तुर्क एवं राजपूत सैन्य पद्धति : तराइन का युद्ध (1192 ईस्वी) (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
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- 5- सैन्य संगठन एवं सल्तनत काल की सैन्य पद्धति (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
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- 6 - मुगल सैन्य पद्धति : पानीपत का प्रथम संग्राम (1526 ईस्वी) (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
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- 7- राजपूत सैन्य संगठन, शस्त्र प्रणाली एवं खानवा का संग्राम (1527 ईस्वी) (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
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- 8- मराठा सैन्य पद्धति एवं पानीपत का तीसरा युद्ध (1761 ईस्वी) (वस्तुनिष्ठ प्रश्नऋ
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- 9 - सिक्ख सैन्य प्रणाली एवं सोबरांव का युद्ध (1846 ईस्वी) (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
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- 10 - ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सैन्य पद्धति, 1858-1947 ईस्वी तक (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
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- 11- प्रथम भारत पाक युद्ध (1947-48) (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
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- 12 - भारत-चीन युद्ध 1962 (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
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- 13 - भारत-पाकिस्तान युद्ध - 1985 (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
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- 14- बांग्लादेश की स्वतन्त्रता - 1971 (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
- उत्तरमाला
- 15 - कारगिल संघर्ष - 1999 (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
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