बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 24
राष्ट्रपति प्रणाली
(Presidential System)
भारतीय संविधान द्वारा भारत में संसदीय प्रणाली की सरकार की स्थापना की गयी है। संसदीय प्रणाली की सरकार में राष्ट्रपति देश का सांविधानिक अध्यक्ष मात्र होता है जब कि वास्तविक कार्यपालिका शक्ति प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिपरिषद् में निहित होती है। मंत्री परिषद्, लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है और इसके सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं। यद्यपि अनुच्छेद 53 द्वारा देश की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित की गयी है परन्तु अनु0 74 द्वारा यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि वह उक्त शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद् की सहायता तथा मंत्रणा से ही करेगा।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 52 यह प्रावधान करता है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा जबकि अनु0 53 के अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और इसका प्रयोग वह इस संविधान के अनुसार या तो स्वयं करेगा या अपने अधीनस्थ अधिकारों के माध्यम से करेगा।
भारत का राष्ट्रपति अप्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुना जाता है जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं। वस्तुतः ऐसा किया जाना संसदीय प्रणाली के सिद्धांतों के अनुरूप ही है क्योंकि इस प्रणाली में राष्ट्रपति या राजा नाम मात्र का संवैधानिक अध्यक्ष होता है और कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित होती है।
राष्ट्रपति का निर्वाचन एक ऐसे निर्वाचकगण के सदस्य करते हैं जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा राज्य की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य होते हैं। यह निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है।
भारतीय कार्यपालिका के अध्यक्ष के रूप में राष्ट्रपति को अनेक शक्तियां प्राप्त हैं। संविधान के अनु0 361 के अन्तर्गत उसे अनेक उन्मुक्तियां तथा विशेषाधिकार भी प्राप्त हैं। देश के सभी प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा ही की जाती है। वही युद्ध की घोषणा तथा शांति के लिए संधियां भी करता है। विदेशों में भारत के प्रतिनिधियों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा ही की जाती है।
राष्ट्रपति को क्षमादान की व्यापक शक्ति प्राप्त है। उसे आपात कालीन शक्तियां भी प्राप्त है। परन्तु वास्तव में ये सभी कार्य मंत्रिपरिषद् की सिफ़ारिश पर किये जाते हैं।
लोक सभा में बहुमत वाले दल के नेता को राष्ट्रपति ही प्रधान मंत्री नियुक्त करता है। वही सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के बिना कानून नहीं बना सकता। परन्तु 42 वें संशोधन द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया है कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह मानने के लिए बाध्य है। परन्तु 44वें संविधान संशोधन उसे विधेयकों को पुनर्विचार के लिए मंत्रिपरिषद् के पास भेजने की शक्ति प्रदान करता है। यदि मंत्रिपरिषद् द्वारा विधेयक संशोधन के बाद या बिना संशोधन के राष्ट्रपति के पास दोबारा भेजा जाता है तो राष्ट्रपति उस पर अपनी अनुमति देने के लिए बाध्य होगा।
वस्तुतः राष्ट्रपति भारतीय संविधान का संरक्षण तथा राष्ट्र के प्रमुख का प्रतीक होता है और उसकी स्थिति बहुत कुछ उसके व्यक्तित्व पर निर्भर करती है।
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