बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
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महत्वपूर्ण तथ्य
भारत में शिक्षा का प्रारम्भ आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व हुआ था।
ऋग्वेद की रचना का काल लगभग 2500 ईसा पूर्व से माना जाता है।
वैदिक शिक्षा मुख्यतः वेदों पर आधारित थी।
डॉ. अल्तेकर के अनुसार, "ईश्वर भक्ति की भावना एवं धार्मिकता का समावेश चरित्र का निर्माण, व्यक्तित्व का विकास, नागरिक एवं सामाजिक कर्तव्यों की समझ, सामाजिक कुशलता की उन्नति तथा संस्कृति का संरक्षण तथा प्रसार ही शिक्षा है।"
वैदिक काल में उच्च शिक्षा की स्थापना 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक हो चुकी थी।
गुरु या आचार्य वनों में रहकर आध्यात्मिक चिन्तन करते थे और शिक्षण कार्य भी करते थे।
ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य बालकों का उपनयन संस्कार क्रमशः 8, 11 और 12 वर्ष की आयु में होता था - मुनस्मृति।
वैदिक काल में शिक्षा पर ब्राह्मणों का एकमात्र अधिकार था।
यज्ञोपवीत संस्कार में गुरु निम्न उपदेश देता था -
धरती पर सोओ। खांड या नमकीन पदार्थ न खाओ, स्वयं गिरी समिधा जंगल से लाओ, सायं संध्या उपासना और प्रातः हवन करो, गुरु की सेवा करो, सायं प्रातः गाँव या नगर में जाकर अलग-अलग घरों से दो बार मिक्षा मांगकर लाओ, मधु माँस कभी न खाओ, डुबकी लगाकर कभी स्नान न करो, किसी पात्र से जल निकाल कर नहाओ। कुश के आसन पर तकिया लगाकर न बैठो, स्त्रियों के बीच न बैठो, कभी झूठ न बोलो यम, सत्य, अक्रोध, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और नियम का पालन करो।
गुरुकुल में सामान्य रूप से छात्र 24 वर्ष तक अध्ययन करते थे।
ब्राह्मणों को जीवनपर्यन्त विद्याध्ययन की छूट थी।
12 वर्ष, 24 वर्ष और 48 वर्ष तक अध्ययन करने वाले छात्रों को क्रमशः 'बसु', 'रुद्र' और आदित्य कहा जाता था।
गुरुकुलों में तीनों वेद (ऋगु, यर्जु एवं साम) वेदांग (शिक्षा, कल्प, निरुक्त, ज्योतिष, छन्द और व्याकरण) दर्शन तथा नीतिशास्त्र की शिक्षा सभी छात्रों के लिए अनिवार्य थी।
ब्राह्मणों को पौरोहित्व दर्शन एवं कर्मकाण्डों का ज्ञान कराया जाता था।
क्षत्रियों को दण्डनीति, राजनीति, सैन्य विज्ञान, अर्थ विज्ञान विषयों को पढ़ाया जाता था।
वैश्य छात्रों को पशुपालन, कृषि विज्ञान, व्यवसाय शास्त्र आदि विषयों को पढ़ाया जाता था।
गुरुकुल में शिक्षण विधियों का प्रचलन था प्रश्नोत्तर, प्रवचन, व्याख्या, विवेचन एवं कंठस्थीकरण।
गुरुकुल की समस्त व्यवस्था का दायित्व गुरु का था। राजा व धनी व्यक्ति धन देते थे।
गुरुदक्षिणा एवं दान से भी धन प्राप्त होता था।
गुरु किसी विषय या समस्या पर शास्त्रार्थ कराते थे।
वैदिक काल में शिक्षा के प्रमुख केन्द्र गुरुकुल थे।
तक्षशिला, मिथिला, पाटलिपुत्र, कन्नौज, धार, कल्याणी, तन्जौर और मालखण्ड आदि प्रमुख शिक्षा केन्द्र थे।
प्राचीन ग्रन्थों में अनेक विदुषी महिलाएं, उर्वशी, घोषा, अपाला, विश्वतारा, गार्गी, मैत्रयी आदि का नाम उल्लेखनीय है।
वैदिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना था।
गुरुः साक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वेदों की ओर लौटों का नारा दिया।
दयानन्द जी की प्रेरणा से दो गुरुकुल प्रारम्भ हुए -
1. गुरुकुल काँगड़ी, हरिद्वार तथा
2. वृन्दावन स्कूल।
बालिकाओं के लिए भी गुरुकुल की स्थापना हुई। जिनमें कन्या गुरुकुल, देहरादून, बड़ौदा, आर्यकन्या महाविद्यालय प्रमुख थे।
वैदिक काल में शिक्षा का माध्यम पाली एवं संस्कृत भाषाएँ थीं।
वैदिक शिक्षा व्यवस्था में शिक्षा का आरम्भ उपनयन से होता था।
वैदिक कालीन शिक्षा में 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता था।
वैदिक काल में विद्यार्थियों से भिक्षा मँगवाने का उद्देश्य अहंकार को समाप्त करना होता था।
चरण - वेदों की विभिन्न आकृतियाँ शाखा कहलाती थीं और शाखा से सम्बन्धित शिक्षण संस्था को चरण कहते हैं।
परिषद - परिषद का अभिप्राय विद्वानों की सभा से है। परिषद में 10 सदस्य होते थे। चार सदस्य चारों वेदों के ज्ञाता होते थे।
सम्मेलन प्राय - राजा महाराजा अपने दरबारों में विशिष्ट विद्वानों को धार्मिक विषयों पर शास्त्रार्थ करने के लिए आमंत्रित करते थे, जिन्हें सम्मेलन कहा जाता था।
एक वेद का अध्ययन करने में 12 वर्ष लगते थे। चारों वेदों का अध्ययन करने में 48 वर्ष लगते थे। उपनयन संस्कार के समय बालक कोपीन, मेखला तथा हाथ दण्ड धारण करता था।
उपनयन के बाद बालक ब्रह्मचारी या अन्तेवासी कहलाता था।
इस काल में पढ़ने की तीन प्रविधियाँ प्रचलित थीं श्रवण, मनन तथा निदिध्यासन।
उत्तर वैदिक काल में अध्ययन विषय बढ़ जाने पर शिक्षा सत्र 12 मास का होने लगा था।
वैदिक काल में ब्रह्म मुहूर्त को सर्वोत्तम कहा गया। वैदिक काल में शिक्षा समाप्त होने के बाद प्रमाण पत्र या उपाधि देने का प्रावधान नहीं था। वैदिक काल में विदुषी सुयोग्य महिलायें ब्रह्मवादिनी कही जाती थीं।
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