बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
गाँधी जी ने भारतवासियों की आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा की नवीन योजना प्रस्तुत
गाँधी जी ने 'हरिजन' नामक पात्रिका का प्रकाशन 1937 ई. में किया।
गाँधी जी के अनुसार, “शिक्षा से अभिप्राय बालक के सर्वांगीण विकास से है।"
गाँधी जी के शिक्षा सम्बन्धी विचारों ने जनमानस को उद्वेलित कर दिया।
अखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन में अनेक शिक्षाशास्त्रियों, राष्ट्रीय नेताओं तथा समाज सुधारकों ने भाग लिया।
अखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन को वर्धा शिक्षा के नाम से सम्बोधित किया जाता है।
अखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन में गाँधी जी ने बेसिक शिक्षा की योजना प्रस्तुत की।
गाँधी जी के अनुसार, "प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम कम से कम 7 वर्ष का हो।"
गाँधी जी के अनुसार, "शिक्षा का आधार हस्तशिल्प होना चाहिए तथा शिक्षा की प्रक्रिया शारीरिक कार्य पर केन्द्रित होनी चाहिए।'
राष्ट्र के समस्त बच्चों को सात वर्ष की निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
गाँधी जी जीवन में चरित्र और नैतिकता पर विशेष बल देते थे।
गाँधी जी ने कहा कि साक्षर अथवा विद्यालय से डिग्री प्राप्त कर लेना शिक्षा नहीं है।
अच्छी और पूर्ण शिक्षा वह है जो मानव जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति का विकास करे, जिससे उसके शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक गुणों को बल मिले और वे पूर्णरूपेण विकसित हो।
शिक्षा द्वारा बालक का मानसिक व शारीरिक विकास होना चाहिए।
वैयक्तिक विकास ही आत्मिक विकास है। आत्मिक विकास के लिए सामाजिक विकास आवश्यक है।
गाँधी जी ने कहा कि बालक की रुचि क्षमता के अनुसार किसी व्यवसाय की शिक्षा दी जानी चाहिए।
गाँधी जी सीखों और कमाओं के सिद्धान्त में विश्वास रखते थे।
गाँधी जी ने संस्कृति को जीवन का आधार माना है। इन्होनें शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य चरित्र निर्माण करना बताया है।
गाँधी जी मानव की स्वतन्त्रता पर विश्वास रखते थे। उनका आदर्श वाक्य था "सा विद्या या विमुक्तयै"।
गाँधी जी का विचार था कि शिक्षा इस प्रकार की हो जो मानव को सांसारिक बन्धनों से छुटकारा दिलाकर उसकी आत्मा को उत्तम जीवन की ओर प्रवृत्त कर सके।
सामाजिक अध्ययन, हस्तकलाएँ, सामान्य विज्ञान, ललित कलाएँ आदि शिक्षा के पाठ्यक्रम है।
गाँधी जी के अनुसार शिक्षण विधियों में स्वानुभव द्वारा सीखने की विधि, क्रियाविधि, सहयोगी विधि, मौखिक विधि, अनुकरण विधि, श्रवण मनन विधि आदि प्रमुख हैं।
गाँधी जी ने कहा कि शिक्षक को समस्त मानवीय गुणों, समाज का आदर्श, ज्ञान का पुंज और सत्य आचरण करने वाला होना चाहिए।
गाँधी जी ने कहा कि शिक्षक का कार्य केवल कक्षा में नहीं अपितु उसके बाहर है।
गाँधी जी के अनुसार बेसिक शब्द का हिन्दी रूपान्तरण आधारभूत है।
इस नवीन शिक्षा को भारत की राष्ट्रीय सभ्यता एवं संस्कृति का आधार बनाया गया।
हुमायूँ कबीर - गाँधी जी की राष्ट्र को बहुत सी देनों में से नवीन शिक्षा के प्रयोग की देन सर्वोत्तम है।
बेसिक शिक्षा का उद्देश्य नागरिकता, नैतिकता, संस्कृति का विकास करना है।
बेसिक शिक्षा पद्धति द्वारा मानव चरित्रवान् सहिष्णु एवं कर्तव्य परायण बन जाता है।
इस शिक्षा योजना से सर्वोदय भावना का विकास होता है।
बेसिक शिक्षा की भावना सीखो और कमाओं में पायी जाती है।
यह मूल भावना गरीबी हटाओं का पूरक है।
गाँधी जी की शिक्षा में व्यवहारिकता, स्वावलम्बन, सामाजिक सर्वोदय था : राष्ट्रीय एकता थी।
अमेरिका में जॉन डीवी ने बढ़ईगीरी के माध्यम से शिक्षा देने के लिए जोर दिया था। बेसिक शिक्षा 1937 से आरम्भ हुई।
गाँधी जी ने शिक्षा को जीवन की वास्तविक परिस्थिति से सम्बन्धित करने पर बल दिया।
गाँधी जी ने शिक्षा के उद्देश्यों के निर्धारण में आत्म-नियन्त्रण तथा आत्मानुशासन का समर्थन किया।
गाँधी जी ने कहा कि सादा जीवन उच्च विचार के आदर्शों पर चल शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
गाँधी जी मनुष्य को मन, शरीर और आत्मा का योग मानते थे इन्होनें तीनों पक्षों पर बल दिया है।
गाँधी जी ने लोगों को सत्य, अहिंसा, प्रेम, दया, सहयोग परोपकार श्रम और कार्य के प्रति सम्मान आदि के भावों को जागृत करके व्यक्ति के जीवन दर्शन को बदल दिया है।
सत्य एवं अहिंसा पर आधारित जो शिक्षा योजना प्रस्तुत की है। वह भारतीय दर्शन की पृष्ठभूमि पर तैयार की है।
गाँधी जी जन सेवक महामानव के रूप में उच्चकोटि के दार्शनिक और शिक्षाशास्त्री थे।
शिक्षा के क्षेत्र में गाँधी जी का सबसे बड़ा योगदान बेसिक शिक्षा योजना है।
जन, शिक्षा, स्त्री शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, उच्च शिक्षा और राष्ट्रीय शिक्षा के सम्बन्ध में गाँधी जी के विचार बड़े ही उदार थे।
बेसिक शिक्षा बाल केन्द्रित न होकर शिल्प केन्द्रित है।
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