बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
भारत सरकार ने देश की आवश्यकताओं एवं अकांक्षाओं के अनुरूप उच्च शिक्षा के पुनर्गठन के लिए सर्वप्रथम 1948 ई. में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन किया था।
1952 में माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन किया गया।
भारत सरकार ने 14 जुलाई, 1964 ई. को कोठारी आयोग का गठन किया गया।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही राष्ट्र ने राष्ट्रीय विकास के एक नये युग मं प्रवेश किया।
शिक्षा विशेष रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र आर्थिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली साधन है।
परम्परागत शिक्षा प्रणाली की विषय-वस्तु में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर स्वतन्त्रता समानता तथा न्याय पर आधारित एक नई शिक्षा का विकास किया जा सकता है।
शिक्षा राष्ट्रीय समृद्धि एवं कल्याण की कुंजी है।
मानव संसाधनों में किया गया पूंजी निवेश, जिसका महत्वपूर्ण अंग शिक्षा है।
शैक्षिक विकास के समग्र क्षेत्र का एक सर्वेक्षण करना वांछनीय है। टाइट
भारत के लिए शिक्षा का नियोजन भारतीय अनुभवों तथा दशाओं पर आधारित होना चाहिए।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष डॉ. दौलत सिंह कोठारी थे।
इस आयोग में कुल 17 सदस्य हैं।
आयोग सरकार को शिक्षा के राष्ट्रीय ढाँचे और उसके सभी स्तरों तथा पहलुओं पर शिक्षा के विकास के लिए सामान्य सिद्धान्तों एवं नीतियों पर परामर्श देगा।
आयोग ने शिक्षा के सभी पहलुओं का अध्ययन किया और पंचमुखी कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
पंचमुखी कार्यक्रम के अन्तर्गत शामिल हैं -
1. शिक्षा को उत्पादकता से जोड़ना,
2. शिक्षा के द्वारा लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा करना,
3. शैक्षिक क्रियाकलापों के माध्यम से सामाजिक तथा राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करना,
4. शिक्षा द्वारा नैतिक आध्यात्मिक और सामाजिक मूल्यों का विकास करना,
5. जिज्ञासा की प्रवृत्ति, मनोवृत्ति, प्रकृति और मानवीय मूल्यों के द्वारा सामाजिक आधुनिकी करण की प्रक्रिया को विकसित करना।
विज्ञान को प्राथमिक स्तर से विश्वविद्यालय स्तर तक पाठ्यक्रम का अनिवार्य अंग बनाना।
विश्वविद्यालय स्तर पर वैज्ञानिक एक तकनीकी शिक्षा और शोध का विकास करना।
शिक्षा का अधार योग्यता हो, सामान्य स्कूल प्रणाली हो।
शैक्षिक स्तरों पर समाज व राष्ट्र सेवा को शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाया जाए।
राष्ट्रीय चेतना में वृद्धि के लिए राष्ट्रीय भाषा, साहित्य दर्शन, धर्मशास्त्र, इतिहास ललित क्रियाएँ तथा सांस्कृतिक क्रियाएँ सहायक हो सकती है।
उच्च शिक्षा की नवीन संरचना में 3 वर्ष का प्रथम डिग्री कोर्स हो।
शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु 60-65 वर्ष के मध्य हो।
प्राइमरी शिक्षक के लिए सेकण्डरी शिक्षा के बाद 2 वर्ष का प्रशिक्षण काल रखा जाए।
प्रशिक्षण विद्यालयों में प्रथम व द्वितीय श्रेणी के विद्यार्थियों को ही प्रवेश मिले।
आयोग ने राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना के विस्तार का भी सुझाव दिया।।
अनुसंधान द्वारा पूर्व प्राथमिक शिक्षा प्रभावकारी एवं कम खर्चीली बनायी जाए।
शिक्षण विधि में खेल द्वारा शिक्षा पर बल और जिला एवं राज्य स्तर पर खेल केन्द्र की स्थापना की जाय।
प्रत्येक राज्य में विद्यालय, शिक्षा परिषद और राज्य शिक्षा सेवा और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय शिक्षा परिषद और भारतीय शिक्षा सेवा बनायी जाए।
सभी प्रकार के विद्यालयों को एक ही प्रबन्ध प्रणाली के अन्तर्गत लाया जाए।
छात्रसंघों के वार्षिक सम्मेलन के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आर्थिक सहायता ली जाए।
शिक्षा जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।
आयोग ने कहा कि राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा परिषद की स्थापना की जाए।
आयोग ने प्रौढ शिक्षा कार्यक्रम चलाये हैं।
आयोग ने अनवरत शिक्षा, पत्र-व्यवहार शिक्षा, विश्वविद्यालयों की सहायता की।
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- अध्याय - 1 वैदिक काल में शिक्षा
- महत्वपूर्ण तथ्य
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 2 बौद्ध काल में शिक्षा
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- अध्याय - 3 प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली पर यात्रियों का दृष्टिकोण
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- अध्याय - 4 मध्यकालीन शिक्षा
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- अध्याय - 5 उपनिवेश काल में शिक्षा
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- अध्याय - 6 मैकाले का विवरण पत्र - 1813-33 एवं प्राच्य-पाश्चात्य विवाद
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- अध्याय - 9 सैडलर आयोग
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- अध्याय - 10 वर्धा आयोग
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- अध्याय - 11 राधाकृष्णन आयोग
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- अध्याय - 12 मुदालियर आयोग
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- अध्याय - 13 कोठारी आयोग
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- अध्याय - 14 राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 1986 एवं 1992
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 15 राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020
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- अध्याय - 16 पूर्व प्राथमिक शिक्षा की समस्यायें
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- अध्याय - 17 प्रारम्भिक एवं माध्यमिक शिक्षा की समस्यायें
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- अध्याय - 18 उच्च शिक्षा की समस्यायें
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 19 भारतीय शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक
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- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
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