बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 3
प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली पर
यात्रियों का दृष्टिकोण
(Viewpoints of Travellers towards Ancient
Indian Education System)
प्राचीन काल में शिक्षा को मानव जीवन काल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू विभिन्न देशों के यात्रियों के विचारों में बताया गया है। उन यात्रियों के वर्णनों में नालन्दा विश्वविद्यालय को विश्व का प्राचीनतम विद्यालय माना गया है। उनका कहना था कि भारत में प्राचीन काल से ही शिक्षा को अनुशासित व सुव्यवस्थित माना गया है।
कई विदेशी यात्रियों ने अपने अभिलेखों के माध्यम से विश्व के विभिन्न देशों में भ्रमण किया तथा वहाँ की सभ्यता, संस्कृति एवं शिक्षा व्यवस्था के बारे में बताया है।
आज के कुछ विद्वानों का तर्क है कि ज्यामितीय संरचना जो अपनी स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता के लिए उल्लेखनीय है, का एक मुख्य कारण अलबरूनी का गणित की ओर झुकाव था। अलबरूनी ने लेखन में भी अरबी भाषा का प्रयोग किया था तथा सम्भवतः अपनी कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं जिसमें संस्कृत, पाली तथा प्राकृत गन्थों के अरबी से लेकर खगोल विज्ञान और चिकित्सा सम्बन्धी कृतियाँ शामिल थीं पर साथ ही इन ग्रंथों की लेखन सामग्री शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था और निश्चित रूप से वह उनमें सुधार करना चाहता था। कई भाषाओं में दक्षता हासिल करने के कारण अलबरूनी भाषाओं की तुलना तथा ग्रन्थों का अनुवाद करने में सक्षम रहा। उसने कई संस्कृत कृतियों - जिनमें पतंजलि का व्याकरण पर ग्रन्थ भी शामिल है, का अरबी में अनुवाद किया। अपने ब्राह्मण मित्रों के लिए उसने यूक्लिड (एक यूनानी गणितज्ञ) के कार्यों का हिन्दी में अनुवाद किया।
अपनी श्रेणी के अन्य सदस्यों के विपरीत, इब्नबतूता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से अर्जित अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था। उसे यात्राएँ करने का बहुत शौक था और वह नए-नए देशों और लोगों के विषय में जानने के लिए दूर-दूर के क्षेत्रों तक गया। 1332-33 में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले वह मक्का की तीर्थ यात्राएँ और सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के कई तटीय व्यापारिक बंदरगाहों की यात्राएँ कर चुका था।
अलबरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के माध्यम से जाति व्यवस्था को समझने और व्याख्या करने का प्रयास किया। उसने लिखा कि प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता थी घुड़सवार और शासक वर्ग, भिक्षु, अनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक, खगोल शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक और अन्त में कृषक तथा शिल्पकार। दूसरे शब्दों में, वह यह दिखाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे। इसके साथ ही उसने यह दर्शाया कि इस्लाम में सभी लोगों को समान माना जाता था और उनमें भिन्नताएँ केवल धार्मिकता के पालन में थीं।
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- अध्याय - 1 वैदिक काल में शिक्षा
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- अध्याय - 2 बौद्ध काल में शिक्षा
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- अध्याय - 3 प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली पर यात्रियों का दृष्टिकोण
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- अध्याय - 4 मध्यकालीन शिक्षा
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- अध्याय - 6 मैकाले का विवरण पत्र - 1813-33 एवं प्राच्य-पाश्चात्य विवाद
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- अध्याय - 12 मुदालियर आयोग
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- अध्याय - 13 कोठारी आयोग
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- अध्याय - 14 राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 1986 एवं 1992
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- अध्याय - 15 राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020
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- अध्याय - 18 उच्च शिक्षा की समस्यायें
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- अध्याय - 19 भारतीय शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक
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