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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2759
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 चतुर्थ (A) प्रश्नपत्र - पर्यावरणीय शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पर्यावरण संरक्षण में जन-जागृति की आवश्यकता पर एक लेख लिखिए।

अथवा
पर्यावरण संरक्षण हेतु किए गए राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों का विवेचन कीजिए।

उत्तर-

पर्यावरण में जन-जागृति की आवश्यकता

पर्यावरण संचेतना जन-जागृति में पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान एवं शोध की प्राप्ति होती है। इसमें पर्यावरण के भौतिक तथा जैविक पक्षों की जानकारी तथा पारस्परिक निर्भरता का बोध होता है। बेलग्रेड में सम्पन्न अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला (1975) में प्रस्तुत विभिन्न शोधपत्रों के आधार पर पर्यावरण शिक्षा की वास्तविक स्थिति का बोध होता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1994 को पर्यावरण संचेतना का वर्ष घोषित किया था। इस वर्ष पर्यावरण चेतना तथा जागरुकता के प्रयास किये गये, जिनकी नींव 1992 में रियो डी जेनेरो में सम्पन्न अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण संचेतना सम्मेलन में रखी गई थी। पर्यावरण संचेतना के अन्तर्गत अनेक अनुसन्धान हुए, जिनके द्वारा पर्यावरणीय दशाओं में मानव कल्याणकारी कार्य सम्पन्न हुए, जिनमें बढ़ते मरुस्थल, घटते वन क्षेत्र, घटती वर्षा की मात्रा तथा बिगड़ते पृथ्वी के सन्तुलन पर ध्यानाकर्षित किया गया।

पर्यावरण संचेतना या जागरुकता के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) प्राकृतिक पर्यावरण, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु तथा मनुष्य की पारस्परिक निर्भरता की पहचान एवं पर्यावरणीय विकास को समझना।

(2) सामाजिक सांस्कृतिक तथा आर्थिक विकास के लिए व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से क्रियाकलापों को शुरू करना।

(3) पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से मानव उपयोगी सामग्री, स्थान, समय और स्रोतों को चिन्हित करना।

(4) विभिन्न पर्यावरणीय स्रोतों का उपयुक्त दक्षता से दोहन हो तथा इसके लिए विभिन्न विधियों को चिन्हित किया जाना।

(5) पर्यावरण के प्राकृतिक स्रोतों के उपयोग के लिए उपयुक्त निर्णय लेना ताकि इनका विशिष्ट उपयोग सम्भव हो सके।

विश्व में विभिन्न अभियानों के तहत पर्यावरण संचेतना का प्रयास संयुक्त राष्ट्र संघ का अभिन्न अंग बन गई है, जिसके अन्तर्गत विश्व के विभिन्न भागों में पर्यावरण संरचना का बोध कराया जा रहा है। इस सन्दर्भ में विभिन्न संगठनों, ग्रीनपीस संस्था, पृथ्वी के मित्र तथा विश्व वन्य निधि आदि महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। इनके तहत अफ्रीका महाद्वीप में वृक्षारोपण तथा विशिष्ट जंगली जड़ी-बूटियों के संरक्षण एवं हिमालय के तराई में स्थित कुछ दुर्लभ जड़ी-बूटियों को संरक्षित करने के प्रयास किए गये हैं। इस सन्दर्भ में अफ्रीकी, एशियाई देशों के राजनीतिक संगठन भी साथ मिलकर पर्यावरण संरक्षण में जुट गये हैं।

राष्ट्रीय प्रयास - भारत में पर्यावरण चेतना के अभियान सफल रहे हैं; इनमें 1970 के दशक के 'चिपको आन्दोलन' (हिमालय क्षेत्र के वन एवं जैव विविधता को बचाने के लिए), 'अप्पिको आन्दोलन' (पालनी तथा नीलगिरी पर्वतीय क्षेत्रों के वन बचाने के लिए), 'शान्तघाटी आन्दोलन' (केरल में प्रस्तावित जल-विद्युत परियोजना के विरुद्ध जिससे पश्चिमी घाट के वनों एवं जैव विविधता का संरक्षण हुआ), राजस्थान का 'अरावली बचाओ आन्दोलन' ( इससे सरिस्का वन्य अभ्यारण्य व बाघ, परियोजना को संरक्षण मिला), तथा 'दून घाटी आन्दोलन' महत्त्वपूर्ण हैं जो पर्यावरण संचेतना विकसित करने में सफल रहे। इनके अतिरिक्त ताजमहल को बचाने के लिए मथुरा तेल शोधनशाला पर कानूनी प्रतिबन्ध लगा जिसमें से ताजमहल को हानि पहुँचाने वाला प्रदूषक तत्त्व सल्फर डाई ऑक्साइड निःसृत हो रहा था। राजस्थान के अलवर जिले के गाँवों में तरुण भारत संघ के श्री राजेन्द्र सिंह ने जल संरक्षण के प्रति जनचेतना विकसित की तथा लोगों को इसके वास्तविक पक्ष का बोध कराया, जिसके परिणामस्वरूप आज वहाँ पर्यावरण संरक्षण की संचेतना इस पर विकसित हो चुकी है कि लोगों ने 'जनता के वन्य अभ्यारण्य' के नाम से स्वयं के प्रयास से एक वन्य अभ्यारण्य स्थापित किया है। यहाँ जल स्तर में भी सुधार हुआ है तथा मृत नदियाँ पुनः प्रवाहित हो गई हैं। इसी प्रकार का जल संरक्षण अभियान वाले गाँव सिद्दी (महाराष्ट्र) में सफल रहा है जिसका संचालन प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अन्ना हजारे ने किया है।

अन्तर्राष्ट्रीय प्रयास - आधुनिक जीवन में पर्यावरणीय समस्याओं को बहुत महत्त्व दिया जा रहा है। सम्पूर्ण विश्व के जन-मानस में इस विषय के प्रति जागरुकता में वृद्धि हुई है। पर्यावरण की विभिन्न समस्याओं को समझने तथा इनके समाधान के लिए सम्पूर्ण विश्व में विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का गठन हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर अनेक सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों का भी इस दिशा में विस्तार हुआ है। पर्यावरण शोध संरक्षण, चेतना एवं अवबोध की दिशा में अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायें भी कार्यशील हैं।

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