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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2760
आईएसबीएन :0

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बीएड सेमेस्टर-2 हिन्दी शिक्षण - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- हिन्दी भाषा शिक्षण के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।

उत्तर-

भाषा का महत्त्व भाषा के बिना मनुष्य पशु के समान है। भाषा के कारण ही मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। भाषा का आविष्कार एवं विकास वस्तुतः मनुष्य का विकास है। मनुष्य के व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में भाषा के महत्त्व को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-

(1) शिक्षा की प्रगति की आधारशिला - भाषा शिक्षा का आधार है। सभी ज्ञान-विज्ञान के ग्रन्थ भाषा में ही लिपिबद्ध होते हैं। अगर भाषा न होती तो भाषा के स्वरूप का भी निर्माण नहीं होता तथा यदि शिक्षा की व्यवस्था न होती तो मनुष्य असभ्य, हिसंक तथा जंगली रहा होता। भाषा के अभाव में पूर्वजों द्वारा उपलब्ध ज्ञान हमें कभी प्राप्त न होता।

(2) ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख साधन - भाषा के माध्यम से ही एक पीढ़ी समस्त संचित ज्ञान सामाजिक विरासत के रूप में दूसरी पीढ़ी को सौंपती है। भाषा के माध्यम से ही हम प्राचीन और नवीन, आत्मा और विश्व को पहचानने की सामर्थ्य प्राप्त करते हैं। भाषा के द्वारा ही व्यक्ति के व्यक्तित्त्व का विकास होता है।

(3) भाषा राष्ट्र की एकता का आधार - समस्त राष्ट्र प्रशासन का संचालन भाषा के माध्यम से होता है। भाषा राष्ट्रीय एकता का मूलाधार है। इसके साथ ही कोई अन्य भाषा भी विभिन्न राष्ट्रों के बीच विचार-विनिमय, व्यापार एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान का साधन बनती है। ऐसी भाषाओं के अभाव में विभिन्न राष्ट्रों के विद्वानों की विचारधारायें राष्ट्र विशेष तक ही सीमित रह जाती हैं।

(4) विचार-विनिमय का सरलतम एवं सर्वोत्तम साधन - बालक जन्म के कुछ दिनों पश्चात् परिवार में रहकर भाषा सीखने लगता है। यह भाषा वह स्वाभाविक एवं अनुकरण के द्वारा सीखता है। इसे सीखने के लिए किसी अध्यापक की आवश्यकता नहीं होती है। यह विचार-विनिमय का सर्वोत्तम साधन है क्योंकि भाषा संकेतों एवं चिन्हों से श्रेष्ठ है।

(5) चिन्ता एवं मनन का स्रोत- हम भाषा के द्वारा ही विचार - चिन्तन एवं मनन करते हैं। मानव अपने विचारों की ऊँचाइयों के कारण ही सभी प्राणियों में शिरोमणि समझा जाता है। शुक-सारिकादि पक्षी केवल थोड़े से समझने योग्य विचार व्यक्त कर सकते हैं। इसी कारण अन्य नभाचारियों की अपेक्षा आदृत समझे जाते हैं। विचारों की ऊँचाइयों के कारण ही आज मानव विभिन्न ग्रहों की जानकारी लेने में समर्थ है। विश्व शान्ति एवं मानव एकता के प्रयास निरन्तर प्रयत्नशील हैं। अतएव यह स्पष्ट हो जाता है कि विचार - चिन्तन और मनन शक्तियों का विकास भाषा पर ही आधारित होता है।

(6) व्यक्तित्त्व के निर्माण में सहायक - भाषा व्यक्तित्त्व के विकास का महत्त्वपूर्ण साधन है। व्यक्ति अपने आन्तरिक भावों के माध्यम से अभिव्यक्त करता है तथा इसी अभिव्यक्ति के साथ अन्दर छिपी अनन्त शक्ति अभिव्यक्त होती है। अपने विचारों एवं भावों को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करा सकना तथा अनेक भाषायें बोल सकना विकसित व्यक्ति के ही लक्षण हैं। अतएव किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति जितनी स्पष्ट होगी, उसमें व्यक्ति का विकास भी उतने ही प्रभावी ढंग से होगा।

(7) सामाजिक जीवन में प्रगति का साधन - भाषा समाज के सदस्यों को एक सूत्र में बाँधती है। भाषा के माध्यम से ही समाज प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है। भाषा जितनी विकसित होगी समाज उतना ही विकासशील होगा। भाषा के माध्यम से केवल समाज के नैतिक व्यापार ही सम्पन्न नहीं होते अपितु उसकी संस्कृति भी अक्षुण्ण रहती है। यह भाषा ही है जिसके आधार पर विभिन्न स्रोतों, विभिन्न जातियों एवं धर्मों के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। वस्तुतः भाषा समाज को जोड़ने में सहायक है अतएव यह कहा जा सकता है कि भाषा सामाजिक जीवन में प्रगति का साधन है।

(8) साहित्य एवं कला, संस्कृति एवं सभ्यता का विकास - साहित्य भाषा में लिखा जाता है भाषा का विकास उसमें पल्लवित साहित्य के दर्पण में देखा जाता है। इसी तरह से कला के स्वर भी भाषा में मुखरित होते हैं। जब वायुमण्डल में स्वर गूँजते हैं तथा श्रोता गदगद् हो जाते हैं तो यह सारा चमत्कार भाषा का ही होता है। भाषा के द्वारा ही हम अपने समाज के आचार-व्यवहार तथा अपनी विशिष्ट जीवन-शैली से अवगत होते हैं और भाषा के द्वारा ही हम नवीन आविष्कारों के आधार पर एक नवीन सृष्टि का सृजन करते हैं तथा अपनी भाषा को उन्नत बनाते हैं।

मटौ ए. पाई के अनुसार-  "भाषा की कहानी वास्तव में सभ्यता की कहानी है।"

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